बुधवार, 11 अक्तूबर 2017

मुद्दों पर भावुक मुद्दे थोपने की कला

'मुद्दों पर भावुक मुद्दे थोपने की कला'
     अकरम हुसैन क़ादरी
वर्तमान राजनीति इतने बुरे दौर से गुज़र रही है जिसमे समस्याएं ही समस्याएं है लेकिन उनका संज्ञान ना ही पक्ष ले रहा है और ना ही विपक्ष, जबकि मानव की मूलभूत समस्याओं को पक्ष रखे या ना रखे लेकिन विपक्ष को अपनी राजनीति को बचाने के लिए मुद्दों के हिसाब से प्रहार करने चाहिए हर छोटे मुद्दे को बड़ा बनाकर प्रस्तुत करना चाहिए जिससे सत्तासीन सरकार उस मुद्दे पर अपना ध्यान लगाएं और जल्दी से जल्दी समाधान हो सके, लेकिन देश का दुर्भाग्य है कि ना ही देश मे मजबूत विपक्ष बचा है और ना ही मीडिया सही से अपना उत्तरदायित्त्व निभा पा रहा है विपक्ष और मीडिया खानापूरी करके मुद्दों को भटकाने का भी प्रयत्न करता है जिससे सत्तासीन सरकार सवालो से बच जाती है और विपक्ष कमज़ोर पढ़ जाता है ।
किसी भी लोकतंत्र  को चलाने के लिए चारो स्तम्भो को अपना काम करना चाहिए जिससे देश की सत्ता रूपी चारपाई को सही ढकेला जा सकता है अब तो ऐसा प्रतीत होता है चारपाई का एक पैर टूट चुका है और चारपाई वेंटिलेटर पर जा चुकी है जिससे देश का लोकतंत्र खतरे में आ गया है
विपक्ष की निष्क्रियता का ही परिणाम है जिसकी वजह से हर बड़े मुद्दे पर वो भावुक मुद्दे छोड़ते गए कार्पोरेट मीडिया भी कुछ ना कर सका,
जहां पर देश की समस्याओं की बात होनी थी वहां पर वो लव जिहाद, गाय, गोबर, मजनू स्क्वाड, नाम बदलने जैसी फ़र्ज़ी बातो में मीडिया और जनता को ढोते रहे है जिससे बेरोज़गारी अपने चरम पर पहुंच गयी, जीडीपी लगातार लुढ़क रही है, शिक्षा व्यवस्था चरमराने की कगार पर है स्वास्थ्य सेवाओं का हाल पिछले तीन महीनों से किसी से छुपा नही है, रेल मंत्रालय की रोज़ पटरी उतर जा रही है उधर नेता बता रहे है अगस्त में ज्यादा बच्चे मरते है मीडिया टीआरपी के लिए बाबा और उनके काले कारनामो को ज्यादा ही जगह दिए हुए जिससे जनता के मुख्य मुद्दों पर सरकारी ऑफिस में रखी फाइलों की तरह धूल चढ़ती जा रही है जिससे स्वास्थ्य व्यवस्था खराब हो रही है, बेरोज़गारी की वजह से अपराध के आंकड़े कम होने का नाम नही ले रहे है ।
अकरम हुसैन क़ादरी

1 टिप्पणी:

  1. मीडिया दलाल है विपक्ष में एक लालू यादव थे तो उनके पीछे सीबीआई लगा दी गई है माया मुलायम को sbi की धमकी से चुप बैठा दिया है विश्वविद्यालयों के युवा ही मोर्चा ले रहे हैं तो उन्हें दमनात्मक नीति से खत्म किया जा रहा है हकीकत में पहली बार विपक्ष खुद कठपुतली बना हुआ है । जनता, हताश और निराश है क्योंकि उसे दूर दूर तक मजबूत विपक्ष नही दिख रहा है जिस पर वह 2019 में भरोसा करे । मीडिया पत्रकारिता की जगह धन उगाही का जरिया हो गया है । ऐसे समय में यह आलेख सकारात्मक चिंतन को मजबूर करता है साथ ही देश के विपक्षी दलों को प्रत्येक मुद्दे पर चर्चा के लिए प्रेरित करता है ।
    हार्दिक बधाई

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