शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

गुजरात में न्यूरिया के लोगो की दर्द भरी दास्तान - अकरम हुसैन क़ादरी

आखिर कोई भी इंसान क्यो अपनी पैदायशी सरज़मी छोड़ता है यह एक सोचने, समझने और ध्यान देने का मुकाम ज़रूर है लेकिन पहले इस बात का भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि आखिर यह सब मजबूरियां क्यो और कैसे पैदा हुई जिसकी वजह से आज न्यूरिया की आधी आबादी गुजरात मे जा बसी है वहां उनकी केवल पेट की आग तो बुझ रही है उसके अलावा ना वहां पर उनके रिश्ते मजबूत हो रहे है और ना ही उनके बच्चों को ज़रूरी तालीम मिल पा रही है जोकि आने वाले वक्त की ज़रूरी मांग भी है अगर हम यह मांग पूरी नही कर सके तो हो सकता है आने वाले वक्त में कस्बे में तालीम का स्तर और ज्यादा गिर जाएगा क्योंकि जो आधी आबादी गुजरात मे बसी है वहां पर वो सुबह को कारखानों में निकल जाते है और देर शाम को घर पर लौटते है जिसकी वजह से ना ही उनको किसी तालीम का इंतेज़ाम है और ना ही माँ बाप के प्यार के मुस्तहिक़ हो पाते है बल्कि उनके अंदर अकेलापन, मायूसी और अपने पैदायसी वतन की मोहब्बत उनको ज़हनी तौर पर खूब परेशान करती है जिससे वो डिप्रेशन का शिकार हो जाते है और बुरी आदतों की गिरफ्त में आ जाते है जैसे सिगरेट, गुटखा, मावा और उससे आगे शराब के भी आदी हो जाते है दूसरी सबसे बड़ी वजह उनके पास मजदूरी का पैसा भी होता है जो उनको इन सब कामो में धकेलने में एक अहम रोल अदा करता है, आखिर ऐसा क्या होना चाहिए कि न्यूरिया में इनको दोबारा से वापस लाया जाए जिससे बच्चों का बचपन, लकड़पन, अपनापन, पैदाइशी जगह से मोहब्बत बरकरार रख सके, बुज़ुर्गो की शफ़क़्क़त, रिश्तेदारों का अपनापन फिर से मिल सके उसके लिए न्यूरिया के नेताओ को अब केवल न्यूरिया में फैक्ट्रीयां लाने का काम सोचना होगा जो पहले खो चुके है उसको भूलकर नई पहल शुरू करनी होगी फिर से न्यूरिया को ज़मीदारों की न्यूरिया बनाना होगा जिससे सभी धर्म, जाति के लोग एक होकर न्यूरिया को आगे की तरफ तरक़्क़ी करवा सके।

आजकल रोड, सड़क, गेट बनाकर आप उसको तरक़्क़ी नही कह सकते, बल्कि तरक़्क़ी उसको कहते है जब आपके यहाँ से ज्यादा से ज्यादा लड़के तालीम हासिल करें, अच्छे से अच्छे ओहदों पर पहुंचे वो लोग भी वापस आ जाये जो पेट की मजबूरी में मजदूरी कर रहे है उनके बच्चों को अच्छी, सस्ती तालीम मिल सके

बुज़ुर्गो का वक़्त तो अमूमन जा चुका है अब वक्त है हमे अपने मुस्तकबिल (भविष्य) के बारे में सोचना चाहिए न्यूरिया के बारे में सोचना चाहिए, जागो अब वक्त आ चुका है वरना वो वक़्त दूर नही है तुम्हे लोग कुचल के आगे निकल जाएंगे तुम लोग चन्द गुण्डे नेताओ के चंगुल में फंसे के फंसे रह जाओगे, जो तुम्हे चुनाव के वक़्त चाय, नाश्ता तो खूब कराएंगे दो, चार वक़्त का खाना भी खिला देंगे लेकिन आपका और आपके बच्चों का भविष्य ख़राब कर देंगे .....न्यूरिया को बचाइए, पढा लिखा शरीफ इंसान लाइये जो आपके हक़ और हुक़ूक़ की बात करे .....आपको तरक़्क़ी की नई राह पर ले जाये .....

