मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

कोरोना की जंग में शहीद होते डॉक्टर - अकरम क़ादरी

कोरोना की जंग में शहीद होते डॉक्टर - अकरम क़ादरी

जबसे दुनिया मे इस महामारी ने अपने पैर पसारे है तब से देश का हर ज़िम्मेदार नागरिक अपने अपने स्तर पर लड़ रहा है कोई सड़क पर लड़ रहा है तो कोई घर पर स्वयं को बंद करके लड़ रहा है, कोई बीमारी के साथ-साथ भूख से लड़ रहा है तो कोई हॉस्पिटल में खड़े होकर अपनी जान को जोखिम में डालकर लड़ रहा है। जबसे इस बीमारी की शुरुआत हुई है इसने कॉमन इंसान के अलावा है डॉक्टर्स को भी निगलना शुरू कर दिया है क्योंकि यह वो बीमारी है जो एक दूसरे में खुद ट्रांसफर हो जाती है और चौदह दिन में उसके लक्षण दिखना शुरू हो जाते है। चीन के वुहान शहरमे जो पहला डॉक्टर इस बीमारी की चपेट में आया था तो उसने पहले ही आलेख लिखकर इस बीमारी के बारे में सबको आगाह कर दिया था कि यह बहुत खतरनाक बीमारी है जो मरीज़ों के साथ-साथ डॉक्टर्स को भी निगल जाती है उसके साथ-साथ पैरामेडिकल स्टाफ़, नर्सेस की भी ज़िन्दगी खतरे में रहती है ना जाने कितने स्वास्थ्य विभाग से ताल्लुक रखने वाले लोग इस भयानक बीमारी की चपेट में आकर इस दुनिया को अलविदा कह गए उसके बाद भी कुछ मानसिक विकलांग लोग इस समय भी कुंठित मानसिकता का परिचय देते हुए भी अपनी नफरती एवं साम्प्रदायिक राजनीति का एजेंडा सेट करने में लगे है जिसको कुछ गोदी मीडिया के चैंनल और पत्रकार भी शामिल है जिनको आजकल व्यंग्य की भाषा मे पत्तलकार कहा जाता है अर्थात वो पत्रकार जिसकी पत्तल में कुछ टुकड़े, निवाले कुछ एजेंडा सेट करने वालो ने डाले हुए होते हैं। 
कोरोना वारियर्स में जहां पर एक एम्बुलेंस का ड्राइवर तक शामिल है, वहां पर सफाईकर्मी, सपोर्टिंग स्टाफ उसके अलावा पैरामेडिकल स्टाफ, नर्सेज और दवा देने वाले मेडिकल वाले भी शामिल है जो सब एक समूह मिलकर एकता के साथ इस भयानक बीमारी से लड़ रहे है।
इस बीमारी में जो सबसे फ्रंट पर लड़ रहे है वो हमारे देश के जांबाज़ डॉक्टर्स ही है जो बिना अपनी जान की परवाह किए हुए इस पुनीत कार्य मे अपनी आहुति दे रहे है और देश को कोरोना मुक्त करने के लिए दिलो जान से लगे हुए है। 
अंग्रेज़ी अखबार दा हिन्दू के अनुसार 22 अप्रैल 2020 तक भारत मे 412 मेडिकल कार्यकर्ता कोविड 19 पॉजिटिव पाए गए है जिनमे अनेक डॉक्टर्स ने अपनी जान भी गवा दी है। जिनमे लगभग 156 नर्सेज, 96 डॉक्टर्स, 145 मेडिकल वर्कर्स, हॉस्पिटल स्टाफ 11 तथा 4 टेक्निकल स्टाफ भी शामिल है। इस कठिन परिस्थिति में भी डॉक्टर्स पर जनता के हमले भी हो रहे है फिर भी वो अपने कमिंटमेंट के लिए उदार है और देशसेवा में लगे हुए, कुछ राजनेताओ ने भी अशोभनीय टिप्पणी भी की है जबकि इस कठिन समय मे उनको हौंसला देना चाहिए उनकी दिक्कतों को दूर करना चाहिए फिर भी हमारे देश के डॉक्टर बगैर भेदभाव के जनसेवा में रात-दिन लगे हुए है। 
पिछले दिनों कोरोना से लड़ने वाले दो डॉक्टर्स के बारे में पढ़ा तो दिल भर आया है वो नोजवान डॉक्टर आजकल अपनी फॉर व्हीलर को ही अपना घर बनाये हुए थे जिसमें किताबे, कपड़े, टूथ पेस्ट, उसके अलावा कुछ हल्का फुल्का खाने का सामान।
कभी कभी अपने प्रिय बच्चों और अर्धांगनी को भी देखने जाते है उनको दूर से देखकर ही वापस अपने काम पर लौट आते है जिसको एक सच्ची समझ का व्यक्ति अगर देखेगा तो निश्चित ही उसका हृदय भावुकता और संवेदना से भर जाएगा और हो सकता है उनके इस कठिन कार्य को देखकर वो रो भी दे। 
इतना कुछ करने के बावजूद भी उनके लिए अच्छे मास्क, पीपीई किट का सही प्रबन्ध नहीं हो पा रहा है जिसको हमारे राजनेताओ को सोचना चाहिए और उनको उच्चस्तरीय सेवाओ से लैस करना चाहिए जिससे हम इस वैश्विक महामारी से निजात पा सके।
पिछले दिनों एक इटली से आई तस्वीर ने सभ्य समाज को रोने पर मजबूर कर दिया। पति-पत्नी दोनों ही कोरोना पॉजिटिव का इलाज कर रहे थे जब कुछ दिन पहले दोनों को मालूम हुआ कि घटिया किट के कारण वो खुद भी कोरोना पॉजिटिव हो गए है और जल्दी ही उनकी मौत हो जाएगी तो उन्होंने इच्छा जाहिर की हम दोनों एक बार मिलना चाहते है जब वो दोनों मिले तो उन्होंने एक दूसरे को चुम्बन किया जिस तस्वीर को देखकर दिल भर आया जबकि इटली जैसा देश दुनिया मे मेडिकल फैसिलिटीज में दूसरे नम्बर पर आता है वो भी इससे नहीं बच पाया वो अपने डॉक्टर को भी नहीं बचा पा रहा था तो इस भयावह बीमारी को समझते हुए सुरक्षा और सतर्कता ही बचाव है बगैर किसी महत्वपूर्ण काम से घर से बाहर न निकले और ना ही ऐसे ज़्यादा लोगो के साथ बैठे बल्कि अकेला में रहे और देश को सुरक्षित रखे बल्कि पूरे मानवजाति को बचाये।

