सोमवार, 23 मार्च 2015

हाशिमपुरा नरसंहार

हाशिमपुरा नरसंहार के आरोपियों को जिस तरह से कोर्ट ने बरी किया है, उसके बाद सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या मुस्लिमों का रहनुमा होने का दावा करनेवाले लोगों ने ही उनके साथ विश्वासघात किया है ? आपको बता दें कि साल 1987 में मेरठ के हाशिमपुरा में 42 लोगों की हत्या कर दी गई थी . हत्या का आरोप पीएसी के जवानों पर लगा था लेकिन तीस हजारी कोर्ट ने सबूत के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया है .

 28 साल तक चला हाशिमपुरा नरसंहार का मुकदमा . 42 मुस्लिमों की हत्या की पुष्टि भी हुई लेकिन आखिर तक ये पता नहीं चल पाया कि हत्यारा कौन है ? और उससे भी अजीब बात ये कि पुलिस 28 साल में ये भी नहीं पता कर पायी कि मारे गये सभी लोग कौन थे ?

पीड़ितों की वकील रेबेका जॉन बताते हैं कि जब पुलिस ही पुलिस के खिलाफ जांच करती है तो ऐसा ही होता है. हत्या के आरोपियों को बचाने में पुलिस और यूपी सरकार की भूमिका की पड़ताल से पहले आपको बता दें कि हाशिमपुरा नरसंहार के समय यूपी में कांग्रेस के वीरबहादुर सिंह की सरकार थी . उसके बाद कांग्रेस के ही नारायण दत्त तिवारी की सरकार बनी . खुद को मुस्लिमों का रहनुमा बताने वाले मुलायम सिंह तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री बने जबकि अभी उनके बेटे अखिलेश यादव राज्य के मुख्यमंत्री हैं. लेकिन इसके बावजूद हाशिमपुरा नरसंहार के इन पीड़ितों को इंसाफ नहीं मिला .

पीड़ित बताते हैं कि यूपी सरकार ने सबूत नहीं दिये . यूपी सरकार को कोस रहे हैं हाशिमपुरा के दंगा पीड़ित . दरअसल हाशिमपुरा नरसंहार की जांच सीबीसीआईडी की टीम ने किया है और इस मामले के आरोपियों के खिलाफ सबूत जुटाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की थी लेकिन राज्य सरकार तो मारे गये सभी लोगों के नाम तक नहीं बता पायी .

हाशिमपुरा के पीड़ितों के मुताबिक जिन लोगों की हत्या हुई है, उन सबको पीएसी की एक गाड़ी पर चढ़ाया गया था और फिर गंग नहर के किनारे ले जाकर सबको गोली मार दी गई थी . पीड़ितों की वकील रेबेका जॉन का दावा है कि मौत की वो गाड़ी ही आरोपियों के खिलाफ पुख्ता सबूत बन सकती है .

28 साल तक चले मुकदमा में पुलिस वारदात के प्रत्यक्षदर्शियों के जरिए भी आरोपियों के खिलाफ सबूत पेश नहीं कर पायी जबकि हाशिमपुरा के दो लोग एबीपी न्यूज से खुलकर बताये हैं कि उन्हें भी पीएसी के जवानों ने गोली मारी थी लेकिन किस्मत से वो बच गये .

