शनिवार, 11 जुलाई 2020

बहुत आसान नहीं है, माफिया डॉन बनना - अकरम क़ादरी

बहुत आसान नहीं है माफिया डॉन बनना- अकरम क़ादरी

संसार मे कोई काम आसान नहीं है। आखिर कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ता है इस विश्लेषण में मैं किसी दुर्दांत अपराधी, गुण्डे, मवाली, बदमाश, माफिया का समर्थन नहीं कर रहा हूँ बल्कि उसको इंसान से हैवान बनने में जो दिक्कत होती है उसका विश्लेषण करने का प्रयास कर रहा हूँ।
वर्तमान स्थिति में पूरे देश मे विकास दुबे नामक गैंगस्टर, माफिया का नाम चल रहा है। इसके पहले भी बहुत ख़तरनाक अपराधी हुए है और उन्होंने अपना एम्पायर खड़ा किया है। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि किसी भी अच्छे, बुरे एम्पायर को खड़ा करने के लिए बहुत मेहनत, कठिनाइयां और दुर्गम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है तब कहीं जाकर कोई अच्छा और बुरा इंसान बनता है। 
अच्छा इंसान बनना तो कठिन है लेकिन बुरा इंसान बनने उससे भी ज्यादा कठिन और मुश्किल है क्योंकि   सबसे पहले अपनी इच्छाओं को मारना पड़ता है, शुरुआती दौर मे कुटाई, पिटाई भी बेहद होती है वो चाहे कॉलेज में हो या फ़िर महाविद्यालय या विश्वविद्यालय लेवल पर हर कहीं बहुत परेशानियों को झेलना पड़ता है। फिर कहीं कोई इंसान की खाल में जानवर बनता है मनोवैज्ञानिकता के आधार पर उसकी संवेदनाएं बहुत हद तक मर जाती है कुछ रिश्ते को छोड़कर वो सब रिश्तों को पैनी दृष्टि से देखता है और उनपर हमेशा नज़र रखता है कि किसी भी प्रकार से यह व्यक्ति उसको नुकसान ना पहुंचा सके। 
पिछले दो सप्ताह से गैंगस्टर विकास दुबे का नाम सुर्खियों में है क्योंकि उसने उत्तरप्रदेश पुलिस के 8 जवानों को शहीद कर दिया है क्योंकि वो उसके गांव बिकरु दबिश देने गए थे जिसके बारे में उसको पहले से थाने के किसी मुखबिर ने सूचना दे दी जिसके कारण वो पहले से ही तैयार था और उसने जैसे ही पुलिसकर्मियों को देखा उसके गुर्गों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरूकर दी जिसमे कुछ पुलिसकर्मी शहीद हो गए कुछ को गम्भीर चोटे आयी। 
गैंगस्टर विकास दुबे के कारवां की शुरुआत छात्रराजनीति से हुई जब वो विश्वविद्यालय में अपने लड़को को चुनाव लड़ाता था उनको जिताता था तथा उसके माध्यम से अपने गैर जरूरी और इललीगल काम कराता था, ठेकेदारी, रंगदारी वसूलता था। राजनीति तो उसको विरासत में मिली थी। उसके पैतृक निवास में उसके दादा कई बार के प्रधान थे। विश्वविद्यालय छोड़ने के बाद जब घर पर आया तो उसने वहां पर भी अपना काम शुरू रखा गरीबो की मदद करना, उनके उल्टे-सीधे काम कराना जिससे गांव वालों को यह महसूस होता था कि विवेक दुबे का अपना रसूख है जिसके कारण उसके काम हो जाते है। इसके बाद वो जरायम पेशा, भूमाफ़ियागिरी जैसे कार्य मे हाथ आज़माता है, लड़ाई-झगड़े की ज़मीन को औने-पौने दामो में खरीदकर, कब्ज़ा करके बेंच देता है जिससे वो बहुत सारा धन इकट्ठा करता है तथा अपने गैंग में सब तरह के लोग धाक बन जाने के कारण जुड़ने लगते है वो ईमानदारी की कसौटी पर भी सबको मापता