जय हिंद

अकरम हुसैन क़ादरी

रिसर्च स्कॉलर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी
अलीगढ़

गुरुवार, 16 नवंबर 2017

2 बजकर 38 मिनट पर क्यों ठहर जाती है बरेली - अकरम क़ादरी, मीनू बरकाती

2 बजकर 38 मिनट पर क्यो ठहर जाती है बरेली- अकरम क़ादरी, मीनू बरकाती

आँसमां मे सूरज की किरणें फैलने के साथ ही पुरा शहर ए बरेली उर्स-ए-रजवी के रंग मे रंग जाता है। पुरा शहर आला हजरत की अकींदत मे सराबोर नजर आ रहा था।बुद्धवार को आला हजरत के उर्स की आखिरी रस्म अदा की गई।
इमाम अहमद रजा फाजिले बरेलवी के कुल शरीफ पर बुधवार को शहर में जायरीन का सैलाब उमड़ पड़ा। लाखों की संख्या में जायरीन ने कुल शरीफ में शरीक होकर आशिके रसूल आला हजरत को खिराज-ए-अकीदत पेश की। इस्लामियां मैदान और मथुरापुर स्थित इस्लामिक स्टडी सेंटर में कुल शरीफ की रस्म अदा की गई। शहर के चारों तरफ आला हजरत जिंदाबाद के नारों की गूंज सुनाई दी। कुल की रस्म शुरू हुई तो जो जहां था वहीं दुआ के लिए हाथ उठाकर खड़ा हो गया। शहर की सड़कें जाम हो गईं। कुल के बाद उलेमा ने मुल्क में अमन, चैन और कौम की सलामती की दुआ मांगी। उर्स को लेकर सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम काफी चाक चौबन्ध किए गए। काफी पुलिस, पीएसी, आरएएफ और प्रशासनिक अमला तैनात रहा।
इस्लामियां मैदान और मथुरापुर स्थित इस्लामिक स्टडी सेंटर पर बुधवार को आला हजरत के कुल का नजारा देखने लायक था। दोनों तरफ के मार्गों पर हजारों की तादाद में लोग मौजूद रहे। दोपहर 02:38 बजे पर कुल शरीफ की रस्म शुरू हुई। उर्स के मंच से आतंकवाद के खात्मे को लेकर अपील की गई। इसके अलावा सूफी विचारधारा को अपनाने, दुनिया में शांति के प्रयास, खानकाह, मजार और दरगाहों और मसलके आला हजरत से मजबूती के साथ जुड़ने का संदेश दिया। मुल्क में फैलती नफरत को खत्म करने और वोटों की राजनीति से होने वाले नुकसान पर चर्चा की गई।
कुरान की तिलावत, मीलाद-ए-पाक और नात ओ-मनक़ब्त का नजराना पेश करने के बाद सज्जादनशीन मौलाना अहसन रजा खां कादरी ने मुल्क में अमन चैन के साथ मुसलमानों के मसाइल हल करने और मसलके आला हजरत पर चलने की तौफीक अता फरमाने की दुआ की। देश विदेश से आए उलेमा ने जायरीन को खिताब करते हुए आला हजरत के जीवन पर रोशनी डाली। आखिर में तमाम लोग दरगाह प्रमुख और सज्जादानशीन के मुरीद हुए कुल शरीफ की आखिरी रस्म अदा करने के बाद मुल्क अमन के लिये दुआ की गई।
इस बार उर्स ए आला हजरत मे लगभग चालीस लाख लोग पंहुचे बरेली शरीफ जिससे पुरा शहर जाम नजर आ रहा था।

जय हिंद
हिंदुस्तान ज़िन्दाबाद......