शनिवार, 21 मार्च 2015

कविता

झूठे इतिहास लिखकर,
विजेता बन बैठे तुम,
पाखंड फैलाकर,
सत्ताधारी बन बैठे तुम,
और हमें नीच बुलाते हो...
खेत-खलियान हड़पकर,
धनवान बन बैठे तुम,
भुखमरी फैलाकर,
सभ्यवान बन बैठे तुम,
और हमें अछूत बुलाते हो...
महिलाओं को देव-दासी बनाकर,
देवता बन बैठे तुम,
दहेज़-प्रथा फैलाकर,
संस्कृतिवान बन बैठे तुम,
और हमें समाज-कंटक बुलाते हो...
लोगों को जात-पात में बांटकर,
मानवीय-प्रेरक बन बैठे तुम,
साम्प्रदायिकता फैलाकर,
शांति-दूत बन बैठे तुम,
और हमें आतंककारी बुलाते हो...
मंदिरों के रूप में दूकान बनाकर,
पुजारी बन बैठे तुम,
चारों तरफ दुर्गन्ध फैलाकर,
मठाधीश बन बैठे तुम,
और हमें अश्लील बुलाते हो...
एकलव्य का अंगूठा काटकर,
मेरीटवान बन बैठे तुम,
अंधविश्वास फैलाकर,
ज्ञानी बन बैठे तुम,
और हमें मूर्ख बुलाते हो...
काली कमाई से धन जुटाकर,
परोपकारी बन बैठे तुम,
उपोषण-भयादोहन-गुंडागर्दी फैलाकर,
अहिंसा के पुजारी बन बैठे तुम,
और हमें हिंसक बुलाते हो...
रोटी के बदले अस्मिता लूटकर,
पूज्यनीय बन बैठे तुम,
अराजकता फैलाकर,
राष्ट्रभक्त बन बैठे तुम,
और हमें राष्ट्र-द्रोही बुलाते हो...
कलम छीनकर,
शिक्षा-शास्त्री बन बैठे तुम,
जातिवाद फैलाकर,
समाजवादी बहन बैठे तुम,
और हमें अनपढ़-गंवार बुलाते हो

बुधवार, 18 मार्च 2015

हिंदी भाषा एवं नगरी लिपि का इतिहास

1.हिंदी भाषा एवं नागरी लिपि का इतिहास
१)अपभ्रंश, अवहट्ट एवं आरम्भिक हिंदी का व्याकरणिक एवं अनुप्रयुक्त स्वरुप
२)मध्यकाल में ब्रज एवं अवधी का साहित्यिक भाषा के रूप में विकास
३)सिद्धनाथ साहित्य, खुसरो, संत साहित्य, रहीम आदि कवियों एवं दक्खिनी हिंदी में खड़ी बोली हिंदी का प्रारंभिक स्वरुप
४)उन्नीसवीं शताब्दी में खड़ी बोली और नागरी लिपि का विकास
५)हिंदी भाषा और नागरी लिपि का मानकीकरण
६)स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी का विकास
७)भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में हिंदी का विकास
८)हिंदी भाषा का वैज्ञानिक और तकनीकी विकास
९)हिंदी की प्रमुख बोलियां और उनका परस्पर सम्बन्ध
१०)नागरी लिपि की प्रमुख विशेषताएँ और उसके सुधार के प्रयास तथा मानक हिंदी का स्वरुप
११)मानक हिंदी की व्याकरणिक संरचना
खंड 'ख'
2. हिंदी साहित्य का इतिहास
१)हिंदी साहित्य की प्रासंगिकता और महत्त्व तथा हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की परंपरा
२) हिंदी साहित्य के इतिहास के निम्नलिखित चार कालों की साहित्यिक प्रवृतियाँ
क) आदिकाल- सिद्ध, नाथ एवं रासो साहित्य
प्रमुख कवि- चंदरवरदाई, खुसरो, हेमचन्द्र, विद्यापति
ख) भक्तिकाल- संत काव्यधारा, सूफी काव्यधारा, कृष्णभक्तिधारा एवं रामभक्तिधारा
प्रमुख कवि- कबीर, जायसी, सूर एवं तुलसी
ग) रीतिकाल- रीतिकाव्य, रीतिबद्ध काव्य एवं रीतिमुक्त काव्य
प्रमुख कवि- केशव, बिहारी, पद्माकर एवं घनानंद
घ) आधुनिक काल
*नवजागरण, गद्य का विकास, भारतेंदु मंडल
*प्रमुख लेखक- भारतेंदु, बालकृष्ण भट्ट एवं प्रताप नारायण मिश्र
*आधुनिक हिंदी कविता की प्रमुख प्रवृतियाँ : छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता और जनवादी कविता
प्रमुख कवि- मैथिलीशरण गुप्ता, प्रसाद, निराला, महादेवी, दिनकर, अज्ञेय, मुक्तिबोध, नागार्जुन
३) कथा साहित्य
क)उपन्यास और यथार्थवाद
ख)हिंदी उपन्यासों का उद्भव और विकास
ग) प्रमुख उपन्यासकार - प्रेमचंद, जैनेन्द्र, यशपाल, रेणु एवं भीष्म साहनी
घ) हिंदी कहानी का उद्भव और विकास
ड.)प्रमुख कहानीकार - प्रेमचंद, प्रसाद, अज्ञेय, मोहन राकेश एवं कृष्णा सोबती
४) नाटक और रंगमंच
क)हिंदी नाटक का उद्भव और विकास
ख) प्रमुख नाटककार - भारतेंदु, जयशंकर प्रसाद, जगदीश चन्द्र माथुर, रामकुमार वर्मा, मोहन राकेश
ग) हिंदी रंगमंच का विकास
५) आलोचना
क)हिंदी आलोचना का उद्भव एवं विकास
सैधांतिक, व्यवहारिक, प्रगतिवादी, मनोविश्लेषणवादी एवं नयी आलोचना
ख) प्रमुख आलोचक- रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामविलास वर्मा एवं नगेन्द्र
६) हिंदी गद्य की अन्य विधाएँ
ललित निबंध, रेखाचित्र, संस्मरण, यात्रा-वृतांत
प्रश्न पत्र -2
(उत्तर हिंदी में लिखने होंगे )
इस प्रश्न पत्र में निर्धारित मूल पाठ्य पुस्तकों को पढना अपेक्षित होगा और ऐसे प्रश्न पूछे जायेंगे जिससे अभ्यर्थी की आलोचनात्मक क्षमता की परीक्षा हो सके |
खंड 'क'
(पद्य )
1. कबीर : कबीर ग्रंथावली, संपादक श्यामसुंदर दास (आरंभिक 100 पद )
2. सूरदास: भ्रमरगीत सार, संपादक रामचंद्र शुक्ल (आरंभिक 100 पद )
3. तुलसीदास: रामचरितमानस (सुंदर कांड)
कवितावली (उत्तरकाण्ड )
4. जायसी : पद्मावत, संपादक श्यामसुंदर दास (सिंघल द्वीप खंड एवं नागमती वियोग खंड)
5. बिहारी : बिहारी रत्नाकर, संपादक जगन्नाथ प्रसाद रत्नाकर ( आरंभिक 100 दोहे )
6. मैथिली शरण गुप्त : भारत भारती
7. जयशंकर प्रसाद : कामायनी (चिंता और श्रद्धा सर्ग )
8. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला : राग-विराग, संपादक रामविलास शर्मा ('राम की शक्ति पूजा' और 'कुकुरमुत्ता' )
9. रामधारी सिंह दिनकर : कुरुक्षेत्र
10. अज्ञेय : आँगन के पार द्वार (असाध्य वीणा )
11. मुक्तिबोध : ब्रह्मराक्षस
12. नागार्जुन : बादल को घिरते देखा है, अकाल के बाद, हरिजन गाथा
खंड 'ख'
(गद्य)
1. भारतेंदु : भारत दुर्दशा
2. मोहन राकेश : आषाढ़ का एक दिन
3. रामचंद्र शुक्ल : चिंतामणि (भाग 1)- 'कविता क्या है' , 'श्रद्धा और भक्ति'
4. डॉ सत्येन्द्र : निबंध निलय - बालकृष्ण भट्ट, प्रेमचंद, गुलाब राय, हजारी प्रसाद द्विवेदी, राम विलास शर्मा, अज्ञेय, कुबेर नाथ राय
5. प्रेमचंद : गोदान
प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ट कहानियां, संपादक अमृत राय / मंजूषा- प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियां, संपादक अमृत राय
6.जयशंकर प्रसाद : स्कंदगुप्त
7.यशपाल : दिव्या
8. फणीश्वर नाथ रेणु : मैला आँचल
9. मन्नू भंडारी : महाभोज
10.राजेंद्र यादव : एक दुनिया समानांतर( सभी कहानियां)
आशा है कि हिंदी भाषा एवं साहित्य को वैकल्पिक विषय के रूप में रखने वाले अभ्यर्थी इससे लाभान्वित होंगे | हिंदी भाषा एवं साहित्य वैकल्पिक विषय की तैयारी के बारे में अपने अनुभव और मार्गदर्शन को लेकर मैं शीघ्र ही हाजिर होऊंगा |

सोमवार, 16 मार्च 2015

सपा सरकार के दावे-वादे झूठे है- रिहाई मंच

सपा सरकार के दावे-वादे झूठे हैं’ – रिहाई मंच


: सरकार के तीन साल पूरे होने के बाद सपा सरकार द्वारा जारी किये गए रिपोर्ट कार्ड ‘पूरे हुए वादे’ को झूठा करार देते हुए रिहाई मंच ने कहा कि सपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में यह वादा किया था कि वह आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को रिहा करेगी और उन्हें पुर्नवास व मुआवजा देगी. जो उसने नहीं किया.

