सोमवार, 16 अक्तूबर 2023

सर सय्यद ज़िंदा या मुर्दा- अकरम हुसैन क़ादरी

किसी का जिस्मानी तौर से इस दुनियाँ से चले जाने का मतलब यह नही है वो मर गया, कोई मरता तब है जब उसकी सोच मर जाती है यूँ तो हिंदुस्तान की सरजमीं पर अनेक महापुरुष आये और चले गए लेकिन उन्होंने अपनी सोच के माध्यम से समाज को एक नई दिशा प्रदान की।
सर सय्यद जैसी अज़ीम शख्सियत को मुर्दा कहने का मतलब है कि पूरी दुनियां के गोशे-गोशे में समाए अलीगेरियन के समाजी, मज़हबी और इंसानियत के काम को दरकिनार करना, जितने भी दुनियाँ में सक्सेस अलीगेरियन है वो ही सर सय्यद के ख्वाबो के असली पैरोकार है वो ही सर सय्यद के ख्वाबो की ताबीर करते हुए नज़र आते है उनका मकसद केवल एक ही होता है कि किसी तरह से सर सय्यद के तालीमी मिशन को आगे बढ़ाया जाए, पूरी दुनियां का अंधेरा अगर मिट सकता है तो वो केवल तालीम ही है मगर अफसोस मौजूदा समय मे हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा अनपढ़ लोग रहते है, अगर कुछ देर के लिए मान लिया जाए कि सर सय्यद मुसलमानों के तालीमी मसीहा थे फिर भी हिंदुस्तान में आज मुसलमान ही तालीमी तौर पर सबसे ज्यादा पिछड़े हुए है जिसकी ज़िंदा मिसाल सच्चर कमेटी की सिफारिशे और स्वामी रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट्स है जिनके जरिए हम समझ सकते है किस तरीके से तालीम ना होने की वजह से हम पूरी दुनियां में पिछड़ रहे है।
पूरी दुनियां के अलीगेरियन को फिर से समझना होगा कि आखिर क्या वजह है हिंदुस्तान में अल्पसंख्यक में शुमार मुस्लिम कौम क्यो तालीम में इतनी पिछड़ गयी जबकि जैन, सिक्ख और पारसी का तालीमी ग्राफ देखा जाए वो अक्सरियत से भी ज्यादा है,
जिन लोगो ने सर सय्यद को मुर्दा मान लिया है उनसे मेरी कोई तवक्को नही है बल्कि जो सर सय्यद की सोच को ज़िंदा रखते है और सर सय्यद को ज़िंदा मानते है वो लोग जिस भी गाँव, मोहल्ले, कस्बे, शहर और देश मे है वही से सर सय्यद के मिशन को शुरू करदो..अगर आपकी माली हक़ीक़त इस काबिल है कि आप कुछ गरीबो को पढा सकते है उसके हिंदुस्तान की दूसरी यूनिवर्सिटी में भेज सकते है उसका खर्चा उठा सकते है तो यह ही सर सय्यद के लिए सच्ची खिराजे अक़ीदत होगी... अगर एक अलीगेरियन अपनी ज़िंदगी मे दो गरीबो को पढा देगा तो यकीनन बहुत जल्दी हमारे मुआशयरे में बदलाव नज़र आना शुरू हो जाएंगे...अलीगेरियन में सबसे अच्छी बात यह भी है कि इनके ओल्ड बॉयज पूरी दुनियां में रहते है और जहां भी रहते है उनका अमल, दखल वहां की सियासी, मज़हबी या मासी हालात में ज़रूर रहता है जिससे वो ज्यादा से ज्यादा अपने बहनों, भाइयो को फायदा पहुंचा सकते है और सर सय्यद के जानशीन बन सकते है ... दुनियाँ में बहुत से ऐसे अलीगेरियन है जो दुनियाँ में जाने माने लोग है और वो लोग इस काम को बहुत ज़िम्मेदारी से कर भी रहे है उनको मुबारकबाद, जो अभी नही जागे है उनको जगाने की ज़रूरत है... सर सय्यद के नाम से हर शहर में एक ओल्ड बॉयज एसोसिएशन है उनका काम केवल सर सय्यद डे मनाकर बिरयानी, कोरमा खाना नही है बल्कि वहां पर गरीबो, मजदूरों के बच्चों को सस्ती तालीम देना भी है जिससे वो लोग समाज को नया रुख दे सके, तालीमयाफ्ता हो जाएंगे तो यकीनन गरीबी भी दूर हो जाएगी.....वतन भी तरक़्क़ी करेगा.. आजकल हिंदुस्तान में एक ट्रैप चल रहा है जिसको हिन्दू-मुस्लिम डिबेट कहते है उससे भी खास बचने की ज़रूरत है हमे वतन के लिए आगे बढ़ना है हम सब भाई-भाई है
आज से हर अलीगेरियन खुद से वादा करे कि वो अपनी ज़िंदगी मे एक गरीब लड़का और लड़की को अपने पैसे से पढ़ायेगा जिससे सर सय्यद को मुर्दा समझने वालों को ठोस जवाब भी मिलेगा और उनकी सोच को आगे बढ़ाने का मौका भी मिलेगा
हिंदुस्तान में अल्लाह ने सर सय्यद के ज़रिए कमसेकम 2 लाख लोगों को तीन वक़्त का कहना मुहैया कराया, यह उन लोगो पर भी करारा तमाचा है जो वसीले का इनकार करते है

