बुधवार, 29 अगस्त 2018

एएमयू : हिन्दू बहन को मुस्लिम भाइयों ने दिया कन्धा - अकरम क़ादरी



अभी दो-तीन दिन पहले ही रक्षाबंधन जैसा भाई-बहन के प्रेम का त्योहार हुआ है, फिर भी आजकल इतनी जल्दी धागों का रंग कच्चा पड़ जाता है यह नही मालूम था ।
एएमयू की दर्शनशास्त्र विभाग की शोधार्थी हेमा मेल्होत्रा की आकस्मिक  देहांत हो गया .... जिसका कारण उनकी दोनों किडनियाँ फेल हो जाना था ।वह पिछले दो वर्ष से डाइलाईसिस से जीवित थीं । यह ख़बर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राओं के लिए शोक का विषय है, जब उनके निधन की सूचना उनके विभाग के वरिष्ठ शोधार्थियों को मिली कि उनकी सहपाठी का देहांत हो गया है तो वह सब उनके अंतिम मुख दर्शन के लिए आनन-फानन में अपनी बहन के घर जनकपुरी (अलीगढ़) पहुँचे। जब उंहोंने वहां पर देखा कि उनके पास-पड़ोस के लोग भी बाहर निकल कर नही आए हैं और मेहरोत्रा परिवार में केवल उनके एक बुजुर्ग पिता और उनका एक पुत्र है जिसकी मानसिक स्थिति सही नही है दूसरी तरफ पिता जी की हालत इस क़ाबिल नहीं है जो वो कुछ कर सकें। इन्हीं सबके मद्देनजर सभी हिंदू-मुस्लिम भाईयों ने मिलकर किसी पड़ोस के पंडितजी से रीति-रिवाज को पूछकर अपनी बहन के लिए अर्थी तैयार कराई और जो भी धार्मिक कर्मकाण्ड होते हैं उनको पूरा किया उसके बाद उनकी अर्थी को ले जाकर अंतिम संस्कार की क्रिया को भी निभाया, यह सब देखकर शहर के अनेक लोगों को जब हिंदुस्तान अखबार के माध्यम से पता लगा तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। यह सब पुनीत कार्य एएमयू के दर्शनशास्त्र के शोधार्थी मोहम्मद राशिद, सारिम अब्बास, शाहीदुल हक़, मुज़ाहिदुल हक़, नासिर, अहमद शाह, एजाज़ अहमद, मंसूर आलम, सलमान सिद्दीक़ी, अतिया लतीफ़ और निदा फातिमा आदि ने अंजाम दिया है जिसके लिए उनकी समस्त मानवता ऋणी रहेगी।
पिछले दिनों से जो लोग एएमयू को वोटबैंक की राजनीति का निशाना बना रहे थे उनके मुंह पर यह इंसानियत का जोरदार तमाचा था। जिसकी गूंज उनके चेहरे पर तो नहीं हुई होगी लेकिन उनके हृदय में एएमयू छात्र- छात्राओं के प्रति नफ़रत जरूर कम हुई होगी । जबकि यह सब नफ़रत पैदा करने वाले कुछ नेता और उनके किराए के गुण्डे थे जो हमेशा कुछ भावनात्मक मुद्दे उठाते रहते हैं और ऐसे संस्थान को बदनाम करते हैं जो हमेशा से मानवता, देशप्रेम का जीता जागता उदाहरण रहा है। जिस वक्त यूनिवर्सिटी को विलेन बनाने की कोशिश चल रही थी उसी वक़्त अनेक हिन्दू छात्र-छात्राओं ने सहज रूप से आगे बढ़कर अमुवि की साँझी- सामासिक सँस्कृति और हिंदू-मुस्लिम एकता को अपने उद्बबोधनों से स्पस्प किया था।
जो भी हमारे दुश्मन है हम अलीग उनको क़लम से भी जवाब देने में सक्षम है और अपनी मानवतावादी दृष्टिकोण से भी।
एएमयू ही हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल बनकर आगे बढ़ रहा है जो अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओ को एएमयू की आड़ में पूरा करना चाहते हैं उनके लिए यह संवेदनात्मक सौहार्द करारा जवाब है, जब तुम एएमयू पर कोई हिन्दू-मुस्लिम डिबेट चलाने के लिए नफ़रत की राजनीति करते हो तो हिन्दू छात्र-छात्राएं तुम्हे मुँह तोड़ जवाब देते है।
जब कोई हिन्दू भाई-बहन बीमार होता है या उसका देहांत हो जाता है तो एएमयू के भाई उनको कंधा देते है.....नफ़रत करने वालो आपकी नफ़रतों का जवाब यह मोहब्बत से कल भी देते थे और आज भी दे रहे हैं....अलीगों पर कोई प्रोपेगैंडा करने से पहले नेताजी और नेताओं के 100₹ वाले गुण्डों अच्छी तरह से सोच समझ लेना ....

