बुधवार, 23 मई 2018

तुर्क तय्यब एरदोगान जब पहुंचे गरीब के घर इफ्तार करने- नावेद मुग़ल

इफ़्तार से चंद मिनट पहले तुर्की की दारूल हुकूमत अंकारा के एक गरीब इलाके में मौजूद एक मजदूर के घर की घंटी बजती है घर के मालिक 53 साला यलदरम जलैक जब दरवाजा खोलकर देखते हैं तो उनके हैरत का कोई ठिकाना नहीं रहता उन्हें अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं आता और देखते हैं कि दरवाजे पर मुल्क में सदर रजब तैयब उरदगान और उनकी बीवी सैयदा अमीना उरदगान खड़े हैं यलदरम जलैक की हैरत को भांपते हुए तुर्क सदर  उन्हें तसल्ली देकर कहते हैं कि आज हम आपके मेहमान हैं आपके परिवार के साथ इफ्तार करेंगे यह सुनकर मेजबान खुशी से फूले नहीं समाते वह फौरन वापस जाकर अपने घरवालों को यह खुशखबरी देते है कि एक बहुत बड़े मेहमान की आमद है गरीब  यलदरम के परिवार ने अपने हैसियत के मुताबिक इफ्तार का मामूली इंतजाम कर रखा था घर के आठ अफराद दस्तरख्वान पर बैठे थे और इफ्तार के लिए खजूर पानी दूध और संतरा के अलावा दस्तरखान पर और कुछ नहीं था इसलिए परिवार के चेहरों पर अजीम मेहमान की आमद पर खुशी के साथ-साथ परेशानी के आसार भी नुमाया थे मगर तुर्क सदर और उनकी बीवी बिला किसी तकलीफ के यलदरम के अहले खाना के साथ दस्तरखान पर बैठ कर दुआ में मशरूफ हो गए यलदरम के अहले खाना को भी यकीन नहीं आ रहा था कि मुल्क का सदर और उनकी बीवी उनके घर में मौजूद और उनके साथ इफ्तार में शरीक है नाकाबिल यकीन मंजर देखकर यलदरम  और उनकी परिवार की आंखों से खुशी के आंसू निकल आए यलदरम और उनके परिवार ने सदर और उनकी बीवी को खुले दिल से खुशामदीद कहा तुर्की प्रेस के मुताबिक अंकारा के इलाके को एक सब्जी मंडी में मेहनत मजदूरी करते हैं यलदरम जलैक और उन्हें हर दिन 60 लैरा तुर्की करेंसी मजदूरी मिलती है जो कि 22 अमेरिकी डॉलर के बराबर हैं यलदरम जलैक के घर में  तुर्क सदर के आने  बाद यह भी मालूम हुआ कि वह किराए के मकान में रहते हैं जिस का किराया 1 महीने का 360 लैरा अदा करते हैं जोकि 135 अमेरिकी डॉलर होता है
इफ्तार के बाद सदर  और उनकी बीवी यलदरम के अहले खाना के साथ घुलमिल गए और उनसे उनके मसाइल भी पूछे यलदरम ने सदर को बताया कि  उनके 5 बच्चे हैं क्योंकि उनकी कमाई बहुत थोड़ी है इसलिए मैं अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में तालीम दिलवा रहे हैं दिलचस्प बाते हैं कि पांचवें रोजे के दिन इफ्तार के वक्त सदर उरदगान  के  यलदरम के मेहमान बनने पर इसी दिन यलदरम सबसे छोटे बेटे का पहला रोजा था इस मौके पर अचानक मुल्क के सदर की आमद ने यलदरम के अहले खाना की खुशियों को दोगुना कर दिया सदर  ने पहला रोजा रखने पर यलदरम के बच्चे को नगद इनाम के साथ कीमती तोहफे भी दिए जिस पर यलदरम के बाकी बच्ची सदर के दिये तोहफे को देख रहे थे तो उन्होंने घर के दिगर बच्चों को भी एक-एक लैपटॉप और टैबलेट दिया इफ्तार के बाद यलदरम के घर से रुखसत होने से पहले उनके पड़ोसियों को भी खबर लग गई कि मुल्क का सदर उनके पड़ोस में आया है इसलिए यलदरम के बहुत सारे पड़ोसी भी उनके घर में जमा हो गए और सदर के साथ ईशा की नमाज तक लंबी बातचीत की और अपने-अपने मसले से आगाह किया इस दौरान Recep Tayyip Erdoğan के सिकरेट्री समेत कुछ सरकारी अधिकारी भी यलदरम के घर पहुंच चुके थे तुर्क प्रेस के मुताबिक रजब तैयब एर्दोगान और उनकी बीवी अपनी पहली इफ्तारी तुर्की में बने रिफ़्यूजी कैम्प  जिसमें सीरिया के बच्चे हैं उनके साथ इफ्तार किया उन्होंने गरीब और अमीर का फर्क मिटाकर मुल्क में गरीबों के घर इफ्तार करने का मामूल बना लिया है अब तक वह इफ्तार के वक्त 5 मर्तबा गरीबों के घर मेहमान बनकर उनके साथ इफ्तार में शरीक हो चुके हैं सदर उरदगान  और उनकी बीवी इफ्तार से कुछ देर पहले अपनी गाड़ी में सदारती महल से निकलकर शहर के किसी भी गरीब इलाके में निकल जाते हैं जहां वह किसी भी शहरी के घर दरवाजे की घंटी बजाते और अहले खाना के साथ मिलकर इफ्तार करते हैं इसी दौरान सदर उरदगान  अहले खानां से उनके मसाइल पूछकर उन्हें हल भी करते हैं।।।

