बुधवार, 5 अगस्त 2020

नई शिक्षा प्रणाली से कैसे पैदा होंगे शास्त्री और कलाम- अकरम क़ादरी

नई शिक्षा प्रणाली से कैसे पैदा होंगे शास्त्री और कलाम - अकरम क़ादरी

देश में एक लंबे अरसे के बाद नई शिक्षा नीति आई, लेकिन इसमें सबकी प्रतिक्रियाएं अलग-अलग नज़र आई. कुछ सत्ता के लोभी लोगों ने इसको बग़ैर किसी विश्लेषण एवं दूरदृष्टि के अद्वितीय घोषित कर दिया तो कुछ विपक्षियों ने हल्के-फुल्के अंदाज़ में विरोध किया लेकिन हकीकत कोई भी सामने नहीं रख सका. इस दौर में जहाँ एक तरफ़ वैश्विक महामारी (दुनियावी वबा) है जिसकी वजह से सड़कें सूनी है. उन पर जनपक्ष के लोगों का विचरण नहीं हो रहा है. कोई भी कुछ बोलने को राज़ी नहीं है. फिर भी ज़्यादा ना लिखते हुए चन्द बातों की तरफ ध्यान दिलाना चाहूंगा कि यह जो शिक्षा नीति है, इससे शिक्षा का बाज़ारीकरण हो रहा है जिसको देश के बड़े-बड़े पूंजीपति चलाएंगे, जिसके कारण देश के गरीब, मज़दूर, किसान, आदिवासी, दलित और 'सलीम' पंचर वाले क़ा बच्चा नहीं पढ़ पायेगा क्योंकि मुझे लगता है आत्मनिर्भर बनाने के चक्कर मे शिक्षा को तीन हिस्सों में विभाजित कर दिया गया है जिसमें रिसर्च यूनिवर्सिटीज को स्वायत्तता प्रदान की गई है जिसका सीधा मतलब पूंजीवाद से है जिसको अंग्रेज़ी में फाइनेंशियल ऑटोनोमी कहते है इसके तहत किसी भी यूनिवर्सिटी को सुचारू रूप से चलाने के लिए अपने ख़र्चों को खुद उठाना होगा जिससे जो शिक्षा गरीबों, दबे, कुचलों को मिल रही थी शायद वो ख़त्म हो जाएगी, उसकी जगह पर केवल अमीर के ही बच्चे पढ़ सकेंगे और "गुदड़ी के लाल" वाली कहावत समाप्त हो जाएगी. फिर जो लाखो रुपये में रिसर्च या पढ़ाई करेगा तो वो क्यों ना ज़्यादा पैसा कमाने की बात करेगा जिसके लिए वो चित-अनुचित सारे काम करेगा, प्राइवेटाईज़ेशन को बढ़ावा मिलेगा. पब्लिक फंडेड यूनिवर्सिटीज़ को बंद कर दिया जाएगा. फिर अगर आपके पास पैसा होगा तो आप पढ़ाइये वरना जो मेहनत मजदूरी बाप करता था वही मेहनत मज़दूरी बच्चा करेगा जिससे देश का असली टैलेंट मारा जाएगा. नेपोटिज़्म और फ़ेवरटिज़्म को बढ़ावा मिलेगा. 
जिस प्रकार से एक गरीब मछुआरे का बेटा साइंटिस्ट बनकर राष्ट्रपति  कलाम बन गया, एक गुदड़ी का लाल "लाल बहादुर शास्त्री" देश का प्रधानमंत्री बन गया, एक चाय वाला भी प्रधानमंत्री बन गया तो क्या आने वाले समय में यह सोचा जा सकता है- जब शिक्षा महंगी हो जाएगी हम ऐसे साइंटिस्ट, राजनेता, उद्यमी, पब्लिक सर्वेंट पैदा कर पाएंगे जो देश को ख्याति प्रदान करे, जिससे देश विकास कर सके, शायद बहुत मुश्किल है फिर भी नामुमकिन नहीं है क्योंकि जो खुशबू होती है वो बाहर ज़रूर आती है. कुछ परेशानियां तो महसूस होती है लेकिन संघर्ष का फल बहुत अच्छा होता है. ऐसे प्रतिभावान लोग अपने दादा, परदादा, बाप की संपत्ति बेचकर शिक्षा ग्रहण करेंगे और  कोशिश करेंगे कि दूसरे लोगो के बराबर आ सके. देश में जितने भी मोस्ट सक्सेसफुल लोग हुए हैं वो ज़्यादातर गरीब, मज़दूर ही रहे है चाहे वो कोई भी हो इस शिक्षा नीति से मुझे नहीं महसूस होता है. ऐसे लोगों को बढ़ावा मिलेगा बल्कि इनके हौंसलो को कम किया जाएगा. इनको शिक्षा की पहुंच से दूर रखकर वो लोग सत्ता पर काबिज रहेंगे क्योंकि बाबा अम्बेडकर जी ने कहा था "शिक्षा वो शेरनी का दूध है जी पियेगा वो शेर की भांति दहाड़ेगा" जब वो पढ़ेगा ही नहीं तो बोलेगा कहाँ से फिर एक समय ऐसा आ जायेगा कि वो स्वयं को ज़िंदा रहने को ही बड़ी उपलब्धि मानकर ख़ामोश रहेगा. डेमोक्रेसी का धीरे-धीरे गला दबा दिया जाएगा. सत्ता में बैठे लोग हमेशा उस कुर्सी का मज़ा लेंगे. गरीब, मज़दूर, किसान, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक केवल मेहनत करेंगे और दो वक्त की रोटी का इंतेज़ाम करते रहे जाएंगे.