सोमवार, 13 नवंबर 2017

आला हज़रत ने ऐसे लिया अंग्रेज़ो से लोहा - मीनू बरकाती

आला हज़रत ने ऐसे लिया अंग्रेज़ो से लोहा - मीनू बरकाती

चौहदवीं सदी के सबसे बड़े आलिम आला हज़रत  फाजिले बरेलवी मौलाना अहमद रजा खां ने दीनी खिदमात के साथ साथ एक सच्चे देशप्रेमी (वतनपरस्त) का भी किरदार अदा किया। अंग्रेजों से वह इतनी नफरत करते थे कि मलिका विक्टोरिया के टिकट को अपमान करने के मक़सद से उन्होंने खतों पर हमेशा उल्टा ही चिपकाया। आपने जंग-ए-आजादी में अंग्रेजों से लड़ने के लिए अपने घोड़े आजादी के दीवानो को दे देते थे। अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ने वाले सिपाही आपके गरीब खाने में ठहरते थे। यही वजह थी कि लार्ड हेस्टिंग जैसे जनरल ने आपका सर कलम करने का इनाम पांच सौ रुपये रखा था। आला हजरत की पैदाइश जंग-ए-आजादी से ठीक एक साल पहले यानी 14 जून 1856 ई. को बरेली के मोहल्ला जसौली में हुई थी। आपके कुनबे का ताल्लुक कंधार (अफगानिस्तान) से है। मुगलिया शासन में आला हजरत के खानदान के बुजुर्ग हिंदुस्तान आए थे। आपके दादा हुजूर मौलाना रजा अली खां किसी जंग के सिलसिले में रूहेलखंड आए और यहीं के होकर रह गए। आला हजरत के वालिद मुफ्ती नकी अली खां भी अपने वालिद की तरह अंग्रेजों की हुकूमत से सख्त नफरत करते थे। कई बार अंग्रेजों ने आपको गिरफ्तार करने की कोशिश भी की, लेकिन कामयाबी नहीं मिल पाई। उन्हें जैसे ही अंग्रेजी फौज के आने की भनक लगती थी, वह मस्जिद में चले जाते थे। वहां अंग्रेज जाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाते थे। आला हजरत ने अंग्रेजों के खिलाफ फतवे भी जारी किए। अंग्रेजों द्वारा आयोजित किए जाने वाले तमाशों और भाषणों में मुसलमानों को आला हजरत ने ही जाने से रोका। आपका कहना था कि अंग्रेजों ने हमारे मुल्क के साथ धोखा किया है। फिरंगी तिजारत के बहाने आकर हाकिम बन गए और हमारे मुल्क के लोगों पर जुल्म ढहा रहे हैं। आला हजरत अंग्रेजी दौर में कोर्ट कचहरी जाने के सख्त विरोधी थे। आला हजरत इमाम अहमद रजा खान फाज़िले बरेली का जन्म 10 शव्वाल 1672 हिजरी मुताबिक 14 जून 1856 को बरेली में हुआ  आपके पूर्वज कंधार के पठान थो जो मुग़लो के समय में हिन्दुस्तान आये थें।आला हज़रत ने उस वक़्त अंग्रेज़ो से लोहा लिया जिस वक़्त कुछ मौलाना अपनी रोज़ी रोटी को चलाने और मुल्क को बरगलाने में लगे थे और अंग्रेज़ो से तीन सौ रुपये महीना लेकर उनके एजेंडे पर काम कर रहे थे और ऐसे मदरसे को फरोग दे रहे थे जो इस्लामी लिबास तो पहनते थे और है भी लेकिन वफादारी हमेशा अंग्रेज़ो की ही निभाते थे, निभाते है।
आला हजरत का उर्स  बरेली शरीफ मे हर साल सफर की 25 को मनाया जाता है इस बार यह उर्स 25 सफर चांद की और अंग्रेजी की 15 नवंबर को मनाया जायेगा।इसमे देश विदेश से लाखों की तादात मे जायरीन आते है

मीनू बरकाती शेरपुर कलां
पुरनपुर पीलीभीत उत्तर प्रदेश
9759227686
Meenu.barkaati@gamil.com

शुक्रवार, 10 नवंबर 2017

दलालो से सावधान - मीनू बरकाती टीटीएस

दलालों से साधान।सुनो दलालों

क्यू है लोग टी.टी.एस के खिलाफ तो सुनों एक साहब ने चुनाब मे हमसे कहा था टी.टी.एस हमे सपोर्ट करे तो हम लोगो ने कहा हमे राजनिति से कोई बास्ता नही है।हम लोग चुनाब किसी को नही लड़ायेगे.
तब से कुछ गंन्दी राजनिति के लिये हम लोगो से दलाल कहना शुरू कर दिया जगह जगह लोगो से कहते फिर रहे है.
सुनो तुम अपने बाप की असली औलाद हो तो जो लोग दलाली कर रहे है उसके खिलाफ बोल कर देखो बो मजबूत लोग है तुम्हे छटी का दूध याद दिला देगे।
हम लोग सिर्फ इस्लामी एंव सामाजिक काम करने बाले है क्यूकि हम मरकजे अहले सुन्नत दरगाह ए आला हजरत से जुड़े है।
हम चुनाब किसी को नही लड़ाते है न ही कभी लड़ाये
जो दलाल कह रहा है बो खुद दलाल है जबकि तो खुबसूरत मकान दलाली से बना रखे है.
एक भी साबूत हो किसी के पास टी.टी.एस के खिलाफ तो पेश करो.है हिम्मत।
जो लोग कह रहे है टी.टी.एस शेरपुर दलाली कर रहा है जरा हमे भी तो पता चले किस से दलाली ली है जिस ने दी हो बो  बताये.तुम्हारे मुत मे मार जाओगा.
गांव मे तुम्हारी औकात ही क्या है दलालो.