अकरम क़ादरी
फ्रीलांसर &
पॉलिटिकल एनालिस्ट

शनिवार, 25 अप्रैल 2020

कोरोना से कैसे लड़ रही है पुलिस- अकरम क़ादरी

कोरोना से कैसे लड़ रही है पुलिस - अकरम क़ादरी

कहा जाता है कि 'पुलिस की ना दोस्ती अच्छी ना ही दुश्मनी' बात भी सही है क्योंकि दोस्ती घर का निजी मामला है और दुश्मनी भी लेकिन पुलिस तो जो कार्य करती है वो संविधान के दायरे में रखकर करती है वो किसी भी प्रकार का ऊंच-नीच, भेदभाव नहीं करती है अगर उनके ऊपर कोई राजनैतिक दबाब ना हो तो वो कुछ भी कुकर्म करने ना दे। 
देश के नोजवान जब सिंघम, राउडी राठौर, दबंग जैसी फिल्में देखते है तो उनके सामने पुलिस का एक आदर्शवादी रूप देखने को मिलता है और वो भविष्य में उस जैसा बनना भी चाहते है दरअसल ज्यादातर पुलिस वाले गांव देहात के ही रहने वाले होते है जो सही से आदर्शवाद को समझते भी है ।
वर्तमान समय मे कोरोना जैसी भयानक बीमारी का सामना देश कर रहा है, इस कठिन समय मे डॉक्टर्स, पैरामेडिकल स्टाफ और नर्सेस हॉस्पिटल के अंदर लड़ रही है तो दूसरी तरफ भारतीय पुलिस सड़को पर खड़े होकर लोगो को गाना गाकर जागरूक कर रही है और इस महामारी की भयावाह स्थिति से अवगत भी करा रही है उसके अलावा पागल, बूढ़े एवं दिव्यांगों को जगह जगह खाना भी मुहैया करा रही है। उसके अलावा देश मे दूसरी सबसे भयानक बीमारी फैल रही है मानसिक साम्प्रदायिकता से भी लड़ रही है क्योंकि कुछ राजनैतिक षड्यंत्रकारी दूसरे सम्प्रदाय के लोगो को इस भयानक बीमारी का जिम्मेदार ठहरा रहे है जिसको पुलिस बार-बार खंडन करके सच दिखा रही है। उसके अलावा जो लोग बगैर किसी ज़रूरत के बाहर घूम रहे है उनको भी समझा रही है, डांट रही है जिससे इस महामारी का पब्लिक ट्रांसमिशन ना हो सके। अगर पब्लिक ट्रांसमिशन हो गया तो बहुत भयावह स्थिति में देश फंस जाएगा और देश मे लाशो का तहखाना बन जायेगा जो आज स्थिति अमेरिका, इटली जैसे देशों की हो रही है उससे बत्तर हो जाएगी क्योंकि हमा
रे पास इतने संसाधन नहीं है जितने संसाधन इटली और अमेरिका जैसे विकसित देशों के पास है इसलिए देश के ज़िम्मेदार जानते है पहले जनता को लॉक डाउन के माध्यम से घर पर ही रोका जाए उसके बाद उनकी कोरोना टेस्टिंग कराई जाए जिससे इस बीमारी से देश को निजात मिल सके। गवर्मेंट के इस कानून और एडवाइजरी को पुलिस ततपरता से लागू कराने के लिए वचनबद्ध है जिसके लिए उनको अनेक परेशानियों से भी गुज़रना पड़ रहा है।
आज जिस प्रकार से पुलिस सड़को पर नज़र आ रही है वो जनता की मित्र है वो अपनी जनता को इस बीमारी से बचाना चाहती है वरना इस मुश्किल समय मे जब सब अपने घर पर रुके है वो क्यों सड़को पर घूम रहे है उनको क्या ज़रूरत है वो स्वयं और स्वयं के आश्रितों को परेशानी में डालकर देश की जनता के लिए लड़ रहे है कुछ बेवकूफ उनको गलत समझकर हमला कर रहे है जिसकी जितनी कड़ी निंदा की जाए वो कम है। 
अभी कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर कई ऐसी तस्वीरें देखी है जब पुलिस अफसर अपने घर मे बाहर बैठकर खाना खा रहे है जैसे किसी बाहर के भिखारी को दिया जाता है। 
उसके अलावा अपने बच्चों तक से मिलने की सावधानी बरत रहे है वो किसी भी प्रकार से समाज को इस बीमारी में झोकना नही चाहते है बल्कि बचाना चाहते है। 
जितने भी कोरोना महामारी से मर रहे है उनके अंतिम संस्कार तक पुलिस को करना पड़ रहे है क्योंकि अगर कोई दूसरा बन्दा उनका अंतिम संस्कार करेगा तो हो सकता है वो वायरस दूसरे को भी इन्फेक्ट करदे और बीमारी अपना विकराल रूप धारण करले।
मेरी देश की समस्त जनता से हाथ जोड़कर आग्रह है कि वो इस महामारी में पुलिस और डॉक्टर का सहयोग करे और अपने देश की जनता की रक्षा करने में अपना योगदान दे। 
किसी भी जगह यह पुलिस के वीर निकले तो उनका हाथ जोड़कर अभिवादन करदे उनपर कुछ फूल बरसा दे जिससे उनका हौसला बड़े और वो अपने कार्य को मेहनत से करे। 
हमारी रक्षा करे।
अकरम क़ादरी
फ्रीलांसर
पॉलिटिकल एनालिस्ट

गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

पालघर लिंचिंग के पीछे की मानसिकता - अकरम क़ादरी

पालघर लिंचिंग के पीछे की मानसिकता - अकरम क़ादरी

पालघर लींचिंग वाली वीडियो देखकर वास्तव में दिल दहल गया लेकिन सोचने की बात यह है कि हमारा समाज और पुलिस इतनी निकम्मी कैसे हो सकती है कि उसके ही सामने एक बुजुर्ग साधु को लिंच किया जाता है। इस घटना को समझने के लिए हमे थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा कि आखिर कैसे हमारे छोटे-छोटे मासूम बच्चों ने हाथ मे डंडा, लाठी और कुछ धारदार हथियारों से कबसे खेलना शुरू कर दिया ? तो आपको बताता चलूं की यह सब इतनी हिम्मत उन बच्चों में कैसे आई 2012 से मीडिया में नफरत का कंटेंट सबसे ज्यादा नज़र आता है जिसकी वजह से जो किशोरावस्था में बच्चे होते है उनकी मानसिकता कैसी बनेगी जब एक बच्चे से सामने एक पार्टी का नेता चिल्ला चिल्ला कर कहेगा 'मुल्ला तू चुप हो जा' मुल्ला तू घोड़े खोल ले ............वही होगा इससे शुरुआत होती है उसके बाद देश मे लींचिंग की एक बाढ़ से आ जाती है हर महीने में कमसेकम एक घटना तो मिल जाती है। ज्यादा घटनाओ का वर्णन नहीं करूंगा बल्कि चन्द घटनाओ का बात करूंगा जिससे पुलिस एवम कुछ समाज के ज़िम्मेदार लोगो के सामने होने वाली लिंचिंग का पता चल सके पहलू खान की लिंचिंग हुई तो बहुत लोग उसमे थे जिसमें से किसी की भी हिम्मत नहीं हुई कि जो पहलू खान को बचा ले कोई बात नहीं वो एक धर्म विशेष का व्यक्ति था मीडिया और सोशल मीडिया पर आई टी सेल से नफ़रत फैलाकर बताया है यह ऐसे होते है वैसे होते है झूठी खबरों फैलाई नफरत आगे बढ़ती गयी।
इसके बाद पहलू खान को मार दिया गया अभी शायद केस विचाराधीन है आगे इंसाफ होगा उम्मीद है।
उसके बाद हापुड़ के पास पुलिस के सामने एक बुजुर्ग की लिंचिंग हुई जिसमें उस बुज़ुर्ग को कुछ लोग हाथ,  पैर पकड़ खचेड़कर ला रहे है पुलिस सामने चल रही है वो भी अभी केस न्यायालय में विचाराधीन है। जबकि उसमे कुछ लोगो को जमानत मिल चुकी है NDTV के सौरभ शुक्ला ने उसका स्टिंग ऑपरेशन किया था अपराधी ने कैमरे पर गुनाह कुबूल किया था उसका भी पता नहीं।
आश्चर्य तो तब हुआ जब पुलिस के ही एक एस. आई सुबोध सिंह को कुछ लोगो ने शहीद कर दिया और उसको शहीद करने वाले जमानत पर बाहर आये तो उनका फूल मालाओं से स्वागत किया गया कुछ धार्मिक नारे भी लगाए गए जो सच मे देश के सभ्य समाज के लिए चैलेंज का विषय बन रहा है।
उपर्युक्त घटनाओ से मासूम बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका विश्लेषण एक मनोचिकित्सक अच्छा कर सकता है फिर भी मैं समझता हूं सच मे उनकी मानसिक स्थिति बदल गयी होगी कि ऐसा करने से कुछ नही होता है और समाज मे हमको नायक की तरह दिखाया जाता है जिससे वो सीना चौड़ा करके घूमते है और उनको धर्म रक्षक समझा जाता है जबकि सच मे वो एक अपराधी है जो आने वाले वक्त में स्वयं के प्रियजनों को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
पालघर की घटना भी ऊपर वाली घटना का एक क्रम है बाकी उसमे कुछ नया नहीं है बस समझने वाले बात एक ही है अगर हमने इस पर कठोर कदम नहीं उठाये तो हमारे बच्चे हिंसात्मक प्रवृति में संलग्न हो जाएंगे देश निश्चय ही पिछडेगा, बचपन खत्म हो जाएगा, मासूमियत दूर दूर तक नहीं रहेगी फिर यही बच्चे अपने माँ-बाप और सगे सम्बन्धियो के लिए खतरनाक हो जाएंगे आपराधिक प्रवृत्ति में आ जाएंगे हो सकता है। नशा लूट खसोट भी शुरू करदे......
नफरत से नहीं मोहब्बत से देश चलेगा
जय हिंद
निष्पक्ष, निर्भय, निरबैर, निडर