जय हिंद
जय भारत

अकरम हुसैन
akramhussainqadri@gmail.com

सोमवार, 27 अगस्त 2018

भाजपा से दूर होती नैतिकता- अकरम क़ादरी



देश की एक ऐसी पार्टी जिसकी शुरुआत ही नैतिकता, संस्कार, संस्कृति से हुई है आज उसमे नैतिकता जैसे शब्दों का भारी अकाल आ गया है। पिछले दिनों दिवंगत हुए पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष कवि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की मृत्यु से लेकर शव यात्रा हो या फिर उनके अस्थि विसर्जन को लेकर जो फजीहत हुई है उससे पार्टी की छवि धूमिल करने में पार्टी के नेताओ से लेकर कार्यकर्ताओं तक की पोल खुल गयी जो एक अच्छी राजनैतिक पार्टी के लिए लंबे समय तक चल पाने के लिए शुभ संकेत नहीं है।
पिछले कुछ समय से देश की मीडिया  टी. वी डिबेट में जिस तरह से पार्टी का पक्ष रख रहे प्रवक्ताओं की बोली उनके हाव- भाव से भी पार्टी की नैतिकता की पोल खुल ही चुकी थी, लेकिन उस पोल पर आखिरी मोहर अटल जी के दिवंगत होने पर लगा दी गयी जिससे यह पार्टी भले ही सत्ता का मज़ा चख रही हो लेकिन नैतिकता बहुत हद तक जा चुकी है।
अटल जी के अंतिम संस्कार के समय जिस तरीके से देश का प्रमुख बैठा था, तथा उनके ही साथ पार्टी अध्यक्ष की बैठने की शैली से लग रहा था कि इनको सच मे दुःख है या नही इसको टीवी स्क्रीन के दर्शकों ने भलीभांति देखा है, उसके अलावा टीवी पर कई ऐसी रिपोर्ट्स आई जिसमे पता लगा कि अस्थि विसर्जन के समय किस प्रकार खिलखिलाकर नेता और कार्यकर्ता विसर्जन कर रहे थे उससे ज़ाहिर हो रहा था कि अटल जी की मृत्यु से इनको कोई दुःख नही है बल्कि यह बहुत खुश है और फ़ोटो खिंचाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे है जिससे पार्टी की विचारधारा, नैतिकता, संस्कार और संस्कृति पर सेंधमारी हो चुकी है जो आने वाले समय के लिए पार्टी के हिसाब से अच्छा नही होगा।
जिस तरह से मध्यप्रदेश, राजस्थान, और छत्तीसगढ़ के नेताओ की अस्थि के सामने की तस्वीरे आई है सच मे वो बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपने प्रिय नेताओ को किस प्रकार उनके विचारों का रोज़ गला घोंट रहे है। अटल जी की अंतिम यात्रा में पहुंचे भगवाधारी स्वामी अग्निवेश पर जिस प्रकार हमला हुआ यह भी पार्टी की विचारधारा और संस्कारो के साथ खुलेआम खिलवाड़ है इससे भी पार्टी की प्रतिष्ठा को संभवतः नुकसान ही होगा। जबकि माना यह जाता है कि बीजेपी भगवा वस्त्र धारण किये हुए व्यक्तियों का बहुत सम्मान करती है लेकिन उन्होंने क्यो ऐसे बुरे समय पर स्वामी अग्निवेश पर हमला किया जब पार्टी के प्रमुख कार्यकर्ता मृत्यु शैय्या पर जा चुके हो, क्या उनकी आत्मा इस कुकृत्य से खिन्न नही हुई होगी आज पार्टी के वरिष्ठ नेताओं कार्यकर्ताओं को भी इस विषय पर गहनता से सोचना चाहिए।
इस पूरी अस्थि कलश यात्रा की पोल अटल बिहारी वाजपेयी जी की भतीजी ने खोलकर रख दी उन्होंने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए कहा कि यही वो लोग है जिन्होंने अपने वयोवृद्ध नेता को पिछले 9 वर्षों से पार्टी के पोस्टर, फ्लेक्स से ग़ायब रखा अब उनका देहावसान हो जाने पर किस प्रकार 2019 की राजनीति को भुनाने की कोशिश कर रहे है। उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले 4 वर्षों से भाजपा केंद्र सरकार और उनकी राज्य सरकारों को बचाने के लिए अब अटल जी को सामने लाकर दोबारा 2019 की सत्ता की वैतरणी पार करना चाहती है, जो मुद्दे 2014 में भाजपा ने उठाये थे उन सभी मुद्दों पर लगभग फेल हो चुकी सरकार को अब केवल अटल जी और उनके जीवन मूल्यों का ही सहारा है वरना इस पार्टी को सत्ता में दोबारा घुसने नहीं देगी जनता।
भारतीय जनता पार्टी को अब पुनः यह विचार करने का समय है कि जिस पार्टी को बनाने के लिए अटल जी ने कभी नैतिकता, संस्कृति, लोकतंत्र, संस्कार से समझौता नही किया क्या उनकी पार्टी अब दो कदम भी उनके सिद्धांतो पर चल रही है अगर चल रही तो बहुत अच्छी बात है और नहीं चल रही है तो विचारधारा को ज़िन्दा रखने के लिए मानवता को ज़िंदा करना होगा पार्टी को बचाना होगा । जब स्वस्थ लोकतंत्र होगा तो निश्चित ही देश मे विकास की व्यार बहेगी, देश उन्नति के शिखर पर अग्रसर होगा ।

