बुधवार, 25 नवंबर 2015

300 दिनों में 600 साम्प्रदायिक दंगे मोदी युग


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600 Communal Violence Incidents in 300 Days of Modi Govt

Rights activist and Christian community leader Dr John Dayal addresses the day-long sit in against growing attacks on minorities under the Modi government that completed 300 days in power. Image credit Mukul Dube
Rights activist and Christian community leader Dr John Dayal addresses the day-long sit in in New Delhi against growing attacks on minorities under the Modi government that completed 300 days in power. Image: Mukul Dube
NEW DELHI – Several social and human rights organizations and political parties held a day-long sit-in near Parliament House here Thursday to protest rise in attacks on minorities since BJP came to power and Narendra Modi became Prime Minister of the country in May 2014. The protest demonstration was organized on the occasion of completion of 300 days of the Modi government at the center, reports indiatomorrow.net.
“Human Rights and Civil Society groups have documented at least 43 deaths in over 600 cases of violence, 149 targeting Christians and the rest Muslims, have taken place in 2014 in India till March this year, marking 300 days of the National Democratic Alliance government of Mr. Narendra Modi,” said eminent rights activist and Christian leader Dr. John Dayal while speaking at the event.
He further said: “The Christian Persecution data lists 168 cases. An analysis of the Christian data alone shows Chhattisgarh topping the list with 28 incidents of crime, followed closely by neighboring Madhya Pradesh with 26, Uttar Pradesh with 18 and Telangana, a new state carved out of Andhra Pradesh, with 15 incidents. The rape of the aged Catholic Nun in a Convent and School in Ranaghat in West Bengal, is the most horrendous crime reported in the first quarter of 2015,” he said.
“The 300 days have also seen an assault on democratic structures, the education and knowledge system, Human Rights organizations and Rights Defenders and coercive action using the Intelligence Bureau and the systems if the Foreign Contributions Regulation Act and the Passport laws to crack down on NGOs working in areas of empowerment of the marginalized sections of society, including Dalits, Tribals, Fishermen and women, and issues of environment, climate, forests, land and water rights,” said the organizers in a detailed report.
They alleged that Prime Minister Narendra Modi refuses to reprimand his Cabinet colleagues, restrain the members of his party members or silence the Sangh Parivar which claims to have propelled him to power in New Delhi.
Eminent politicians who address the event included Ajay Makan of Congress, Raghuvansh Yadav of RJD and Ali Anwar Ansari of JDU. Eminent social activists to address the gathering were Shabnam Hashmi, Ram Puniyani and Navaid Hamid.