मुझे उमीद थी कि जब नई शिक्षा नीति आ रही है तो कुछ अच्छा होगा उसमे देश को फ्री शिक्षा दी जाएगी जो के.जी. से लेकर पीएचडी तक होगी क्योंकि शिक्षा लेना एक फंडामेंटल राइट के तहत आता है लेकिन यहां बहुत से अधिकार पहले ही छिन चुके है अब व्यापारी बनाने की कोशिश हो रही है.

स्कूल के मुख्य दरवाजे पर लिखा देखता हूँ "शिक्षार्थ आइये, सेवार्थ जाइये" शायद वो अब हो जाएगा बाज़ारीकरण में आइये, व्यापारी बनकर जाइये" इससे सामाजिकता को तहस-नहस किया जा सकता है। 
सामाजिक बन्धुता को नुकसान पहुंच सकता है। देश की शिक्षा व्यवस्था को व्यापारीकरण से रोकना चाहिए पूंजीवाद जो शिक्षा व्यवस्था पर गिद्ध की तरह नज़रे गड़ाए बैठा है उसके मंसूबो को खत्म करना चाहिए। इसका उदाहरण एक वो यूनिवर्सिटी है जो अभी तक ज़मीन में आई ही नहीं है और उसको "यूनिवर्सिटी ऑफ एमिनेंस" का दर्जा मिल चुका है। लाखो करोड़ो रूपये उसको सत्ताधीशों ने दे दिए है क्या वो लोग गरीब, मज़दूर, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यकों के साथ साथ महिलाओं को फ्री में शिक्षा दे पाएंगे। जबकि अज़ीम प्रेमजी ने शिक्षा के विस्तार के लिए पूरे देश मे ऐसे फैलाया है कि उनके वालंटियर सरकारी स्कूलों में जाकर पढ़ाते है, गरीबो की मदद करते है कोई उनसे पैसा नहीं लेते है। क्योंकि वो शिक्षा को आम करना चाहते है हर गरीब के बच्चे को मजबूत आधार देना चाहते है जिससे देश नए आयाम स्थापित करे और विकास के पथ पर अग्रसर हो सके।
जय हिंद

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