जय हिंद

अकरम हुसैन क़ादरी

गुरुवार, 18 मई 2023

सर्पदंश होने पर झाड़, फूंक नहीं इंजेक्शन अपनाए- अकरम क़ादरी

सर्पदंश होने पर झाड़, फूंक नहीं इंजेक्शन अपनाए - अकरम क़ादरी

बरसात का महीना चल रहा है,एसे में सांप, बिच्छू का खतरा बना रहता है।खेतो की मेड़ पर ही विषेले जीव होते है ज़्यादातर ऐसे जहरीले जीव पानी से बचने की वजह से सूखे जगह पर ही रहते है, इसलिए पहले तो ध्यान से जाए, अगर कोई सांप बग़ैरा काट ले तो कभी भी किसी बाबा, वैद्य, हरे, नीले, पीले, काले, सफेद, और भगवा कुर्ते वालो से बचे और सीधा सरकारी जिला अस्पताल की तरफ जाएं। चौमास के दौरान सरकारी अस्पताल में एंटी डोज उपलब्ध होती है।अगर फिर भी किसी वजह से वहां पर "एन्टीवेनम" इंजेक्शन नहीं है तो किसी प्राइवेट हॉस्पिटल को जाए और अपना प्रॉपर इलाज कराए।इलाज लंबा और खर्चीला हो सकता है परन्तु सरकारी अस्पताल में यह पूर्णतः मुफ्त है।सही इलाज करवाने से  आपकी ज़िंदगी बच सके और आपका परिवार भी सुरक्षित हंसता खेलता रहें। 
बहुत से हमारे मित्र कहेंगे मिसाल के साथ कि फलां तारीख को फलां इंसान को ढिंका बाबा ने मन्त्र से ठीक कर दिया था, दोस्तों यह कोरी अफवाह है इससे कुछ नहीं होता है दरअसल जिस सांप ने काटा होता है वो ज़हरीला नहीं होता है और थोड़ी बहुत सूजन आ जाती है। लेकिन जिस भी बाबा या वैद्य के पास ऐसे मरीज़ को लेकर जाओ तो वो बताता है कि इसको किंग कोबरा ने ही काटा है जबकि किंग कोबरा जंगलो, पहाड़ो या फिर साउथ इण्डिया में पाया जाता है। हां कोबरा ज़रूर खेतो, घरों में होता है फिर यह बाबा क्यों इतना अधकचरा ज्ञान बांटते है क्योंकि उनको अपनी दक्षिणा और अपने पुरखों के नाम पर डकैती करना है। वो केवल आपको लूटते है और अपनी जीविका चलाते है। घरों में ज़्यादातर वही सांप पाए जाते है जो "नॉनवेनम" होते है बस एक सांप ज़्यादा घर, मकान में मिलता है वो है कॉमन करैत जिसको गांव में हिरूआ,  धामन या फिर दूसरे इलाक़ाई नामो से जाना जाता है। उत्तर भारत में सांप की सभी प्रजातियों में केवल तीन प्रजातियां ही विषेली होती हैं।इनमें कोबरा, करेंत, रसेल वाइपर है।  इसलिए जब भी कभी आपको कोई सांप काटे तो पहले काटी हुई जगह को पानी से धोएं और उसपर किसी चीज का लेप या चीरा बिल्कुल भी न लगाए।सबसे पहले शांत रहें और घबराए नहीं क्योंकि घबराहट से हृदय गति तेज हो जाती है और ज़हर तेजी से फैलने लगता है। बिना घबराए शांत  रहें और काटी जाने वाली जगह या उसके आसपास जगह पर किसी भी चीज को न बांधे।यदि संभव हो तो गर्म पट्टी को काटे गए स्थान से ऊपर नीचे से ऊपर की ओर लपेटे ,ठीक वैसे ही जैसे किसी डंडे या दूसरी वस्तु को कपड़े या रस्सी से ढका जाता है।लेकिन इसे कसकर बिल्कुल भी ना बांधे।ध्यान रहे कि संभव हो तो पैदल न चले और यदि बैल्ट या नाड़े वाला कोई वस्त्र पहने हो तो उसे ढीला कर दे और जल्दी से सीधे हॉस्पिटल जाएं ।सर्पदंश का इलाज संभव है और यह आपके आसपास प्राथमिक स्वास्थ केंद्र अथवा जिला अस्पताल में आसानी से उपलब्ध होता है। बाबा, ओझा, वैद्य से झाड़, फूंक ना कराए।यह बिल्कुल अंधविश्वास है । हिंदुस्तान में ऐसी मौतों की संख्या ज़्यादा है जो सांप के कटने से होती है परन्तु उसका मुख्य कारण अंधविश्वास ही होता है।  भारत में सर्पदंश से मरने वाले लोग अधिकांशतः अंधविश्वास और सही इलाज के अभाव में मरते है। लोग अस्पताल जाने के बजाय बाबा और दूसरे ढोगियो के चक्कर में फंसकर जान और माल का नुक़सान करते है। यकीन रखे कि कोई भी सर्प काटे उसका इलाज आपके पास सरकारी अस्पताल और जिला अस्पताल में मौजूद है।भारत सरकार भी जनता को इससे अवगत कराते हुए जागरूक का प्रोग्राम चलाए जिससे किसान, मज़दूर का जीवन बच सके और वो अच्छा जीवन व्यतीत कर सके। वर्तमान समय मे सरकार सर्पदंश से मरने वालों को काफी पैसा भी देती है।

