शनिवार, 20 नवंबर 2021

डॉ. आज़ममीर ख़ान पीलीभीत की पहली पसंद- अकरम क़ादरी

डॉ. आज़ममीर ख़ान पीलीभीत की पहली पसंद- अकरम क़ादरी


चुनावी सरगर्मियों में नेता लम्बे-लम्बे लिखे हुए भाषण देकर खुद को बहुत अच्छा समझते है जबकि जनता केवल नेता के काम पर विश्वास करती है। हद से ज़्यादा बोलना भी कैंडिडेट के लिए नुकसानदायक हो जाता है। क्योंकि वो जनता और उसके असल मकसद को समझ ही नहीं पाता है। और झूठे वादे करके लॉलीपॉप देकर रफूचक्कर हो जाता है। मौजूदा सरकार में बोलने वाले ऐसे-ऐसे धनुर्धारी है जो कुछ सेकण्ड में ही पानी मे आग लगा दे। लेकिन जनता के बीच उनका काम निल है। जिसके कारण उनको मुंह की भी खानी पड़ती है। 
पीलीभीत की जनता ऐसे लोगो को एक लम्बे समय से जानती है जो नफरती बातें करके आपसी चैन सुकून, मेलजोल ख़त्म करना चाहते है। मेरा बड़ा साफ मक़सद है कि कोई भी ज़िला तब ही तरक़्क़ी करेगा जब सब धर्म, जाति, पंथ के लोग मिलकर कोशिश करेंगे। 
मेरे अपने शहर के भाइयों/बहनो से विनती है कि राजनीति अलग चीज़ है सबसे पहले अपना भाईचारा, अमन क़ायम रखो जहां पर मोहब्बत होती है वहां राजनीति भी अच्छी होती है और ज़िला भी विकास की ओर गामज़न होता है। अंततः मेरा मकसद मोहब्बत है जहां तक फैले।
डॉ. आज़ममीर ख़ान जब 2012 में नई नवेली पीस पार्टी से कैंडिडेट थे जनता ने इसी प्रेम, मोहब्बत और अमन वाले पैग़ाम के कारण उनको बत्तीस हज़ार वोट से नवाज़ा था, जबकि उस वक़्त सूबा ए उत्तरप्रदेश के कद्दावर नेता, पुराने राजनीतिक पांच बार के विधायक मरहूम हाजी रियाज़ अहमद साहब ज़िंदा थे। हाजी साहब का इस दुनिया मे जाना सच मे बहुत दुःख का विषय है लेकिन इस समय पीलीभीत की जनता कोई ऐसा नेता नज़र नहीं आया जिसमे हाजी जी के बराबर दमदारी हो, जो जनता के मुद्दों को मज़बूती से उठा सके। 
डॉ. आज़ममीर ख़ान साहब में पीलीभीत की जनता को वो खूबियां नज़र आती है जो पीलीभीत की जनता चाहती है क्योंकि डॉ. आज़ममीर ख़ान साहब को राजनीति का अच्छा अनुभव है वो एएमयू से ही छात्र राजनीति में सक्रिय चेहरा रहे है और अपने ज़िले के बहुत लोगो को उन्होंने इलाज, शिक्षा जैसे बुनियादी मसलों को हल करने का काम किया है। 
वास्तव में पीलीभीत की जनता की कुछ ही डिमाण्ड रही है जिसमे शिक्षा और स्वास्थ्य मुख्य है। डॉ. आज़म मीर खान इन मुद्दों को भलीभांति समझते भी है क्योंकि वो स्वयं एक डॉक्टर है और शिक्षा के मैदान में भी उनका अहम योगदान है। अलीगढ़, जामिया, दिल्ली और इलाहाबाद में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं की आपने उनके एंट्रेंस में भी मदद की है। कई छात्र-छात्राओं को कोचिंग के ज़रिए अच्छे कोर्स में एडमिशन कराया है इस कारण ही पीलीभीत की जागरूक जनता आज़म मीर ख़ान को अपने विधायक बनाने के लिए आतुर है। 
डॉ. साहब ने जबसे समाजवादी पार्टी जॉइन की है तबसे जनता में भी उम्मीद की किरण नज़र आती है क्योंकि जब वो किसी पद पर नहीं थे तो लगातार जनता की मदद कर रहे थे। आने वाले समय मे अगर पार्टी प्रमुख का आशीर्वाद मिला और जनता ने अपना अप्रितम समर्थन दिया तो पॉवर के साथ जनता के मुद्दों पर जमकर काम करने का प्रयत्न करेंगे।
समाजवादी पार्टी की नीतियों का प्रचार-प्रसार में संलग्न आज़म मीर खान ने बताया कि जनता का उत्साह, पार्टी के पिछले कार्यो को पॉजिटिव रेस्पांस निश्चित ही 2022 में सफलता दिलाएंगे फिर से जनता से न्याय होगा सबको समानता का अधिकार मिलेगा