है एक बात याद रखना चाहिए 'जितना भी गन्दा काम होता है वो सब ईमानदारी से ही होता है' उसके बाद उनका इस्तेमाल करता है ऐसे ही छोटे-मोटे कार्यों में वो शामिल रहता है उसके बाद 2001 में वो भाजपा के दर्जा प्राप्त मंत्री को पुलिस थाने में मौत के घाट उतार देता है जो सच मे बहुत ही भयानक घटना होती  है, लेकिन उससे ज्यादा ही बड़ी ट्रेजेडी यह है कि थाने में मर्डर करने के बाद भी कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता क्योंकि न्यायपालिका अधिकतर गवाहों पर चलती है और जब गवाह ही किसी षड्यंत्र के तहत पलट जाए तो न्यायपालिका का कोई मतलब नहीं रह जाता है और अपराधी आराम से बच निकलता है। सोचने वाली बात यह है कि इस दुर्दांत अपराधी ने इतना रसूख और डर कायम कर लिया था जिस पुलिस को संविधान की रक्षा करते हुए अपराधी को सज़ा दिलानी थी वही पुलिस पलट गई और दुबे आराम से साफ बच निकला जिससे विकास का हौसना बड़ा उसने उसके बाद भी अनेक बुरे व्यसन किये, कुलमिलाकर उसके खाते में 60 केस हो गए जिससे कुछ अतिसंवेदनशील क्राइम भी थे। जिसमे उसको बचना भी नहीं था। लेकिन राजनेताओ ने खुद को बचाने और गुंडे पालने के शौक ने उनको बचाये रखा होता है यह सब जानते है इस समय जो गुण्डई का कठिन समय था वो गुज़र गया था उसके पास पैसों के साथ साथ राजनैतिक घरानों में भी पैठ बढ़ गयी थी वो सारे काले कारनामे करने या करवाने के बाद अपने आकाओं की गोद मे बैठ जाता रहता होगा। 
जो पुलिस, राजनेता उसको बचाते थे अब उसने पुलिस से ही पंगा ले लिया जो उसको बहुत महंगा पड़ गया। जिससे उज्जैन में गिरफ्तार होने के बाद कानपुर के पास आकर उसको एसटीएफ ने मौत के घाट उतार दिया लेकिन जब उसके गांव वालों का इंटरव्यू लिया गया तो उन्होंने विकास दुबे को अपना मसीहा बताया। यह भी सच है कि जितने भी अपराधी, गुण्डे, मवाली, बदमाश, भूमाफिया अभी तक  हुए है वो अपने गांव, कसबे वालो की बहुत मदद करते है जैसे वीरप्पन स्वयं कई गांव वालों को रोज़ी, रोटी देता था, अब भी कई गैंगस्टर ऐसे है जो गरीबो की बहुत मदद करते है लेकिन धंधे उनके काले ही होते है यह मामूली मदद ही उनको बड़ा नेता, मसीहा बनाती है और उनका रुतबा कायम रहता है वो समय समय पर गांव वालों दिक्कतों को चुटकियों में दूर कर देते है इसलिए उनको गांव के लोग मसीहा समझते है उनके साथ रहते है उनको मदद करते है जब भी ज़रूरत होती है तो उनको बचाने का प्रयास करते है जिससे वो गैंगस्टर की वफादारी वाली नज़र में आ जाते है और उसका आने वाले वक्त में फ़ायदा उठाते है। 
यह सच है कि गुण्डों को नेता, ही पालते पोषते है और उनका प्रयोग अपने काम के अनुसार करते है। 
आज के नोजवानो को सोचना चाहिए कि गुण्डा बनने के लिए सबसे पहले अपने अंदर का इंसान मारना पड़ता है फिर रिश्ते, नातों की भी कोई अहमियत नही होती है जितनी कठिनाई और दिक्कत इस काम मे है उससे कम दिक्कत और परेशानी बड़ा अधिकारी बनने में है। इसलिए इंसान बनिये इंसानियत की सेवा कीजिये

अकरम क़ादरी
फ्रीलांसर एंड पॉलिटिकल एनालिस्ट

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