शनिवार, 20 नवंबर 2021

डॉ. आज़ममीर ख़ान पीलीभीत की पहली पसंद- अकरम क़ादरी

डॉ. आज़ममीर ख़ान पीलीभीत की पहली पसंद- अकरम क़ादरी


चुनावी सरगर्मियों में नेता लम्बे-लम्बे लिखे हुए भाषण देकर खुद को बहुत अच्छा समझते है जबकि जनता केवल नेता के काम पर विश्वास करती है। हद से ज़्यादा बोलना भी कैंडिडेट के लिए नुकसानदायक हो जाता है। क्योंकि वो जनता और उसके असल मकसद को समझ ही नहीं पाता है। और झूठे वादे करके लॉलीपॉप देकर रफूचक्कर हो जाता है। मौजूदा सरकार में बोलने वाले ऐसे-ऐसे धनुर्धारी है जो कुछ सेकण्ड में ही पानी मे आग लगा दे। लेकिन जनता के बीच उनका काम निल है। जिसके कारण उनको मुंह की भी खानी पड़ती है। 
पीलीभीत की जनता ऐसे लोगो को एक लम्बे समय से जानती है जो नफरती बातें करके आपसी चैन सुकून, मेलजोल ख़त्म करना चाहते है। मेरा बड़ा साफ मक़सद है कि कोई भी ज़िला तब ही तरक़्क़ी करेगा जब सब धर्म, जाति, पंथ के लोग मिलकर कोशिश करेंगे। 
मेरे अपने शहर के भाइयों/बहनो से विनती है कि राजनीति अलग चीज़ है सबसे पहले अपना भाईचारा, अमन क़ायम रखो जहां पर मोहब्बत होती है वहां राजनीति भी अच्छी होती है और ज़िला भी विकास की ओर गामज़न होता है। अंततः मेरा मकसद मोहब्बत है जहां तक फैले।
डॉ. आज़ममीर ख़ान जब 2012 में नई नवेली पीस पार्टी से कैंडिडेट थे जनता ने इसी प्रेम, मोहब्बत और अमन वाले पैग़ाम के कारण उनको बत्तीस हज़ार वोट से नवाज़ा था, जबकि उस वक़्त सूबा ए उत्तरप्रदेश के कद्दावर नेता, पुराने राजनीतिक पांच बार के विधायक मरहूम हाजी रियाज़ अहमद साहब ज़िंदा थे। हाजी साहब का इस दुनिया मे जाना सच मे बहुत दुःख का विषय है लेकिन इस समय पीलीभीत की जनता कोई ऐसा नेता नज़र नहीं आया जिसमे हाजी जी के बराबर दमदारी हो, जो जनता के मुद्दों को मज़बूती से उठा सके। 
डॉ. आज़ममीर ख़ान साहब में पीलीभीत की जनता को वो खूबियां नज़र आती है जो पीलीभीत की जनता चाहती है क्योंकि डॉ. आज़ममीर ख़ान साहब को राजनीति का अच्छा अनुभव है वो एएमयू से ही छात्र राजनीति में सक्रिय चेहरा रहे है और अपने ज़िले के बहुत लोगो को उन्होंने इलाज, शिक्षा जैसे बुनियादी मसलों को हल करने का काम किया है। 
वास्तव में पीलीभीत की जनता की कुछ ही डिमाण्ड रही है जिसमे शिक्षा और स्वास्थ्य मुख्य है। डॉ. आज़म मीर खान इन मुद्दों को भलीभांति समझते भी है क्योंकि वो स्वयं एक डॉक्टर है और शिक्षा के मैदान में भी उनका अहम योगदान है। अलीगढ़, जामिया, दिल्ली और इलाहाबाद में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं की आपने उनके एंट्रेंस में भी मदद की है। कई छात्र-छात्राओं को कोचिंग के ज़रिए अच्छे कोर्स में एडमिशन कराया है इस कारण ही पीलीभीत की जागरूक जनता आज़म मीर ख़ान को अपने विधायक बनाने के लिए आतुर है। 
डॉ. साहब ने जबसे समाजवादी पार्टी जॉइन की है तबसे जनता में भी उम्मीद की किरण नज़र आती है क्योंकि जब वो किसी पद पर नहीं थे तो लगातार जनता की मदद कर रहे थे। आने वाले समय मे अगर पार्टी प्रमुख का आशीर्वाद मिला और जनता ने अपना अप्रितम समर्थन दिया तो पॉवर के साथ जनता के मुद्दों पर जमकर काम करने का प्रयत्न करेंगे।
समाजवादी पार्टी की नीतियों का प्रचार-प्रसार में संलग्न आज़म मीर खान ने बताया कि जनता का उत्साह, पार्टी के पिछले कार्यो को पॉजिटिव रेस्पांस निश्चित ही 2022 में सफलता दिलाएंगे फिर से जनता से न्याय होगा सबको समानता का अधिकार मिलेगा

