रविवार, 15 अप्रैल 2018

मीडिया डिबेट 'इंसानियत' को खतरा - अकरम हुसैन अलीग

जब हिंदुस्तानी मीडिया में डिबेट, बहस, तर्क, वितर्क का समय शुरू हुआ था उस वक़्त हिंदुस्तान के सबसे अच्छे पत्रकार रविश कुमार ने कहा था यह "'लोकतंत्र की हत्या की शुरुआत है" यह बात रविश कुमार ने लगभग 10, 12 साल पहले कही थी जो आज सच हो रही है जिसको आज मैं प्रूफ भी कर दूंगा क्या आपको मालूम है यह डिबेट सिस्टम मीडिया में क्यो आया, क्योंकि यह सब टीआरपी का खेल है टीआरपी की रेटिंग मीडिया की दुनियां में एक हफ्ते में बृहस्पतिवार यानि जुमेरात की रात को आती है, जब किसी भी न्यूज़ चैनल की लोकप्रियता का पता लगता है जिसमे जिस पूंजीपति का जो चैनल है उसके ज़रिये ही उसके प्रोग्राम में एडवरटाइजिंग का खेल शुरू होता है एडवरटाइजिंग के ही ज़रिए चैनल की कमाई होती है जिसको पूंजीपति लोग खूब आगे बढ़ाते है उनकी कोशिश भी होती है टीआरपी बड़े हमारे 2 दूना 8 होते रहे हमे ज्यादा कम्पनियों के एडवर्टिजमेंट मिलते रहे।
अब पूंजीपतियों को अपनी एडवरटाइजिंग और टीआरपी से मतलब है उनको किसी मानवता, राजनैतिक पार्टी, हिन्दू-मुस्लिम से नही मतलब है।
डिबेट की दुनियां की एंट्री जब हिंदुस्तानी मीडिया में हुई तो अनेक नामो से न्यूज़ चैनल ने डिबेट शुरू की, जिसमे एक बीजेपी का प्रवक्ता, एक कांग्रेस का प्रवक्ता, एक दाड़ी टोपी वाला मुस्लिम, एक किसी हिन्दू संगठन का प्रवक्ता और एक सो कॉल्ड सामाजिक कार्यकर्ता उसके अलावा एक एंकर जो बहुत हद तक किसी ना किसी तरह किसी राजनैतिक पार्टी की तरफ होता है उसका पक्ष भी लेते हुए दिखता है क्योंकि उसकी भी कुछ मजबूरियां है, जिसको समझा भी जा सकता है
आजकल हिंदुस्तान में जो घटनाये हो रही है उनका सम्बन्ध बहुत हद तक इन मीडिया डिबेट से ही होता है क्योंकि जिन नामो को ऊपर मैंने बताया उन सब लोगो ने हमेशा हिन्दू-मुस्लिम जैसे मुद्दों पर ही डिबेट की, उन्होंने कभी भी ऐसी डिबेट नही की जिससे मानवता को आगे बढ़ाया जाए, आखिर उनको इससे सरोकार भी नही है फिर भी कुछ हल्का फुल्का एक दो घण्टे का साहित्य और कला का प्रोग्राम दिखा दिया उसके अलावा दिनभर हिन्दू- मुस्लिम डिबेट में ही लगे रहे, इधर जितनी वो डिबेट में लगे रहे उधर उतनी ही इंसानियत शर्मशार होती रही है। आज देश मे हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर कई तबके ऐसे है जो दिनभर 24×7 लड़ने झगड़ने किसी को मौत के घाट उतारने को तैयार खड़े है क्योंकि उनके दिलों में इन मीडिया बहस ने इतनी नफ़रत भर दी है वो अब एक दूसरे की जान लेने तक से नही चूकते, बल्कि गुस्सा में आकर अपने सभी रिश्तों को भी शर्मशार कर देते है। इससे कोई हिन्दू-मुस्लिम तो नही मरता बल्कि इंसानियत कुढ़-कुढ़ के मरती है
क्या भूल गए हम अपना इतिहास जब आज़ादी की लड़ाई में कोई हिन्दू-मुस्लिम नही लड़ा था बल्कि हिंदुस्तानी ही लड़े थे जिससे हमें अंग्रेज़ो से आज़ादी मिली, वो अंग्रेज़ जो डिवाइड एंड रूल की पालिसी पर बेहतरीन काम करते है, आज भी कुछ नेता डिवाइड एंड रूल की पालिसी पर काम कर रहे है और वो केवल सत्ता को हतियाना चाहते है उसके अलावा उनका कोई एजेंडा नही है, वो अब तक अपने एजेंडा में सफल भी हुए है लेकिन आपको क्या मिला कुछ दिन मीडिया की सुर्खियां, उसके बाद पुलिस केस, जेल फिर कोर्ट कचहरियों के रोज़ चक्कर उधर आपका भी परिवार उससे प्रभावित हुआ, जिसके साथ ज़ुल्म हुआ उसका भी परिवार प्रभावित हुआ बताइये इससे फायदा किसको हुआ है।

हाल के दशक में हुई दो घटनाओ ने दिल दहलाकर रख दिया है जब निर्भया का कांड दिल्ली में हुआ तो लोग तिरंगा लेकर न्याय की गुहार लगाने सड़को पर निकले थे, लेकिन आज जब उन्नाव पर एक राजपूत लड़की पर बलात्कार का केस हुआ तो विधायक जी के समर्थक उसकी जांच तक नही होने देने रहे है जिसको हाई कोर्ट ने स्वयं संज्ञान लिया और उस विधायक पर कार्यवाही हो सकी बल्कि सूबे की पुलिस उडपर लीपापोती करती रही है, जिसके चक्कर मे उस पीड़िता को अपने पिता से भी हाथ धोना पड़ा सच मे यह बहुत खतरनाक है,
दूसरी तरफ कठुआ में एक 8 वर्षीय बच्ची के साथ एक धार्मिक स्थल में बर्बरतापूर्वक बलात्कार हुआ उसको नशे के इंजेक्शन देकर 8 दिन तक अपराधियो ने सबसे नीच हरकत करते रहे है यह सच है उनका कोई धर्म नही है लेकिन उन्होंने जिस धर्म की आड़ लेकर यह काम अंजाम दिया वो मीडिया की हिनू-मुस्लिम डिबेट का ही परिणाम है आज हमको फिर से सोचना पड़ेगा हमे क्या करना है किस तरफ जाना है....जिस प्रकार से मैं पहले ही अनुमान लगा चुका हुँ जिस तरीके से राजनैतिक पार्टिया सत्ता के गलियारों तक पहुंच रही है उस तरीके से हिंदुस्तान 20 साल तक पिछड़ चुका है अब देखना यह है कि कितना और ज्यादा पिछडेगा जिससे हमारे ऊपर विकसित देशों का धन इकट्ठा होता रहेगा, जिसको हम चुकाते-चुकाते मर जायेंगे हमारे बच्चों पर भी वो उधार रहेगा......आप सबसे मेरी विनती है, गुज़ारिश है, अपील है कि मीडिया के इस मुद्दे को समझे और डिबेट सिस्टम का खुला विरोध करे....जिससे हम खुद को भी बचाये और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी अच्छा भविष्य पेश करे

जय हिन्द, जय भारत

अकरम हुसैन क़ादरी