अकरम क़ादरी
पॉलिटिकल एनालिस्ट

रविवार, 12 अप्रैल 2020

कोरोना के गणित को समझो वरना लाशों का तहखाना बन जायेगा देश- अकरम क़ादरी



कोरोना महामारी को आखिर कैसे समझें- अकरम क़ादरी
देश-दुनिया में अनेक महामारी आई और कुछ समय बाद उनके वैक्सीन भी आये है जिससे ऐसी वबा से निजात मिली है। ऐसी ही एक  महामारी पूरी दुनिया में अपने पैर पसार चुकी है यह इतनी ख़तरनाक़ बीमारी है जो एक इंसान से दूसरे इंसान में सांस, हाथ मिलाने और उसके सम्पर्क में आने के बाद जकड़ लेती है जिससे बचने के लिए डॉक्टर बार-बार विनती कर रहे है कि किसी भी जगह पर बेमतलब खड़े ना हो एकदूसरे से 6 मीटर की दूरी बनाए रखो। 
दरअसल इस बीमारी को समझने के लिए एक उदाहरण पेश करता हूँ फिर आप इसको आसानी से समझ सकते हो.....गांव, देहात में दरबे में मुर्गियां बन्द होती है कुछ दिन बाद बीमारी के कारण सुबह में एक मुर्गी उघने लगती है तो दोपहर में दूसरी मुर्गी उघने लगती है फिर शाम को एक मुर्गी मरती है फिर दूसरी मरती है ऐसे ही सिलसिला जारी रहता है फिर वो मुर्गियां जितनी भी गांव, देहात की मुर्गियों के सम्पर्क में आती है वो भी मरती रहती है इस प्रकार पूरे गाँव, कस्बे, जिले और प्रदेश फिर देश को भी अपनी चपेट में ले लेती है। 
इसी को ध्यान में रखते हुए भारतीय सरकार और राज्य सरकारों ने लॉक डाउन का फैसला लिया है जिसका मतलब है देश को ट्रिलियन रेवेन्यू का नुकसान हो रहा है जिससे इस कोविड 19 की चैन को तोड़ा जा सके और लोगो को बचाया जा सके वरना देश-विदेश की सरकारें क्यों इतना जोखिम लेकर खरबो का नुकसान करती। हमारे विकासशील देश मे ही अब तक हज़ारों खरबो का नुकसान हो चुका है जिस ट्रेन के पहिये को देश का विभाजन नहीं रोक पाया उसको इस महामारी ने रोक दिया तो ज़रा समझिए यह कितनी खतरनाक और विस्फोटक बीमारी होगी। 
साइंस के स्टूडेंट ने दसवीं या बाहरवीं में नाभकीय विखंडन पड़ा होगा जिससे 1 से 3, 3 से 27, 27 से 81..... मॉलिक्यूल निकलते थे जोकि अणुबम का एक मॉडल है। 
ठीक इसी प्रकार यह इससे भी ज्यादा भयानक बीमारी है जो हाथ मिलाने से छीकने, हाथ से पकड़े नल, हैंडल और अनेक प्रकार से सभी को संक्रमित करती हुई चलती है। जिसका सबसे ज्यादा असर बुजुर्गों को होता है क्योंकि उनका इम्यून सिस्टम ज्यादा मजबूत नहीं होता है फेफड़े कमज़ोर होते है इसलिए उनको बचाने में ज्यादा दिक्कत होती है। इसलिए इस भयानक बीमारी से बचने के लिए हमें भारत सरकार एवं राज्य सरकारों के द्वारा जारी एडवाइजरी का पूरी तरह पालन कर स्वयं को, रिश्तेदारों को, मोहल्ले, गांव, कस्बे, जिले, प्रदेश और देश को बचाये जिससे मानवता बच जाएगी। 
इस दरमियान जो अमीर लोग है वो देश के गरीबो को भी भुखमरी से बचाये क्योंकि यहीं वो लोग है जो आपको और हमको धनवान बनाते है। दूसरा हमारा यह फ़र्ज़ भी है कहीं पर भी हो इंसानियत को बचाया जाए, चाहे वो हिन्दू हो मुसलमान,सिक्ख, ईसाई या कोई भी 
सभी भेदभाव भुलाकर भारत होकर सोचो देश को बचाओ। 
दूसरी बात रहा सवाल इन सरकारों का तो एक समय बाद इनकी नीतियों का भी विरोध वक़्त रहते हो जाएगा। लेकिन होगा तभी जब हम और आप ज़िंदा रहेंगे। 
सरकारों के पास पर्याप्त साधन नहीं है इसलिए जिससे जो मदद हो सके वो खुद दुसरो की मदद करे.....आपको मालूम होगा ही दुनिया की टॉप क्लास की स्वास्थ्य सेवाओं वाले देश भी इस भयंकर महामारी से हार मान चुके है दुनिया मे नम्बर की स्वास्थ्य सेवा वाला देश खून के आंसू रो रहा है उसके नागरिक मर रहे है और वो मजबूर है कुछ कर नहीं सकता .....वर्तमान में यहीं स्थिति अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश की हो चुकी है इसलिए हमें सोचना चाहिए हम विकासशील देशों की लिस्ट में आते है स्वास्थ्य सेवाएं क्या है आप सब लोग बेहतर समझते है इसलिए इस महामारी से सावधानी ही बचाव है...भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में ना जाये घर रहे और स्वस्थ्य रहे....
मुझे लगता है जिस प्रकार से हम प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहे है अब प्रकृति हमे वापस कर रही है इसलिए हमें प्रकृति प्रेमी बनना चाहिए
जय हिंद