बुधवार, 17 नवंबर 2021

किसान आंदोलन और यूपी, उत्तराखंड चुनाव- अकरम क़ादरी

किसान आंदोलन और यूपी, उत्तराखंड चुनाव- अकरम क़ादरी

किसान आंदोलन को लगभग ग्यारह महीने हो चुके है। आंदोलित किसानों ने हाड़-मास कपाती सर्दी भी देखी है, पिघलने वाली गर्मी भी और सर्द हवा के साथ बारिश भी। कई बार ज़ोरदार आंधी में टेंट भी उड़ गए फिर भी भीगते हुए किसान धैर्य से बैठे रहे, अनेक मुसीबतों का सामना करते रहे उसके अलावा प्रशासनिक धमकियां, पत्रकारों की उलूल-जुलूल मीडिया डिबेट (ट्रायल), सत्ता समर्थित पत्रकारों और तथाकथित मीडिया वालों ने किसानों की इमेज कभी खालिस्तानी बनाई, कभी आतंकवादी कहा, तो कभी किसी भी विपक्ष पार्टी का प्रोपगंडा कहकर नकारने की भरपूर कोशिश करते रहे। सत्ता, मंत्री और उनका आई.टी सेल इवेंट मैनेजमेंट करने में लगा रहा है, बदनाम करने की कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ी, सत्ता पक्ष के लोगो का ब्रह्मास्त्र 'हिन्दू-मुस्लिम' का रूप देने की भी कोशिश बर्बाद हो गयी। क्योंकि वास्तव में देश मे धार्मिक विविधता तो है वो अनेक धर्मो का मानने वाला हिन्दू-मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई तो है लेकिन उससे पहले वो एक किसान है उनकी आजीविका का मुख्य साधन फसल ही है जहां से वो अपने बच्चे का लालन-पालन करता है, अपनी लड़की के हाथ पीले करता है, बेटे को फ़ौज की नोकरी में भेजता है खुद खेती करके देश की जनता की पेट की आग बुझाता है।
आंदोलित किसानों के साथ लगातार घटनाएं हो रही है, अभी कुछ दिन पहले ही लखीमपुर की हृदय विदारक घटना हुई है जिससे कथित तौर पर मंत्री के बेटे ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे  किसानों को अपनी महेंद्रा थार से कुचल दिया जैसा बताया जा रहा है।  कई किसान मौके पर ही शहीद हो गए, जिसमें एक पत्रकार भी शहीद हुआ है। जो लोग गाड़ी में सत्ता पक्ष के थे उन्होंने जब भागना शुरू किया तो उत्तेजित भीड़ ने उनको दौड़ाकर पीटा, सुनने में आ रहा है उनकी भी मृत्यु हो गई जिसकी ज़िम्मेदार अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र और राज्य सरकार है। इस पूरे कांड में गृह राज्यमंत्री आशीष मिश्रा उर्फ टेनी महाराज के बेटे का नाम आ रहा है। जो महेंद्रा थार में मौजूद था, अभी उसकी गिरफ्तारी हो चुकी है, लेकिन उसका पिता अभी भी गृह राज्यमंत्री बना हुआ है तो प्रतीत होता है कि वो जांच में कुछ दखल अवश्य करेगा जिससे शहीद किसानों को न्याय नहीं मिल सकता। किसान नेता और सभी पंजाब के जत्थेबंदी उसको बर्खास्त करने की मांग कर रहे है। जिससे शहीद किसानों को न्याय मिल सके और असली गुनहगार सलाखों के पीछे जा सके। 
किसान आंदोलन बहुत मज़बूती से दिल्ली के चारो तरह बॉर्डर पर चल रहा है। सभी किसानों के दल बैठे हुए है और वोट की चोट से अपनी मांग मंगवाने के लिए रणनीति तैयार कर रहे है हालांकि वो वेस्ट बंगाल में कामयाब भी हुए है लेकिन हिंदी हार्टलैंड में भी मज़बूती से लड़ रहे है। हो सकता है इसमें भी उनको कामयाबी मिल जाएं।
भाजपा के लिए इस समय देश में पांच जगह चुनाव है जो आगे-पीछे ही  चुनाव आयोग द्वारा प्रस्तावित है। किसान नेताओ ने लखनऊ, देहरादून में अपनी मौजूदगी दिखाना शुरू कर दिया है क्योंकि जितनी भी मीडिया डिबेट हो रही है उसमें किसान नेता ज़रूर एक दो सेशन में दिख रहे है। इससे यह साबित होता है किसान आंदोलन भी यूपी, उत्तराखंड के चुनाव पर भरपूर असर करेगा। क्योंकि पश्चिमी उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड लगभग एक जैसी ही पृष्ठभूमि रखते है क्योंकि संस्कृति, भाषा और खान पान लगभग समान ही है। 
इस क्षेत्र का किसान जागरूक भी है और अपना हक लेना जानता भी है।
पिछले कई महीनों से किसानों के लिए बीजेपी नेताओ द्वारा आवाज़े उठना शुरू हो चुकी है जो पार्टी चुनाव के लिए अच्छे संकेत नज़र नहीं आते है।
पूर्व बीजेपी नेता और वर्तमान में गवर्नर सत्यपाल मलिक बराबर किसानों के मुद्दों को लेकर मुखर प्रतीत हो रहे है। वो जो बातें जनता के सम्मुख रख रहे है वो एकदम यथार्थ है। लेकिन पार्टी अपनी हठधर्मिता छोड़ना नहीं चाहती है।
पीलीभीत से बीजेपी के सांसद संजय  और मेनका गांधी के सपुत्र वरुण फ़ीरोज़ गांधी भी किसानों के लिए अपनी भावनाएं बता चुके है और मुखर रूप से अपनी ही सरकार का विरोध दर्ज करा चुके है। 
गौरतलब है किसानों के मुद्दे पर ही भाजपा का सबसे पुराना अकाली दल भी बाहर हो चुका है। और किसानों के मुद्दे पर डटकर सामना कर रहा है। बाकी हिंदी हार्टलैंड से न जाने कितने विधायक, नेता बीजेपी छोड़ चुके है जो निश्चित ही उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड के चुनाव में अपना असर दिखाएंगे ही उसके वाला बाकी तीन राज्यों में किसान आंदोलन का जबरदस्त प्रभाव देखने की उम्मीद है।

