मंगलवार, 10 अक्तूबर 2017

समाजवादी सम्मेलन में नही दिखा समाजवाद

"समाजवादी सम्मेलन में नही दिखा समाजवाद"
       अकरम हुसैन क़ादरी
हाल में ही आगरा में सम्पन्न हुए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन में देश के सभी समाजवादी नेताओं और पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन में जोर शोर से पार्टी को मजबूत करने का संकल्प तो लिया गया लेकिन कोई भी पार्टी कार्यकर्ता अपनी पूरी लय में नही दिखा और न ही किसी को समाजवादी पार्टी के इतिहास के बारे में मालूम था। चन्द पुराने समाजवादियों को छोड़कर बाकी सब यूँ ही खानापूरी करते हुए दिखे।
लगता है आजकल समाजवादी पार्टी अपनी विचारधारा से भटक रही है क्योंकि अधिकांश कार्यकर्ताओं को न तो डॉ. राममनोहर लोहिया की विचारधारा से मतलब है और न ही जनेश्वर मिश्र जैसे जांबाज़ों के योगदान से भलीभांति परिचित है। वे तो केवल अगले चुनाव में सत्ता हथियाने के चक्कर मे नज़र आये ।
पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गोरखपुर में मृत बच्चों के परिवारों की सहायता करके कुछ समाजवाद को ज़िंदा करने की कोशिश की; लेकिन राष्ट्रीय सम्मेलन में उन्होंने कुछ ऐसा मजबूत भाषण नहीं दिया जो विचारधारा से लबरेज़ हो और जिसमें समाजवादी जननायकों को याद किया जाए। ऐसा प्रतीत हुआ कि यह सम्मेलन एक व्यक्ति विशेष को ध्यान में रखकर रखा गया है, ताकि उनकी ताजपोशी हो जाये और सभी चलते बने। इसमें चापलूसी साफ झलक रही थी। 
पूरे सम्मेलन में जहां एक ओर धैर्य की कमी लगी वहीं पर नैतिकता, सामाजिकता और राजनीति के भी कोई ठोस लक्षण या क़दम नहीं दिखाई दिए जिससे समाजवाद कमज़ोर होने की कगार पर नज़र आ रहा है।
भाषणों पर अगर दृष्टिपात करें तो आज़म खान साहब ने कुछ सामाजिक, धार्मिक मुद्दों को समाजवाद के नज़रिए से छूने की कोशिश की लेकिन बीच में युवा समाजवादियों के नारों के चक्कर में वह स्वयं अपना इतिहास ही सुनना भूल गए जिसके जरिये आज़म ख़ान साहब सच्चे समाजवाद को पारिभाषित करना चाह रहे हैं। अखिलेश यादव और उनकी धर्मपत्नी सांसद डिम्पल यादव के भाषणों में समानता दिखी जबकि समाजवादी का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते अखिलेश यादव को 2019 का ख़ाका तो खींचना ही चाहिए था।  इसके अलावा, 2022 के उत्तर प्रदेश के चुनाव पर अपनी रणनीति के साथ साथ युवा नेताओ से आह्वान भी करना चाहिए था कि पिछले चुनाव में हुई ग़लतियों से सीख लेते हुए अगले चुनाव में उन ग़लतियों को दूर करना है। हर वोटर के घर घर जाकर समाजवाद को फैलाना है। इसके साथ, अनेकता को एकता में पारिभाषित करके साम्प्रदायिकता के दंश से प्रदेश में फैल रहे इस कैंसर से भी निजात दिलाने के लिए बूढ़े और नौजवान कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग देकर जनता के बीच में जाने का आह्वान करना चाहिए था।
प्रदेश में अनेक ऐसे मुद्दे हो चुके हैं जिसको समाजवादियों ने सही से नहीं भुनाया है। वे लोग अपने साम्प्रदायिकरण को मजबूती दे रहे हैं, इधर आप लोग पैर पर पैर रखे बैठे हैं। अगर ऐसे ही बैठे रहे तो वो दिन दूर नहीं है जब आपकी भी हालत बहुजन समाज पार्टी जैसी हो जाएगी। न ही आपको यादवों का वोट मिलेगा और न ही अल्पसंख्यकों का, क्योंकि उसका सीधा कारण है कि जब उनके मुद्दे चल रहे थे तो तुम उस समय कहाँ थे .....
सच्चे समाजवादियों ने हमेशा देश, प्रदेश के विकास में विशेष योगदान दिया है चाहे वो देश का कोई भी कोना हो। जहां पर भी अत्याचार होता है वहां पर समाजवादी नज़र आते थे। न जाने अब क्या हो गया है इस समाजवाद को....अनेक मुद्दों को भुना ना पाने में उनकी राजनैतिक अपरिपक्वता नज़र आती है .....
अखिलेश यादव को अगर सपा को बसपा बनने से रोकना है तो समय की मांग के अनुसार, साम्प्रदायिकता, मानसिक साम्प्रदायिकता, छात्रों के हित, स्त्री विरोध को खत्म करके, ऊंच-नीच जैसे मुद्दों पर खुलकर सामने आना चाहिए।
दलितों पर हो रहे अत्याचारों पर भी अपनी बेबाक और निष्पक्ष बात रखनी चाहिए। ओबीसी, माइनॉरिटी और दलितों के आरक्षण के लिए लड़ाई लड़नी चाहिए।
जय हिंद
अकरम हुसैन क़ादरी

5 टिप्‍पणियां:

  1. मुलायम सिंह यादव जी के बाद अखिलेश यादव जी प्रयास में लगे हैं किंतु सामाजिक न्याय आरक्षण पर वो अपनी स्पष्ट टिप्पड़ी नही कर पा रहे है ।।
    आज के दौर में जहाँ बसपा 15 एवं 85 के नारे से हटकर अपनी दुर्गति करवा ली है वैसे ही यदि समाजवादी योद्धा नही चेते तो निश्चित ही अन्याय एवं अत्याचार का ग्राफ बढ़ता ही जाए । आपका आलेख सटीक विश्लेषण करते हुए वास्तविक विचारधारा से जुड़े रहने के लिए प्रेरित करता है ।
    साधुवाद

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  4. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीयअध्यछ अखलेश यादव एक विपछ का अच्छा रोल अदा नही कर रहे है वो सिर्फ यही बोलते रहते है कि मेरा मानना है कि ये ऐसा होना चाहिए या फिर ऐसा होना चाहिए बस यही बोलते रहते है उनको विपछ पर आक्रमण हो कर अपना पक्छ रखना चाहिए ।
    वो कभी किसी मुद्दे को सही से नही भूना पा रहे है चाहे वो दलितों का मुद्दा हो या फिर किसानों का मुद्दा हो वो उसको सिर्फ सामान्य नागरिक की तरह देख कर अपना विचार रख देते है ।इससे ससमाजवाद को बहुत नुकसान हो रहा है । वो बात अपने ठी ही कही कही है अकरम भाई की वो दिन दूर नही जब समाजबादी पार्टी भी बसपा बन जाएगी फिर बुआ ओर बतीजा भी मिल कर 2022 में भाजपा को नही हरा पाएंगे । इसलिए इनको विपछ का सही से इस्तेमाल करना चाहिए चाहे वो समाजबादी हो या बसपा हो दोनों विपछ में राह कर मोजूदा मुख्यमंत्री पर प्रहार करते रहे जब वो अपने वादे से हटे या धर्म की राजनीति करें
    जय भारत
    नोट - भैया हिंदी लिखने में थोड़ा हाथ तंग है इसलिये गलती के लिए माफी चाहते है

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