सोमवार, 11 मई 2020

थर्ड जेण्डर की पीड़ा को संवाद कायम करके कम किया जा सकता है - डॉ. रमाकान्त राय

थर्ड जेण्डर की पीड़ा को संवाद कायम करके कम किया जा सकता है- डॉ. रमाकान्त राय

लॉकडाउन के चलते सभी प्रकार के साहित्यिक क्रिया कलाप रुक जाने से टेक्नोलॉजी ने उन क्रिया कलापों को ज़ारी रखने के लिए वरदान दिया है, फिर समय भी तो कभी रुकता नही है। निश्चित ही इस महामारी का अंत होगा। साहित्य जगत की चर्चित "वाङ्गमय त्रैमासिक हिंदी" पत्रिका के माध्यम से दस दिवसीय व्याख्यान माला के अंतर्गत आज "थर्ड जेंडर और हिंदी उपन्यास" विषय पर वाङ्गमय त्रैमासिक हिंदी पत्रिका के फेसबुक पेज से लाइव कार्यक्रम में डॉ. रमाकान्त राय ने अपने विचार रखे। उन्होंने सबसे पहले किन्नर समुदाय के नामकरण के बारे में विस्तृत चर्चा की। उन्होंने कहा कि हिन्दी समाज को इस समुदाय के लिए अधिक मानवीय, मौलिक और गरिमायुक्त संज्ञा तलाशनी होगी। उन्होंने इस समुदाय पर लिखे गए अनेक साहित्यिक रचनाओं में से सबसे मजबूत विधा उपन्यासों का विवेचन किया। उन्होंने बताया कि किस प्रकार से किन्नरों की दशा, उनकी सामाजिक स्थिति, उनकी समस्याएं आदि को उपन्यासों के माध्यम से रचनाकारों ने उठाने का प्रयत्न किया है। डॉ रमाकांत राय ने स्थापना दी कि हिन्दी में थर्ड जेंडर समुदाय का विमर्श अन्य उत्तर आधुनिक विमर्शों की तरह आत्मकथा से नहीं, बल्कि उपन्यासों से आया। उन्होंने इस समुदाय से संबंधित सभी चर्चित उपन्यासों का ज़िक्र अपनी वार्ता में किया तथा निष्कर्षतः कहा कि किन्नर समाज की पीड़ा को अगर कम किया जा सकता है तो उसके लिए उनसे संवाद ज़रूरी है। उनके सुख दुःख में शामिल होकर इन दंश को कम किया जा सकता है। उन्होंने रेखांकित किया कि ज्यादातर उपन्यासों में मिलता है कि बचपन में ही इस समुदाय का व्यक्ति सबसे पहले अपने माँ-बाप और खून के रिश्तों से ही प्रताड़ित किये गया है। इस लिहाज से उनकी पीड़ा कितनी अधिक होगी, उसके बाद महन्त, माई जैसे गद्दीनशीन प्रथा में आकर भी उनको अपने पेट की आग को बुझाने के लिए बधाई लेंने जाना पड़ता है। इस तरह उनका जीवन संघर्षों की अकथ कथा है।
अपने वक्तव्य में डॉ. रमाकान्त राय ने एक बहुत ही विचारणीय बात कही कि किन्नर समाज अपने सदस्य का अंतिम संस्कार रात में करता है। उन्होंने विभिन्न संदर्भों से बताया कि उनको रात में ही अंतिम क्रिया के लिए क्यों लाया जाता है और दूसरे किन्नर उनके शव को जूते-चप्पल मारते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि अगले जन्म में इस दुनिया मे इस योनि में नहीं आना होगा। इस अंतिम संस्कार की प्रविधि से आप उनके जीवन के संघर्ष और चुनौतियों को समझ सकते हैं। 
इस फेसबुक लाइव कार्यक्रम को देश-विदेश के अनेक बुद्धिजीवी लाइव देख रहे थे।  इसका उद्देश्य थर्ड जेण्डर विषय पर आम पाठकों और लेखकों की मानसिकता में बदलाव लाना भी था।
फेसबुक लाइव मे 'गुंजन' पत्रिका के संपादक लवलेश दत्त, 'अनुसंधान' पत्रिका की संपादक डॉ. शगुफ्ता नियाज़, एएमयू हिंदी विभाग के प्रोफ़ेसर शम्भुनाथ तिवारी, डॉ. शमीम, रजनी गुप्ता, डॉ. ए. के पाण्डेय, प्रिंसिपल तनवीर अहमद, प्रवासी कथाकार अर्चना पैन्यूली, शैल अग्रवाल, तेजेन्द्र शर्मा, विकास प्रकाशन, कानपुर के पंकज शर्मा, मनीषा गुप्ता तथा वाङ्मय पत्रिका के सहसंपादक अकरम हुसैन के अलावा देश विदेश से लगभग 2500 लोगों ने सुना और 100 से ज्यादा लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया भी दी।

https://youtu.be/VimZNhwUhgI
सुनिए वाङ्गमय त्रैमासिक हिंदी पत्रिका व्याख्यान माला के अंतर्गत थर्ड जेण्डर समाज और हिंदी उपन्यास -  डॉ. रमाकान्त राय
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