शनिवार, 19 जून 2021

हाँ-हाँ राजनीति में अनफिट है, राहुल गांधी - अकरम क़ादरी

हाँ-हाँ राजनीति में अनफिट है राहुल गांधी - अकरम क़ादरी

नेहरू-गांधी परिवार का कोई चश्मों चिराग़ अगर भारतीय राजनीति में अनफिट है तो सच में यह बहुत कुछ सोचने-समझने पर मजबूर करता है। आखिर ऐसा देश मे क्या हो गया कि इतने बड़े परिवार का व्यक्ति मुझ दो कौड़ी के इंसान को राजनैतिक अनफिट लग रहा है जिसको मैं लिखकर बता भी रहा हूँ।
एक लम्बे अरसे से भारतीय राजनीति में विचारधारा का घोर अकाल है मुठ्ठीभर लोग ही बचे है जो अपनी विचारधारा से समझौता नहीं करते है। वरना सुबह में जिन नेता जी के गले मे हरा पट्टा देखा था शाम होते ही भगवा होकर उसी पार्टी को बुरा भला कहते हुए देखा है जिसके लिए सुबह कसमें खा रहे थे। शाम को उन्हीं कसमों की धज्जियाँ उड़ाई जा रहीं है। (दरअसल राजनीति में भी एक वाशिंग मशीन है जो सुबह में पड़े हुए पट्टे को धोकर साफ कर देती है अर्थात इधर से भ्रष्टाचारी मशीन में डालो उधर से सदाचारी निकलता है) वर्तमान सत्तारूढ़ दल में भी कांग्रेस से भगौड़े नेताओ की लंबी फेहरिस्त है। क्योंकि यह अधिकांशतः दागी तो है जिनका मकसद राजनीति में धनोपार्जन करना, ऐश, अय्याशी करना, आय से अधिक सम्पत्ति रखना, तथा कुकर्मों में रोज़ ही नाम आना और उन नामों को छुपाने का प्रयत्न करना। ऐसे नेताओं के लिए हमेशा सत्ताधारी दल अपने पालतू सरकारी तोते और तोतियाँ नामक परजीवी छोड़ देता है जो डायरेक्ट, इनडाइरेक्ट उस नेता को समझाती है कि अगर ऐसा करोगे वो सब चीज़ों से बच जाओगे और बिल्कुल ऐसा ही फिल्मी सीन होता भी है जो पार्टी दस दिन तक उस नेता के खिलाफ ट्विटर पर दलाली का ट्रेंड चला रही हो उसी को ही डिफेंड करना शुरू कर देती है। 
आखिर में बात यही आती है पिछले दो दशक से राजनीति के 'मूल' जीर्ण-शीर्ण अवस्था से विमुख होकर भरभराकर गिर चुके है। 
राहुल गांधी की काबिलियत पर शक करना तो शायद मुझे उचित नहीं लगता है क्योंकि वो वक्ता नहीं कर्ता है। जिस प्रकार से डॉ. मनमोहन सिंह जी अच्छे वक्ता नहीं थे लेकिन काम करता लाजवाब थे, डिग्रियों का अंबार था उनके खाते में ऊपर से क़लम भी वही पांच रुपये वाला रेनॉल्ड्स का जिसको देखकर कोई भी शरमा जाए। एक आज वाले नेता है जो वक्ता बहुत शानदार है, दस मिनट में ही रसगुल्लों की बारिश करा दे और जनता को एहसास भी करा दे कि उन्होंने बगैर चासनी के रसगुल्ले लील लिए है लेकिन मज़ा बाद में आएगा। 
दरअसल यह वो व्यापारी हैं जो पुराने सड़े-गले माल को नई पैकिंग के साथ करोड़ो में बेच देते है। जिससे लम्बे समय तक चलने वाले रिश्ते कुछ समय में ही खराब  हो जाते है।
इतना ज़्यादा कॉन्फिडेंट में बोलने के कारण कभी-कभी ऐसा बोल जाते है जिससे उनके समर्थकों को भी डिफेंड करने में हिचकिचाहट होती है। फिर भी वो बेचारे करते है(उनकी बुद्धिमत्ता को नमन) 