रिहाई मंच ने दिसंबर 2007 में रामपुर सीआरपीएफ कैंप पर हुए कथित आतंकी हमले पर एक रिपोर्ट जारी किया. रिहाई मंच प्रवक्ता ने बताया, ‘इस रिपोर्ट के माध्यम से हम जनता के सामने इस तथ्य को लाना चाहते हैं कि किस तरह से एक झूठी आतंकी घटना की जांच न करवाकर आतंकवाद के हव्वे को ही न सिर्फ़ बरक़रार रखने की कोशिश की जा रही है. न्याय दिलवाने व रिहा करने के बजाय बेगुनाहों को सात-सात साल से जेलों में सड़ने को मजबूर किया जा रहा है.




रिहाई मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि आरडी निमेष आयोग की रिपोर्ट ने तारिक और खालिद की गिरफ्तारी को फर्जी बताते हुए दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ़ कार्रवाई करने की बात कही हैं. लेकिन प्रदेश सरकार इस रिपोर्ट पर कार्रवाई करने से न सिर्फ भागती रही है बल्कि मौलाना खालिद के हत्यारोपी तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह, एडीजीपी बृजलाल सहित 42 दोषी पुलिस व आईबी अधिकारियों व कर्मचारियों को बचाने की कोशिश की. सपा सरकार के रवैये ने साफ कर दिया है कि सपा सरकार न सिर्फ़ इंसाफ के खिलाफ़ है बल्कि आतंकवाद के हौव्वे के नाम पर देश को बांटने वाली राजनीति के गुनहगारों की संरक्षक भी है. यही कारण है कि मौलाना खालिद की हत्या में दोषी पुलिस व आईबी अधिकारियों को क्लीनचिट दिलवाने के लिए फर्जी विवेचना का सहारा लिया गया.

उन्होंने कहा कि सपा के नुमाइंदे लगातार झूठ बोलते रहते हैं कि उनकी सरकार में आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तारी नहीं हुई. पर सच तो यह है कि सरकार बनते ही मई 2012 में सीतापुर से वसीर, आजमगढ़ के एक मदरसे के छात्र सज्जाद बट्ट व वसीम बट्ट की गिरफ्तारी से जो सिलसिला शुरु हुआ, वह 2014 के लोकसभा चुनावों और यूपी उपचुनावों के दरम्यान इतना बढ़ गया कि मिर्जापुर, फतेहपुर, मेरठ, बिजनौर, सहारनपुर से लगातार गिरफ्तारियां होती रहीं और प्रदेश की अखिलेश सरकार चुप रही. उन्होंने कहा कि सुरक्षा एजेंसियों द्वारा झूठ में फंसाकर गिरफ्तार करवाए गए लियाक़त अली के मामले में झूठी योजना बनाने वाली दिल्ली स्पेशल सेल और एनआईए के खिलाफ मुकदमा दर्ज़ करना तो दूर, कोई सवाल उठाने की हिम्मत सपा सरकार तक नहीं कर पाई.

रिहाई मंच के आजमगढ़ प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि सपा ने चुनावी घोषणा पत्र में वादा किया था कि वह आतंकवाद के नाम पर निर्दोष साबित हुए लोगों के पुर्नवास व मुआवजा की गारंटी करेगी. प्रदेश सरकार ने इस वादे को भी पूरा नहीं किया. जबकि कानपुर समेत कई जगहों के लोग अपनी पुर्नवास व मुआवजा के लिए अखिलेश यादव तक से मिल चुके हैं, जिन्हें मुख्यमंत्री के झूठे आश्वासन के अलावा अब तक कुछ नहीं मिला. रामपुर के जावेद उर्फ गुड्डू, ताज मोहम्मद, मकसूद बिजनौर के नासिर हुसैन और लखनऊ के मोहम्मद कलीम को न्यायालय द्वारा दोषमुक्त किया जा चुका है - सपा सरकार के दौरान न्यायालय से निर्दोष साबित हो चुके इन नौजवानों को अब तक मुआवज़ा न मिलना साबित करता है कि सरकारें एक नीतिगत स्तर पर मुस्लिम समाज के लोगों को आतंकवाद के नाम पर फर्जी तरीके से फंसाना ही नहीं उनके एजेण्डे में है बल्कि समाज से उनको एक अलगाव की स्थित में भी रखना है. जिससे समाज में दहशत का वातावरण बना रहे और उनके नाम पर चुनावी राजनीति होती रहे. क्योंकि अगर किसी व्यक्ति को सरकार पुर्नवास व मुआवजा देती है तो उससे समाज में यह संदेश जाता है कि सरकार ने अपनी गलती की भरपाई की पर सरकारें ऐसा कोई संदेश नहीं देना चाहती.

