शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

फ़िलिस्तीन मुद्दे पर सऊदी अरब का किरदार - अकरम हुसैन क़ादरी

फ़िलिस्तीन मुद्दे पर सऊदी अरब का किरदार - अकरम हुसैन क़ादरी

सऊदी अरब का नाम आते ही दिल में एक श्रद्धा उमड़ती है बात भी ठीक है वो मुस्लिमों की मुबारक जगह है जिसकी सरज़मीन पर नबी आये, सहाबा आये, लेकिन फिलिस्तीन मुद्दे पर एक लंबे वक्त से सऊदी अरब के ढुलमुल रवैया मुस्लिमों को सोचने पर मजबूर कर रहा है, आखिर क्या वजह है सऊदी अरब फ़िलिस्तीन मुद्दे पर ऐसे खामोश हो जाता है जैसे उसको सांप सूंघ गया हो, उधर मुस्लिमों का पहला  किबला बैतुल मुक़द्दस खतरे में आ गया है जिसको इसराइली भेड़ियों से बचाना बहुत ज़रूरी है ।
दरअसल 1922 से पहले जब सऊदी अरब में उस्मानियाँ सल्तनत का राज था जिसमे कहीं पर भी किसी भी जगह पर मुस्लिमों को परेशानी होती थी तो हिजाज़ ( सऊदी अरब) अपना किरदार बखूबी निभाता था, पिछले दिनों हुए अनेक हमलों ने इसकी पोल खोल कर रख दी जब हर मुद्दे पर सऊदी किंग की चुप्पी का मतलब है तुम तेल लुटाओ गैरों पर वो तुम्हारा खून चूसे, यह हक़ीक़त है आज हर मुद्दे पर तुर्की ही क्यों बोलता है क्योंकि यही वो लोग हैं जिन्होंने हिजाज़ में उस्मानियाँ सल्तनत के वक़्त हरमैन शरीफ में तलवार नहीं चलाई, खून नहीं बहाया लेकिन किंग सऊद के फ़र्ज़ी मुसलमानों ने तुर्कियो को मौत के घाट तो उतार दिया लेकिन उन्होंने उफ भी नहीं की और मिल्लत को बचाने का काम किया ।
1922 के बाद सऊदी में किंग सऊद का कब्ज़ा हो गया जिन्होंने इस्लाम की शिनाख्त को मिटाया, मिल्लत के खून से होली खेली ये वो ही लोग हैं जिन्होंने इक़्तेदार में आने के लिए हरमैन शरीफ में पहले तुर्कियों का खून पिया और अब अपनी सल्तनत चलाने के लिए मिल्लत के नौजवानों के खून चूस रही है चाहे वो इराक़ हो, अफगानिस्तान हो या फिर फ़िलिस्तीन पर इसराइली सेना का कब्जा करने में हाथ हो यह सब जगह दोहरी नीति का ही इस्तेमाल करते हैं।

अफसोस होता है जिस पैसे वाले मुल्क में आज मुस्लिमों के हालात तो खराब हैं ही उसके अलावा उसकी सीमाओं से लगे मुस्लिम मुमालिक के हालात तो रोज बिगड़ ही रहे हैं। इजराइली सेना के लोग बैतुल मुकद्दस पर कब्ज़ा कर रहे हैं लेकिन सऊदी किंग कुछ भी नहीं कहता है उसका सीधा मामला यही है कि यह 1922 कि बाद कि नस्ल है जो पूरी तरह से अमेरिका, इजराइल की वफादार है न कि मिल्लत की वफादार है ज़रा सोचिए समझिए सऊदी के किरदार को जिसकी वजह से आज दुनियाँ में मुस्लिम रुसबा हो रहा है। एक वो भी वक्त था जब हजरत उमर और सलाहुद्दीन अय्यूबी जैसे आशिक़ाने मुस्तफा ने बैतुल मुकद्दस को फतह करके इस्लामी हुकूमत के हवाले किया था। पर वो जज़्वा सऊदी हुक़ूमत में देखने को नहीं मिलता है।

शनिवार, 2 दिसंबर 2017

एमएसओ एएमयू ने फल वितरित और जुलूस निकालकर मनाया ईद मिलाद उन नबी - अकरम हुसैन क़ादरी

एमएसओ एएमयू ने फल वितरित और जुलूस निकालकर मनाया ईद मिलाद उन नबी - अकरम हुसैन क़ादरी
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की गैर सियासी तंज़ीम मुस्लिम स्टूडेंट आर्गेनाईजेशन ने आज ईद मिलाद उन नबी के मुबारक मौके पर अपने प्यारे नबी मानवता का संदेश पूरी दुनियां में फैलाने वाले हुज़ूर अकरम सल्लाहो अलैहि वस्सलम के जन्मदिन के मौके पर आज सबसे पहले सुबह साबिक में क़ुरान ख्वानी का एहतेमाम किया गया उसके बाद प्यारे नबी की सुन्नतों को समझते हुए मानवता की सेवा के लिए जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में मरीजों और तीमारदारों को फल वितरित किए गए जिससे वहां पर मौजूद लोगों के चेहरे पर एक अजीब खुशी का एहसास हुआ उन्होंने खुशी खुशी फलों को लिया और एमएसओ के कार्यो की तारीफ की
फल वितरण के बाद एमएसओ के ज़िम्मेदारान लोगो ने यूनिवर्सिटी में जुलूस ए मोहम्मददी का एहतेमाम किया गया जिसमें हम्द, नात, मनकबत और हुज़ूर सल्लाहो अलैहि वस्सलम की तालीमात को बताया गया कि किस प्रकार से उन्होंने पूरी दुनियाँ मे जब बच्चियों को ज़िंदा दफन कर दिया जाता था तो उस वक़्त आप हुज़ूर सल्लाहो अलैहि वस्सलम ने लोगो को लड़कियों को दफन करने से मना किया और उनकी रक्षा करने के लिए लोगो को संदेश दिया , जिस प्रकार से आजकल मज़दूर, गरीब, लाचारों पर जुल्म सितम हो रहे है उस पर नबी सल्लाहो अलैहि ने फरमाया कि मज़दूर का पसीना सूखने से पहले उसकी मजदूरी दे दी जाए जिससे उसका परिवार भी दो वक्त की रोटी जुटा सके और उसके पेट की आग बुझ जाए आखिर में बताया गया कि इस्लाम पूरी तरह से वेलफेयर मज़हब है जो किसी को ज़ुल्म ज्यादती की इजाज़त नही देता है जो लोग इस्लाम के नाम पर जुल्म ज्यादती आतंकवाद फ़ैला रहे है या तो वो दीन ए इस्लाम की तालीमात को नही समझते गया फिर वो इस्लाम को बदनाम करने की साज़िश कर रहे है इस मुबारक मौके पर डॉ. अहमद मुज्तबा, डॉ. कमर आलम एमएसओ सदर जावेद मिस्बाही, मोहम्मद कैफ, काशिफ खान क़ादरी, अकरम हुसैन क़ादरी, मुसाब इल्मी, अनस, अलाउद्दीन, फरहान दीवान बरकाती, शम्स तबरेज़, वासिफ़ अन्सारी, शमीम अकरम, गज़नबी, मोहम्मद फ़हद और रफ़ीक़ अलीमी साहब अनेक लोग मौजूद थे।
अकरम हुसैन क़ादरी
रिसर्च स्कॉलर
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी