मंगलवार, 18 फ़रवरी 2020

दलित साहित्य महोत्सव के मायने ? - अकरम हुसैन

दलित साहित्य महोत्सव के मायने ? - अकरम हुसैन

दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में सम्पन्न हुए द्वितीय दलित महोत्सव का भव्य आयोजन हुआ जिसमें दलित, आदिवासी, स्त्री एवं घूमंतु-अर्ध-घूमंतु समुदाय के साथ अल्पसंख्यक समुदाय पर साहित्यिक चर्चा हुई ।
 इस महोत्सव में वर्तमान सत्ता के द्वारा लगातार हो रहे असंवैधानिक हमलें पर गहरी चिंता व्यक्त की । कार्यक्रम में शामिल वक्ताओं ने इस पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आखिर किस तरह डॉ.भीमराव अंबेडकर के संविधान को बचाया जाए और किस प्रकार से उपेक्षितों एवं वंचितों के अधिकारों की रक्षा की जाए और उनके पुनरुत्थान के लिए क्या किया जाएँ ?
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान की रचना कर हमारे देश के लिए ही नहीं पूरी दुनिया के लिए मिसाल कायम की | भारतीय संविधान मानवतावादी दृष्टिकोण पर आधारित होते हुए लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना करता है इसलिए दुनिया का यह सर्वोत्तम संविधान माना जाता है | जिसमें हर वर्ग, पंथ, सम्प्रदाय यहां तक कि ट्रांसजेंडर के अधिकारों को भी इसमें शामिल किया गया है ।
इस अवसर पर हमें सबसे अच्छी बात यह लगी कि किसी पर भी आरोप-प्रत्यारोप नहीं मढ़ा गया बल्कि सकारात्मक परिवर्तनकामी सोच के साथ उपेक्षित एवं वंचित समाज को शिक्षा की तरफ कैसे अग्रसर किया जाए ? आयोजन में साहित्यिक, सामाजिक और राजनैतिक मसलों पर भी चर्चा हुई ।
दलित बुद्धिजीवियों ने समाज के विकास के कई ब्लूप्रिंट सामने रखें, जिसमे सबसे अहम है मानवता, इसमें मानवता एवं मानवतावादी मूल्यों पर चर्चा हुई क्योंकि ज्यादातर विद्वानों को यह महसूस हो रहा है कि समाज में साम्प्रदायिकता अपने नित् नए अनेक रूपों में सामने आ रही है जिसको रोकने के लिए शिक्षा ही कारगर हथियार के रूप में उपयोगी हो सकती है।
आयोजकों ने महोत्सव का प्रारम्भ संविधान की प्रस्तावना पढ़कर और वहां पर उपस्थित सभी बुद्धिजीवी और विद्वानों को हाथ उठाकर शपथ दिलाई कि हम सब लोग संविधान की रक्षा के लिए सदैव कार्य करते रहेंगे जिससे मानवीय मूल्यों की रक्षा हो सके ।
सबसे अधिक साधुवाद मैं उन आयोजको को प्रेषित करता हूँ जिन्होंने किसी भी संस्था, राजनैतिक दल या फिर पूंजीवादी वर्ग से कोई आर्थिक सहयोग नहीं लिया बल्कि स्वयं मिलकर इस भव्य कार्यक्रम को कराया इसके पीछे आयोजको का सीधा सोचना है जिससे भी हम सहायता लेंगे तो उसकी बात भी मानना पड़ेगी और आने वाले समय में वो दबाब भी बना सकता है जो संविधान सम्मत नहीं है। इसलिए आपस में ही डोनेशन करके इतने भव्य समारोह का आयोजन सम्भव हो सका मुझे यह सुनकर बेहद प्रसन्नता हुई कि समाज के लिए जिस साहित्य का निर्माण हो रहा है उस साहित्य सम्मेलन को उसी के पैसे से किया जाए और जनता सोई हुई है जनता को उसके अधिकारों के लिए जागरूक किया जाये ।
दो दिन के इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से प्रसिद्ध जनकवि बल्ली सिंह चीमा, प्रोफेसर विवेक कुमार, प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर, स्त्रीवादी लेखिका ममता कालिया, वरिष्ठ आलोचक चिन्तक प्रो. चौथीराम यादव, आलोचक एवं चिन्तक प्रो. कालीचरण स्नेही, प्रसिद्ध दलित साहित्यकार डॉ. जयप्रकाश कर्दम, प्रो. राजेश पासवान, प्रो. विमल थोराट, डॉ उर्वशी गहलोत, रमेश भंगी, एच. एल.  दुसाध, रजनी दिसोदिया, डॉ. मुकेश मिरोठा, डॉ. सुजीत कुमार, डॉ नामदेव, डॉ. नीलम और डॉ. बलराम सिंहमार जैसे अनेक साहित्य प्रेमियों ने महोत्सव की सफलता का मार्ग प्रशस्त कर दिया इसमें लेखन की दुनिया में उभरते हुए शोधार्थी, लेखक भी शामिल हुए जिन पर निकट भविष्य में साहित्य एवं संविधान को बचाने की ज़िम्मेदारी है | उन्होंने बुद्धिजीवियों के विचारों को सुनकर भविष्य के लिए अनेक रास्तों पर साहित्यिक माध्यम से शोषितों के अधिकारों के लिए जागृत करने का काम किया | इसमें पत्रकार डॉ. ओम सुधा, डॉ. राजेश माझी, धर्मेंद्र कुमार, हेमंत बौद्ध, तरन्नुम बौद्ध, डॉ धर्मवीर गगन, डॉ. बालगंगाधर बागी, डॉ. संतोष यादव, डॉ. बलराम बिंद निषाद, दिनेश कुमार 'दिव्यांश',  ईश्वर चंद्र, ज्ञानप्रकाश यादव, हरिकेश गौतम, दुर्गेश देव, शुभम यादव, मिथिलेश कुमार, सदानंद वर्मा, सुनील यादव, कल्याणी, कोमल रजक, मुकेश यादव, कुसुम सबलाणीयां उभरते हुए लेखक आशीष कुमार दिपांकर और कामिनी के साथ अन्य नाम लिए जा सकते है |
इस शानदार एवं अविस्मरणीय भव्य आयोजन के लिए आयोजक मण्डल में डॉ.नामदेव, डॉ. सूरज बड़त्या, डॉ. बलराज सिंहमार, डॉ. नीलम, डॉ.मुकेश मिरोठा, सुदेश तनवर, डॉ. अशोक कुमार, हेमलता कुमार, संजीव डांडा, प्रो. प्रमोद मेहरा एवं अशोक बंजारा के साथ अन्य सहयोगी भी साधुवाद के पात्र है | उम्मीद है आगे भी इसी प्रकार का भव्य आयोजन होता रहे | और भविष्य की संकल्पना निर्मित होती रहें |

जय भीम
जय मूलनिवासी

अकरम हुसैन
सहसंपादक
वाङ्गमय त्रैमासिक हिंदी पत्रिका

आंशिक सहयोग
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