मंगलवार, 27 अगस्त 2019

पिछले तीन वर्ष स्वर्णिम, एएमयू हिंदी विभाग के लिए आगे भी विशिष्ट पलो की उम्मीद - अकरम हुसैन

पिछले तीन वर्ष स्वर्णिम रहे एएमयू हिंदी विभाग के लिए आगे भी विशिष्ट पलो की उम्मीद - अकरम हुसैन


अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग में आज प्रोफेसर रमेश रावत ने अध्यक्ष का कार्यभार ग्रहण कर लिया इससे पहले प्रोफेसर अब्दुल अलीम ने हिंदी विभाग में ऐसी साहित्यिक गतिविधियों को जारी रखा जिससे छात्र-छात्राओं और शोधार्थियों  को अत्यंत लाभ हुआ जैसे ही प्रोफेसर अब्दुल अलीम ने कार्यभार ग्रहण किया फौरन स्नातकोत्तर छात्र- छात्राओं के लिए साहित्य समिति का गठन किया जिसके प्रभारी प्रोफेसर शम्भुनाथ तिवारी बनाये गए उन्होंने 'भित्ति' पत्रिका के माध्यम से अनेक साहित्यकारों की रचनाओं को उकेरा जिसमे छात्र-छात्राएं को बहुत लाभ हुआ उनको किसी भी बड़े साहित्यकार को एक बार में ही समझा जा सकता है। इस कार्य से सभी लाभांवित हुए।
प्रोफेसर अब्दुल अलीम सर ने शोधार्थियों के लिए शोध समिति का गठन किया जिसका कार्यभार सृजनात्मक साहित्य के सिरमौर प्रोफेसर मेराज अहमद सर को सौंपा आपने अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए शोधार्थियों के आलेख वाचन के साथ साथ अनेक बुद्धिजीवियों के आने पर उनका एकल वक्तव्य रखा या फिर कविता पाठ कराया जिससे शोधार्थियों में शोधा-आलेख और आलेख लिखने की कला उत्पन्न हो वो सभी मुद्दों पर अपनी पैनी दृष्टि रख सके उसके अलावा विभाग में एक ऐतिहासिक सेमिनार महात्मा गांधी जी पर हुआ।
अगर कुछ महत्त्वपूर्ण विद्वानों की बात करे तो प्रवासी साहित्यकार प्रोफेसर पुष्पिता अवस्थी नीदरलैंड से लगभग तीन बार आई और अनेक विषयों पर उन्होंने अपना वक्तव्य दिया, उसके अलावा प्रोफेसर नंद किशोर पाण्डेय केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा से दो बार आये और बहुमूल्य विषयों पर अपने विचार रखे जिससे छात्र-छात्राओं, शोधार्थियों और अध्यापको को लाभ हुआ पिछले तीन वर्ष में हिंदी विभाग ने लगभग सत्तर के आसपास पीएचडी की डिग्री भी दी होगी जो अपने आप मे एक मील का पत्थर है। प्रोफेसर अब्दुल अलीम सर के सभी कार्यों को लिख पाना मुश्किल है। उन्होंने हमेशा छात्र-छात्राओं, शोधार्थियों और अध्यापकों की भावनाओ का ख्याल रखते हुए विभाग की उन्नति के बारे में सोचा जिसके लिए सभी हिंदी विभाग से प्रेम करने वाले उनका आभार प्रकट करते है।
प्रोफेसर रमेश रावत एक मार्क्सवादी चिंतक, विशिष्ट विद्वान है जिन्होंने अनेक ऐसे विषयों पर लिखा है जिनपर हिंदी जगत में विद्वान लिखना या बोलना नही चाहते थे उन्होंने 'मुक्तिबोध की आलोचना प्रक्रिया' पर विस्तार से लिखा दूसरी पुस्तक 'देसज आधुनिकता और कबीर' , भारतीय इतिहास में मध्यकाल (अनुवाद प्रो. इरफान हबीब), 'इतिहास और विचारधारा' (अनुवाद प्रो. इरफान हबीब), 'भाषा विज्ञान', 'हिंदी भाषा उद्भव और विकास' जैसी अनेक पुस्तको को रचा जिससे हिंदी साहित्य जगत को अनेक लाभ हुए उसके अलावा लगभग 26 शोध पत्र, अनेक संपादित पुस्तकों का संपादन किया अनेक बार यूपीएससी के सलाहकार भी रहे।
प्रोफेसर रमेश रावत सर अनेक क्षमताओं के धनी विद्वान है क्योंकि उनके लेखन को देखते हुए प्रतीत होता है उनकी प्रशानिक क्षमताएं भी अद्वितीय होंगी और विभाग ऐसे ही दिन दुगुनी रात चौगनी तरक़्क़ी करेगा।