हम टी.टी.एस बाले हक के साथ है सच्चो के साथ है
बस यही आग लगी है इनके पेटो मे हक के साथ क्यू है यह.
खुब बुराई करो हमे कोई परेशानी नही है शेरपुर बाले सब जानते है हक पर कौन है और दलाली कौन कर रहा हैं।

फ्री मे टी.टी.एस का प्रचार करने के लिये शुक्रिया।।

जलने बाले जलते रहेगे हम ऐसी ही चलते रहेगे।
इंन्शा अल्लाह।

टी.टी.एस शेरपुर कलां की आवाज हक की आबाज
खरी खरी चुभी चुभी
मीनू बरकाती टी.टी.एस शेरपुर कलां।

गुरुवार, 9 नवंबर 2017

न्यूरिया के नौजवानों से अपील - अकरम हुसैन क़ादरी

ना समझोगे तो नस्ले बर्बाद हो जाएंगी
भाइयों मैं किसी भी उम्मीदवार का नाही समर्थक हुँ और ना ही किसी का मुखालिफ मैं तो अपने कस्बे का एक छोटा सा आप जैसा इंसान हुँ, बस थोड़ा सा अलग सोच लेता हुँ इसलिए लोग तिरछी नज़रों से देखते है मुझे कस्बे की राजनीति से मतलब नही है लेकिन एक रिसर्च स्कॉलर ( तहक़ीक़) का स्टूडेंट होने के नाते मुझे बार बार अपने कस्बे की बर्बाद होती नस्लो के फ्यूचर (भविष्य) की थोड़ी चिंता होती है क्योंकि एक धड़कते दिल और जिंदादिल इंसान होने की यह पहचान भी है।
पिछले लगभग दस साल से बराबर देख रहे है और समझ भी रहे है जो न्यूरिया कभी ज़मीदारों की कही जाती थी आज वो मजदूरों, कारीगरों, दिहाड़ी, करने वालो की न्यूरिया बन चुकी है क्योंकि जितनी भी फैक्टरियां न्यूरिया में आई उसको हमारे पुराने नेताओ ने चकरपुर, खटीमा, या दूसरी जगह पर भेज दिया इसके अलावा बहुत से डिग्री कॉलेज, इंटरमीडिएट कॉलेज, स्कूल और कन्या विद्यालय आये लेकिन वो हमारे नेताओं की वजह से दूसरी जगह चले गए जिससे हमारा नुकसान पीढ़ी दर पीढ़ी चल रहा है जिसको शायद हम लोग सीरियसली नही समझ रहे है, जिस तरीके की लीडरशिप आज न्यूरिया में पनप रही है उसमें तो एक समझदार इंसान को अपनी आने वाली नस्लो का भला नही दिखता है,
सारी कमी हमारी मौजूदा लीडरशिप की ही नही है बल्कि हमारी जनता की भी कमी है वो आने वाले समय की मांग को नही समझ रही है जिससे उनके बच्चे मजदूर के मजदूर ही बन रहे है गुजरात, दिल्ली, देहरादून जैसे शहरों में मजदूरी करने के लिए मजबूर हो रहे है अच्छे और सस्ते स्कूल ना होने की वजह से अच्छी, किफायती और रोजगार के लिए कोई तालीम नही मिल पा रही है जिससे दिन वा दिन न्यूरिया आस पास के गांवों, कालोनियों से पिछड़ते जा रहे है, गरीबो के लिए एक सहारा मदरसा भी बहुत बुरे दौर से गुज़र रहा है जहां पर एक गैरतमंद इंसान कुछ नही कर सकता था तो वो अपने बच्चे को दीनी तालीम दे सकता था लेकिन मदरसे को बर्बाद करने में भी न्यूरिया की नई, पुरानी लीडरशिप ही जिम्मेदार है जिन्होंने वक़्त के साथ क़दम ताल नही किया जिसका खामियाजा आज गरीब और मिडिल क्लास फैमिली को भुक्तना पढ़ रहा है।
भाइयों आप सब लोगो से दरखास्त है कि अपने वोट को सोच समझकर दे किसी के नाश्ते, चाय, कॉफी, अण्डे, चने को देखकर ना दे।
कितने मासूम है आप लोग किसी भी इंसान को पांच साल अपना और अपने बच्चों का मुस्तकबिल (भविष्य) सौंप देते हो चन्द दिनों के नाश्ते, चाय, फलों में ज़रा समझो अगर पुरानी लीडरशिप अच्छी होती तो बहुत कुछ बचाया जा सकता था अब आने वाली लीडरशिप भी उसी मुहाने पर खड़ी है फैसला करने का वक़्त है आपका और आपके बच्चों के मुस्तकबिल का मामला है वोट करने से पहले अपने ज़मीर और दिल पर हाथ रखकर सोचना.......