जय हिंद
जय भारत
जय किसान

अकरम क़ादरी
akramhussainqadri@gmail.com

शनिवार, 25 अगस्त 2018

दंगाई युवा नेता बनने की ख़्वाहिश - अकरम क़ादरी

दंगाई युवा नेता बनने की ख़्वाहिश- अकरम क़ादरी

आजकल हर किसी को युवा नेता बनने और दिखने की बड़ी ख्वाहिश होती है लेकिन जो होते है वो कहते नही, जो होते नही है वो दिखने की भरपूर कोशिश भी करते है।
आजकल युवा नेता बनाना बड़ा सरल हो गया है पहले तो युवा नेता किसी भी नेता का बेटा, या फिर किसी रसूखदार बेटे का बेटा होता था, लेकिन आज तो गले मे सोने की मोटी चैन, हाथ मे पांच तरह के धागे, दो बेहतरीन बड़ी फोर व्हीलर, 10 मुसन्डे किसी को भी पीट दिया,मार दिया जब मन चाहा किसी बड़े नेता के कहने पर बत्तीमीज़ी कर दी, गरीबो की दलाली खा ली, मजदूरों को परेशान कर लिया क्योंकि इतना सब ड्रामा करने के लिए पैसे की भी ज़रूरत होती है।

लेकिन पिछले चार साल में जितने युवा नेता पैदा हुए है इतने कभी नही हुए है क्योंकि अब तो भगवा कुर्ता पहनकर किसी को भी किसी भी बहाने से पीटकर वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट करके स्वयं को धर्म का रक्षक बताना है फिर कुछ दिन बाद कोई बड़ा नेता जेल से छूटने पर स्वागत करेगा और इनाम भी देगा जिससे वो किसी एक धर्म का नेता कहलाने लगेगा और सबको घूम-घूमकर अपनी कायरता के किस्से भी सुनाते घूमेगा फिर भी लोग उसकी बेवकूफी को बर्दाश्त करते रहेंगे और वो इस भोली भाली जनता पर अपना सिक्का मजबूत करता रहता है आखिर में वो एक सफेदनुमा गुण्डा या तो नेता बनता है या फिर फिरौती वसूल करता रहता है ।
आजकल जितनी भी युवा नेताओ की प्रजाति देख रहा हूँ वो किसी भी राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे पर देश की किसी भाषा मे दो पेज नही लिख सकते, बनते है खुद को बहुत बड़ा हमदर्द, गरीबो का मसीहा, जबकि सच यह है कि यही वो लोग है जो कुछ राजनैतिक पार्टियों को चला रहे है और ऐसे हॄदय विदारक कुत्संग करते है जिससे सच्चे मानवतावादी  इंसान की आत्मा ही मर जाएगी....

नेता बनिए उससे पहले अपना भविष्य देखिए पहले खुद को स्टेबल कीजिये
उसके बाद नेता बनना

आजकल गांव, शहर कस्बो में भी यह युवा नेता नाम की बीमारी बहुत तेज़ बड़ रही है कोई भी गरीब लड़का अपने नाम के आगे युवा नेता लिखकर सोशल मीडिया पर फैला देता है बाद में जब वो कुछ नही कर पाता है तो लोग उसकी मज़ाक बनाते है इधर उसकी एडुकेशन भी गयी, उधर माँ- बाप की उम्मीदे भी मिट्टी में मिल गयी ऐसे में उसको केवल दुनियाँ के सामने बेइज़्ज़त होना पड़ता है फिर वो कमज़रफी का शिकार हो जाता है।
इन सब चीज़ों से बचकर पहले अपने आपको क़लम से मजबूत करो, अपने अंदर टैलेंट क्रिएट करो फिर यह पार्टी के नेता तुम्हे खुद अपने पास बुलाएंगे क्योंकि आने वाला दौर पढ़े-लिखे नेताओ का है गुण्डे, मवाली, फिरौती वसूलने वालो का दौर खत्म होने वाला है .....

पहले तालीम फिर
नोकरी
फिर पॉलिटिक्स....
जय हिंद
जय भारत


अकरम क़ादरी

शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

पुष्पिता अवस्थी कृत 'छिन्नमूल' हिंदी उपन्यास को मिला कुसुमांजलि 2018 का सम्मान - अकरम हुसैन

पुष्पिता अवस्थी कृत 'छिन्नमूल' हिंदी उपन्यास को मिला कुसुमांजलि 2018 का सम्मान - अकरम हुसैन