शनिवार, 11 अप्रैल 2020

रूढ़ियों की बेड़ियां तोड़ते हैं फुले के विचार - सिराज राज

'भारत में राष्ट्रीयता की भावना का विकास तब तक नहीं होगा, जब तक खान-पान एवं वैवाहिक सम्बन्धों पर जातीय बंधन बने रहेंगे।' यह बात कही थी महात्मा ज्योतिबा फुले ने. 11 अप्रैल 1827 को पुणे में जन्मे फुले ने महिलाओं और दलित समाज के उन्नति के लिए  अनेकों महत्वपूर्ण कार्य किए. सदियों से भारतीय समाज में प्रचलित धार्मिक विश्वासों, आस्थाओं, मान्यताओं, कर्मकाण्डों का मुख्य आधार ईश्वर को ही माना जाता है। दरअसल  सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक आदि प्रकार के शोषण धर्म की आड़ में ही किए गए। महात्मा फुले का मानना था कि जब तक ईश्वर से संबंधित स्वार्थियों एवं पाखण्डियों की कल्पनाओं, अंधविश्वासों, कुप्रथाओं को दूर नहीं किया जाता, तब तक समाज में सुधार असंभव है। इसीलिए फुले ने ईश्वरवाद, अवतारवाद, पुनर्जन्म, मूर्ति-पूजा आदि का खंडन किया। साथ ही समाज में व्याप्त इस व्यवस्था के लिए धर्म के ठेकेदारों व पुरोहितों को जिम्मेदार ठहराया। उनके अनुसार स्वार्थी ब्राह्मण पंडितों ने आमलोगों, शूद्रों एवं महाशूद्रों को सदा के लिए गुलाम बनाए रखने एवं अपने स्वार्थ के लिए इन सभी सारी चीज़ों को वजूद में लाया। और इन बातों की पुष्टि के लिए अनेक ग्रंथों की रचना की, जिसमें केवल पाखण्ड और काल्पनिक कहानियां भरी पड़ी हैं। जिनके जाल में अनपढ़, अशिक्षित व आम जनता को फंसाकर वे अपनी रोटियां सेकना चाहते थे। दरअसल भारत में जाति प्रथा, पुरोहितवाद, स्त्री-पुरुष असमानता और अंधविश्वास के साथ- साथ समाज में व्याप्त आर्थिक-सामाजिक एवं सांस्कृतिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध सामाजिक परिवर्तन की जरूरत सदियों से रही है। इसी संकल्प को लेकर आधुनिक युग में समाज को जागरूक व बदलने का सार्थक प्रयास करने का श्रेय समाज सुधारक ज्योतिबा फुले को ही जाता है। इन्होने समाज में परिवर्तन लाने के लिए 24 सितंबर, 1873 को ‘सत्य शोधक समाज’ की स्थापना की। जिसका प्रमुख उद्देश्य था- शूद्रों-अतिशूद्रों को पुजारी, पुरोहित, सूदखोर आदि की सामाजिक-सांस्कृतिक दासता से मुक्ति दिलाना, धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यों में पुरोहितों की अनिवार्यता को खत्म करना, शूद्रों-अतिशूद्रों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना, ताकि वे उन धर्मग्रंथों को स्वयं पढ़-समझ सकें, जिन्हें उनके शोषण के लिए ही रचा गया है, सामूहिक हितों की प्राप्ति के लिए उनमें एकजुटता का भाव पैदा करना, धार्मिक एवं जाति-आधारित उत्पीड़न से मुक्ति दिलाना, पढ़े-लिखे शूद्रातिशूद्र युवाओं के लिए प्रशासनिक क्षेत्र में रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना आदि। जब कभी शिक्षा का ज़िक्र किया जाता है तो फुले के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। भारतीय शिक्षा व्यवस्था में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। दरअसल इन्होंने  हजारों सालों से शिक्षा से वंचित दलित और स्त्री समाज को शिक्षित करने के लिए कदम उठाया। उनका कहना था लड़का पढ़ता है तो एक परिवार शिक्षित होता है और अगर लड़की पढ़ती है तो पूरा समाज शिक्षित होता है। इसीलिए स्त्री समाज को शिक्षित करने के लिए सन 1848 में स्कूल खोला। जिसमें अपनी जीवन साथी सावित्रीबाई को अध्यापन कार्य की जिम्मेदारी दी। इसीलिए भारतीय इतिहास में सावित्रीबाई को प्रथम महिला शिक्षिका का श्रेय जाता है। समाज में चेतना एवं जागरूकता फैलाने के साथ-साथ रूढ़िवादी परंपरा, अंधविश्वास, धर्माडंबर, जातिवाद, शोषण, अत्याचार, भ्रष्टाचार आदि के यथार्थ से रूबरू होने के लिए महात्मा फुले की रचनाएं मिल का पत्थर हैं। जो इस प्रकार हैं-  
1- तृतीय रत्न (नाटक 1855)
2- छत्रपति राजा शिवाजी का पंवड़ा (1869) 