पिछले दिनों एक सिफोलॉजिस्ट कम पॉलिटिशियन एंड किसान नेता को सुन रहा था वो कह रहे थे- "देश मे बहुत प्रधानमंत्री आये, बहुत-बहुत निकम्मे, कामचोर भी थे, आलसी भी थे लेकिन इतना सफेद झूठ बोलने वाला पहली बार देखा है" यह विचार उनके सुनकर बहुत सोचा कि आखिर यह इंसान जो कह रहा है वो सच तो है, फिर राहुल गांधी के संदर्भ में सोचा तो कहानी बिल्कुल अलग लगी क्योंकि पिछले दिनों से लगातार एनालिसिस कर रहे है जो राहुल गांधी भविष्य के बारे में बताते है वो सच ही हो रहा है। जिसका नुकसान हमारे साथ -साथ मासूम स्टूडेंट्स का भी होता है।
मौजूदा बतौलेबाज़ ने ऐसे-ऐसे झूठ गढ़ दिए है जिसकी वजह से जागरूक जनता में उस पद की इज़्ज़त भी कम हुई है। कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण पेश कर रहा हूँ जिससे आपको पता चल सके मौजूदा राजनीति में राहुल गांधी क्यों अनफिट है
जब उन्होंने एक इंटरव्यू में बोला कि उन्होंने पहला ईमेल 1988 में किया था, उनके पास डिजिटल कैमरा भी था, फिर किसी भी बड़े प्राइम टाइम न्यूज़ एंकर ने उसकी पड़ताल की ...शायद किसी  पर भी नहीं हो सकता है NDTV ने कर दी हो लेकिन किसी भी गोदी मीडिया के पत्रकार ने दो लफ्ज़ भी इस वैज्ञानिक खोज पर बोले हो तो कोई हमें दिखा दे। 
हालांकि आजकल झूठ का सबसे ज्यादा प्रोपेगैंडा गोदी मीडिया के पत्रकार ही दो हज़ार के नोट में चिप दिखाकर कर रहे है।
हिंदी के तीन महान महापुरुषों को एक ही कालावधि का बता दिया जबकि उनकी उम्र में कम-से-कम 100 वर्ष का अंतर है। इस पर भी किसी प्राइम टाइम गोदी मीडिया ने कुछ नहीं बोला।
महानता का स्तर देखिए टीवी इंटरव्यू में गोदी मीडिया के पत्रकार से कह रहा है बादल की वजह से राडार काम नहीं करता है। 
पत्रकारों/ कैनेडियन कलाकारों के प्रश्न देखेंगे तो आंसू ही आ जाएंगे फिर भी वो मीडिया ट्रायल देते हुए कुछ नहीं बोलते है
आम आप चूसकर खाते है या काटकर?
आप कौनसा टॉनिक लेते है, आप थकते क्यों नहीं है?
आप बटुआ (पर्स) रखते है क्या?? 
दरअसल यह इंटरव्यू ज़्यादातर फिक्स ही होते है जिसको देखकर लगता है एक तरफा चल रहा है। 
दूसरी तरफ तथाकथित देशभक्त पार्टी की आई.टी. सेल ने एक पढ़े-लिखे युवा नेता को 'पप्पू घोषित करने के लिए मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक अपना जाल बिछाया और बहुत हद तक कर भी दिया' लेकिन पिछले दिनों अचानक एक सच्चाई निकल कर सामने आई जो भी राहुल गांधी ने भविष्यवाणी की थी वो एक एक करके सच साबित हो रही थी, इस बार बगैर किराए की जनता ने दूसरे लोगो को पप्पू बोलना शुरू कर दिया। दूसरी तरफ कोरोना की सेकंड वेब ने पार्टी को धराशायी कर दिया है हर तरफ उनकी सच्चाई सामने आ गयी हैं। 
किसानों की समस्या का भी निपटारा नहीं कर पाए है बल्कि खुद के अन्नदाता को देशद्रोही, खालिस्तानी, आतंकवादी कहना शुरू कर दिया जिसका समर्थन गोदी मीडिया ने भी अपरोक्ष रूप से खूब किया लेकिन किसान आईटी सेल ने इनकी धज्जियां उड़ा दी और देश को सच्चाई पता चलती रही जिससे किसानों पर होने वाले दुष्प्रचार का सामना खुद किसान और उनके जागरूक पुत्रों ने किया है।