पुष्पिता अवस्थी को  एक प्रवासी प्रतिष्ठित साहित्यकार माना जाता है लेकिन वे भारतवंशियों की व्यथा- कथा लिखने वाली प्रथम साहित्यकार है जिन्होंने कैरिबियाई देशों में रह रहे भारतवंशियों को अपनी कथा का आधार बनाकर उनको नई संजीवनी देने का एक पुण्य कार्य किया है। जिसको आज भारतीय साहित्य के उत्थान और सम्मान के लिए सक्रिय गैर सरकारी संस्था कुसुमांजलि फाउंडेशन ने सम्मान दिया है यह सम्मान साहित्यकार डॉ. कुसुम अंसल द्वारा शुरू किया गया है दरअसल यह सम्मान हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में लिखने वाले उत्कृष्ट रचनाकारों को दिया जाता है।
कुसुमांजलि सम्मान की शुरुआत 2012 में हुई थी जिसके अंतर्गत अनेक साहित्यकारों को यह सम्मान दिया गया है यह ऐसी संस्था है जो उत्कृष्ट साहित्यकारों को उनकी बेजोड़ और अद्वितीय रचना को सम्मानित करके उनका उत्साहवर्धन करती है  बहुत ही सुधी और प्रखर समिति के सदस्यों द्वारा इसका चयन होता है, जो किसी भी रचना को उसके अनेक मापदंडों पर तौल कर उसको पुरुस्कृत करती है। इस बार हिंदी और जो अन्य भारतीय भाषा के रचनाकारों को चुना गया है उसमें आसामी भाषा के डॉ. डेका और हिंदी भाषा की मर्मज्ञ, भाषाविद्, प्रेम की कवयित्री प्रोफ़ेसर पुष्पिता अवस्थी के 'छिन्नमूल' नामक उपन्यास को चुना गया है । इस उपन्यास की खूबसूरती यह है कि यह प्रोफ़ेसर पुष्पिता अवस्थी के पन्द्रह सालों की तपस्या है जिसको उनको 2001 से 2016 तक सूरीनाम के अपने और नीदरलैंड में रहकर स्वयं अपनी आंखों से देखा है उसका एहसास किया है तथा उसको मानवतावादी दृष्टिकोण से अपनी कलम से उकेरने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। जिसमे गिरमिटिया मज़दूरों की व्यथा तो है ही उसके अलावा भारतवंशियों के द्वारा अपनी भाषा, संस्कार, संस्कृति को भी बचाये रखने और उसको संजोए रखने का अनहद नाद भी है। इस उपन्यास में ऐतिहासिक दृष्टिकोण तो है ही उसके अलावा संस्कृति, संस्कार, परम्पराएँ, तुलसीदास की रामचरित मानस, और कबीर के बीजक का भी पुट देखने को मिलता है। जिसको कोई भी पाठक पढ़ता है तो उसका विश्लेषण अवश्य करता है और वो 5 जून 1873 की गिरमिटिया मजदूरों की कथा को देखता है जिसमे कॉलोनाइजरो द्वारा भारतीय गिरमिटिया मज़दूरों के साथ हुई बर्बरता, दुराचार और उनको वर्षो तक शिक्षा से दूर रखने के छल प्रपंच को भी समझता है जिससे उसको मालूम होता है कि आखिर किस प्रकार उनके खून- पसीने को कॉलोनाइजर ने अपने लाभ के ख़ातिर गिरमिटिया मज़दूरों का दोहन किया है। इस उपन्यास में संवेदना के अभिव्यक्ति का स्तर बहुत उच्च कोटि का है जिसको एक आम पाठक पढ़ते हुए अनेक बार अपनी आंखें नम होते हुए अनुभव करता है। उन्ही नम आंखों, संवेदनाओं, गिरमिटिया मज़दूरों, भारतवंशियों के दर्द को भलीभांति समझकर आज कुसुमांजलि फाउंडेशन की ज्यूरी टीम ने इस उपन्यास को सम्मानित किया है जिससे सूरीनाम, नीदरलैंड और कैरिबियाई देशों में रह रहे भारतवंशियों की पीढ़ियों को सम्मान है। जो डच भाषा को छोड़कर विश्व की किसी भी भाषा को ध्यान में रखते हुए हिंदी भाषा मे पहला उपन्यास है जो कन्त्राकी बागान ( कॉन्ट्रैक्ट प्लांटेशन के तहत ले जाये गए हिंदुस्तानियों के दारुण संघर्ष का जीवित दस्तावेज़ी आख्यान है।

भारत और भारत से बाहर अनेक हिंदी विभाग के संस्थानों में प्रोफ़ेसर पुष्पिता अवस्थी पर शोधकार्य हो रहा है, लगभग प्रोफ़ेसर पुष्पिता अवस्थी ने 45 किताबो की रचना की...जिसमे सभी विधाओं में लिखा गया है.. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भी तीन शोधार्थी प्रोफ़ेसर पुष्पिता अवस्थी पर शोध कर रहे है जिनमे अकरम हुसैन सूरीनाम गध साहित्य में पुष्पिता अवस्थी का योगदान जैसे विषय पर काम कर रहे है जबकि मोहम्मद बिलाल चौधरी और शकील अहमद भी पुष्पिता अवस्थी पर शोध कर रहे है जिससे निश्चित ही पुष्पिता अवस्थी के द्वारा रचे गए साहित्य को बारीकी से समझा जा सकता है....अन्य भारतीय विश्विद्यालयों की बात की जाए तो केरल, बुंदेलखंड, वर्धा, आगरा अनेक विश्वविद्यालयो में शोधकार्य चल रहे है

