बुधवार, 6 सितंबर 2017

मानवाधिकार रक्षकों को क्यो आतंकवादी, नक्सलवादी बताया जाता है - अकरम हुसैन क़ादरी

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अकरम हुसैन कादरी

भारतीय राजनीति में मानवाधिकार की बात करना अब आतंकवादी , नक्सलवादी सिम्प्थाइसर कहा जाने लगा है इस ज़हर को 2012 के बाद मीडिया ने बहुत तेज़ी से फैलाया क्योंकि इससे एक राजनैतिक पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने में मदद मिलती है इंसानियत की बात करना अब कैंसर जैसा हो गया है जिसकी चपेट में अनेक लेखक, बुद्धिजीवी आ गए है चाहे वो कलबुर्गी, पानसरे, दाभोलकर हो या फिर कल की घटना गौरी लंकेश के साथ हुआ हश्र  दरअसल यह नफरतों को फैलाने का ही रिजल्ट है जिसको मीडिया की समय समय पर हो रही पिटाई, सम्मानित बुद्धिजीवी व्यक्तियों को धमकी देना एक आम बात हो गयी है जो समाज मे बहुत तेज़ी से फैल रही है जिससे लगातार इंसानियत शर्मशार हो रही है, एक बात सोचने योग्य है इसमें ज्यादातर अंधभक्त, अतिधार्मिक पाखण्डी लोग ही नज़र आते है वो अपनी कायरता और डरपोकपन का परिचय बुद्धिजीवियों के सीनों को गोलियों से भूनकर देते रहते है इसमें ज्यादातर हिन्दू अतिवादी ही नज़र आते है जबकि मरने वाले भी ज्यादातर हिन्दू ही है बस अंतर यह है कि वो दिमाग़ से सोचते है मारने वाले षड्यन्त के साथ साथ साथ कुछ राजनैतिक लाभ और चन्द सिक्को में अपनी इंसानियत को बेचकर किसी बुद्धिजीवी को गोलियों से भून देते है जो सभ्य समाज के लिए बहुत ही खतरा है जिससे समाज को समझने, परखने और बोलने वाले लोगो की कमी आएगी जिससे हमें नई सोच और इंसानियत के लिए काम करने वाले लोगो की कमी निकट भविष्य में महसूस होगी जो मानवता के लिए शुभ संकेत नही है, ऐसे कार्यो में वो लोग शामिल है जो भोले भाले है धर्म और राजनैतिक विचारधारा के चलते जिन्होने अपना दिमाग़ गिरवी रख दिया है इसका लाभ हमेशा फर्स्ट क्लास पॉलिटिशियन उठाते है उसके बदले में यह कुकृत्य करने वालो को केवल जेल और चन्द दिनों की पहचान और चन्द सिक्को से नवाज़ दिया जाता है
देश को बचाने के लिए यह बहुत ज़रूरी है ऐसे लोगो की खुलकर निंदा होनी चाहिए तथा इनको मिल रहा राजनैतिक संरक्षण भी रुकना चाहिए जिसके चलते यह कुकृत्य करते है मानवता शर्मशार होती है.. पिछले चार वर्षों से जो घटनाएं हुई है उनकी पृष्टभूमि लगभग सामान ही थी
ऐसे कुकृत्यों को रोकने के लिए देश के सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति को संज्ञान लेना चाहिए वरना देश मे असहिष्णुता का माहौल बन चुका है मानसिक साम्प्रदायिकता अपने चरम पर है तथाकथित देशभक्त किसी बुद्धिजीवी, प्रतिरोध के शब्द लिखने वालों पर ऐसे अपमानजनक शब्दो का प्रयोग कर रहे है जो समाज और देश को खुलेआम चुनौती दे रहे है
जय हिंद
#अकरम_हुसैन_क़ादरी

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