रविवार, 22 जुलाई 2018

दिलो को मोहब्बत की रौशनी से भर, अज़हरी मियाँ हुए रुखसत- अकरम क़ादरी



आज बरेली शरीफ में हज़रत हुज़ूर अख्तर रज़ा खां उर्फ अज़हरी मियां हुज़ूर के नमाज़े जनाज़े में लगभग एक करोड़  लोगों ने शिरकत की,आज 10:30 बजे उनकी नमाज़ ए जनाज़ा अदा की गई इस ग़मज़दा माहौल में क्या मुसलमान क्या हिन्दू सबकी आँखे नम थी,जनाज़े में शामिल हर इंसान ने हिन्दुस्तान के सूफी परम्परा के फ़रज़न्द को नम आंखों से आखिरी विदाई दी, लगभग
तीस ज़िलों की पुलिस ने इंतेज़ाम को संभाला ।
भारत के लगभग हर राज्य से मुरीदीन आये उसके अलावा 127 मुल्क से आये जायरीन ने अपनी अक़ीदत का इज़हार किया और अज़हरी मियां के जनाजे में शामिल हुए जबकि तुर्की के राष्ट्रपति तय्यब एरदोगान ने भी ग़मज़दा होकर अपनी अक़ीदत का इज़हार रुंधे हुए गले से किया, उसके अलावा दावत ए इस्लामी के अमीर हज़रत मौलाना इल्यास अत्तार क़ादरी   ने भी गम का इज़हार किया इसके अलावा मारूफ और मशहूर पाकिस्तान के नात खां हज़रत ओवैस रज़ा क़ादरी ने भी अपने ग़म का इज़हार करते हुए हुज़ूर अज़हरी मियां के मुरीदीन को सब्र करने के लिए दुआ की। 
    बरेली शरीफ को आला हज़रत के नाम से पूरी दुनियाँ में जाना जाता है जिससे आला हज़रत के उर्स में भी जिस तरीके से हिन्दू- मुस्लिम मिलकर जायरीन की खिदमत करते है उसी तरह से आज ग़मज़दा माहौल में भी हिन्दू भाइयों ने गर्मी, बारिश को देखते हुए प्याऊ, कूलर, पंखे और अपने घर के दरवाज़े खोल दिए जिससे हिन्दू मुस्लिम एकता और मानवता का संदेश एक बार फिर बरेली शरीफ से दुनियाँ में पहुंचा जो सच मे इंसानियत का एक जीता जागता नमूना है। 
हुज़ूर ताजुशशरिया को शरीयत का ताज माना जाता था आपने दुनियाँ में अनेक इस्लामी, दुनियावी, समाजी मुद्दे पर क़ुरान, हदीस और शरीयत की रोशनी में फतवे दिए जिससे पूरी दुनियां को सूफी इस्लाम परम्परा का एक सही रुख नज़र आया। 
   हिंदुस्तान के सियासत के कई सूरमाओं ने उनको अनेक लालच दिए लेकिन उन्होंने हमेशा इसको नकार दिया, बल्कि यहां तक किसी भी राजनेता से मिलने तक को इनकार कर दिया, आपको पूरी दुनियां में तस्सवुफ को फैलाना था जो काम आपने अपने आखिरी समय तक किया, पिछली मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि फ़िल्म स्टार संजय दत्त, अमर सिंह, राहुल गांधी तक को मायूस होकर लौटना पड़ा था जब हज़रत ने उनसे मिलने को मना कर दिया था, एक दो बार कुछ राजनेताओं ने MLC बनाने की उनको ख्वाहिश पाली तो उनसे साफ मना कर दिया, 
दरअसल इन सबके पीछे उनकी तरबियत, और इस्लामी तालीम का ही नतीजा था जो वो किसी भी तरह के सियासी जाल में नही फंसे बल्कि तस्सवुफ और इंसानियत के लिए ज़िन्दगी भर काम करते है । अल्लाह से दुआ है कि ऐसी नेक सीरत और सूरत वली ए कामिल को जन्नतुल फिरदौस में आला से आला मुकाम अता फरमा
अमीन 

