खानकाहों का नाम आते ही दिमाग़ में कुछ पुराने ज़माने के सिस्टम या निज़ाम कौंधने लगता है महसूस होता है कि यह सिस्टम पूरी दुनिया मे कहाँ-कहाँ लागू होता है । दरअसल खानकाह का मतलब होता है-आश्रम , यह संस्कृति का शब्द है और इसका देशज नाम मठ है ,जिसको उर्दू में खानकाह कहते है। खानकाह ऐसी जगह है ,जहां अल्लाह के नेक बंदे आम लोंगों को सीधा रास्ता दिखाते हैं और दुनिया से दुत्कारे हुए लोगों को भी गले लगाते हैं। इन खानकाहों का मकसद बहुत विराट और विशाल है ,जिसको मौजूदा दौर में समझना जरूरी है क्योंकि आजकल मारकाट, लूटपाट अपने चरम पर आ चुकी है ।पेट की भूख कहे या फिर अपनी ज़रूरतें पूरी करने की कोशिश या आजकल ऐश और लक्ज़री ज़िन्दगी बिताने के लिए इंसान को वक़्त ने इस दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है कि वो चन्द सिक्को के लिए किसी की जान लेने पर आमादा हो जाता है। आज की जीवन-शैली ने इंसान के अंदर खुदग़रज़ी को बढ़ावा दिया है। पहले दौर में ऐसा बहुत कम था क्योंकि लोग एक दूसरे की मदद करते थे ख्वाहिशें कम थी लेकिन एहसास बहुत था, लोग दूसरे के दुख दर्द को महसूस करते थे, एक दूसरे से मोहब्बत बहुत थी, एक दूसरे में ग़म में लोग मर जाते थे क्योंकि मोहब्बत बहुत थी आपस मे अंडरस्टैंडिंग लाजवाब थी, एक दूसरे की आंख का इशारा समझते थे अगर इन सब इंसानी फितरत के पीछे अगर कोई था तो वो थी उसकी वो तालीम, तहज़ीब, संस्कार, तरबियत जो उसको खानकाही सिस्टम से मिली थी। खानकाहों में कोई भी पीर-मुर्शिद कभी भी अपने मुरीदों को कर्त्तव्य या फिर जादू टोना नहीं सिखाता है बल्कि वो इस दुनिया मे खुदा से मिलाने की बात करता है, इंसानों के दरमियान एक मज़बूत रिश्ता कायम करता है, मोहब्बत की दावत देता है, इंसानियत का पैग़ाम देता है लेकिन आजकल कुछ लोग मुसलमानों और इस्लाम को बदनाम करने के लिए जो नफ़रत, मार काट, सुसाइड बॉम्बिंग, करते है वो कभी भी इस्लाम के सही मानने वाले नहीं हो सकते बल्कि वो धर्म के नाम पर फसाद फैलाने वाले हैं या फिर धर्म के षड़यंत्रकारी उनको ना ही किसी धर्म का पता है और ना ही उनकी शिक्षाओं का, आजकल जो भी इंसानियत को खत्म करने की साज़िश करें या फिर किसी इंसान की हत्या करे वो धार्मिक कतई नहीं है वो केवल धर्म से फ़ायदा उठा रहा है या उसके पीछे उनके सियासी मफाद हैं। आजकल राजनैतिक पार्टीयां भी अपने सियासी मफाद के लिए मज़हब को एस्तेमाल कर रही हैं।
ख़ानक़ाही निज़ाम में सबसे पहले व्यक्ति को इंसान बनना सिखाया जाता है जो अपने सर्वशक्तिमान खुदा, ईश्वर, बनाने वाले, गॉड से प्रेम तो करता ही है उसके अलावा उसके द्वारा बनाई गई कायनात और इंसानियत से मोहब्बत करता है इसलिए वो कभी भी इंसानियत को नुकसान पहुंचाने की सोच ही नहीं सकता।
आज पूरी दुनिया मे जो लंगर का सिस्टम चल रहा है वो सब सूफियों, दरवेशों के यहां ही होता है, आज भी जितनी पुरानी दरगाहे है ,वहाँ पर लंगर सबको तकसीम किया जाता है मतलब ग़रीबो, मज़दूरों, बेसहारो को खाना खिलाया जाता है जोकि दरगाह या खानकाहों में आने वाले ज़ायरीन, श्रुदालु अपनी इच्छा अनुसार देते है उनपर कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं होती है जबकि इस्लाम धर्म किसी भूखे को खाना खिलाने की बात पहले करता है, इंसानियत को फैलाने का पहले मशविरा देता है। इसी लंगर सिस्टम को आज पूरी दुनिया मे सिक्ख भाई लेकर गए जिन्होंने अपने धर्म को भूखे को खाना खिलाना माना है ।यह नैतिकता और मानवता का संदेश वो पूरी दुनिया मे लेकर जा रहे है जिनके लिए उनको धन्यवाद देना चाहिए।
