शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

उपभोक्तावादी संस्कृति को ढोती महिलाएं- डॉ. नमिता सिंह

उपभोक्तावादी संस्कृति को ढोती महिलाएं-डॉ. नमिता सिंह
आज अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग में जनवादी लेखक संघ, प्रगतिवादी लेखक संघ और जन संस्कृति मंच के संयुक्त तत्त्वाधान में मार्क्सवादी चिंतक, विदुषी स्त्री लेखन में अग्रणीय भूमिका निभाने वाली डॉ. नमिता सिंह जी की पुस्तक "स्त्री-प्रश्न" का विमोचन किया गया जिसकी अध्यक्षता समाजसेवी प्रोफेसर ज़किया अतहर सिद्दीकी और हिंदी विभाग के हरदिल अजीज़ अध्यक्ष प्रोफेसर अब्दुल अलीम  ने की जिन्होंने स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण काम किया है उन्होंने अपने अनुभवों को भी बांटा कार्यक्रम में पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की गयी सर्वप्रथम डॉ. जया प्रियदर्शिनी शुक्ल ने पुस्तक की उपयोगिता पर बोलते हुए 'स्त्री-प्रश्न' जैसे मुद्दे पर बात की और स्त्री के बारे में गहराई से बताया कि किस प्रकार  अनेक विद्वानों ने बताया था कि 21 वी सदी महिलाओ की सदी होगी लेकिन आज स्त्रियों की दयनीय स्थिति को देखते हुए वो एक तरह से उपभोग की वस्तु बन चुकी है जिसको जैसी आवश्यकता होती है वो उसको वैसे इस्तेमाल करता है और छोड़ देता है जो समाज के लिए एक कलंक है। इसमें कोई संदेह नही है कि प्रगतिशील मानसिकता ने स्त्री की प्रतिष्ठा को तो बढ़ाया है लेकिन देखने मे आया है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन है क्योंकि इसके गर्भ में दो मानसिकताओं, विचारधाराओं का टकराव है जिसकी वजह पूंजीवादी और सामंतवादी सोच है जिसने स्त्री को उपभोग की वस्तु बनाने में अहम भूमिका निभाई है जबकि पहले मातृसत्तात्मक समाज था लेकिन अब पितृसत्तात्मक समाज का बोलबाला है जिससे ना ही स्त्री स्वास्थ्य, कुपोषण, यौन हिंसा और ऑनर किलिंग जैसे मुद्दे पर कोई कुछ बोल पाता है ना ही उसको पूर्णतया न्याय मिलता है उसका सबसे बड़ा कारण स्त्रियों की राजनीति में बराबर की भागीदारी का ना होना भी है, समाज मे आज भी स्त्री को मासिक धर्म आने के समय उसको रसोई घर और घर मे बने मन्दिर में भी घुसने नही दिया जाता है जोकि संविधान में बराबरी के कानून की धज्जियां उड़ा रहा है, आजकल मध्यमवर्गीय परिवारों में लड़कियों को केवल स्टेटस मेन्टेन करने के लिए उनको थोड़ा बहुत शिक्षित किया जा रहा है जिससे उसकी शादी किसी अच्छे पढ़े लिखे लड़के से हो जाये और ससुराल में उसको ग्रहण कर लिया जाए।
इसी सिलसिले में हिंदी विभाग के अजय बिसरिया सर ने पुस्तक 'स्त्री-प्रश्न' पर विचार रखते हुए उपभोक्तावादी समाज मे किस प्रकार स्त्रियों का दोहन हो रहा है उस संदर्भ में विस्तार से समझाया कि आज किस प्रकार धनी लोगो ने पूंजीवादी व्यवस्था के चलते हुए विज्ञापन में बाजारवादी संस्कारो ने स्त्री का प्रयोग किया है, स्त्रियों पर संस्कृति के नाम पर धर्म को थोपा जा रहा है क्योंकि पूंजीवादी,सामंतवादी,उपभोक्तावादी समाज की यह पहली पसंद भी है, इन सबसे बचने के लिए अब आने वाली नई पीढ़ी को अन्तररजातीय, अंतर्धार्मिक विवाह करने होंगे जिससे स्त्रियों को अपनी पसंद से वर चुनने की पूरी छूट होगी और समाज मे निश्चित ही बदलाव आएंगे और संविधान भी इसकी इजाजत देता है अगर ऐसा होता है तो हम कह सकते है कि बंधे कदमो से ही लम्बी छलांग लगाई है।
उसके बाद डॉ. नामिता सिंह जी ने स्वयं की पुस्तक पर ज्यादा ना बोलते हुए चन्द बातो में भी बात खत्म कर दी उन्होंने कहा मानव समाज का विकास स्त्री पराधीनता का भी विकास है जिस प्रकार मानव ने विकास क्या है ठीक उसी प्रकार स्त्री पराधीनता ने भी अपने पांव पसारे है तथा वर्तमान में बनारस हिन्दू विश्वविद्यायल का मामला हमारे सामने है कि किस प्रकार से पितृसत्तात्मक समाज ने स्त्रियों से पढ़ने, लिखने, घूमने तक की आजादी को छिनने का षड्यंत्र रचा है और वो हमेशा औरतो को अपना ग़ुलाम बनाना चाहते है
कार्यक्रम में हिंदी विभाग अध्यक्ष हरदिल अजीज़ प्रोफेसर अब्दुल अलीम, प्रोफ़ेसर प्रदीप सक्सेना, प्रोफेसर आशिक़ अली, प्रोफेसर तसनीम सुहैल,प्रोफेसर रेशमा बेगम, प्रोफ़ेसर शम्भूनाथ तिवारी, प्रोफेसर कमलानंद झा, प्रोफ़ेसर समी रफ़ीक़, डॉ. जावेद आलम, डॉ. शाहवाज़ अली खान, डॉ. गुलाम फरीद साबरी, डॉ. राहिला रईस, नीलोफर उस्मानी के अलावा अनेक शहर के गणमान्य लोग मौजूद थे अंत मे प्रोफेसर आसिम सिद्दीकी सर ने धन्यवाद ज्ञापन किया,
कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. दीपशिखा सिंह जी ने किया ......
प्रस्तुति
अकरम हुसैन क़ादरी
शोधार्थी
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी
अलीगढ़

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