मंगलवार, 24 नवंबर 2015

टॉलरेंस

वीविल नॉट टॉलरेट इन्टॉलरेन्सश् भारत में हाल में जो हालत बने हैं उससे संबंधित एक सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री जी ने लंदन में कहा। उन्होने यह भी कहा कि भारत बुद्ध और गांधी का देश है। मोदी शायद यह नही कहना चाहेंगे कि भारत हेडगेवार या सावरकर का देश है या फिर ये कि भारत तो परशुराम का देश है। इनके नाम से सहिष्णुता के प्रचार पर बट्टा लग जाएगा। लेकिन जिस संगठन के वे प्रचारक रहे हैं वो तो हेडगेवार को ही अपना आदर्श मानता है। प्रधानमंत्री जी झंडेवालां या नागपुर में संघ के दफ़्तर में भी क्या ये समझाना चाहेंगे कि भारत बुद्ध और गांधी का देश है।
प्रधानमंत्री जी के इस लंदन बयान से ठीक पहले गिरीश कर्नाड को हत्या की धमकी मिली क्योंकि उन्होने यह कह दिया था कि बंगलौर हवाई अड्डे का नाम टीपू सुल्तान के नाम पर रखा जा सकता है। कर्नाड को माफी मांगनी पड़ी। प्रोण् कलबुर्गी की हत्या के बाद कर्नाड को अंदाजा है कि यहां क्या हो सकता है। इससे कुछ दिन पहले ही एक भाजपा नेता ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री का सर कलम कर उससे फुटबॉल खेलने की धमकी दी क्योंकि मुख्यमंत्री जी ने कहा था बीफ खाना उनका अधिकार है। इस तरह और भी उदाहरणों की कोई कमी नही है। लेकिन शायद ये प्रधानमंत्री जी के लिए असहिष्णुता की श्रेणी में नही आते हैं क्योंकि इस तरह की धमकियां देने वालों के खिलाफ़ न प्रधानमंत्री की तरफ से न उनकी पार्टी से और न ही पार्टी के आका संगठन ;यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघद्ध की तरफ से कार्यवाही तो दूर भत्र्सना का कोई बयान ही आया। बल्कि इसके उलट बिहार चुनाव में खुद प्रधानमंत्री ने अपनी शैली में बड़े सहिष्णुतापूर्ण बयान दिए।
संभवत: यह पहली बार हुआ है कि विदेश में किसी प्रधानमंत्री से देश में सहिष्णुता के बारे में चिंता प्रकट करते हुए सवाल पूछे गए। मोदी भक्त कहीं इसे भी भारत में रहने वाले ष्पाकिस्तानियोंष् की साजिश न करार दें। अभी कुछ दिन पहले अरुण जेटली ने कहा ही था कि कहां है असहिष्णुता! साहित्यकारोंए कलाकारों व बुद्धिजीवियों के भारी विरोध और पुरस्कार.वापसी को जेटली ने सरकार के खिलाफ़ खड़ी की गई एक श्मैनुफ़ैक्चर्ड क्राइसिसश् ;छद्म संकटद्ध भी कहा था।
हजामत मंगलवार को बनाना चाहिए या नहीं इस बात पर कहीं हिंसा हो रही है। कहीं पर गौ.मांस के नाम पर इंसानों की हत्या हो रही है। सरकार के विरोध में बोलने वालों को पाकिस्तानी कहा जा रहा है। हत्या की धमकियां दी जा रही हैं। जेटली के लिए ये संकट नही है। घड़ी.घड़ी सोशल मीडिया पर ष्ट्वीटष् करने वाले प्रधानमंत्री इन घटनाओं पर चुप्पी साधे रहते हैं और बहुत दबाव में मुंह खोलते है तो कहते हैं कि ये तो राज्य सरकार का मामला है। ये सब जेटली की नजर में संकट नही है। संकट तब है जब इसके विरोध में आवाज उठाई जाती है!