रविवार, 15 मार्च 2015

औरत के बारे लेख

आज सभी लोग एक बहस में लगे हुए हैं के औरत कैसी हो औरत का स्थान क्या है औरत कमज़ोर , मजबूर , गुलाम , काम करने वाली मशीन न जाने क्या क्या कह कर लोग अपनी बहस को लम्बा कर रहे हैं और एक दूसरे कि खिंचाई में लगे हुए हैं सच तो ये है के हम आज औरत को समझने और उसकी हक़ीक़त जानने के बजाये उसकी गलत तारीफ करके उसे अपने लिए आज़ादी दिलाना चाहते हैं और बहुत सी ऐसी बातें हैं जिसको हम स्वीकार करते तो हैं मानते तो हैं पर दूसरों के लिए पसंद नहीं करते हैं और चाहते हैं के औरत का हर वो कारनामा जो हमारे घर में चल रहा है चलता रहे और हम सेफ रहें अपनी इज़ज़त को इज़ज़त समझते हैं दूसरों को फ्री और आज़ाद देखना चाहते हैं ताके अपना उल्लू सीधा होता रहे जैसे कुछ बातें रखना चाहूंगा ,
१. हर आदमी या मैं खुद ही अगर अपनी बीवी को बहन को किसी अनजान व्यक्ति से बात करते हुए दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाते हुए देखें तो क्या होगा हम क्या सोचेंगे क्या करेंगे ?
2. हमारी पत्नी हमारे माँ बाप का सम्मान नहीं करे आदर नहीं करे तो क्या करेंगे क्या सोचेंगे ?
३. आज हम जब भी अपनी घर कि किसी औरत को दूसरे तरह के व्यवहार में देखते हैं तो क्या करते हैं .
औरत एक ऐसी नेमत है जिसे सम्मान और पूर्ण रूप से सजा धजा कर उसे इज़ज़त देने और उसके हर जाएज़ ज़रूरतों को समय से पूरा करने और उसकी हर तरह से हिफाज़त करना मनुष्य का धर्म और कर्तब्य है औरत का स्थान क्या है और इस्लाम धर्म में औरत को कौन सा दर्ज दिया गया है उसको कितने सम्मान के काबिल बनाया गया है अगर किसी को समझना है तो कुरान के एक पाठ जिसका नाम ही औरत है उसे पढ़े और समझे के औरत का स्थान और सम्मान क्या है .
आज के नए फैशन में अगर गरीब कि बेटी छोटा कपडा पहनती है तो उसे गरीब कहा जाता है और बिकसित घराने मॉडर्न घराने कि बेटी आधा मीटर कपडे से बदन के कुछ हिस्से को ढांक कर निकलती है तो उसे बड़े घर कि बेटी कहा जाता है उनके हौसले उनके इरादे बुलंद हैं मगर उनकी ताक़त पूरी औरत बन कर रहने और अपनी मान मर्यादा में रह कर इरादे और हिम्मत पर कायम रहने में है क्यूँ के उनके अंदर वो ताक़त नहीं के भेड़िये नुमा इंसान से अकेली अपनी हिफाज़त कर सकें उन्हें मुहतात रहना होगा वो एक महान और अनमोल रत्न हैं उनको अपनी हिफाज़त के लिए सबसे पहले अपने आपको परदे में रख कर दुनिया के हर कदम से कदम मिला कर आगे बढ़ना होगा अपनी इज़ज़त और अस्मत कि गुणवक्ता को खुद समझना होगा .
अपनी माँ बहनो के लिए एक कविता लिखना चाहता हूँ और उसे कविता नहीं एक एक शब्द को गहराई से पढ़ने और समझने के लिए अनुरोध करना चाहूंगा क्युंके पढ़ लेने से कोई भी महान नहीं होता अक़ल कि कसौटी और दिल के तख्ती पर लिखने और उसे समझने से इंसान महान हो जाता है .
कविता
गुलशने आलम में पाकीज़ा हवा परदे में है
फूल में बू है छुपी फल का मज़ा परदे में है ( बू = खुशबु )
बिजलियाँ पोशीदा रहती हैं हिजाबे अब्र में ( हिजाब = पर्दा ) ( अब्र = बादल )
रौशनी बाहर है दिल कि ज़या परदे में है ( ज़या = किरण , रौशनी )
फातमा परदे में थीं और आयशा परदे में हैं ( फातमा ,आयशा = नाम )
उनकी सीरत पर जो है औरत फेदा परदे में है (सीरत = चाल चलन )
माल व दौलत को छुपा रखते हैं चोरों से सभी
इस से ज़ाहिर है के हर शै कि बक़ा परदे में है ( बक़ा = बचने वाला )
पोस्त में है मगज़ पोशीदा तो रोगन मगज़ में ( पोस्त = गोश्त )
मगज़ क्या हर एक का क़ल्ब व जिगर परदे में है
खिजिर छुपते हैं अवामुन्नास से इलियास भी ( खिजिर = महान व्यक्ति का नाम )
हर सूफी मर्द मर्दे बा खुदा परदे में है ( बा खुदा = ईश्वर से प्रेम करने वाला )
क्यूँ न परदे को उठाना चाहें अइयाशे जहाँ
ऐश का उनका मज़ा भी किरकिरा परदे में है
खानदानी औरतें फिरती हैं जिनकी बेहिजाब ( बेहिजाब = बेपर्दा )
शर्म से कहते नहीं शर्म व हया परदे में है
फखर इमाम क्यूँ न हो पर्दानशीनों के लिए ( पर्दानशीं = पर्दा करने वाली )
परदगिये गैब यानि खुद खुदा परदे में है ( गैब = नहीं दिखने वाला )

