शुक्रवार, 23 मार्च 2018

क़ुरान का इंसान बने- अल्लामा क़मरूज़ज़्मा आज़मी

एएमयू के कैनेडी ऑडिटोरियम में मुस्लिम स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन के 14 वे सालाना अज़मत-ए-रसूल कॉन्फ्रेंस में ग्रेट ब्रिटेन के प्रवासी भारतीय अल्लामा क़मरूज़ज़्मा आज़मी ख़ान आज़मी ने छात्रों से मुख़ातिब होते हुए अनेक बिंदुओं पर अपनी राय रखी जिसमे उन्होंने सबसे पहले इंसान होने की शर्ते बताई जिसमे उन्होंने न्यूटन का ज़िक्र करते हुए बताया कि किस प्रकार से एक पेड़ के नीचे बैठे व्यक्ति का दिमाग़ काम करता है वो कितना बड़ा अविधकर कर देता है, दूसरी तरफ उन्होंने तलबा का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि जब एक इंसान नदी के किनारे बैठकर कंकड पानी की तरफ फेंकता है तो एक आवाज़ निकलती है जो उसको प्यारी लगती है फिर वो देखता है कि किस प्रकार कंकड़ पानी से एक आवाज़ करके निकल जाता है ठीक उसी प्रकार वो एक बड़ी लकड़ी को पानी मे फेंकते है तो देखते है कि वो डूबती नही है जिससे उनको महसूस होता है कि ज्यादा पानी मे बड़ी चीज रखी जाए तो वो तैरने लगती है जिसको आर्किमिडीज का सिद्धांत कहते है जिसके माध्यम से पानी के जहाज़, नाव का अविष्कार हुआ, कहने का तातपर्य यह है कि इंसान बनने के लिए व्यक्ति का मस्तिष्क खुला हुआ चाहिए, दिमाग तब ही खुला होगा जब वो समाज, दुनियाँ, मानवता के लिए सोचेगा इसी परिप्रेक्ष्य में उन्होंने कहा जब वो मानवता के बारे में सोचेगा तो उसको धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करना पड़ेगा, जिसमे अनेक आसमानी किताबे दुनियाँ में आई है, जिसके अनेक प्रकार से पढ़ा गया है लेकिन जो आखिरी किताब 14 सौ साल पहले आयी है उसके इन सबके बारे में विस्तार से बताया गया है अब यह इंसानो पर निर्भर है वो इनका प्रयोग किस लिए करेगा, क़ुरान दुनियां की एक मात्र ऐसी किताब है जिसमे पूर्ण मानवता का सार है केवल उसको सही मायनों में समझने की आवश्यकता है जिस प्रकार से लोग आजकल क़ुरान को आतंकवाद जैसे कैंसर के लिए इस्तेमाल कर रहे है वास्तव में उन्होंने क़ुरान का सही अध्ययन किया ही नही है अगर किया होता तो आज इस्लाम को इतना बदनाम नही किया होता, इस्लाम शांति, अमन का मज़हब है जिसके माध्यम से हम मानवता की पूर्ण सेवा सही मायनों में कर सकते है, दुनियाँ में अनेक विचारधाराएं आई और समय के अनुसार यूज़ एंड थ्रो हो गयी लेकिन क्या वजह है इस्लाम को आये 14 सौ वर्ष हो गए फिर भी वो खूब फल फूल रहा है दिन प्रतिदिन आगे बढ़ रहा है जितना इस्लामिक मुखालिफ ताकते इस्लाम को बदनाम कर रही है यह मज़हब उतनी ही तेज़ी से देश दुनियाँ में आगे बढ़ रहा है क्योंकि इस्लाम मे ही जीवन जीने की पूर्ण पद्धति के साथ-साथ मानवता का सरोकार पूर्ण रूप से मिलता है, उसको समझाने के लिए उन्होंने कन्फ्यूशियस जैसे दार्शनिक का ज़िक्र किया कि किस प्रकार उसकी विचारधारा आयी है और समय के अनुसार वो चली गयी आज पूरे चीन में उसके मानने वाले मुठ्ठी भर लोग रह गए है, आखिर में उन्होंने कहा कि किसी भी धर्म को आगे बढ़ने के लिए मानवता ही शर्त है जिसमे यह शर्त पूर्णरूप से नही पाई जाएगी वो धीरे धीरे खत्म हो जाएगा, एएमयू के नायब वाईस चान्सलर किछौछा शरीफ के खानवादे के प्रोफ़ेसर तबस्सुम शाहब ने छात्र- छात्राओं का ध्यान इधर भी पोलियो जैसी बीमारी की तरफ आकर्षित किया जिसमें उन्होंने बताया कि पिछले दशक में पोलियो के ज्यादातर मामले मुस्लिम कम्युनिटी में ही मिले थे जिसके लिए हमे तालीम की तरफ ध्यान देना होगा, जब हम तालीमयाफ्ता होंगे तो किसी भी बीमारी से लड़ने की कुब्बत हमारे ज़हन में होगी उसके लिए उपचार भी होगा, कांफ्रेस में अल बरकात एजुकेशन ट्रस्ट के  सरेसर्वा प्रोफ़ेसर अमीन मियां क़ादरी बरकाती सज्जाद नशीन मारहरा ने इस दौर में अपने ईमान को बचाने के लिए अपने दिल मे इश्क़ ए मोहम्मद के साथ साथ मोहब्बत पर ज़ोर दिया जिससे देश दुनियाँ में अमन का रास्ता बन सके, मुस्लिम स्टूडेंट आर्गेनाईजेशन के नेशनल प्रेसिडेंट इंजीनियर शुजात अली क़ादरी, एएमयू के प्रेसिडेंट जावेद मिस्बाही, वाईस प्रेसिडेंट मोहम्मद कैफ़, सेक्रेटरी मोहम्मद अनस, उर्दू मीडिया प्रभारी अज़हर नूर और हिंदी मीडिया प्रभारी अकरम हुसैन क़ादरी के अलावा अल बरकात एजुकेशन ट्रस्ट के सेक्रेटरी डॉ. अहमद मुज्तबा सिद्दीकी ने कांफ्रेस का संचालन किया
#अकरम हुसैन क़ादरी