जय हिंद

अकरम क़ादरी

गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

जिस पिता ने ज़िन्दगी दी, बेटे ने लीवर देकर अपना फ़र्ज़ निभाया - अकरम क़ादरी

जिस पिता ने ज़िन्दगी दी, बेटे ने लीवर देकर अपना फ़र्ज़ निभाया - अकरम क़ादरी
एक कहावत है- "बुरे वक्त पर ही अपने और गैरों का एहसास होता है" जो अपना होता है उसको कहने की ज़रूरत नहीं होती है और गैर से कोई कुछ कहता नहीं है। कुछ ऐसा ही हुआ है बेटे और वालिद के रिश्तों में-  रामपुर के हसनात अली खान अलीग ने पेश की मिसाल यह वो बेटा है जिसने अपने पिता को नया जीवन दिया है हालांकि यह ज़िन्दगी उन्हीं की दी हुई है। हसनात अली ख़ान ने अपना लीवर देकर इतना ही नहीं आजकल के बेटों के प्रति जागरुगता पैदा की है और मां-बाप की प्रति सेवा-भाव का उदाहरण भी पेश किया है। जबकि प्रोफेशनल लाइफ की वजह से संवेदनशीलता खत्म होती जा रही है आजकल के रिश्तों में भावुकता नहीं है। जब हसनात को मालूम हुआ कि उनके पिता को लीवर की ज़रूरत है तो उन्होंने बड़ा दिल दिखाकर अपने पिता के लिए फ़र्ज़ अदा करने की एक छोटी से कोशिश की। पिता को भी अपने बेटे पर गर्व महसूस होता है।
रामपुर निवासी विज़ारत अली खान लम्बे समय से लीवर की बीमारी से पीड़ित थे सन 2015 में लीवर डैमिज होने के कारण डॉक्टर ने उन्हें जीवित रहने के लिए ट्रांसप्लांट ही अंतिम विकल्प बताया था, पिता को बचाने के लिए बेटा हसनात आगे आया उसने अपना 60 पर्सेंट लिवर पिता को मेदांता हॉस्पिटल गुरुग्राम में को प्रत्यारोपित करा दिया उसके ट्रांसप्लांट को लगभग 6 साल पूर्ण होने के उपलब्ध में मेदांता हॉस्पिटल लीवर ट्रांसप्लांट डिपार्टमेंट के डिरेक्टर पद्मश्री डॉक्टर ए. एस. सोनी ने बधाई देते हुए ट्वीट किया जिसकी बड़े-बड़े जर्नलिस्ट ने सराहना की तथा उस ट्वीट को कई जागरूक नागरिको ने रिट्वीट भी किया जिनमे मिस्टर राघव भल  फ़ाउंडर नेटवर्क 18 अथवा मिस्टर संजय पुगलिया प्रेसिडेंट एंड एडिटोरीयल डिरेक्टर दा क्विंट इण्डिया ने रिट्वीट कराकर हौंसला अफजाई करते हुए हर बेटे को ऐसा गौरवशाली काम करने का एहसास दिलाया आजकल लोग अपने माँ-बाप को चंद वजह से वृद्धाश्रम में छोड़कर चले आते है यह विदेशी अपसंस्कृति हमारे देश मे बहुत तेज़ी से पैर पसार रही है जिसको हसनात जैसे नोजवानो से सीख लेकर आजकल के बच्चों को अपने माँ-बाप की सेवा करना चाहिए। 