अकरम हुसैन
शोधार्थी एएमयू
अलीगढ़

शुक्रवार, 16 अगस्त 2019

सच्चा हिन्दू, पक्का मुसलमान - अजय वालिया

"सच्चा हिन्दू, पक्का मुसलमान"
                        अजय वालिया✍

ये गफूर चाचा हैं। बहुत दिन बाद मिलने सीधे मेरे स्कूल आ गए । गफूर चाचा मेरे ससुराल किशनपुरा (यमुनानगर) के पास के गाँव कुटीपुर से हैं। ससुराल के पास के गाँव से होने के चलते मेरे बच्चे इन्हें नाना बोलते हैं।

गफूर चाचा से मेरा सम्बन्ध हमदर्दी और प्यार का है। गफूर चाचा उन चंद लोगों में से एक हैं जिनसे जुड़ने के बाद मैंने माना कि दिल के रिश्ते खून के रिश्तों से ज्यादा बड़े होते हैं बशर्ते दोनों व्यक्ति इस रिश्ते को इतनी ही शिद्दत से निभाएं।

15 दिसम्बर 2012 को मैं अपने ससुराल गया हुआ था कि सवेरे सवेरे नाश्ता करते हुए सामने पड़े अखबार पर नजर गई जिस की एक headline सामने थी कि "टैक्स बैरियर पर करन्ट लगने से मजदूर की मौत" । इस खबर में जिस मजदूर की मौत का ब्यौरा था वो ससुराल के पास का गाँव कुटीपुर था। मन में जिज्ञासा उठी तो ससुर जी ने बताया कि इस मजदूर का पिता "गफूर" भी मजदूर है। बहुत गरीब लोग हैं। दो दिन पहले बिजली विभाग ने बिना सूचना दिए वहाँ लाइन गिराई हुई थी जिसकी चपेट में आने से "गफूर" का बेटा मर गया। मैंने पूछा बिजली विभाग पर कोई एफआईआर दर्ज हुई? किसी ने बिजली विभाग से बात की? ससुर जी बोले हम लोग गए थे पर वहाँ बिजली वाले टालमटोल कर गए। एफआईआर का पता नहीं।

बस पता नहीं कि दिल नहीं माना और मैं अपने बड़े साले साहब अमित को साथ लेके निकल पड़ा गफूर चाचा के घर।

उसके गाँव पहुँचे जहाँ से उसके घर गए। घर बिल्कुल छान का बना हुआ था और उसका गेट इतना छोटा था कि झुक के अंदर जाना पड़ा था। गफूर की अधेड़ उम्र की बीवी मिली उसने बताया कि गफूर काम पर चला गया है क्योंकि घर में जो पैसे थे वो बेटे के जनाजे और दूसरे खर्चों पर खर्च हो गए। उधार किसी से मिला नहीं तो वो काम पर चला गया। ये कहकर वो हमारे लिए पानी लेने चली गई।

मेरा दिमाग फटने वाली हालत में था कि भगवान तुम कहाँ हो? जिसने 2 दिन पहले अपना जवान बच्चा खोया वो आज परिवार का पेट भरने की मजबूरी में कौनसे मन से दिहाड़ी कर रहा होगा....

मैंने संपर्क करके गफूर चाचा को बुलाया और उसे विश्वास दिलाया कि मैं उठाऊंगा उसकी आवाज। गफूर चाचा  को भी पता नहीं क्यों पहली ही बार में मुझ पर ऐतबार हो गया।

बस मन बन गया कि मैं लड़ूंगा ये केस। वहाँ से थाने.... थाने से बिजली विभाग... पहले बिजली वाले अड़े रहे कि जो होता है कर लो... पर उसी शाम गफूर चाचा का फोन आया तो पता चला कि वो जनाजे के खर्च के तौर पर और कुछ दिन के गफूर  चाचा के खर्च के लिए 60000 रुपये अस्थायी मुआवजे के तौर पर देके गए हैं। मन को तसल्ली मिली कि कोशिश करूँ तो बुजुर्ग को और मुआवजा मिल जाएगा।