प्रस्तुति
अकरम हुसैन
शोधार्थी
एएमयू अलीगढ़
सहसंपादक - वाङ्गमय त्रैमासिक हिंदी पत्रिका अलीगढ़

शनिवार, 4 अगस्त 2018

'अनुभव सिन्हा' की फ़िल्म 'मुल्क' मोहब्बत का पैग़ाम है- अकरम क़ादरी

एक ऐसा देश जहाँ अनेक धर्म, जाति, वर्ग, भाषा, संस्कृति, संस्कार, रीति- रिवाज़, परम्परा, तीज त्यौहार होने पर भी अनेकता में एकता की मिसाल है जिसको पूरी दुनियाँ मानती और समझती भी है, जो इस देश की अमूल्य धरोहर है। जिसके द्वारा यहां एक दूसरे को साथ चलने की परम्परा वर्षो पुरानी है, लेकिन फिर भी कुछ लोग अपने राजनैतिक महत्वाकांक्षाओ को पूरा करने के लिए एक लंबे समय से तोड़ने की कोशिश कर रहे है  जिससे उनको कुछ कामयाबी भी मिली है, वसुधैव कुटुम्बकम की परम्परा को तोड़ने के लिए उन्होंने सबसे पहले धर्म को अपना हथियार बनाया है जिससे इंसान को आसानी से तोड़ा जा सकता है और उसके प्रतिद्वंद्वी धर्म के खिलाफ ज़हर उगलकर किसी भी कम पढ़े-लिखे भोले भाले इंसान को बहला फुसलाकर वोट बैंक के साथ जोड़ा जा सकता है जिससे उस इंसान को महसूस होगा कि वो अपने धर्म को आगे बढ़ा रहा है जबकि सच तो यह है कि उसको नफ़रत की आग में झोंक कर उसका श्रद्धा के नाम पर वोट लेकर कुछ धर्म के षड्यंत्रकारी चंपक हो लेते है फिर कुछ समय बाद यह नफ़रत एक कारोबार में बदल जाती है, देश की मुख्य मीडिया जिसमे उनका बहुत हद तक साथ देती है वो हिन्दू-मुस्लिम डिबेट में रीति रिवाज़ो की चाशनी से इसको पक्का करती है जो उस भोले-भाले मासूम इंसान को लंबे समयतक लुटती रहती है वो उनको धर्म, श्रद्धा के नाम पर वोट देता रहता है जिससे भारतीय संस्कृति की महान परम्परा 'वसुधैव कुटुम्बकम' को बहुत बड़ा बट्टा लगता है। अंदर ही अंदर नफरत की ज़मीन तैयार हो जाती है कुछ समय बाद यही एक बड़ा ज्वालामुखी तैयार होता है, नफरत का ताप इतना बड़ा हो जाता है बात मॉब लिंचिंग तक जा पहुंचती है। फिर धर्म के नाम पर रोज़ इंसानियत का क़त्ल होता है एक आम इंसान रोज़ उससे दो-चार होता है। फिर भी वो खामोश ही रहता है क्योंकि उसको लगता है यह जो लोग करा रहे है बहुत शक्तिशाली लोग है वो कुछ भी कर सकते है दरअसल ऐसे लोगो ने धर्म से षड्यंत्र करके उस धर्म को बदनाम करने की जो कोशिश की है वो उनको साफ नजर भी आती है। लेकिन चाहकर भी कुछ कर नही सकते है।