"मेरा तरीक अमीरी नही फकीरी है।
खुदी को ना बेच गरीबी में नाम पैदा कर।।"
      अल्लामा इक़बाल

आपका छोटा भाई
अकरम हुसैन क़ादरी
रिसर्च स्कॉलर ( अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी )
फाउंडर - "अलीग्स वेलफेयर सोसाइटी न्यूरिया"

पत्रकार NDTV INDIA, कोहराम, लल्लनटॉप, मीडिया एस्केप, वोटरगिरी

संकट में प्रवासी पक्षी - मीनू बरकाती

संकट मे प्रवासी पक्षी

प्रवासी पक्षी भी संकट मे घिर गये है।ठंडे देश साइबेरिया से हज़ारो मील दूरी तय करके हर साल भारत की सरजमीं को सजदा करने वाले प्रवासी  पक्षियों के प्रति न तो वन विभाग का महकमा गंभीर है और न ही पक्षियों के शिकार पर अंकुश लगाया जा रहा है।चिड़ीमार साइबेरियन पक्षी का शिकार करने के बाद नेपाल आदि जगह मे अच्छे भाव मे बेच रहे है।
साइबेरिया का मौसम सर्दियों मे पक्षियोे के रहने लायक नही रहता है।नवम्बर शुरू होते ही बर्फ जमने लगती है तब यह साइबेरियन पक्षी प्रवास के लिये रुख करते है।उत्तर प्रदेश के तराई क्षेञ की ओर कई दिनों की हजारों मील लम्बी याञा करने के बाद साइबेरियन पक्षी मु्ख्यत:पीलीभीत, इलाबाद और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों को अपना आशियाना बनाते है।इन पक्षियों की नजरे बड़ी तेज होती है और उड़ते समय वे  इनका बखूबी इस्तेमाल करते है।रास्ते मे पड़ने वाले विजुअल लैेडमाकर्स जैसे पहाड़, नदियां, तालाब आदि की सहायता से अपना रास्ता तलाश करते  है।अब से करीब एक दशक पहले तक तो साईबेरिया सरकार इन पक्षियों के पैरों में छल्ले नुमा ट्रांसमीटर लगाती थी ताकि यह पता लग सके कि ये पक्षी कब और कहा किस स्थिति में है तथा कितनी दूरी याञा करके वापस लौटते है? साइबेरिया वापस होने पर इनकी जांच होती थी लेकिन अब काफी सालों से पक्षियों के पैरों मे छल्ले दिखाई नही देते है।प्रवासी पक्षियों की परेशानी की वजह जलवायु परिवर्तन भी है।ग्लोबल वार्मिंग के लिये हम भी कम जिम्मेदार नही है। सरकार एवं वन विभाग को इन मेहमान पक्षियों के शिकार को रोकना चाहियें।
हमारी भी जिम्मेदारी है।इन पक्षियों को बचाने के लिये हम सब को जागरुक होना चाहियें।अगर किसी को साइबेरियन पक्षियो का शिकार करता हुआ कोई दिखे तो वन विभाग को सूचना फौरन दे।