लेकिन संकट इतना भर ही नही है। संकट तो ये भी है कि इन सबके बावजूद प्रधानमंत्री विदेश में बयान देते हैं कि असहिष्णुता के प्रति सहिष्णुता नही बरती जाएगी। बहुत लोग इस तरह के झूठे बयान को शायद संकट की श्रेणी में न रखें। सच बोलने के लिए नेताओं की ख्याति लंबे समय से नही बची है। मोदी जी भला अपवाद क्यों रहें। पंद्रह.पंद्रह लाख रुपए हर खाते में जमा करने के वादे से ये जबसे मुकरे हैं तबसे तो लोगों की रही.सही उम्मीद भी जाती रही है।
भाजपा.संघ समर्थकों का एक बड़ा समूह है जो ये कह रहा है कि इस ष्असहिष्णुताष् में नया क्या है। वो बोल रहे हैं कि इस तरह की घटनाएं तो देश में हमेशा से होती रही हैं फिर अभी इस तरह का विरोध क्यों। ये सब बस मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए हो रहा है। मै ये नही कहूंगा कि ये लोग पूरी तरह गलत हैं। लेकिन बात सिर्फ 1984 के दंगों या कश्मीरी पंडितों की ही क्यों होघ् अगर असहिष्णुता का इतिहास खंगालना ही है तो शुरुआत और पहले होनी चाहिए। तपस्या कर रहे शंबूक की हत्या इसका पुराना उदाहरण है। चार्वाकों का पूरा भौतिकवादी साहित्य ब्राह्मणों ने नष्ट कर दिया ये दूसरा उदाहरण है। ब्राह्मणवादी शासकों द्वारा बौद्धों का बड़े पैमाने पर किया गया संहार एक और उदाहरण है। जाति प्रथा व छुआ.छूत और सती प्रथा दूसरे उदाहरण हैं। मनु.स्मृति तो असहिष्णुता का स्मारक ही है। तो यह तो बिल्कुल सही है कि असहिष्णुता इस देश के लिए नई घटना नही है।
लेकिन ये सिर्फ एक तिहाई सच है पूरा सच नही। बाकी एक तिहाई सच ये है कि इस असहिष्णुता के खिलाफ़ आवाज पहले भी उठी है। शंबूक की हत्या को दर्ज करने वाला भी तो साहित्यकार ही था। ब्राह्मणवादी असहिष्णुता के खिलाफ़ आवाज उठाने वाले कवियों और दार्शनिकों की तो समृद्ध परंपरा ही रही है देश में। हमारे आधुनिक साहित्यकारों ने इस परंपरा को और समृद्ध किया है। औपनिवेशिक शासन के खिलाफ़ उभरे राष्ट्रीय आंदोलन में साहित्यकार व बुद्धिजीवी मुखर रहे हैं। आज़ादी के बाद भी देश के साहित्यकारों व बुद्धिजीवियों के बड़े हिस्से की आवाज़ सामाजिक विसंगतियों और सत्ता के प्रतिपक्ष की ही रही है। तो ये कहना कि साहित्यकार या बुद्धिजीवी इससे पहले चुप रहे हैं सही नही है।
इस तस्वीर का तीसरा एक तिहाई पक्ष ये भी है कि पिछले कुछ समय से देश में असहिष्णुता को बढ़ावा देने वाली ताकतों को बल मिला है। समाज के वे हिस्से जो पहले दमन या असहिष्णुता के निशाने पर सीधे.सीधे नही थे उनपर भी निशाना साधा गया है। इसकी संगठित शुरुआत शायद एमण् एफ़ण् हुसैन या तसलीमा नसरिन के साथ ही शुरु हो गई थी और उसके बाद ये असहिष्णुता तेजी से आगे बढ़ी है। असहिष्णुता की प्रवृतियों में एक गुणात्मक दुस्साहस पनपा है जिसकी झलक वर्तमान सरकार और संघ गिरोह में देखने को मिल रही है। ये और कुछ नही बल्कि आधुनिक व समतावादी विचारों व आंदोलनों के खिलाफ़ प्रतिक्रियावादी ब्राह्मणवाद का हमला है। मोदी चाहे जो बोलेंए यह याद रखना चाहिए कि ये उस याज्ञवल्क्य का देश है जो गार्गी के सवालों से घबराकर उसका सर फोडऩे की धमकी देते हैं।

