गुरुवार, 9 नवंबर 2017

न्यूरिया के नौजवानों से अपील - अकरम हुसैन क़ादरी

ना समझोगे तो नस्ले बर्बाद हो जाएंगी
भाइयों मैं किसी भी उम्मीदवार का नाही समर्थक हुँ और ना ही किसी का मुखालिफ मैं तो अपने कस्बे का एक छोटा सा आप जैसा इंसान हुँ, बस थोड़ा सा अलग सोच लेता हुँ इसलिए लोग तिरछी नज़रों से देखते है मुझे कस्बे की राजनीति से मतलब नही है लेकिन एक रिसर्च स्कॉलर ( तहक़ीक़) का स्टूडेंट होने के नाते मुझे बार बार अपने कस्बे की बर्बाद होती नस्लो के फ्यूचर (भविष्य) की थोड़ी चिंता होती है क्योंकि एक धड़कते दिल और जिंदादिल इंसान होने की यह पहचान भी है।
पिछले लगभग दस साल से बराबर देख रहे है और समझ भी रहे है जो न्यूरिया कभी ज़मीदारों की कही जाती थी आज वो मजदूरों, कारीगरों, दिहाड़ी, करने वालो की न्यूरिया बन चुकी है क्योंकि जितनी भी फैक्टरियां न्यूरिया में आई उसको हमारे पुराने नेताओ ने चकरपुर, खटीमा, या दूसरी जगह पर भेज दिया इसके अलावा बहुत से डिग्री कॉलेज, इंटरमीडिएट कॉलेज, स्कूल और कन्या विद्यालय आये लेकिन वो हमारे नेताओं की वजह से दूसरी जगह चले गए जिससे हमारा नुकसान पीढ़ी दर पीढ़ी चल रहा है जिसको शायद हम लोग सीरियसली नही समझ रहे है, जिस तरीके की लीडरशिप आज न्यूरिया में पनप रही है उसमें तो एक समझदार इंसान को अपनी आने वाली नस्लो का भला नही दिखता है,
सारी कमी हमारी मौजूदा लीडरशिप की ही नही है बल्कि हमारी जनता की भी कमी है वो आने वाले समय की मांग को नही समझ रही है जिससे उनके बच्चे मजदूर के मजदूर ही बन रहे है गुजरात, दिल्ली, देहरादून जैसे शहरों में मजदूरी करने के लिए मजबूर हो रहे है अच्छे और सस्ते स्कूल ना होने की वजह से अच्छी, किफायती और रोजगार के लिए कोई तालीम नही मिल पा रही है जिससे दिन वा दिन न्यूरिया आस पास के गांवों, कालोनियों से पिछड़ते जा रहे है, गरीबो के लिए एक सहारा मदरसा भी बहुत बुरे दौर से गुज़र रहा है जहां पर एक गैरतमंद इंसान कुछ नही कर सकता था तो वो अपने बच्चे को दीनी तालीम दे सकता था लेकिन मदरसे को बर्बाद करने में भी न्यूरिया की नई, पुरानी लीडरशिप ही जिम्मेदार है जिन्होंने वक़्त के साथ क़दम ताल नही किया जिसका खामियाजा आज गरीब और मिडिल क्लास फैमिली को भुक्तना पढ़ रहा है।
भाइयों आप सब लोगो से दरखास्त है कि अपने वोट को सोच समझकर दे किसी के नाश्ते, चाय, कॉफी, अण्डे, चने को देखकर ना दे।
कितने मासूम है आप लोग किसी भी इंसान को पांच साल अपना और अपने बच्चों का मुस्तकबिल (भविष्य) सौंप देते हो चन्द दिनों के नाश्ते, चाय, फलों में ज़रा समझो अगर पुरानी लीडरशिप अच्छी होती तो बहुत कुछ बचाया जा सकता था अब आने वाली लीडरशिप भी उसी मुहाने पर खड़ी है फैसला करने का वक़्त है आपका और आपके बच्चों के मुस्तकबिल का मामला है वोट करने से पहले अपने ज़मीर और दिल पर हाथ रखकर सोचना.......

"मेरा तरीक अमीरी नही फकीरी है।
खुदी को ना बेच गरीबी में नाम पैदा कर।।"
      अल्लामा इक़बाल

आपका छोटा भाई
अकरम हुसैन क़ादरी
रिसर्च स्कॉलर ( अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी )
फाउंडर - "अलीग्स वेलफेयर सोसाइटी न्यूरिया"

पत्रकार NDTV INDIA, कोहराम, लल्लनटॉप, मीडिया एस्केप, वोटरगिरी

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