मीनू बरकाती शेरपुर कलां पुरनपुर पीलीभीत
9759227686

मंगलवार, 7 नवंबर 2017

साम्प्रदायिकता का असली गुनाहगार कौन- अकरम हुसैन क़ादरी

साम्प्रदायिकता का उदय किसी धर्म या धार्मिक सोच से नहीं होता है बल्कि राजनैतिक लोलुप्सा, घृणित इच्छाओं की पूर्ति और रातों रात धनी बनने की प्रबल इच्छा से पनपता है। धर्म का अर्थ होता है धारण करना अर्थात प्रेम, सत्य, न्याय, अहिंसा आदि सदगुणों को धारण करना।
दुनियाँ का कोई भी धर्म बुरा नहीं होता है। हर धर्म मानवता का पाठ पढ़ाता है, अच्छे-बुरे में फर्क बताकर सही मार्ग पर चलने को कहता है। हजारों साल से सभी धर्माचार्यों ने इसी का उपदेश दिया है। पर कुछ लोग ने अपने निजी स्वार्थ के लिए इसका इस्तेमाल सदियों से करते आ रहे हैं और आज भी कर रहे हैं, ये लोग धर्म में रहकर धर्म से षड्यन्त करने वाले होते हैं जो धर्म को हाथ की कठपुतली बना लेते हैं और अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए इसका इस्तेमाल तुरुप के इक्के की तरह करते हैं जो अक्सर सटीक ही बैठता है और नेता जी को इसका पूरा लाभ होता है, यदि धर्म इतना ही बुरा होता तो सबसे ज्यादा दुनियाँ में इसके मानने वाले नही होते लेकिन कुछ नास्तिकतावादी विचारधारा के लोग मानते हैं कि सभी बुराइयों की जड़ 'धर्म' है जबकि यह पूर्णतया सच नहीं है धर्म से ही नैतिकता का निर्माण होता है, धर्म ही हमें एक सीमा में बांधकर हमारे भीतर सद्गुणों का निर्माण करता है, धर्म ही हमें कर्तव्य पालन की ओर ले जाता है धर्म ही हमें अच्छे रास्ते पर ले जाता है।
अब यदि कोई आतंकवादी घृणित कार्य करने के पश्चात अल्लाह हो अकबर का नारा लगाए तो इसमें धर्म का कोई दोष नही हैं क्योंकि वह धार्मिक होता तो यह सब होता ही नही, जिस प्रकार से कंधमाल में कुछ अति उत्साही लोग एक महिला का रेप करके जय श्री राम का उद्घोष कर रहे थे, क्या वो धार्मिक है ?? वो बिल्कुल भी धार्मिक नहीं है यदि धार्मिक होते तो ऐसे काम ही नहीं करते, आजकल सोशल मीडिया पर किसी को भी मारते, काटते, हुए वीडियो अक्सर देखने को मिल जाते है जैसे
आईएसआईएस के आतंकवादी एक नारे का उद्घोष करते हैं वो धर्म का हिस्सा ही नहीं है बल्कि वो धर्म का मज़ाक बना रहे हैं अगर धार्मिक होते तो कोई ऐसा घृणित कार्य ही नहीं करते जिससे मानवता शर्मसार होती।
भारत के अंदर अनेक धर्म, पंथ, वर्ण और जाति के मानने वाले लोग मिल जाएंगे है इसका उदाहरण किसी भी दरगाह पर खड़े लोग मन्नत मांगते हुए दिख जाते है चाहे वो अजमेर शरीफ हो या फिर साबिर पाक कलियरी की दरगाह वहां कोई किसी का धर्म नही पूछता है, मंदिरों के सामने अनेक लोग आते है जो अपनी पद्धति के अनुसार पूजा पाठ करते है, स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारे में अनेक लोग जाते है और सब वहां पर सर पर रुमाल बांधकर जाते है और लंगर छक कर वापस आते है वहां पर भी कोई किसी से किसी का धर्म नही पूछता है
मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है और धर्म ही मानवता सिखाता है इसमें कोई शक नही होना चाहिए।
कोई भी धर्म बुरा नही होता है बस जो लोग बुरा करते है उन्होंने धर्म को समझा ही नही होता है ना ही धर्म की शिक्षाओं को पड़ा होता है वो लोग धर्म का सहारा लेकर अपनी कुण्ठित इच्छाएं पूरी करते है, मानवता सिखाने के लिए समाज मे धर्म के साथ साथ साहित्य का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है, साहित्य ही किसी व्यक्ति को पूर्णतया मनुष्य बनाने में योगदान देता है

अकरम हुसैन क़ादरी और आसिफ साबरी