सोमवार, 23 नवंबर 2015

धर्म से षड्यंत्र



                      धर्म से षड्यंत्र
                                                            अकरम हुसैन
वर्षो पुरानी सभ्यता से चली आ रही हमारे देश की संस्कृति तथा उस संस्कृति से हमारे देश में व्याप्त भाई-चारा आपसे मेलभाव तथा एकता का बोलबाला रहा है .हमारी संस्कृति ही है जिससे देश के समस्त नागरिको को एक धागे में माला की तरह पिरोये रखा है हम सब देशवासी एक दुसरे के सुख दुःख में बराबर के भागी रहते थे. क्यूंकि उस समय देश की आर्थिक ,राजनैतिक ,सामाजिक तथा धार्मिक विचारधारा सामान थी ,सभी लोग भिन्न भिन्न धर्मो के होते हुए भी समान सम्मान करते थे .सभी देवी देवताओ को भी आदर की दृष्टी से देखते थे ,मगर पिछले कुछ दशको से देश में षड़यंत्र रचने का कार्य प्रगति पर है और वह इस पूरे देश में कैंसर की भांति फ़ैल रहा है .इस षड्यंत्र के पीछे केबल उनका व्यक्तिगत लाभ ही होता है. आखिर यह कौन लोग है , जो भावनात्मक बातें करके धर्म का व्यापार करते है और धर्म के आधार पर समाज के हर तबके को लूटने का कार्य करते है ,अपना स्वार्थ पूर्ण हो जाने पर यह लोग जनता की आँखों में धूल झोक कर सूक्ष्मदर्शी से भी नहीं दिखाई देते है आखिर कौन लोग है, यह जानने की इच्छा आज हर एक उस नागरिक की है जो देश के संविधान और देश से अटूट प्रेम करता है ,आजकल देश के ज्यादातर भू भाग में धर्म के रंग में रंगे सियार घूम रहे है . वह धर्म जैसे पवित्र नाम को लेकर अपने व्यक्तिगत लाभ को साधने की पुरजोर कोशिश भी कर रहे है जनता की अज्ञानता और भावुकता के कारण यह रंगे सियार कही न कहीं कामयाब भी नज़र आ रहे है .
                       यदि हम इतिहास के कुछ पन्नो को पलटे तो देखते, है कि रावण जैसा व्यक्ति भी इनसे कम बुरा प्रतीत होता है क्यूंकि कहा जाता है रावण अपने दस मुंह से बोलता था .लेकिन हर मुंह से एक ही बात बोलता था मगर आज तथाकथित देशभक्त मोदी सरकार और उसके पीछे खड़े संघ परिवार के अनेक मुंह है और सब अलग अलग बातें एक साथ बोलते है जैसे कोई कहता है छार बच्चे पैदा करो तो कोई उससे भी आगे बढकर कहता है दस बच्चे पैदा करो तथा दूसरा सबसे बड़ा उदाहरण वर्तमान में गोउ माता को लेकर हो रही राजनीति है उसी पार्टी और संघ विचारधारा के लोग गोउ मांस खाने को मना करते है तथा कुछ कहते है हम तो खाते है - जिसको जो करना है करले .आज देश के जागरूक और शिक्षित लोगो को भी इस मौजूदा केंद्र सरकार के बारे में सोचना पड़ेगा कि आखिर इनका दृष्टिकोण काया है ? देश को चलाने की इनकी क्या नीति है ? जिस नाम पर देश के बुजुर्गो ,नवयुवको , और किसानो ने अपना मत दिया था .आज वह अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहा है . चुनाव के समय जिस प्रकार से इस पार्टी के नेता देश की मनोवैज्ञानिकता को समझकर भाषण बाज़ी कर रहे थे .आज वह पूरी तरह से तहस नहस हो चुकी है . भाषणों में नवयुवको को रोज़गार और तमाम सुविधाय देने का वादा किया गया था .वह आजकल खोखले साबित हो चुके है .इसके बाद संघ विचारधारा ने लोगो को धर्म के नाम पर ठगा था .वह भी अपने आपको असहाय महसूस कर रहे है क्यूंकि लोगो का ध्यान बाँटने और उन्हें अपने असली इरादों के बारे में पूरी तरह भ्रम में डालने का यह इनका पुराना कारगार नुस्खा है .चुनाव के पहले से ही यह खेल ज़ारी था - जैसे उत्तर प्रदेश के भिन्न -भिन्न भागों में सांप्रदायिक दंगे तथा सत्ता की लोलुप्सा . सत्ता में आने के बाद चतुराई के साथ जो खेल आज अल्पसंख्यक ,दलित और आदिवासियों के साथ खेलला जा रहा है वह बहुत ही निंदनीय है क्योंकि किसी को धर्म के नाम पर सताया जा रहा है तो किसी को जाति के नाम पर, आदिवासियों को उनकी ज़मीन के चक्कर में आज आज केंद्र सरकार अपने पूंजीपति आकाओ को खुश करने के लिए उनकी जामीनो पर आधिग्रहण किया जा रहा है .इससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि देश विकाश की नहीं ओर नहीं बल्कि विनाश की ओर अग्रसर हो रहा है .