बुधवार, 17 नवंबर 2021

किसान आंदोलन और यूपी, उत्तराखंड चुनाव- अकरम क़ादरी

किसान आंदोलन और यूपी, उत्तराखंड चुनाव- अकरम क़ादरी

किसान आंदोलन को लगभग ग्यारह महीने हो चुके है। आंदोलित किसानों ने हाड़-मास कपाती सर्दी भी देखी है, पिघलने वाली गर्मी भी और सर्द हवा के साथ बारिश भी। कई बार ज़ोरदार आंधी में टेंट भी उड़ गए फिर भी भीगते हुए किसान धैर्य से बैठे रहे, अनेक मुसीबतों का सामना करते रहे उसके अलावा प्रशासनिक धमकियां, पत्रकारों की उलूल-जुलूल मीडिया डिबेट (ट्रायल), सत्ता समर्थित पत्रकारों और तथाकथित मीडिया वालों ने किसानों की इमेज कभी खालिस्तानी बनाई, कभी आतंकवादी कहा, तो कभी किसी भी विपक्ष पार्टी का प्रोपगंडा कहकर नकारने की भरपूर कोशिश करते रहे। सत्ता, मंत्री और उनका आई.टी सेल इवेंट मैनेजमेंट करने में लगा रहा है, बदनाम करने की कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ी, सत्ता पक्ष के लोगो का ब्रह्मास्त्र 'हिन्दू-मुस्लिम' का रूप देने की भी कोशिश बर्बाद हो गयी। क्योंकि वास्तव में देश मे धार्मिक विविधता तो है वो अनेक धर्मो का मानने वाला हिन्दू-मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई तो है लेकिन उससे पहले वो एक किसान है उनकी आजीविका का मुख्य साधन फसल ही है जहां से वो अपने बच्चे का लालन-पालन करता है, अपनी लड़की के हाथ पीले करता है, बेटे को फ़ौज की नोकरी में भेजता है खुद खेती करके देश की जनता की पेट की आग बुझाता है।
आंदोलित किसानों के साथ लगातार घटनाएं हो रही है, अभी कुछ दिन पहले ही लखीमपुर की हृदय विदारक घटना हुई है जिससे कथित तौर पर मंत्री के बेटे ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे  किसानों को अपनी महेंद्रा थार से कुचल दिया जैसा बताया जा रहा है।  कई किसान मौके पर ही शहीद हो गए, जिसमें एक पत्रकार भी शहीद हुआ है। जो लोग गाड़ी में सत्ता पक्ष के थे उन्होंने जब भागना शुरू किया तो उत्तेजित भीड़ ने उनको दौड़ाकर पीटा, सुनने में आ रहा है उनकी भी मृत्यु हो गई जिसकी ज़िम्मेदार अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र और राज्य सरकार है। इस पूरे कांड में गृह राज्यमंत्री आशीष मिश्रा उर्फ टेनी महाराज के बेटे का नाम आ रहा है। जो महेंद्रा थार में मौजूद था, अभी उसकी गिरफ्तारी हो चुकी है, लेकिन उसका पिता अभी भी गृह राज्यमंत्री बना हुआ है तो प्रतीत होता है कि वो जांच में कुछ दखल अवश्य करेगा जिससे शहीद किसानों को न्याय नहीं मिल सकता। किसान नेता और सभी पंजाब के जत्थेबंदी उसको बर्खास्त करने की मांग कर रहे है। जिससे शहीद किसानों को न्याय मिल सके और असली गुनहगार सलाखों के पीछे जा सके। 
किसान आंदोलन बहुत मज़बूती से दिल्ली के चारो तरह बॉर्डर पर चल रहा है। सभी किसानों के दल बैठे हुए है और वोट की चोट से अपनी मांग मंगवाने के लिए रणनीति तैयार कर रहे है हालांकि वो वेस्ट बंगाल में कामयाब भी हुए है लेकिन हिंदी हार्टलैंड में भी मज़बूती से लड़ रहे है। हो सकता है इसमें भी उनको कामयाबी मिल जाएं।
भाजपा के लिए इस समय देश में पांच जगह चुनाव है जो आगे-पीछे ही  चुनाव आयोग द्वारा प्रस्तावित है। किसान नेताओ ने लखनऊ, देहरादून में अपनी मौजूदगी दिखाना शुरू कर दिया है क्योंकि जितनी भी मीडिया डिबेट हो रही है उसमें किसान नेता ज़रूर एक दो सेशन में दिख रहे है। इससे यह साबित होता है किसान आंदोलन भी यूपी, उत्तराखंड के चुनाव पर भरपूर असर करेगा। क्योंकि पश्चिमी उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड लगभग एक जैसी ही पृष्ठभूमि रखते है क्योंकि संस्कृति, भाषा और खान पान लगभग समान ही है। 
इस क्षेत्र का किसान जागरूक भी है और अपना हक लेना जानता भी है।
पिछले कई महीनों से किसानों के लिए बीजेपी नेताओ द्वारा आवाज़े उठना शुरू हो चुकी है जो पार्टी चुनाव के लिए अच्छे संकेत नज़र नहीं आते है।
पूर्व बीजेपी नेता और वर्तमान में गवर्नर सत्यपाल मलिक बराबर किसानों के मुद्दों को लेकर मुखर प्रतीत हो रहे है। वो जो बातें जनता के सम्मुख रख रहे है वो एकदम यथार्थ है। लेकिन पार्टी अपनी हठधर्मिता छोड़ना नहीं चाहती है।
पीलीभीत से बीजेपी के सांसद संजय  और मेनका गांधी के सपुत्र वरुण फ़ीरोज़ गांधी भी किसानों के लिए अपनी भावनाएं बता चुके है और मुखर रूप से अपनी ही सरकार का विरोध दर्ज करा चुके है। 
गौरतलब है किसानों के मुद्दे पर ही भाजपा का सबसे पुराना अकाली दल भी बाहर हो चुका है। और किसानों के मुद्दे पर डटकर सामना कर रहा है। बाकी हिंदी हार्टलैंड से न जाने कितने विधायक, नेता बीजेपी छोड़ चुके है जो निश्चित ही उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड के चुनाव में अपना असर दिखाएंगे ही उसके वाला बाकी तीन राज्यों में किसान आंदोलन का जबरदस्त प्रभाव देखने की उम्मीद है।