शनिवार, 19 जून 2021

हाँ-हाँ राजनीति में अनफिट है, राहुल गांधी - अकरम क़ादरी

हाँ-हाँ राजनीति में अनफिट है राहुल गांधी - अकरम क़ादरी

नेहरू-गांधी परिवार का कोई चश्मों चिराग़ अगर भारतीय राजनीति में अनफिट है तो सच में यह बहुत कुछ सोचने-समझने पर मजबूर करता है। आखिर ऐसा देश मे क्या हो गया कि इतने बड़े परिवार का व्यक्ति मुझ दो कौड़ी के इंसान को राजनैतिक अनफिट लग रहा है जिसको मैं लिखकर बता भी रहा हूँ।
एक लम्बे अरसे से भारतीय राजनीति में विचारधारा का घोर अकाल है मुठ्ठीभर लोग ही बचे है जो अपनी विचारधारा से समझौता नहीं करते है। वरना सुबह में जिन नेता जी के गले मे हरा पट्टा देखा था शाम होते ही भगवा होकर उसी पार्टी को बुरा भला कहते हुए देखा है जिसके लिए सुबह कसमें खा रहे थे। शाम को उन्हीं कसमों की धज्जियाँ उड़ाई जा रहीं है। (दरअसल राजनीति में भी एक वाशिंग मशीन है जो सुबह में पड़े हुए पट्टे को धोकर साफ कर देती है अर्थात इधर से भ्रष्टाचारी मशीन में डालो उधर से सदाचारी निकलता है) वर्तमान सत्तारूढ़ दल में भी कांग्रेस से भगौड़े नेताओ की लंबी फेहरिस्त है। क्योंकि यह अधिकांशतः दागी तो है जिनका मकसद राजनीति में धनोपार्जन करना, ऐश, अय्याशी करना, आय से अधिक सम्पत्ति रखना, तथा कुकर्मों में रोज़ ही नाम आना और उन नामों को छुपाने का प्रयत्न करना। ऐसे नेताओं के लिए हमेशा सत्ताधारी दल अपने पालतू सरकारी तोते और तोतियाँ नामक परजीवी छोड़ देता है जो डायरेक्ट, इनडाइरेक्ट उस नेता को समझाती है कि अगर ऐसा करोगे वो सब चीज़ों से बच जाओगे और बिल्कुल ऐसा ही फिल्मी सीन होता भी है जो पार्टी दस दिन तक उस नेता के खिलाफ ट्विटर पर दलाली का ट्रेंड चला रही हो उसी को ही डिफेंड करना शुरू कर देती है। 
आखिर में बात यही आती है पिछले दो दशक से राजनीति के 'मूल' जीर्ण-शीर्ण अवस्था से विमुख होकर भरभराकर गिर चुके है। 
राहुल गांधी की काबिलियत पर शक करना तो शायद मुझे उचित नहीं लगता है क्योंकि वो वक्ता नहीं कर्ता है। जिस प्रकार से डॉ. मनमोहन सिंह जी अच्छे वक्ता नहीं थे लेकिन काम करता लाजवाब थे, डिग्रियों का अंबार था उनके खाते में ऊपर से क़लम भी वही पांच रुपये वाला रेनॉल्ड्स का जिसको देखकर कोई भी शरमा जाए। एक आज वाले नेता है जो वक्ता बहुत शानदार है, दस मिनट में ही रसगुल्लों की बारिश करा दे और जनता को एहसास भी करा दे कि उन्होंने बगैर चासनी के रसगुल्ले लील लिए है लेकिन मज़ा बाद में आएगा। 
दरअसल यह वो व्यापारी हैं जो पुराने सड़े-गले माल को नई पैकिंग के साथ करोड़ो में बेच देते है। जिससे लम्बे समय तक चलने वाले रिश्ते कुछ समय में ही खराब  हो जाते है।
इतना ज़्यादा कॉन्फिडेंट में बोलने के कारण कभी-कभी ऐसा बोल जाते है जिससे उनके समर्थकों को भी डिफेंड करने में हिचकिचाहट होती है। फिर भी वो बेचारे करते है(उनकी बुद्धिमत्ता को नमन) 