हमारी बहने खुद को पुरे परदे में रख कर अपने हौसले को बुलंद भी कर सकती हैं मर्दों जैसा कारनामा भी दिखा सकती हैं क्युंके औरतो का सिंगार और सजावट अपने जैसे औरतों और अपने पति परमेश्वर के लिए ही होता है बुरी नज़र से बचने के लिए पर्दा ज़रूरी है पर्दा उसे नहीं कहते के घर में बंद करके रखा जाय नहीं बाहर निकले ज़माने का मुक़ाबला करे अपनी तक़दीर को अपने तदबीर से बदले मगर खुद को पूरी तरह पर्दा करके क्युंके औरत जब बे पर्दा निकलती है तो शैतान और भेड़ियों जैसे ऐयाशों और कुत्तों कि नज़र उनको घूरती और निशाना बनाने कि ताक़ में रहती हैं इस लिए हमारी बहनो को आज खुद कि हिफाज़त बहुत ज़रूरी है .
मुझे पता है के बहुत से लोगों को ये लेख और दिल कि बातें पसंद और समझ में नहीं आएँगी क्युंके वो भी इन बातो को मानते और जानते हैं मगर अपने घरों के लिए दूसरों के लिए नहीं और इंसान वही है जो अपने लिए पसंद करे वही दूसरों के लिए भी पसंद करे जो अपने भला के लिए जीना चाहता है वो दूसरों कि भला के लिए भी जीना पसंद करे ऐसे ही लोगों से ये दुनिया आबाद और हरा भरा है जिस दिन ये लोग बिलकुल नहीं रहेंगे वो दिन पर्लय और बर्बादी का दिन होगा कभी सुनामी के नाम से तो कभी पयलिन के नाम से और ये मिसाल मशहूर है के जव के साथ घुन भी पीस ही जाता है .
आज सबसे पहले नारी जगत कि हिफाज़त करना और उन्हें सही सम्मान के साथ दुनिया में कामयाब करना खुश रखना और उनके पवित्र मक़सद कि कामयाबी के लिए उनकी मदद करने से ज़ेयादह कोई भी बड़ा काम नहीं है और ये जब होगा तब हम दरिंदा शैतान के खाल को फ़ेंक कर एक इंसान बने और औरत के मान और मर्यादा कि हिफाज़त के लिए कसम खाएं और औरतें भी अपनी मॉडर्न रेवाज को छोड़ कर भारतीय सभ्यता को अपनाये फिर जो चाहें अपने मक़सद के लिए आगे बढ़ें .
( किसी भी ऐसे शब्द के लिए माफ़ी चाहूंगा जो अच्छा नहीं लगे ) धन्यवाद