इसके बाद कोर्ट, वकील... मानवाधिकार आयोग, अल्पसंख्यक आयोग, मुख्यमंत्री, सब जगह represntation दिए।

केस की तारीख को लेके कभी मैं गफूर चाचा से मिलता तो कभी चाचा घर आ जाते।

कोर्ट में मामला आया... केस चला.... 3 साल बाद 5 लाख रुपए अदालत ने गफूर चाचा  के खाते में डलवा दिये। बेटे की कमी तो माँ बाप के लिए कोई पूरा नहीं कर सकता हाँ मुआवजे के पैसे ने कुछ मरहम लगा दिया। अब हमने केस अगले कोर्ट में डाला...

पैसे मिले अभी मुश्किल से एक महीना हुआ था कि   गफूर चाचा ने मुझे फोन किया। मैंने नहीं उठाया क्योंकि पिता जी हस्पताल में एडमिट थे  और और next day उनका एक बड़ा ऑपरेशन होना था । ऑपरेशन को डॉक्टर सीरियस बता रहे थे।

उसके बाद थोड़ी थोड़ी देर बाद गफूर चाचा के कई फोन आए । आखिर मैंने थोड़ा गुस्से के साथ फोन उठाया और चाचा से बोला चाचा जब मैं फोन नहीं उठा रहा हूँ तब आपको समझना चाहिए कि मैं बिजी हूँ। अच्छा बताइये क्या बात है?

गफूर चाचा ने कहा कि बस यूं ही फोन कर लिया। तुम ठीक हो ना बेटा। घर सब ठीक है ना। मैंने सारी बात बताई कि मैं हस्पताल में हूँ और पिता जी का ऑपरेशन होना है। बोले कि मैं आ रहा हूँ। मैने कहा चाचा ये हस्पताल पंचकूला में है। आपको पता नहीं मिलेगा। आप मत आना। ये कहकर मैंने फोन काट दिया। 5-6 घण्टे बाद शाम के 8 बजे मुझे दोबारा चाचा का फोन आया । मैंने उठा लिया तो बोले कि बेटा कहाँ हो ? मैंने कहा हस्पताल में हूँ। बोले मैं हस्पताल के बाहर हूँ। मैं तेजी से बाहर गया तो वो बाहर खड़े थे।

मैं हैरान था क्योंकि मैंने ये तो बताया ही नहीं था कि मैं किस हस्पताल में हूँ और कैसे एक अनपढ़ बूढ़ा  आदमी सिर्फ मेरी परेशानी सुनकर मुझसे मिलने यहाँ तक आ गया। मैंने कहा आपने मुझे कैसे ढूँढ लिया? किसने बताया यहां का पता?

उन्होंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि बेटा जिस खुदा ने तुझको मेरे दर्द में मेरे पास भेजा था उसी खुदा ने मुझे तेरे पास भेज दिया।............... फिर उन्होंने तफसील से बताया कि वो पहले मेरे घर नारायणगढ़ गए, वहाँ घरवालों से एड्रेस लेके यहां आ गए। इसके बाद उन्होंने अपने एक मैले से थैले में हाथ डाला और पुराने से कपड़े में लिपटा हुआ एक बंडल मेरे हाथ पर रखा और बोले ये रख लो।
मैंने कपड़ा हटाया तो दो लाख रुपये मेरे हाथ में थे... बोले ये पैसे रख लो कल आपके पिताजी का ऑपरेशन हैं ... अभी ये पैसे मेरे किसी काम के नहीं....

मैं कभी उन पैसों को कभी गफूर चाचा को देख रहा था। आँखे बरस पड़ी थी । मैंने कहा चाचा मुझे पैसे की जरूरत नहीं है। मेरे लिए तो यही बड़ा अहसान था आपका कि आप यहाँ तक आए। पैसे वापिस लो। वो नहीं माने तो मैंने बताया कि मेरे पापा और मैं दोनों सरकारी मुलाजिम हैं तो हमारी बीमारी का खर्च सरकार उठाती है। तो मैंने जबरदस्ती वो पैसे वापिस कर दिए।
फिर मैंने कहा कि चलो आओ खाना खाते हैं।
Ajay walia✍✍✍