इसी के मद्देनज़र देश की कला संस्कृति, मानवतावादी लोगो ने अपने अपने माध्यमो से आवाज़ उठाना भी शुरू की तो कुछ लोगो को आतंकवादी कहकर खामोश कर दिया कुछ लोग को धर्म का दुश्मन कहकर खत्म कर दिया तो कुछ को धमकियाँ देकर बर्बाद करने की बात कहीं जिससे उन मानवतावादी लोगो ने इन सबसे किनारा कर लिया और खुद की ज़िंदगी जीने लगे और कुढ़ने लगे जिसको चाहकर भी कुछ नही कह सकते ।
इसी बीच एक ऐसा निर्देशक, लेखक, कलाकर्मी अनुभव सिन्हा निकला जिसने इस मुद्दे को गहराई से समझा और ऐसी फिल्म को बनाया है जिससे लोगो के बीच जो नफ़रत बोई जा चुकी है उसको खत्म करने का एक साहसिक प्रयास किया और फ़िल्म को देखने वाले लोगो के दिमाग़ में वो सवाल उठाए जिससे उनको मालूम हो कि जिस रास्ते मे वोट बैंक की राजनीति धर्म की आड़ मे करने वाली राजनैतिक दलों के चक्कर मे फंसने वाले आम इंसान को मालूम हो कि आखिर वो कहाँ जा रहा है जिससे उसको और उसके बच्चों का जीवन इस नफ़रत की आग से बच सके, इसलिए अनुभव सिन्हा ने ' मुल्क' जैसी फ़िल्म बनाई है ।
अनुभव सिन्हा का इस फ़िल्म को बनाने की केवल एक ही मंशा है वो है प्रेम, मोहब्बत, इंसानियत फिर से समाज और देश मे फैल सके जिससे वो देश के लोग आगे बड़े और अपना भविष्य बचा सके वरना देश को तोड़ने वाली शक्तियां इसकी खूबसूरती को तहस-नहस कर देंगी ...आज अपने देश को बचाये रखने की ज़िम्मेदारी हर हिंदुस्तानी की है चाहे वह किसी धर्म, जाति वर्ग का ही क्यो ना हो.....
जय हिंद

अकरम हुसैन क़ादरी

बुधवार, 1 अगस्त 2018

अखण्ड भारत पर आरएसएस का सच- अकरम क़ादरी



अखण्ड भारत, भारत के प्राचीन समय के अविभाजित स्वरूप को कहा जाता है। प्राचीन काल में भारत बहुत विस्तृत था   जिसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, बर्मा, थाइलैंड आदि शामिल थे। कुछ देश जहाँ बहुत पहले के समय में अलग हो चुके थे वहीं पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि अंग्रेजों से स्वतन्त्रता के काल में अलग हुये।
अखण्ड भारत वाक्यांश का उपयोग हिन्दू राष्ट्रवादी संगठनों शिवसेनाराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा विश्व हिन्दू परिषद आदि द्वारा भारत की हिन्दू राष्ट्र के रूप में अवधारणा के लिये भी किया जाता है।