हसनात ने जब लीवर ट्रांसप्लांट कराया था जो साथ मे उनके हमदर्द, दोस्त, अजीजों अकारिब भी थे जिसमें फैज़ान शाहिद, अकरम क़ादरी ने उन्हें मुबारकबाद पेश की तथा खुद को गौरवान्वित महसूस किया और कहा कि ऐसे दोस्त पर हमें फक्र है।

सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

किसान की लाठी, किसान का ही सिर- अकरम क़ादरी

किसान की लाठी, किसान का ही सिर- अकरम क़ादरी

एक पत्रकार दिल्ली में बगैर हेलमेट के जा रहा था, रास्ते मे एक पुलिस वाले ने रोका और बड़े रौब से पूछा कहाँ जा रहे हो ? पत्रकार ने बेधड़क होकर कहा "ग़ाज़ीपुर बॉर्डर किसान आंदोलन को कवर करने" इतने पर ही पुलिस वाले भाई साहब बिखर गए और आंखों में आंसू लिए बोले "बड़ी बदकिस्मती है भाई आज हम अपने ही बाप-भाइयों की पीठ पर लाठियां बरसा रहे हैं। उसी पीठ पर जिसपर बैठकर हम बड़े शौक़ से खेत पर जाया करते थे। पुलिस के आक़ाओं के हुक्मों का हवाला देते हुए उसने दबी आवाज़ से कहा अब उस बाप पर कैसे लाठियां बरसाई जाए जिसने खेती में रात-रात भर कपकपाती सर्दी में सिंचाई करके मुझे इस क़ाबिल बनाया है। एक भाई बॉर्डर पर दूसरा भाई भी बॉर्डर पर गाज़ीपुर वाले और माँ बाप सड़क पर ये क्या खेल रही है सरकार।

इतनी देर में पत्रकार साहब समझ चुके थे कि अंदर तक कितना हिला हुआ है यह पुलिस वाला, उनको संवेदनाए देते हुए कहा "चिंता ना करो जब तक हम है असली और सच्ची पत्रकारिता करेंगे चाहे हमारी जाति के बड़े गिद्ध कितने भी बिक जाए। हम आपके दर्द को बखूबी समझ रहे है और पेट की आग बुझाने की मजबूरी को भी।

पत्रकार महोदय को थोड़ा आगे ले जाकर पुलिस महोदय ने 500₹ का नोट दिया और कहा "वहां जाकर लंगर में दे देना"। उम्मीद की नज़रों से देखते हुए कहा भाई अपने पेशे से समझौता नहीं करना अभी तो लाखों लोग भूखे सो रहे है आने वाले वक्त में करोड़ो सोएंगे, हो सकता है उसमें आपकी और मेरी आने वाली पीढियां भी हो"

पत्रकार महोदय जब वहां से निकले तो पुलिस की जो दंगाई वाली इमेज आजतक बनाई गई थी यह तस्वीर उससे भी बिल्कुल अलग थी। कुछ देर आगे चलने के बाद उसके शब्दों की तासीर को समझते-समझते कब ग़ाज़ीपुर बॉर्डर आ गया पता नहीं चला, फिर अपने काम पर लग गया।