शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

मरे नही चले गए 'नीरज' - अकरम हुसैन

मरे नही चले गए 'नीरज' - अकरम हुसैन
मरना और चले जाना यह दो बातें अलग अलग है एक आम इंसान मर जाता है, लेकिन एक रचनाकार, शायर, साहित्यकर्मी, मानवतावादी और बुद्धिजीवी कभी नही मरता क्योकि उसके किए हुए कर्म हमेशा ज़िन्दा रहते है, बल्कि यूं कहें वो इतिहास के सुनहरे पन्नो में हमेशा ज़िन्दा रहता है और पूरी इंसानियत की सेवा अपनी कलाकृतियों से करता रहता है।
गत शाम को एक दिल दहला देने वाली ख़बर मिली कि साहित्य जगत के पुरोधा पद्मश्री गोपालदास नीरज इस आभासी दुनियाँ से कूच कर गए है खबर तो सच मे बहुत हॄदय विदारक थी लेकिन जब कुछ समय बाद मानसिक स्थिति ठीक हुई तो दिल और दिमाग ने यह गवारा नही किया कि नीरज जी हमारे बीच नही है बल्कि दिमाग मे तुरन्त आया कि वो तो हमारे बीच अपने गीतों के माध्यम से हमेशा ज़िन्दा रहेंगे, और ज़िन्दा है बल्कि कुछ यूं  कहें कि उनकी आत्मा तो ज़िन्दा ही है केवल शरीर ही साथ छोड़ गया है वैसे भी गीता में श्रीकृष्ण जी ने कहा है कि 'आत्मा अजर और अमर' है।
अलीगढ़ आने के बाद गोपालदास नीरज जी से दो बार मिलना हुआ एक बार उनके घर पर तो दूसरी बार अमर उजाला के एक कार्यक्रम मे जिसमे उनके द्वारा बताए हुए इंसानियत के रास्ते हमेशा याद रहेंगे। क्योंकि उनके जीवन मे एक पर्याप्त अनुभव तो था ही उसके अलावा उन्होंने जीवन को कई उबड़-खाबड़ रास्तो से होकर गुजारा था तो वो उन्हें हमेशा प्रोत्साहित करता रहता था, ज़िन्दगी में कितना भी कठिन समय आया उन्होंने उसका डटकर सामना किया और साहित्य के साथियों को हमेशा इंसानियत की सीख दी.....उन्होंने शुरू में टाइपराइटर के रूप में भी काम किया, अध्यापक भी रहे जब वो मायानगरी पहुंचे तो सबसे बड़े गीतकार भी बने, लेकिन उन्होंने सब मोह माया को छोड़कर इटावा से लेकर मुम्बई तक की ज़मीन नाप ली, फिर भी वो अलीगढ़ जैसे शहर में आकर बस गए और साहित्य के लिए तत्तपर रहे, ज़िन्दगी के नो से ज्यादा दशक गुज़ारने के बाद भी उनमें किसी भी प्रकार का कोई घमण्ड, गर्व नही था बल्कि वो जिससे मिलते थे तो वो उनका मुरीद हुए बिना नही लौटता था ...

3 टिप्‍पणियां:

  1. सच है कोई भी अमर रचनाकार मरता नहीं हैं बस वह हमारे बीच से होकर गुज़र जाता है।

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  2. शुक्रिया सर एकदम सही कहा आपने

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