इन संगठनों द्वारा अखण्ड भारत के मानचित्र में पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि को भी दिखाया जाता है। ये संगठन भारत से अलग हुये इन देशों को दोबारा भारत में मिलाकर अविभाजित भारत का निर्माण चाहते हैं। अखण्ड भारत का निर्माण सैद्धान्तिक रूप से संगठन (हिन्दू एकता) तथा 'शुद्धि से जुड़ा है।
भाजपा जहाँ इस मुद्दे पर संशय में रहती है वहीं संघ इस विचार का हमेशा मुखर वाहक रहा है। संघ के विचारक हो०वे० शेषाद्री की पुस्तक The Tragic Story of Partition में अखण्ड भारत के विचार की महत्ता पर बल दिया गया है। संघ के समाचारपत्र 'ऑर्गनाइजर' में सरसंघचालक मोहन भागवत का वक्तव्य प्रकाशित हुआ जिसमें कहा गया कि केवल अखण्ड भारत तथा सम्पूर्ण समाज ही असली स्वतन्त्रता ला सकते हैं।
भारत में मुस्लिम शासकों से पूर्व भारत छोटे छोटी रियासतों में बंट गया था, जिन्‍हें पुन: मिलाकर मुस्लिम शासकों ने अखण्‍ड भारत की स्‍थापना की थी। वर्तमान परिस्थितियों में अखण्‍ड भारत के सम्‍बन्‍ध में यह कहना उचित होगा कि वर्तमान परिस्थियों में अखण्‍ड भारत की परिकल्‍पना केवल कल्‍पना मात्र है, ऐसा सम्‍भव प्रतीत नहीं होता है। शिवसेना के सुप्रिमो व हिन्दु ह्रदय सम्राट कहे जाने वाले बाल ठाकरे ने अखण्ड भारत कि स्थापना मे पहले बचे हुए भारत को हिन्दु राष्ट्र घोषित करने के लिए शिवसेना को चुनाव मे उतारा हैं।
अखंड भारत में आज के अफगानिस्थान, पाकिस्तान , तिब्बत, भूटान, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका आते है केवल इतना ही नहीं कालांतर में भारत का साम्राज्य में आज के मलेशिया, फिलीपीन्स, थाईलैंड, दक्षिण वियतनाम, कंबोडिया ,इंडोनेशिया आदि में सम्मिलित थे। सन् 1875 तक (अफगानिस्थान, पाकिस्तान , तिब्बत, भूटान, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका) भारत का ही हिस्सा थे लेकिन 1857 की क्रांति के पश्चात ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिल गई थी उन्हें लगा की इतने बड़े भू-भाग का दोहन एक केंद्र से  करना संभव नहीं है एवं फुट डालो राज करो की नीति अपनायी एवं भारत को अनेकानेक छोटे-छोटे हिस्सो में बाँट दिया केवल इतना ही नहीं यह भी सुनिश्चित किया की कालांतर में भारतवर्ष पुनः अखंड न बन सके।

