बुधवार, 2 अक्तूबर 2019

गांधी और विनोबा के 'जय जगत' को सार्थक करना ही आचार्यकुल का मकसद - पुष्पिता अवस्थी

गांधी और विनोबा के 'जय जगत' को सार्थक करना ही आचार्यकुल का मक़सद- पुष्पिता अवस्थी

आचार्यकुल की स्थापना गांधी जी के प्रिय महाराष्ट्र की भूमि में जन्में आचार्य विनोबा भावे ने 1968 में की थी, जिसका मकसद 'वसुधैव कुटुम्बकुम' की परिभाषा को चरितार्थ करके देश दुनिया को अपना घर मानना है। आज भी लोग गांधी और विनोबा जैसी अभूतपूर्व आत्माओं को इसी दृष्टि से देखती है।
गांधी और विनोबा हमेशा देश और दुनिया को एक सूत्र में पिरोना चाहते थे वह केवल मानवतावादी संदेश के द्वारा ही सभी धर्मों को सम्मान के साथ विश्वबंधुत्व को मज़बूत करने के कर्णधार थे।
गांधी जी ने ही विनोबा को विनोबा नाम दिया क्योंकि गांधी जी विनोबा के कार्यों से भलीभांति परिचित भी थे कि किस प्रकार विनोबा सामाजिक कार्यों में संलग्न है और अपना सबकुछ छोड़कर मानवता के कार्यो में तल्लीनता से लगे है विनोबा के भूदान आंदोलन को कौन नही जानता जिसने देश को हर तरह से मज़बूत करने के लिए आचार्यकुल का निर्माण किया जिसमें देश-विदेश के बुद्धिजीवी मानवता के पैग़ाम के साथ गांधी और विनोबा की सांस्कृतिक विरासत को आगे लेकर चले और विनोबा के जय जगत के नारे को केवल नारा ही ना बनाये बल्कि उसको सार्थक करने के लिए भी प्रयासरत रहे।
प्रोफ़ेसर पुष्पिता अवस्थी ने जबसे आचार्यकुल की अध्यक्षता का पद ग्रहण किया है तबसे वो विनोबा के सपनो को साकार करने के लिए देशभर में सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लगी है लोगो को इस साम्प्रदायिक माहौल में भी गांधी और विनोबा के भारत को बता रही है जिससे देश मे विश्वबंधुत्व की व्यार बहने लगे हम सभी ऐसे दंशों से बच जाए जिससे समाज को हानि होती हो और दुनिया के सामने एक उदाहरण पेश करे कि इस देश मे अनेकता में भी एकता आज तक कायम है, लोगो को मालूम हो कि यह देश आज भी गांधी और विनोबा की साझी विरासत का देश है।
जिस प्रकार से विनोबा ने निर्भय, निष्पक्ष, निर्बेर रहने की सीख दी है उसपर तभी अमल हो सकता है जब हम सच्चे हो और हमारा दृष्टिकोण पूर्णतयः मानवतावादी हो ।
वर्तमान समय में विनोबा के इन विचारों की प्रासंगिकता और अधिक बढ़ जाती है जब देश इस प्रकार के बुरे दौर से गुज़र रहा है। आपसी प्रेम भाव खत्म होने की कगार पर है मानवता शून्य पर पहुंचने वाली हो, साम्प्रदायिकता चरम पर फैल रही हो ज्यादातर नेता भृष्टचार की सीमाएं लांघ चुके हो ....ऐसे कठिन समय मे गांधी और विनोबा की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। गांधी विनोबा के विचारधारा को पढ़ने का ही वक़्त नही है बल्कि उसको आत्मसात करने का समय है। भारत निर्माण में मेहनत से लगने का समय है देश को बचाने का समय है......

जय जगत
जय हिंद
जय भारत

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