शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

क़ुरान में क्यों है बार-बार 'कुल'- अकरम क़ादरी, कमरुल इस्लाम


दुनियां भर के लगभग सभी मुसलमान क़ुरान पड़ते है, कुछ उसकी तफ़्सीर समझते भी है, दुनियाँ में जितनी भाषाओं में क़ुरान मजीद की तफ़्सीर हो सकती है, तो वो हाज़िर भी है फिर भी सब भाषाओं में क़ुरान की महत्ता को बताया गया है।
अरबी के बाद ही उन अलग अलग भाषाओं की तफसीर में 'कुल' शब्द को बताया और समझाया जा सकता है, आखिर क्या वजह है कि अल्लाह क़ुरान में बार बार 'कुल' शब्द पर ज़ोर दे रहा है अपने फरमान को अपने प्यारे आखिरी नबी हुज़ूर सल्लाहों अलैही से कहलवा रहा है जबकि वो खुद भी कह सकता है, यह तो सब मानते और जानते भी है हुज़ूर अकरम सल्लाहों अलैहि वसल्लम उसके प्यारे नबी और आखिरी संदेशवाहक भी है, अल्लाह ने उनको अपने नूर से पैदा भी किया है, उनको इल्म ए ग़ैब से भी  नवाज़ा है जिसको एक आम इंसान को समझ मे आना मुश्किल ही नही नामुमकिन सा लगता है क्योंकि क़ुरान की तफ़्सीर में इसलिए ही जो अल्लाह को कहना था वो अपने नबी से कहलवाता है कि ऐ नबी आप कह दीजिये आखिर क्या वजह है वो अपने आखिरी नबी से ही कहलवा रहा है क्या उसको भी किसी वसीले की ज़रूरत पेश आ रही है (नाओजबिल्लाह) लेकिन फिर भी वो अपने प्यारे नबी के द्वारा ही हर बार को कहलवा रहा है इसका मतलब सीधा है कि हमे वसीले की ज़रूरत होती है, बेशक अल्लाह हमे 60 मां से ज्यादा प्यार करता है। जिस तरह से वो क़ुरान में बार बार 'कुल' का इस्तेमाल करके दुनियाँ और आलम ए इस्लाम को मैसेज दे रहा है कि 'वसीले' का इस्तेमाल करो जिससे आप दुनियाँ के साथ-साथ आख़िरत को भी समझ सको।
इसके वाबजूद भी कुछ मौलानाओं के हुज़ूर के बारे में कुफ़्रियात कलीमात का इस्तेमाल किया जिससे आने वाले वक्त में लोगो से हुज़ूर की मोहब्बत बड़ेगी या कम होगी यह सब वो सवाल है जिनसे हमे दो चार होना पड़ेगा ऐसे लोगो के नज़रिए को समझिए यह इस्लाम के खुले दुश्मन है  ।
प्रूफ के लिए कुछ फ़र्ज़ी मौलानाओं के अक़ाइद लिख रहा हूँ जिसको आप उनकी किताबो से समझ सकते है
उलेमा ए देवबंद की वो कौनसी
गुस्ताखी थी जिसकी वजह से उनपर
33 उलेमा ए हरमैन ने कुफ्र का फतवा दिया
नीचे पढ़े
वो कुफ्रिया अक़ीदे जिसकी बिना पर
इन चारो उलेमा ए देवबंद और इनके
कुफ्र पर शक करने वालो पर कुफ्र का
फतवा दिया गया था नीचे देखिए
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1) रशीद अहमद गंगोही ने अपनी
फतावा ए रशिदिया में लिखा के
अल्लाह तआला झूट बोल सकता है
( फतावा ए रशीदिया पार्ट 1 पेज 20)
( मआज़ अल्लाह )
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2) अशरफ अली थानवी ने अपनी
किताब हिफ्जुल इमान में लिखा के
" नबी ए करीम का इल्म ऐसा है जैसा
बच्चो पागलो और जानवरों को भी
होता है
( हिफ्जुल ईमान सफा 8 )
( मआज़ अल्लाह )
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3) कासिम नानोतवी ने अपनी किताब
तःज़िरुन्नस में लिखा के
अगर मोहम्मद सललल्लाहो अलैहि
वसल्लम के बाद भी अगर कोई नबी
आ जाये तो खात्मे नबूवत पर कोई
फर्क नहीं पड़ेंगा
( तःज्हिरुन्नस सफा 24 )
( मआज़ अल्लाह )
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4) खलील अहमद अमेठवी अपनी
किताब बारहिने ए कतीय में लिखा के
नबी सललल्लाहो अलैहि वसल्लम
से जयादा इल्म शैतान को है
( बारहिने कातया पेज 51-52 )
(मआज़ अल्लाह )
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इन गुस्ताखियो की वजह से
उलेमा ए हरमैन ने सन 1903 में ये
फतवा दिया के यह चारो गुस्ताख
काफ़िर है और इनके कुफ्र पर शक
करने वाला भी काफ़िर है।

रिसर्च स्कॉलर सय्यद कमरुल इस्लाम भाई की मदद से इस ब्लॉग को तैयार किया गया है...


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