सोमवार, 23 मार्च 2015

हाशिमपुरा नरसंहार

हाशिमपुरा नरसंहार के आरोपियों को जिस तरह से कोर्ट ने बरी किया है, उसके बाद सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या मुस्लिमों का रहनुमा होने का दावा करनेवाले लोगों ने ही उनके साथ विश्वासघात किया है ? आपको बता दें कि साल 1987 में मेरठ के हाशिमपुरा में 42 लोगों की हत्या कर दी गई थी . हत्या का आरोप पीएसी के जवानों पर लगा था लेकिन तीस हजारी कोर्ट ने सबूत के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया है .

 28 साल तक चला हाशिमपुरा नरसंहार का मुकदमा . 42 मुस्लिमों की हत्या की पुष्टि भी हुई लेकिन आखिर तक ये पता नहीं चल पाया कि हत्यारा कौन है ? और उससे भी अजीब बात ये कि पुलिस 28 साल में ये भी नहीं पता कर पायी कि मारे गये सभी लोग कौन थे ?

पीड़ितों की वकील रेबेका जॉन बताते हैं कि जब पुलिस ही पुलिस के खिलाफ जांच करती है तो ऐसा ही होता है. हत्या के आरोपियों को बचाने में पुलिस और यूपी सरकार की भूमिका की पड़ताल से पहले आपको बता दें कि हाशिमपुरा नरसंहार के समय यूपी में कांग्रेस के वीरबहादुर सिंह की सरकार थी . उसके बाद कांग्रेस के ही नारायण दत्त तिवारी की सरकार बनी . खुद को मुस्लिमों का रहनुमा बताने वाले मुलायम सिंह तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री बने जबकि अभी उनके बेटे अखिलेश यादव राज्य के मुख्यमंत्री हैं. लेकिन इसके बावजूद हाशिमपुरा नरसंहार के इन पीड़ितों को इंसाफ नहीं मिला .

पीड़ित बताते हैं कि यूपी सरकार ने सबूत नहीं दिये . यूपी सरकार को कोस रहे हैं हाशिमपुरा के दंगा पीड़ित . दरअसल हाशिमपुरा नरसंहार की जांच सीबीसीआईडी की टीम ने किया है और इस मामले के आरोपियों के खिलाफ सबूत जुटाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की थी लेकिन राज्य सरकार तो मारे गये सभी लोगों के नाम तक नहीं बता पायी .

हाशिमपुरा के पीड़ितों के मुताबिक जिन लोगों की हत्या हुई है, उन सबको पीएसी की एक गाड़ी पर चढ़ाया गया था और फिर गंग नहर के किनारे ले जाकर सबको गोली मार दी गई थी . पीड़ितों की वकील रेबेका जॉन का दावा है कि मौत की वो गाड़ी ही आरोपियों के खिलाफ पुख्ता सबूत बन सकती है .

28 साल तक चले मुकदमा में पुलिस वारदात के प्रत्यक्षदर्शियों के जरिए भी आरोपियों के खिलाफ सबूत पेश नहीं कर पायी जबकि हाशिमपुरा के दो लोग एबीपी न्यूज से खुलकर बताये हैं कि उन्हें भी पीएसी के जवानों ने गोली मारी थी लेकिन किस्मत से वो बच गये .

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