पिछले दिनों एक सिफोलॉजिस्ट कम पॉलिटिशियन एंड किसान नेता को सुन रहा था वो कह रहे थे- "देश मे बहुत प्रधानमंत्री आये, बहुत-बहुत निकम्मे, कामचोर भी थे, आलसी भी थे लेकिन इतना सफेद झूठ बोलने वाला पहली बार देखा है" यह विचार उनके सुनकर बहुत सोचा कि आखिर यह इंसान जो कह रहा है वो सच तो है, फिर राहुल गांधी के संदर्भ में सोचा तो कहानी बिल्कुल अलग लगी क्योंकि पिछले दिनों से लगातार एनालिसिस कर रहे है जो राहुल गांधी भविष्य के बारे में बताते है वो सच ही हो रहा है। जिसका नुकसान हमारे साथ -साथ मासूम स्टूडेंट्स का भी होता है।
मौजूदा बतौलेबाज़ ने ऐसे-ऐसे झूठ गढ़ दिए है जिसकी वजह से जागरूक जनता में उस पद की इज़्ज़त भी कम हुई है। कुछ महत्त्वपूर्ण उदाहरण पेश कर रहा हूँ जिससे आपको पता चल सके मौजूदा राजनीति में राहुल गांधी क्यों अनफिट है
जब उन्होंने एक इंटरव्यू में बोला कि उन्होंने पहला ईमेल 1988 में किया था, उनके पास डिजिटल कैमरा भी था, फिर किसी भी बड़े प्राइम टाइम न्यूज़ एंकर ने उसकी पड़ताल की ...शायद किसी  पर भी नहीं हो सकता है NDTV ने कर दी हो लेकिन किसी भी गोदी मीडिया के पत्रकार ने दो लफ्ज़ भी इस वैज्ञानिक खोज पर बोले हो तो कोई हमें दिखा दे। 
हालांकि आजकल झूठ का सबसे ज्यादा प्रोपेगैंडा गोदी मीडिया के पत्रकार ही दो हज़ार के नोट में चिप दिखाकर कर रहे है।
हिंदी के तीन महान महापुरुषों को एक ही कालावधि का बता दिया जबकि उनकी उम्र में कम-से-कम 100 वर्ष का अंतर है। इस पर भी किसी प्राइम टाइम गोदी मीडिया ने कुछ नहीं बोला।
महानता का स्तर देखिए टीवी इंटरव्यू में गोदी मीडिया के पत्रकार से कह रहा है बादल की वजह से राडार काम नहीं करता है। 
पत्रकारों/ कैनेडियन कलाकारों के प्रश्न देखेंगे तो आंसू ही आ जाएंगे फिर भी वो मीडिया ट्रायल देते हुए कुछ नहीं बोलते है
आम आप चूसकर खाते है या काटकर?
आप कौनसा टॉनिक लेते है, आप थकते क्यों नहीं है?
आप बटुआ (पर्स) रखते है क्या?? 
दरअसल यह इंटरव्यू ज़्यादातर फिक्स ही होते है जिसको देखकर लगता है एक तरफा चल रहा है। 
दूसरी तरफ तथाकथित देशभक्त पार्टी की आई.टी. सेल ने एक पढ़े-लिखे युवा नेता को 'पप्पू घोषित करने के लिए मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक अपना जाल बिछाया और बहुत हद तक कर भी दिया' लेकिन पिछले दिनों अचानक एक सच्चाई निकल कर सामने आई जो भी राहुल गांधी ने भविष्यवाणी की थी वो एक एक करके सच साबित हो रही थी, इस बार बगैर किराए की जनता ने दूसरे लोगो को पप्पू बोलना शुरू कर दिया। दूसरी तरफ कोरोना की सेकंड वेब ने पार्टी को धराशायी कर दिया है हर तरफ उनकी सच्चाई सामने आ गयी हैं। 
किसानों की समस्या का भी निपटारा नहीं कर पाए है बल्कि खुद के अन्नदाता को देशद्रोही, खालिस्तानी, आतंकवादी कहना शुरू कर दिया जिसका समर्थन गोदी मीडिया ने भी अपरोक्ष रूप से खूब किया लेकिन किसान आईटी सेल ने इनकी धज्जियां उड़ा दी और देश को सच्चाई पता चलती रही जिससे किसानों पर होने वाले दुष्प्रचार का सामना खुद किसान और उनके जागरूक पुत्रों ने किया है।

जय हिंद

अकरम क़ादरी