3- ब्राह्मणों की चालाकी (1869) 
4- ग़ुलामगिरी(1873)
5- किसान का कोड़ा (1883) 
6- सतसार अंक-1 और 2 (1885)     
7- इशारा (1885)
8- अछूतों की कैफियत (1885)
9- सार्वजनिक सत्यधर्म पुस्तक (1889) 
10- सत्यशोधक समाज के लिए उपयुक्त मंगलगाथाएं तथा पूजा विधि (1887)
अतः कहा जा सकता है कि महात्मा फुले का जीवन संघर्ष और विचार भारत को एक शिक्षित राष्ट्र बनाने और समाज को जाति मुक्त बनाने में बीता। वर्तमान समय में फुले, अम्बेडकर और भगतसिंह के विचारों को अमल में लाने की जरूरत है। फुले ने कहा था-
'नए नए विचार तो दिन भर आते हैं,
उन्हें अमल में लाना ही असली संघर्ष है।'

सिराज राज
रिसर्च स्कॉलर, युवा कवि, आलोचक, व्यंग्यकार एवं राजनैतिक विश्लेषक
मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी
हैदराबाद


बुधवार, 8 अप्रैल 2020

कोरोना से सरकारें लड़ रही है या जनता ? - डॉ. आज़र ख़ान

               कोरोना वायरस से इस समय पूरी दुनिया लड़ रही है या कहा जाए जूझ रही है। हर देश के डॉक्टर अपनी जान की परवाह किए बिना दिन रात मरीज़ों की ज़िंदगी बचाने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। जिस प्रकार हमारे सैनिक दुश्मनों से बचाने के लिए अपने प्राणों को देश पर न्योछावर करने से डरते नहीं हैं, ठीक उसी प्रकार आज हर देश के डॉक्टर अपने देश के नागरिकों की ज़िंदगी बचाने के लिए अपनी ज़िंदगी की चिंता नहीं कर रहे हैं। डॉक्टर हमारे लिए किसी सैनिक से कम नहीं हैं। दुनियाभर में कोरोना से संक्रमित होकर मरनेवालों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है, साथ ही इन मरीज़ों की जान बचाने में लगे डॉक्टर भी इस वायरस से संक्रमित हो रहे हैं। इटली में अबतक सबसे अधिक डॉक्टरों की मौत कोरोना के संक्रमण से हो चुकी है। भारत में भी ये सिलसिला शुरू हो चुका है, लेकिन डॉक्टरों ने हार नहीं मानी है, वो बिना डरे हिम्मत के साथ अपना घर, परिवार, बच्चों को छोड़कर अपना फ़र्ज़ अदा कर रहे हैं। भारत जैसे देश में जहाँ डॉक्टरों के लिए भी उचित सुविधाएँ नहीं हैं, मीडिया के अनुसार सरकार इनके लिए हर तरह से सुविधाओं का प्रयास कर रही है। आज सभी धर्मों के लोग इन डॉक्टरों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं, साथ ही देश के नागरिकों के स्वस्थ होने और इन बीमारी को जड़ से ख़त्म करने के लिए प्रयासरत हैं। कोई भी बीमारी न तो धर्म देखती है, न जाति देखती है। इस बीमारी से लड़ने के लिए सामाजिक और शारीरिक दूरी परमआवश्यक है। इसलिए देश के सभी मंदिर और मस्जिद में होनेवाले पूजा-पाठ एवं नमाज़ अपने अपने घरों में अदा करने को कहा गया है। हर धर्म के लोग इस मुसीबत से निजात पाने के लिए धर्म और विज्ञान दोनों को साथ लेकर चल रहे हैं। मुस्लिम समाज के लोग रात के 10 बजे अपनी-अपनी छतों से एकसाथ अज़ान पुकारकर देश और दुनिया की सलामती की दुआ कर रहे हैं, वहीं हिंदू समाज में भी घरों में पूजा-पाठ करके सभी के स्वस्थ रहने की प्रार्थना की जा रही है। ऐसे समय में जब एक मुसीबत हमपे पूरी तरह से हावी हो चुकी है, तो इससे लड़के के लिए हममें आशा और एकता का होना बेहद ज़रूरी है। एकता वो नहीं, जो एक जगह एकत्र होकर दिखाई जाती है। यह प्रदर्शन का समय नहीं है, एक-दूसरे की बात पर भरोसा करना, उसपर अमल करना भी एकता के दायरे में आता है। इसलिए सरकार द्वारा जो दिशा-निर्देश दिए जा रहे हैं, देशवासियों को उनपर पूरी तरह अमल करना चाहिए। आज समय बहादुरी दिखाने का नहीं, बल्कि कायरता दिखाने का है, वैसे तो कायरता में हमने कई रिकॉर्ड बनाए हैं, शायद इसीलिए यह समय लाया गया है कि यह सब सही होने के बाद समय के महत्त्व को समझकर हम नई ऊर्जा के साथ अपने-अपने काम में लग जाएँ। कोरोना तो एक न एक दिन चला जाएगा, लेकिन यह हम सबको जीवन जीने का सबक देकर जाएगा और उस सबक से हमें बहुत कुछ सीखना होगा। सृष्टि के निर्माण से अबतक मनुष्य प्रकृति को छिन्न-भिन्न ही करता आया है। आज नतीजा यह हुआ कि साँस लेने के लिए स्वच्छ आक्सीजन वातावरण में कम हो गई है, धरती का तापमान बढ़ गया है, जंगली जानवरों के रहने के लिए जंगल नहीं रह गए हैं, पशुओं और पक्षियों की संख्या निरंतर घट रही है। आज मनुष्य घरों में बंद है तो प्रकृति को फलने-फूलने का पर्याप्त अवसर मिल रहा है। इस विपदा के बाद जो नई दुनिया मनुष्य को मिलेगी, उसका मनुष्य को ध्यान रखना होगा। सवाल मजदूर, ग़रीब, बेसहारा पर आकर ठहर जाता है, उनके लिए देश के छात्र, नौजवान, घर-घर राशन पहुँचा रहे हैं, इस जंग में उनके योगदान को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। हर राज्य की सरकारों ने भी इनके लिए राशन-पानी का इंतज़ाम किया है। सरकार को चाहिए कि सबके तक ज़रूरत की चीज़ें पहुँच रही हैं, उसकी भी पड़ताल करे। मीडिया के लिए सिर्फ इतना कहना चाहूँगा कि तुम्हारा काम देश को जोड़ने का होता है, तोड़ने का नहीं। ये सब करने के लिए बहुत समय मिला है और आगे मिलेगा भी। इस भयावह समय में तो कम से कम बख्श दिया होता है। तुम चंद पत्रकारों ने सरकार की नाकामी को छिपाने का जो ज़िम्मा उठा रखा है, उसमें वही मनुष्य पिस रहा है, जिसकी तुम आवाज़ कहे जाते हो। सरकारों ने तो कभी स्वास्थ्य विभाग की तरफ़ नहीं ध्यान दिया, शिक्षा विभाग को नजरअंदाज़ किया, बेरोज़गारी के सामने अंधी हो गई। भ्रष्टाचार की आँधी में पंगु हो गई। सरकारों ने कुछ किया होता, तो इनमें इज़ाफ़ा नहीं कमी आती, लेकिन तुम चंद सिक्कों में बिके पत्रकार जनता की आवाज़ के स्थान पर नेताओं की बीन के सामने नाच रहे हो। इस समय इस महामारी से बचने और उसे हराने के तरीके जनता को बताने की जगह पर तुमने वही काम किया, जो तुम सालों से करते आ रहे हो। तुम दलालों और नेताओं से जनता हिसाब माँगेगी।