कुछ वर्षों से जो लोग कम्युनिटी किचन की बात करते है वो यही लंगर सिस्टम है जो पूरी दुनिया मे चल रहा है जिसके माध्यम से सबको खाना मुहैय्या कराया जा रहा है। अगर हम अच्छे से इस लंगर सिस्टम को बढ़ावा दे तो पूरी दुनिया में कोई भी इंसान भूखा नहीं सोएगा बल्कि सबको खाना मिलेगा और जीवन जीने की सीख भी इसलिए आज पूरी दुनिया को सूफ़ी विचारधारा को आगे बढ़ाना चाहिए, खानकाहों को बढ़ावा देना चाहिए जिससे इंसानियत को बचाया जा सके।
एशिया में ही ऐसी दरगाहें है जहां पर आज भी लंगर चलता है गरीबो, मज़दूरों, बेसहारो को खाना खिलाया जाता है उसके साथ साथ उनको नैतिकता, इंसानियत से मोहब्बत की सीख दी जाती है। पूरी दुनिया मे इन सूफी संतों के मानने और मोहब्बत करने वाले लोग है जो सूफियों की बातों का अमल करते है कुछ लोग कहते है कि इन सूफियों की दरगाहों पर नहीं जाना चाहिए बल्कि वो बलपूर्वक इन लोगो को जाने से रोकते है जो बिल्कुल ग़लत है। इस्लामिक कानून के अनुसार क़ब्रो पर हाज़री देना और ईसाले सवाब करना चाहिए अर्थात जाना अच्छी बात है ना जाओ तो कोई बात नहीं है, और अगर क़ब्र किसी बरगुज़ीदा और अल्लाह के नेक बंदे की हो तो जाना बरकत और फैज़ान का बाइस है। उन के वसीले से दुआऐं क़बूल होती हैं। फिर इस्लाम की पवित्र पुस्तक क़ुरान शरीफ में भी वसीले का ज़िक्र है कहने का मकसद है कि अगर अल्लाह से नबियों, रसूलो और उसके मोहतरम वलियो के सदके में दुआ करें तो बेशक ही कुबूल होती है जैसे बाबा आदम अलैहि इस्लाम की दुआ हुज़ूर अकरम सल्लाहो अलैहि वस्सलम के सदके में क़ुबूल हुई थी ....हमे सूफिज्म की हिकमत, इंसानियत को समझना होगा फिर ही हम इंसानियत को सही मायनों में समझ सकते है......सूफिज़्म के बारे में बहुत सी ग़लत फहमियां पैदा करने की कोशिश की जा रही है और इसे इस्लाम के खिलाफ बताने की कोशिश की जाती है। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है.. सूफिज़्म इस्लाम के सही रास्ते की तरफ रहनुमाई करता है.. वही बीच का रास्ता जो इस्लाम का रास्ता है.. कामयाबी और निजात का रास्ता है।
सूफिज्म धार्मिक कर्मकांड की अपेक्षा सह्रदयता, बंधुत्व, मानवीय मूल्यों, सामाजिक आदर्श, कर्म, पवित्रता और सहिष्णुता पर बल देता है। यही कारण है कि पुराने समय से इन खानकाहों पर हर धर्म,जाति, सम्प्रदाय या समाज के लोग बिना किसी भेदभाव के जाते रहे हैं। यहाँ धर्म प्राथमिक नहीं अपितु मानवीय मूल्य को बढ़ावा दिया जाता है। यही कारण है कि मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिये सूफियों ने भारतीय कथाओं और नायकों को लेकर प्रेम काव्य लिखे। जैसे मुल्ला दाऊद का चंदायन,जायसी का पद्मावत, नूर ,शेख नबी का ज्ञानदीप
अकरम क़ादरी
Bhai bahut accha sandar
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