#नावेदमुग़ल

बुधवार, 9 मई 2018

संघ का निशाना यूनिवर्सिटीज़ क्यों- अकरम हुसैन क़ादरी

संघ का निशाना यूनिवर्सिटीज क्यों- अकरम हुसैन क़ादरी

एक ऐसा तथाकथित संगठन जिसकी पैदाइश 1925 में होते हुए भी देश की आज़ादी में कोई योगदान नहीं है, यह ऐसा संगठन है जिसको खतरा कभी अंग्रेज़ो से ना था, ना है ! बल्कि खतरा अगर किसी से है तो वो है आजकल के आधुनिक मानसिकता वाले, प्रश्नों की बौछार करने वाले, अपने लिए रोजगार की बात करने वाले, शिक्षा का अधिकार मांगने वाले, भाईचारे, मानवता से अपार प्रेम करने वाले, विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले, भारत की धड़कन, आधुनिकीकरण के ध्वजवाहक छात्र-छात्राओं से है, क्योंकि उनको मालूम है हमारे कुकर्मों को उजागर यही करेंगे कोई दूसरा नहीं कर पायेगा , इसलिए वो शिक्षा का बजट कम करते रहते हैं, आधुनिक सोंच रखने वालों पर अपने सहयोगी सोच रखने वाले स्टूडेंट से पिटवाते है, उन पर व्यक्तिगत हमले कराते है अगर इन सब में कामयाब नहीं होते हैं तो उनपर देशद्रोह जैसे मुकदमें लगवा देते है।
सोचने समझने लायक बात है आखिर यह लोग आने वाली पढ़ी-लिखी सोच को क्यों ख़त्म करना चाहते हैं, क्योंकि यह चाहते हैं देश मे एकरूपता हो जिसमें धर्म एक हो, संस्कृति एक हो, संस्कार एक हो, जो कभी हो नहीं सकता क्योंकि इस देश की खूबसूरती हमेशा बहुसांस्कृतिक रही है, अनेक धर्म है, अनेक भाषाएं है ।  समाज का नौजवान तबका यही चाहता है कि देश में डाइवर्सिटी हो लेकिन इस तरह के लोग देश को तोड़ने की साज़िश अपनी सत्ता को पाने के लिए कर रहे है।
साहब जिस वक्त देश के प्रधानमंत्री के लिये नामित हुए तो 2013 के आस पास ही यूनिवर्सिटीज़ पर छुटपुट हमले शुरू हो गए, लेकिन इसने अपना रौद्र रूप तब धारण किया जब आरएसएस समर्थित सरकार सत्ता पर पूर्णतयाः काबिज़ हो गयी जिसमें सबसे पहले FTII जैसे इंस्टिट्यूट पर हमला हुआ, उसके बाद जाधवपुर यूनिवर्सिटी, फिर हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में एक दलित छात्र एक्टिविस्ट डॉ. रोहित वेमुला को संदिग्ध हालात में मरवा दिया गया, बाद में मीडिया ने उसकी जाति पर बहस की यह बहुत घृणित कार्य था, जेएनयू को फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद के नाम पर प्रताड़ित किया गया, लेकिन उसमें भी आज तक कोई इनकी पुलिस फाइनल रिपोर्ट नही लगा पाई है, फिर बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी जैसी संस्था पर लड़कियों पर हमले कराए गए जो कि इतना घृणित कार्य था जिसकी जितनी निंदा की जाए कम है, रामजस कॉलेज में फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद के चक्कर में एक फौजी की बेटी को रेप करने की धमकी दी गयी,
आजकल सबसे ज्यादा सुर्खियों में एएमयू है क्योंकि इसके नाम में मुस्लिम है जो इनको सत्ता भी देता है और फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद की धमाचौकड़ी मचाकर, नए नए लोगो को फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद के नाम से मीडिया में सुर्खिया भी देता है जिससे इनको चुनाव के समय मुद्दे भी मिलते है, दरअसल अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट यूनियन हॉल के एक कक्ष में मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर लगी है क्योंकि 1938 में जिन्ना को उस वक़्त की स्टूडेंट यूनियन ने लाइफ मेम्बरशिप दी थी, जोकि 1920 में देश के महात्मा गांधी को भी मिली थी, जबकि यह तस्वीर केवल एक इतिहास है, उसके अलावा कुछ नहीं,  दरअसल इस मुद्दे की ज़रूरत वर्तमान सरकार  को क्यों पड़ी  क्योंकि अलीगढ़ में पिछले मेयर के चुनाव में बीजेपी को मुँह की खानी पड़ी है उनको ऐसा लग रहा है कि 2019 में सांसद भी गवा बैठेंगे, इसलिए अलीगढ़ के मौजूदा सांसद ने यह फ़र्ज़ी मुद्दे को तूल दिया है,जबकि वर्तमान सरकार ने जो 2014 में वादे किए थे उनमें से कोई भी पूरा नही हुआ है, आगामी चुनाव 2019 में जनता के बीच जाने के लिए उनके पास मुँह दिखाने के लिए कोई काम नही है तो वो इन भावनात्मक मुद्दों को उठाकर धुर्वीकरण करके देश की शीर्ष सत्ता पर काबिज होने की ख्वाहिश है जिससे फिर देश मे झूठे वादों, और फ़र्ज़ी मुद्दों में फंसाया जाए, वर्तमान सरकार किसी भी वादे को पुरा नहीं कर सकी और मुद्दे पर पूर्णतया सही साबित नहीं हुई है जिसके लिए उसे देश की कुर्सी भी छोड़ना पड़ सकता है क्योंकि देश का पढ़ा-लिखा नौजवान उनकी यह धूर्त, गन्दी राजनीति को समझ चुका है और वह देश मे घूमघूम कर इनके कारनामों को बेनकाब करने की कोशिश करेगा, इसलिए संघ और उसके साथी संगठन यूनिवर्सिटीज़ पर हमला करके अपनी सोच को उजागर कर रहे है, जिसको देश का युवा  अच्छे से समझ रहा है
#जय_हिंद
#जय_भारत