डॉ. आज़र ख़ान
युवा कहानीकार, आलोचक एवं पॉलिटिकल एनालिस्ट
पूर्व सचिव
शोध समिति अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी

सोमवार, 6 अप्रैल 2020

सुरीनामी भारतवंशियों से सीखना चाहिए भारत को वसुधैव कुटुम्बकम- प्रोफ़ेसर पुष्पिता अवस्थी


  • सुरीनामी भारतवंशियों से सीखना चाहिए भारत को वसुधैव कुटुम्बकम -प्रो. पुष्पिता अवस्थी

  • किसी भी सुदृढ लोकतंत्र की यह पहचान है कि वहां पक्ष और विपक्ष मजबूत होना चाहिए ना ही किसी का अंध समर्थन होना चाहिए और ना ही अंध विरोध यदि कोई अपनी बात कह रहा है तो
    उसकी बात को तर्क और वितर्क करके सोचना चाहिए नाकि उसको विपक्ष का समझकर कुतर्क करके मानवता को हानि पहुँचाना चाहिए यह सब कहने का तात्पर्य केवल इतना है इन सब बातों के गर्भ में कहीं ना कहीं मानवता छुपी हुई है जिसको पहचान कर हमें देशहित में सोचना चाहिए। वैश्विक स्तर पर अनेक यायावरी का जीवन जीने के उपरांत यही समझ बनी की हमारी संस्कृति, संस्कार, भाषा, मान्यताएं और परम्पराओ में वसुधैव कुटुम्बकम की सोंधी खुशबू पूरी दुनिया को महका रही है। सूरीनाम में भारतीय दूतावास में रहते हुए जब मैंने वहां पर भारतवंशियों के बीच साहित्यिक, सांस्कृतिक कार्य करना प्रारम्भ किया तो यह समझ मे आया कि सूरीनाम के भारतवंशियों में हमसे अधिक भारतीयता विधमान है क्योंकि वो वसुधैव कुटुम्बकम के सच्चे अर्थों में पुजारी है जो संस्कृति को अपना मानने में गर्व महसूस करते है एक तरफ वो रामचरितमानस को पढ़ते है तो दूसरी तरफ कबीर के दोहों, सवैया और रमैनी को गाते बजाते है। वहां लगभग 42 प्रतिशत भारतीय निवास करते है ना ही वो स्वयं को हिन्दू समझते है और ना ही मुसलमान वो स्वयं को भारतवंशी समझते है और सभी त्यौहार एकसाथ मिलकर मानाते है। शादी व्याह भी अधिकतर आपस मे ही करते है जिससे उनकी हिंदुस्तानियत की समझ वर्तमान के भारतीयों से अधिक प्रतीत होती है।
  • संसार भर में चीन को छोड़कर सभी देशों की यात्रा की है वहां की अधिकतर चीज़ों को समझने का प्रयत्न किया है लेकिन भारतीय संस्कृति को सबसे अद्वितीय पाया है। जब कहीं पर भारत का इण्डिया गेट और ताजमहल दिखता है तो मुझे अपने देश पर गर्व महसूस होता है।
  • वर्तमान समय मे पक्ष-विपक्ष ने जिस प्रकार से लोकतंत्र को समाप्त करने का घृणित कार्य किया है उससे मैं व्यक्तिगत तौर पर बहुत आहत हूँ। इसमें कोई शक नहीं है मैं कर्मकांडी ब्राह्मण हूँ। साई बाबा की पूजा करती  हूँ लेकिन मेरा धर्म किसी को गलत या निम्न समझने की आज्ञा नहीं देता है क्योंकि जैसा मुझे लगता है कि इस धर्म ने ही तो दुनिया को योग्य और श्रेष्ठता प्रदान की है।
  • अगर किसी को ज्यादा विस्तार से सूरीनाम के भारतवंशियों को समझना है तो मेरे 15 वर्षों के अथक प्रयासों से सृजित उपन्यास "छिन्नमूल" पढ़ लीजिये वहां की भारतीयता और यहां की हिंदुस्तानियत को समझ सकते है। आखिर फिर भी तो यह देश गांधी, विनोबा, सरदार बल्लभ भाई पटेल और मौलाना आज़ाद के सपनों का है, इसके बचाना हमारा कर्त्तव्य है।
  • जय हिंद
  • जय जगत
  • रामहरि
  • निष्पक्ष, निर्भय, निर्बेर
  • वंदेमातरम
  • प्रोफ़ेसर पुष्पिता अवस्थी
  • अध्यक्षा
  • आचार्यकुल संत विनोबा भावे
  • पवनार आश्रम
  • वर्धा एवं
  • संयोजक
  • हिंदी यूनिवर्स फॉउंडेशन
  • नीदरलैंड

गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

कोरोना महामारी में एएमयू के छात्र-छात्राओं ने कैसे रखा गरीबो का ख्याल- अकरम क़ादरी

एएमयू के बारे में चाटुकार मीडिया ने आपके ज़हन और दिल मे जो इमेज बनाई हो लेकिन हमने हमेशा उनको जवाब दिया है उनकी नफरतों का भंडाफोड़ भी किया है और उनके मंसूबो को नाकाम भी किया है और आगे भी इंशाअल्लाह करेंगे....हमने नफरतों का जवाब मोहब्बत से देकर यह साबित किया है कि जंगे आज़ादी से लेकर हम इस देश के वफादार थे, वफादार है वफादार रहेंगे जिसको जो सोचना है सोचे हमे फ़र्क़ नहीं पड़ता है देश मे जितनी भी इंसानी या आसमानी परेशानियां आये हम अपने मदद के हाथ कभी भी रोकेंगे नहीं ....नफरती चिंटूओ को जो लिखना है लिखे यहां हर मज़हब और धर्म के लोग पड़ते और नफरतों से लड़ते है .....आज पूरी दुनिया मे कोरोना महामारी ने विकराल रूप ले लिया है फिर एएमयू तलबा की दर्ज़नो ऑर्गनाइजेशन गरीब, बेसहारा, मज़दूरों और रिक्शा चालकों की मदद करने के लिए अपनी जान को जोखिम में डालकर हर तरह की मदद पहुंचा रही है..हमारी सत्ता और उनकी गोदी मीडिया से हज़ारों मतभेद है लेकिन हमने कभी संविधान और इंसानियत से मुंह नहीं मोड़ा जब भी देश को हमारी ज़रूरत महसूस हुई तो हमने उनका साथ दिया जो लोग पढ़े-लिखे है वो एएमयू के हवाले से गांधी जी को पढले मौलाना आज़ाद को पढ़ ले समझ जाएंगे हमारी तारीख और हमारा काम ....हम ही वो अलीगढ़ है जिन्होंने जामिया जैसी यूनिवर्सिटी दी राजा महेंद्र प्रताप सिंह जैसा नेता दिया ... और ना जाने कितने देश और विदेशों को नेता दिए जिन्होंने अपने मुल्कों का नेतृत्व किया .....आज एएमयू के लड़के अलीगढ़ में जहां भी कोई गरीब, मज़दूर तकलीफ में होता है उसको हर तरीके से मदद कर रहे है उसके अलावा पूरी दुनिया मे फैले अलीग अपने अपने हिसाब से इंसानियत की मदद कर रहे है लोगो को बचाने की कोशिश कर रहे है ..... आपकी नॉलेज के लिए कुछ नाम बता रहा हूँ जिससे आपको मालूम हो कि अलीगेरियन ने कितना काम किया है मौजूदा महामारी से निपटने के लिए ...कितने चूल्हे जलवाकर इंसानों की पेट की आग बुझाई है.....फिर भी हमे कोई कुछ कहे... अलीगढ़ सबको  जवाब अपने तरीके से देता है......कुछ नाम दे रहा हूँ जो अभी काम कर रहे है अगर कुछ रह गए हो तो माफी चाहता हूं

-एएमयू कॉर्डिनेशन कमेटी
-MSO एएमयू यूनिट
-दारुल मुखलिसिन
-सोच
-रहबर फॉउंडेशन
-मेडिक्स
-वीर अब्दुल हमीद फेडरेशन
एएमयू रिलीफ कमेटी

अकरम हुसैन क़ादरी
रिसर्च स्कॉलर
एएमयू