शनिवार, 3 मार्च 2018

सीरिया से पहले 1922 याद करो- अकरम हुसैन क़ादरी

सीरिया से पहले 1922 याद करो- अकरम हुसैन क़ादरी

इंसानियत, इंसान के दिल मे खिलने वाला सबसे आला तरीन खुशनुमा फूल है, लेकिन क्या वजह है आज हम खूब सीरिया पर आंसू बहा रहे है, बहाना भी चाहिए लेकिन हमें उस मंज़र को भी याद रखना चाहिए जिससे इस खूंखार दौर की शुरुआत होती है, जब तुर्को को कुछ अलग विचारधारा के लोगो ने हरम शरीफ जैसी मुक़द्दस जगह पर तुर्को को क़त्ल कर दिया लेकिन तुर्को ने हुज़ूर सल्लाहो अलैहे वस्सलम की वफादारी और इस्लामी इंसानियत के वजह से पूरी हरम शरीफ में तलवार नही चलाई क्योंकि वो जानते थे यह पाक जगह है इसको खून से लाल नही करना चाहिए लेकिन तथाकथित फ़र्ज़ी किंग डाकू सऊद और शहादत हुसैन जैसे ईमानी चोरों के कुत्तो ने हरम शरीफ में ही तुर्को का क़त्ल करके गारत कर दिया, यू तो दर्द हमे फ़िलिस्तीन, लेबनॉन, इराक़, अफगानिस्तान, चेचन्या, जैसे मुल्कों का बहुत है, लेकिन कभी भी हमने 1922 की तारीख का मुताला क्यो नही किया जिसको हमे करना चाहिए जिस तरह से कुछ लोगो ने मिलकर 1922 बाद अरब ( जिसको पहले हिजाज़ कहते थे) उसको लूटा आज भी उनकी औलादे लगातार मुस्लिम कन्ट्रीज को इन सऊदी के कुत्तो के साथ मिलकर लूट रही है आखिर क्या वजह है जब बर्मा में मुसलमानों पर हमले होते है तो तुर्क की सेना जाती है लेकिन जब फ़िलिस्तीन पर हमले होते है तो पड़ोस में सऊद अरब के कान में जूं भी नही रेंगती है आखिर वजह क्या है इसको हमको जानना चाहिए अगर अरब चाहता तो आज जिस तरीके से हमारे सामने जो परेशानियां दरपेश आ रही है वो बहुत हद तक नही आती

खून का व्यापार बड़ा ही है जिस तरह से पेट्रोल, डीज़ल का कारोबार सऊदी के चंद कुत्तो, अमेरिका के दुश्मनों और बिट्रेन के दलालो ने मिलकर लूटा है ....हमारी संवेदनाएं, दिल अज़ारी आज भी सीरिया के लोगो के साथ है एक इंसानी दिल होने के नाते लेकिन हमें अपने पुराने वक़्त को याद रखना चाहिए, जो कुछ फ़र्ज़ी विचारधाराएं पनप रही है चले उनको मुँह तोड़ जवाब देना चाहिए जो इस्लामी ड्रेस में ही हम सबको बरगलाती है, नए नए नोजवानों की जवानी लुटती है दरअसल यह सब ग़ुलाम कौम से पैदा हुए उनके कुत्ते ही है ......लौरेंस ऑफ अरबिया को पढो....इनकी तारीख को पढो सब मालूम हो जाएगा......

जय हिंद

#अकरम हुसैन क़ादरी