बुधवार, 4 मार्च 2015

फ़र्ज़ी वाद

कितना टैलेंट भरा पड़ा है फेसबुकियों में !
यहाँ कम्युनिस्ट दुनिया की सारी समस्या के लिये पूंजीवाद को जिम्मेदार साबित कर देते हैं।
अम्बेडकरवादी दुनिया की सारी समस्या के लिये ब्राह्मणों को जिम्मेदार साबित कर देते हैं।
नारीवादी दुनिया की सारी समस्या के लिये पुरुषों को जिम्मेदार साबित कर देती हैं।
भाजपाई दुनिया की सारी समस्या के लिये कांग्रेस और AAP को जिम्मेदार साबित कर देते हैं।
संघी दुनिया की सारी समस्या के लिये मुसलमानों को जिम्मेदार साबित कर देते हैं।
नास्तिक दुनिया की सारी समस्या के लिये रिलीजन को जिम्मेदार साबित कर देते हैं।

और मुझे लगता है अब दुनिया की सारी समस्या के लिये इस फेसबुक को ही जिम्मेदार साबित कर देना चाहिये।

भारत विभाजन का जिम्मेदार कौन..???

भारत विभाजन का ज़िम्मेदार कौन?
भारत विभाजन की घटना भारतीय इतिहास में एक काला धब्बा है|ये केवल राजनीतिक अथवा राष्ट्र की ट्रेज़डी नहीं थी बल्कि इंसानियत की भी त्रासदी है|आज़ादी के बाद विभाजन के कारणों पर मंथन किया रहा और लोग अपना दामन पाक-साफ बताकर जिन्ना और मुस्लिम लीग को ज़िम्मेदार मानते रहे|हिन्दू महासभा और आरएसएस तो इसकी ज़िम्मेदारी महात्मा गांधी और नेहरू पर डालती रही| वही बीजेपी वाले कांग्रेस पार्टी को ज़िम्मेदार मानते रहे है| हाँ इतना अवश्य है कि कांग्रेस ने पाकिस्तान पर सहमति अवश्य दी|ये क्यों दी इसके विषय में सरदार पटेल ने ११ अगस्त १९४७ भाषण में कहा था" जब में केंद्रीय सरकार में बैठा तो मैने देखा कि चपरासी से लेकर बड़े अधिकारियों तक साम्प्रदायिक घृणा से ग्रसित है"(भारत विभाजन ,संपादक उषा चोपड़ा पृष्ठ२०२)भारत विभाजन के विषय में महात्मा गांधी ने कहा "पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा "(नवजीवन १९४६ फरबरी अङ्क ) पाकिस्तान जब बना तो कांग्रेस के साथ ही दूसरी सेक्युलर पार्टियो ने अपनी सहमति दी| क्योकि हालत इतने ज़्यादा ख़राब हो चुके थे कि अब बटबारा ही इसका हल था |मौन्टवेटन ने मिस्टर जिन्ना को पाकिस्तान लाशो की तश्तरी में पेश किया,जिसे भारी मन से लेना ही पड़ा| परंतू ये हालत पैदा कैसे हुए ,इसकी जड़ो तक चलते है |मुस्लिम लीग की स्थापना १९०६ में आगा ख़ान ने की |ये एक राजनैतिक दल था जिसने सिंध ,लाहौर और पंजाब में अपनी सरकार भी बनाई | यह पार्टी केवल उन्ही इलाको में जीती जहाँ मुसलमानो की संख्या ७० %से भी ज़्यादा थी |1914 में हिन्दू महासभा की स्थापना हुई |उससे पहले आर्य समाज की स्थापना हो चुकी थी ,जिसने उर्दू और मुस्लमान दोनों का विरोध किया |इसके साथ ही शुद्धिकरण करके उन मुसलमानो को पुनःहिन्दू बनाने का आंदोलन शुरू किया जिनके पुरखे हिन्दू थे| इस आंदोलन का महात्मा जी ने देश हित और सौहार्द बनाए रखने के लिए विरोध किया |क्योंकी आज़ादी के लिए हिन्दू-मुस्लिम दोनों का सौहार्द बना रहना ज़रूरी था |इसके साथ ही