अकरम हुसैन क़ादरी

गुरुवार, 3 मई 2018

संघियों का काला सच -अकरम क़ादरी

सुनो कंघी गुंडो तुम्हारा तो कोई इतिहास है ही नही दुसरो का इतिहास क्यो मिटाना चाहते हो, कंघियों का अगर कोई इतिहास है तो सावरकर, हेडगेवार से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक ने अपने अंग्रेज़ आकाओं से माफी मांगकर देश के आज़ादी के मस्तानो की लाश पर चढ़कर देशद्रोह किया है यह स्याह सच है जिसको तुम जैसे लोग ना समझ सकते है और ना ही समझेंगे, अगर तुम यह सोचते हो यहां कोई जिन्ना को मानता है तो यह तुम्हारी भूल है, जिन्ना को कल हमारे बुज़ुर्गो ने जूते की ठोकर पर रखा है आज हम भी उसको जूते की ही ठोकर पर रखते है जबकि तुम्हारे फ़र्ज़ी राष्ट्रभक्त तुम्हारे ही जनसंघ,आरएसएस से निकले लालकृष्ण आडवाणी ने जिन्ना की मज़ार पर चादर चढ़ाकर वहां पर शीश नबाया था और उसकी शान में कसीदे पढ़े थे, दूसरे तुम्हारे बड़े नेता पूर्व विदेश मंत्री जो कुख्यात आतंकवादी इंसानियत का दुश्मन मसूद अजहर कुत्ते को अफगानिस्तान छोड़कर आये थे और फिर घर आकर उन्होंने जिन्ना की तारीफ के कसीदे यहां तक पढ़े कि उसकी वफादारी में पूरी किताब ही लिख दी, तुम्हारे फ़र्ज़ी राष्ट्रभक्ति की पोल पूरी दुनियां जानती है, तुम ही हो जो 26 जनवरी को काला दिवस मनाते हो और संविधान को जलाने की भरसक कोशिश भी करते है, तुम्हारे ही संगठन के हिन्दू महासभा के लोग तीस जनवरी को नाथूराम गोडसे की पूजा करके शौर्य दिवस मनाते है बताओ जिसने देश के महात्मा को मार दिया आखिर वो कैसे देशभक्त हो सकतेहै, जहां तक मुद्दा एएमयू के स्टूडेंट यूनियन के हाल का है तो उन्होंने जिन जिन नेताओ, सामाजिक कार्यकर्ताओ को लाइफ़ मेम्बरशिप दी है तो उनके केवल फ़ोटो लगे है जबकि जिन्ना की फ़ोटो 1938 से यूनियन हॉल के रूम में है तो उससे किसी को क्या फर्क पढ़ सकता है जबकि एएमयू ने भारत को अनेक नेता, इंजीनियर, डॉ और सिविल सर्विसेज में काम करने वाले लोग दिए है, जबकि इतिहास के पन्नो को पलटा जाए तो हम देखते है महात्मा गांधी को महात्मा नाम ही अलीगढ़ ने दिया उसके बाद आज़ादी के दीवाने यही से गांधी जी के साथ चल दिये ......कंघियों बताओ कौन तुम्हारा देशभक्त ऐसा था जो आज़ादी की लड़ाई में शामिल था, तुम कल भी अंग्रेज़ो के ग़ुलाम थे और आज मानसिक ग़ुलाम हो.................