शनिवार, 4 अगस्त 2018

'अनुभव सिन्हा' की फ़िल्म 'मुल्क' मोहब्बत का पैग़ाम है- अकरम क़ादरी

एक ऐसा देश जहाँ अनेक धर्म, जाति, वर्ग, भाषा, संस्कृति, संस्कार, रीति- रिवाज़, परम्परा, तीज त्यौहार होने पर भी अनेकता में एकता की मिसाल है जिसको पूरी दुनियाँ मानती और समझती भी है, जो इस देश की अमूल्य धरोहर है। जिसके द्वारा यहां एक दूसरे को साथ चलने की परम्परा वर्षो पुरानी है, लेकिन फिर भी कुछ लोग अपने राजनैतिक महत्वाकांक्षाओ को पूरा करने के लिए एक लंबे समय से तोड़ने की कोशिश कर रहे है  जिससे उनको कुछ कामयाबी भी मिली है, वसुधैव कुटुम्बकम की परम्परा को तोड़ने के लिए उन्होंने सबसे पहले धर्म को अपना हथियार बनाया है जिससे इंसान को आसानी से तोड़ा जा सकता है और उसके प्रतिद्वंद्वी धर्म के खिलाफ ज़हर उगलकर किसी भी कम पढ़े-लिखे भोले भाले इंसान को बहला फुसलाकर वोट बैंक के साथ जोड़ा जा सकता है जिससे उस इंसान को महसूस होगा कि वो अपने धर्म को आगे बढ़ा रहा है जबकि सच तो यह है कि उसको नफ़रत की आग में झोंक कर उसका श्रद्धा के नाम पर वोट लेकर कुछ धर्म के षड्यंत्रकारी चंपक हो लेते है फिर कुछ समय बाद यह नफ़रत एक कारोबार में बदल जाती है, देश की मुख्य मीडिया जिसमे उनका बहुत हद तक साथ देती है वो हिन्दू-मुस्लिम डिबेट में रीति रिवाज़ो की चाशनी से इसको पक्का करती है जो उस भोले-भाले मासूम इंसान को लंबे समयतक लुटती रहती है वो उनको धर्म, श्रद्धा के नाम पर वोट देता रहता है जिससे भारतीय संस्कृति की महान परम्परा 'वसुधैव कुटुम्बकम' को बहुत बड़ा बट्टा लगता है। अंदर ही अंदर नफरत की ज़मीन तैयार हो जाती है कुछ समय बाद यही एक बड़ा ज्वालामुखी तैयार होता है, नफरत का ताप इतना बड़ा हो जाता है बात मॉब लिंचिंग तक जा पहुंचती है। फिर धर्म के नाम पर रोज़ इंसानियत का क़त्ल होता है एक आम इंसान रोज़ उससे दो-चार होता है। फिर भी वो खामोश ही रहता है क्योंकि उसको लगता है यह जो लोग करा रहे है बहुत शक्तिशाली लोग है वो कुछ भी कर सकते है दरअसल ऐसे लोगो ने धर्म से षड्यंत्र करके उस धर्म को बदनाम करने की जो कोशिश की है वो उनको साफ नजर भी आती है। लेकिन चाहकर भी कुछ कर नही सकते है।

इसी के मद्देनज़र देश की कला संस्कृति, मानवतावादी लोगो ने अपने अपने माध्यमो से आवाज़ उठाना भी शुरू की तो कुछ लोगो को आतंकवादी कहकर खामोश कर दिया कुछ लोग को धर्म का दुश्मन कहकर खत्म कर दिया तो कुछ को धमकियाँ देकर बर्बाद करने की बात कहीं जिससे उन मानवतावादी लोगो ने इन सबसे किनारा कर लिया और खुद की ज़िंदगी जीने लगे और कुढ़ने लगे जिसको चाहकर भी कुछ नही कह सकते ।
इसी बीच एक ऐसा निर्देशक, लेखक, कलाकर्मी अनुभव सिन्हा निकला जिसने इस मुद्दे को गहराई से समझा और ऐसी फिल्म को बनाया है जिससे लोगो के बीच जो नफ़रत बोई जा चुकी है उसको खत्म करने का एक साहसिक प्रयास किया और फ़िल्म को देखने वाले लोगो के दिमाग़ में वो सवाल उठाए जिससे उनको मालूम हो कि जिस रास्ते मे वोट बैंक की राजनीति धर्म की आड़ मे करने वाली राजनैतिक दलों के चक्कर मे फंसने वाले आम इंसान को मालूम हो कि आखिर वो कहाँ जा रहा है जिससे उसको और उसके बच्चों का जीवन इस नफ़रत की आग से बच सके, इसलिए अनुभव सिन्हा ने ' मुल्क' जैसी फ़िल्म बनाई है ।
अनुभव सिन्हा का इस फ़िल्म को बनाने की केवल एक ही मंशा है वो है प्रेम, मोहब्बत, इंसानियत फिर से समाज और देश मे फैल सके जिससे वो देश के लोग आगे बड़े और अपना भविष्य बचा सके वरना देश को तोड़ने वाली शक्तियां इसकी खूबसूरती को तहस-नहस कर देंगी ...आज अपने देश को बचाये रखने की ज़िम्मेदारी हर हिंदुस्तानी की है चाहे वह किसी धर्म, जाति वर्ग का ही क्यो ना हो.....
जय हिंद

अकरम हुसैन क़ादरी

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपने इस बहाने सत्ता के भूखे और नंगे मौजूदा फ़ासीवादी तत्वों के एजेंडे व उनके चरित्र को बहोत ही ख़ूबसूरत ढंग से बेनकाब किया है। देश और इंसानियत के समस्त हित में ऐसी ही आवाज़ उठाते रहें।

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