हिन्दू महासभा ने लाहौर अधिवेशन में" हिंदी भाषा ,हिन्दू राष्ट्र और मुसलमानो का देश निकला " प्रस्ताव पास किया(विकिपीडिया मुस्लिम लीग) |इन तमाम चीज़ो से ऐसे वातावरण बन रहा था जिससे मुस्लिम लीग वालो को स्वतंत्रता के बाद मुसलमानो का भविष्य खतरे में दिख रहा था |१९३० में जब लीग बने पाकिस्तान की मांग की तो उस समय उनके ज़ेहन में ये बात अवश्य थी की मुस्लिम प्रतिनिधि केवल वही जीत सकते है जहाँ मुसलमानो की तादात ज़्यादा है और वह केवल सिंध और लाहौर का इलाका है |इससे मुसलमानो का सत्ता में नाम मात्र का प्रतिनिधित्तो रहेगा |इसके साथ ही हिन्दू महसभा का लाहौर में पारित प्रस्ताव ,आरएसएस के बयान और घोषणापत्र से भारत के मुस्लमान और लीग के नेताओ को लगने लगा कि आज़ादी कि बाद वे दूसरे दर्ज़े कि नागरिक बना दिए जाएगे |इन तमाम कारणों की वजहे से मुस्लिम लीग ने अलग मुल्क की मांग की | यही नहीं जब महात्मा जी ने ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान को १९२१ कांग्रेस में शामिल किया तो हिन्दू महासभा और कटटरपंथी संघठनो ने इसका खुला विरोध किया |नाथूराम गोडसे ने गांधी गई की हत्या क़े जो कारन बताए उनमे एक कारन ये भी था (गांधी वध और में ,संपादक गोपाल गोडसे )
१९४५ से ही भारत में दंगे शुरू हो चुके थे|इन दंगो को ना नेहरू सरकार रोक सकी और ना ही मिस्टर जिन्ना |जब की आरएसएस और हिन्दू महासभा दोनों ही गलत खबर फैलाकर हिन्दू बहुलीय इलाको में ज़हर फैला रहे थे |इसके साथ ही कटटरपंथी मुस्लमान भी बराबर इस काम में लगे थे |अब ऐसी स्थिति में जब सरकार और कम्मुनिस्ट पार्टियां दंगा रोकने में असफल हो रहे थी और औंग्रेज़ हुक्मरान ये कहकर तमाशबीन बने हुए थी कि ये मिस्टर जिन्ना और प्रधानमंत्री का मामला है ,हम कुछ नहीं कर सकते ,तब विभाजन ही एक रास्ता बचता है जिससे दंगे रोके जा सकते है ;और औंग्रेज़ इसी मौके कि तलाश में थे|
इन तमाम बातो को ध्यान में रखकर देखे तो कहा जा सकता है कि लीग , कांग्रेस ,कम्युनिस्टों ,जिन्ना , नेहरू और महात्मा जी को दोषी नहीं माना जा सकता है |हलाकि आज भी कुछ बदला नहीं है |विश्वहिन्दू परिषद और आरएसएस कि लोग १९३० का वातावरण पैदा कर रहे है आज फिर मुस्लमान अपनी सुरक्षा को लेकर चिंताजनक है | कटटरपंथी मुस्लिम नेता असदउद्दीन ओवेसी कि अनुसार "मुल्क को बचाना है ,मुल्क को मज़बूत करना है तो अपने जोकरों को रोको ,अपने चमचो को रोको ,अपने चाहनेवालों को रोको तब ये मुल्क बचेगा "(११ दिसम्बर २०१४ संसदीय शीतकालीन सत्र ) हलाकि मुस्लमान केवा;ल अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित है ,लेकिन सरकार पर अभी भरोसा कर रहा है परन्तु जिस दिन सरकार और संविधान से भरोसा उठ गया तो दोहरे राष्ट्र कि अवधारणा पैदा हो जाएगी |अगर इन साम्प्रदायिक ताकतों को रोका नहीं गया तो एक और विभाजन हो सकताहै ....
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