अकरम हुसैन कादरी 
अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी 

शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

मरे नही चले गए 'नीरज' - अकरम हुसैन

मरे नही चले गए 'नीरज' - अकरम हुसैन
मरना और चले जाना यह दो बातें अलग अलग है एक आम इंसान मर जाता है, लेकिन एक रचनाकार, शायर, साहित्यकर्मी, मानवतावादी और बुद्धिजीवी कभी नही मरता क्योकि उसके किए हुए कर्म हमेशा ज़िन्दा रहते है, बल्कि यूं कहें वो इतिहास के सुनहरे पन्नो में हमेशा ज़िन्दा रहता है और पूरी इंसानियत की सेवा अपनी कलाकृतियों से करता रहता है।
गत शाम को एक दिल दहला देने वाली ख़बर मिली कि साहित्य जगत के पुरोधा पद्मश्री गोपालदास नीरज इस आभासी दुनियाँ से कूच कर गए है खबर तो सच मे बहुत हॄदय विदारक थी लेकिन जब कुछ समय बाद मानसिक स्थिति ठीक हुई तो दिल और दिमाग ने यह गवारा नही किया कि नीरज जी हमारे बीच नही है बल्कि दिमाग मे तुरन्त आया कि वो तो हमारे बीच अपने गीतों के माध्यम से हमेशा ज़िन्दा रहेंगे, और ज़िन्दा है बल्कि कुछ यूं  कहें कि उनकी आत्मा तो ज़िन्दा ही है केवल शरीर ही साथ छोड़ गया है वैसे भी गीता में श्रीकृष्ण जी ने कहा है कि 'आत्मा अजर और अमर' है।
अलीगढ़ आने के बाद गोपालदास नीरज जी से दो बार मिलना हुआ एक बार उनके घर पर तो दूसरी बार अमर उजाला के एक कार्यक्रम मे जिसमे उनके द्वारा बताए हुए इंसानियत के रास्ते हमेशा याद रहेंगे। क्योंकि उनके जीवन मे एक पर्याप्त अनुभव तो था ही उसके अलावा उन्होंने जीवन को कई उबड़-खाबड़ रास्तो से होकर गुजारा था तो वो उन्हें हमेशा प्रोत्साहित करता रहता था, ज़िन्दगी में कितना भी कठिन समय आया उन्होंने उसका डटकर सामना किया और साहित्य के साथियों को हमेशा इंसानियत की सीख दी.....उन्होंने शुरू में टाइपराइटर के रूप में भी काम किया, अध्यापक भी रहे जब वो मायानगरी पहुंचे तो सबसे बड़े गीतकार भी बने, लेकिन उन्होंने सब मोह माया को छोड़कर इटावा से लेकर मुम्बई तक की ज़मीन नाप ली, फिर भी वो अलीगढ़ जैसे शहर में आकर बस गए और साहित्य के लिए तत्तपर रहे, ज़िन्दगी के नो से ज्यादा दशक गुज़ारने के बाद भी उनमें किसी भी प्रकार का कोई घमण्ड, गर्व नही था बल्कि वो जिससे मिलते थे तो वो उनका मुरीद हुए बिना नही लौटता था ...