अफ़ग़ानिस्तान (1876) :विघटन की इस श्रृंखला का प्रारम्भ अफ़ग़ानिस्तान से हुआ जब सन् 1876 में रूस एवं ब्रिटैन के बीच हुई गंडामक संधि के बाद अफ़ग़ानिस्तान का जन्म हुआ। इसके बाद धीरे-धीरे देश बंटने लगे भूटान (1906),तिब्बत (1914),श्रीलंका (1935),बर्मा(1937),पाकिस्तान (1947) में बंट गया जिससे हमारी शक्ति भी कुछ कम हुई, इसके बाद आज कश्मीर को अलग होने की मांग हो रही है, गोरखालैंड की मांग, खालिस्तान की भी मांग हो रही है, लेकिन वर्तमान समय मे देश की सरकार ने जो कदम उठाए है वो हिन्दुत्त्व के मुद्दों के खिलाफ है जैसे असम में हिन्दू,मुस्लिमो और पूर्व सेना के सिपाहियों को भी वो वोटर लिस्टसे हटा दिया गया है आश्चर्य तो तब हुआ जब देश के पांचवे राष्ट्रपति फकरुद्दीन अली मोहम्मद के परिवार के लोगो का भी उनकी लिस्ट में नाम नही था, बल्कि एक विद्यायक का भी नाम नही है जबकि वो वर्तमान में उसी विधानसभा से विधायक भी है, अब सोचना यह है कि यह सरकार केवल अल्पसंख्यक, दलित, आदिवासी, विद्यार्थी और महिला विरोधी ही नही है बल्कि हिन्दू विरोधी भी है जो 40 लाख लोगों को अखण्ड भारत से कम करना चाहती है जिससे भारतीय संस्कृति, शिक्षा, संस्कार, और भाषा को प्रोत्साहन कैसे मिलेगा....सरकार पूरे तरह सत्ता की लोभ में फंस चुकी है...अगर हमे सच मे अखण्ड भारत बनाना है तो सबसे पहले मानवता का प्रचार प्रसार करना होगा उसके बाद, सबको अपना बनाकर अपने अखण्ड भारत के सपने को पूरा करना होगा, अंग्रेज़ो की भांति, फुट डालो राज करो कि नीति को छोड़कर सभी नागरिकों की शिक्षा, रोज़गार,, स्वास्थ्य, मकान की परवाह करके नागरिकों का दिल जीता जा सकता है, नफरत की राजनीति बन्द करके सबको साथ लेकर चलना होगा

- अकरम क़ादरी