                  एक ओर नरेन्द्र मोदी 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से कहते है मेल मिलाप और आपसी झगडे मिटाकर देश को विकास की ओर ले जाना है .और अपने आपको उदारवादी एवं सबको साथ लेकर चलने वाला दिखने की हरचंद नाकाम कोशिश कर रहे है ,दूसरी तरफ उन्हीं की सरकार के सांसद और संघ के लोग सांप्रदायिक विष फैलाने तथा धार्मिक आधार पर धुव्रीकरण के तरह तरह के हथकण्डे अपनाते है जैसे वर्तमान में सूर्य नमस्कार और योगा यह षड्यंत्र रचने का सबसे बड़ा कारण देश के दो सबसे बड़े हिन्दू बहुलवादी राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार में चुनाव के कारण फिर से नफरत और मानसिक साम्प्रदायिकता की राजनीति करके वोटो की फसल काटकर सत्ता में वापसी करना है .
                 इतिहास ,शिक्षा और संस्कृति के पुरे ढांचे के भगवाकरण करने के क़दमो से लेकर ज़मीनी स्तर घनघोर साम्प्रदायिकता और झूठे प्रचार में सरकार और संघ प्रचारक अलग अलग लगे हुए है .मोदी देश दुनिया में घूम घूम कर लगातार विकास की बातें कर रहे है ,वे इतना विकास विकास चिल्ला रहे है कि व्यंग्यकारों ने उनको 'विकास के पापा' के नाम से संबोधित करना शुरू कर दिया .वे लगातार देश की जनता को विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहे है कि एक बार विकास की " आंधी " या विकास की गंगा (जो चाहे समझ लिजिए ) चली नहीं कि सारी समस्याए छूमन्तर की तरह उड़ जाएगी .लेकिन उनको मालूम नहीं है कि विकास के लिए देश में सांप्रदायिक सोहार्द, अमन और समानता  के साथ साथ आधारभूत संरचना का होना ज़रूरी है .जो अब तक देश की सबसे बड़ी कमी रही है ना ही वर्तमान सरकार  की कोई इस मुद्दे पर कोई दूरदर्शिता परतीत हो रही है वो तो केबल धर्म का नाम लेकर आपसी मेलभाव ,एकता और भाईचारे को नष्ट करने के लिए बार बार प्रयत्न कर रही है क्यूंकि उसका मुद्दा केबल हिंदुत्व है वो भी धर्म के सच्ची विचारधारा के लिए नहीं बल्कि सत्ता को पाने के अहंकार के कारण ही वो बार बार धार्मिक भावनाओ के षड्यंत्र को रच रही है जिससे देश के सोहार्द को बहुत नुक्सान होता है और बार बार मानवता का क़त्ल करने की साजिश रची जाती है . क्योंकि उनको मालूम है सत्ता तक पहुचने का सबसे सस्ता और सीधा रास्ता यही है .
                       देशभर में सुनियोजित सांप्रदायिक तनाव भड़काने और नियंत्रित दंगे फसाद करने की रणनीति भी धर्म के सहारे जारी है जिसको संचालित करने का कार्य पारंगत तरीके से अमित शाह जैसे लोग कर रहे है , जो कि गुजरात से लेकर देश के अन्य भागो में करने के लिए माहिर है . यदि धर्म के साथ हो रहे षड्यंत्र को रोका नहीं गया तो देश का भविष्य अँधेरे में है .इस कार्य को करने के लिए देश का नौजवान आगे आये और देश के भविष्य के साथ साथ आने वाली पीढियों के बारे में सोचे !
       सांप्रदायिक दंगो की खेती धार्मिक ठेकेदारों के लिए खाद एवं उर्वरक का कार्य करती है, अगर धार्मिक अल्पसंख्यक ,दलित समाज के लोग मिलकर सांप्रदायिक रूपी खाद एवं उर्वरक धार्मिक ठेकेदारों को देना बंद कर दे तो इन ठेकेदारों की यह ज़हरीली लहलहाती खेती सूख जाएगी एवं धर्म के ठेकेदारों यह सामाजिक असमानता वाली भूमि उसर-बंज़र हो जाएगी भारत-भूमि की उर्वरक शक्ति को बचाने के लिए धार्मिक ठेकेदारों को नष्ट करना बहुत ही आवश्यक हो चूका है . याद रखे तभी भारत की भूमि में  समरसता , मानवता के बीज नवांकुर होंगे जो मानवता ,एकता समरसता तथा प्रेम-सोहार्द से लबालब भरे होंगे और भारत भूमि का मान सम्पूर्ण विश्व में पुनः स्थापित होगा ........
                                             अकरम हुसैन
                                             पीएचडी  ( हिंदी )
                                          अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (अलीगढ़)
                                          whtsapp 8791633435
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