बुधवार, 18 जुलाई 2018

टी.वी डिबेट की नफ़रत में मौलानाओं की ज़रूरत- अकरम क़ादरी

दोस्तो इससे पहले एक ब्लॉग लिख चुका हुं, जिसका सब्जेक्ट था 'टी. वी. डिबेट इंसानियत को खतरा'
टी. वी डिबेट में मौलानाओं का बुलाने का मक़सद बहुत साफ है कि यह मीडिया के काम को आसान करते है और शाम लगभग 5 से 10 बजे के वक़्त न्यूज़ चैनल की रंगत को बढ़ाया जाता है जहां से न्यूज़ चैनल को TRP  नाम की चिड़िया को भी पकड़ने में आसानी होती है।
आजकल जितने भी न्यूज़ चैनल है ज्यादातर की प्रतिष्ठा गिर चुकी है वो लोग एक षड्यंत्र के तहत काम कर रहे है जो किसी राजनैतिक पार्टी को एक तरफा लाभ पहुंचाने के लिए लगातार मेहनत कर रहे है । किसी भी न्यूज़ चैनल के डिबेट पैनल में एक दाढ़ी टोपी वाला व्यक्ति ज़रूर दिखेगा क्योंकि वही एक ऐसा व्यक्ति होता है जो अभद्र भाषा के साथ जुमले सुन सकता है, मौका लगने पर पिट भी सकता है और किसी भी न्यूज़ चैनल, का कुछ भी नही बिगड़ता है क्योंकि वो तो अपने षडयंत्र में भरपूर तरीके से काम कर रहे है।
पिछले दिनों एक जुमला बड़ा मशहूर हुआ था किसी बड़े संगठन के प्रवक्ता ने टी.वी डिबेट में खुलेआम कहा था 15 सेकंड में अल्पसंख्यकों को खत्म कर देंगे, दूसरी तरफ एक प्रवक्ता ने कहा था कि 'मुल्ला जी मंदिर वही बनाएंगे' इस पर सोशल मीडिया पर काफी तंज़ भी हुए थे जिसमें जवाब में कहा गया था " लेकिन डेट नही बनाएंगे"
दरअसल वर्तमान सरकार ने जितने भी वादे किए थे उन वादों में से कोई वादा पूरा नहीं किया जिसके चलते देश के शीर्षस्थ संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति कहता है कि यह हिंदुओ की पार्टी है यह मुस्लिमो की, इससे उसकी मानसिकता और उसके पिछले 4 साल के कामकाज का स्तर समझ मे आता है, दूसरी पार्टी के बड़े नेता का बयान आता है कि अगर वो पार्टी सत्ता में आई तो हिन्दू पाकिस्तान बन जायेगा जिससे साफ लग रहा है जो मीडिया चाहता है वो मटेरियल हमारे नेता ईमानदारी से उपलब्ध करा रहे है जो जुमले बोले और ट्वीट किए जाते है उनपर जमकर बहस एक टोपी दाढ़ी वाले मौलाना साहब के साथ होती है जिससे माहौल खूब कम्युनल होता जाता है और तथाकथित देशभक्त पार्टी को वोट की लहलाती फसल मिल जाती है, इन टी.वी डिबेट के ही कारण नफरत इतनी फैल चुकी है कि मदर टेरेसा जैसे व्यक्तित्व से भी भारत रत्न वापस लेने की बात एक सांसद कर चुके है...भीड़ सड़क पर ही अफवाहों के चक्कर मे फैसला कर देती है, कभी कभी पुलिस मूकदर्शक बनकर देखती रहती है लेकिन मिदनापुर में जो घटना घटी है उसको भी ध्यान में रखना चाहिए। अति उत्साहित समर्थकों ने अब पुलिस को ही पीटना शुरू कर दिया है, जबकि यह पिछले 4 साल से एक धर्म विशेष के लोगो पर ही हमले कर रहे थे। यह सब घटनाएं ऐसे ही नही हो रही है बल्कि हर चौराहे पर यह टी.वी डिबेट के एंकर, प्रवक्ता, नफरत का व्यापार कर रहे है जिससे लोग किसी भी अफवाह में किसी भी को पीट दे रहे है
कल ही कि बात है कि महान मानवतावादी कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश पर भी एक पार्टी विशेष के युवाओं द्वारा एक कार्यक्रम से पहले पिटाई कर दी गयी जबकि वो काफी बुजुर्ग व्यक्ति है....देश मे संस्कारो का गिरता यह ग्राफ चीख चीख कर कह रहा है यह सब टी.वी डिबेट का ही ज़रिया है जिसके माध्यम से नफरत ही नफरत फैल रही है हमारे नोजवान दंगाई बन रहे है वो वक़्त भी दूर नहीं जब यही नोजवान अपने माँ-बाप, दादा, दादी पर भी धौंस जमाएंगे और उनपर पर हमला करेंगे अंततः मानवता का हनन ही होगा.....
अकरम हुसैन क़ादरी