सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

किसान की लाठी, किसान का ही सिर- अकरम क़ादरी

किसान की लाठी, किसान का ही सिर- अकरम क़ादरी

एक पत्रकार दिल्ली में बगैर हेलमेट के जा रहा था, रास्ते मे एक पुलिस वाले ने रोका और बड़े रौब से पूछा कहाँ जा रहे हो ? पत्रकार ने बेधड़क होकर कहा "ग़ाज़ीपुर बॉर्डर किसान आंदोलन को कवर करने" इतने पर ही पुलिस वाले भाई साहब बिखर गए और आंखों में आंसू लिए बोले "बड़ी बदकिस्मती है भाई आज हम अपने ही बाप-भाइयों की पीठ पर लाठियां बरसा रहे हैं। उसी पीठ पर जिसपर बैठकर हम बड़े शौक़ से खेत पर जाया करते थे। पुलिस के आक़ाओं के हुक्मों का हवाला देते हुए उसने दबी आवाज़ से कहा अब उस बाप पर कैसे लाठियां बरसाई जाए जिसने खेती में रात-रात भर कपकपाती सर्दी में सिंचाई करके मुझे इस क़ाबिल बनाया है। एक भाई बॉर्डर पर दूसरा भाई भी बॉर्डर पर गाज़ीपुर वाले और माँ बाप सड़क पर ये क्या खेल रही है सरकार।

इतनी देर में पत्रकार साहब समझ चुके थे कि अंदर तक कितना हिला हुआ है यह पुलिस वाला, उनको संवेदनाए देते हुए कहा "चिंता ना करो जब तक हम है असली और सच्ची पत्रकारिता करेंगे चाहे हमारी जाति के बड़े गिद्ध कितने भी बिक जाए। हम आपके दर्द को बखूबी समझ रहे है और पेट की आग बुझाने की मजबूरी को भी।

पत्रकार महोदय को थोड़ा आगे ले जाकर पुलिस महोदय ने 500₹ का नोट दिया और कहा "वहां जाकर लंगर में दे देना"। उम्मीद की नज़रों से देखते हुए कहा भाई अपने पेशे से समझौता नहीं करना अभी तो लाखों लोग भूखे सो रहे है आने वाले वक्त में करोड़ो सोएंगे, हो सकता है उसमें आपकी और मेरी आने वाली पीढियां भी हो"

पत्रकार महोदय जब वहां से निकले तो पुलिस की जो दंगाई वाली इमेज आजतक बनाई गई थी यह तस्वीर उससे भी बिल्कुल अलग थी। कुछ देर आगे चलने के बाद उसके शब्दों की तासीर को समझते-समझते कब ग़ाज़ीपुर बॉर्डर आ गया पता नहीं चला, फिर अपने काम पर लग गया।