गुरुवार, 13 अगस्त 2020

अवाम की ज़ुबान थे, राहत इंदौरी - अकरम क़ादरी

अवाम की ज़बान थे, राहत इंदौरी- अकरम क़ादरी

बहुत से शायर, कवि गुज़रे है, जिन्होंने समसामयिक राजनीति या मुद्दों पर खुलकर बोला, लिखा है और जो बोला वो कड़वा सच भी था लेकिन कभी सत्ता वालो ने उनके साथ अमानवीय व्यवहार नहीं किया बल्कि उनसे सीख लेकर अच्छा करने का प्रयास किया, अगर अच्छा नहीं कर पाए तो खामोश रहे लेकिन कभी कुतर्क नहीं किया उनको जेलों में नहीं पहुंचाया उनपर संगीन धाराएं नहीं लगाई बल्कि आलोचना (तनक़ीद) को सिर माथे पर लेकर उनके सजेशन को समझा वाद-विवाद हुआ, कुछ अच्छा निकल कर आया जिससे मानवता का लाभ हुआ।
 डॉ. राहत इंदौरी कबीर के मानिंद एक फक्कड़ शायर, जनमंच की कड़वी और सच्ची आवाज़, जनपक्ष का नायक, दुनियाभर के मुशायरों की जान, मिजाज़ से ज़िद्दी, मीडिया की बुज़दिली के आलोचक, मज़हब के दौर में उसकी पहचान की राजनीति के घोर विरोधी।
राहत साहब इस देश मे धर्म निरपेक्षता के पक्षधर शायर थे, जो अपनी शायरी के माध्यम से शानदार कटाक्ष करते थे जिसको बहुत कम लोग समझते थे, जो समझते थे- वो बहुत हंसते थे और सोचने को मजबूर  भी हो जाते थे, जो कहना चाहते है वो कह चुके है और सत्ता के कानों तक उनकी आवाज़ पहुंच भी रही है जिसमे उन्होंने मशहूर शेर भी कहा है-
"हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते है।
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते है।।"
इस शेर के माध्यम से वर्तमान स्थिति को बताना चाहते थे कि आखिर किस तरह से एक अल्पसंख्यक तबके को परेशान करने की साज़िश चल रही है। फिर भी वो इस देश की मिट्टी से बेइंतेहा मोहब्बत का सबूत पेश करते करते थक गया है लेकिन बहुसंख्यकवाद की राजनैतिक लोलुपसा ने देश को बर्बादी की तरफ मोड़ दिया है। वो हमेशा मंच, मुशायरों के माध्यम से देश के सभी राजनेताओ को हमेशा देश की उन्नति का संदेश देते रहे क्योंकि एक शायर रास्ता ही बता सकता है लेकिन अमल करना या नहीं करना यह राजनेताओ पर होता है। आजकल राजनेता के कान में जूं भी नहीं रेंगती है क्योंकि उनको पता है कि उनका सेक्युलरिज्म से कुछ नहीं होने वाला है उन मुद्दों को हवा दो जिससे उनका मकसद पूरा हो जिसमे वो कटाक्ष लहज़े में कहते भी है- 
"जुगनुओं को साथ लेकर रात रौशन कीजिये।
रास्ता सूरज का देखो तो सहर हो जाएगी।।"
इस शेर के ज़रिए वो कहना चाहते है कि देश मे अल्पसंख्यक नाम के जो छोटे छोटे जुगनू है उनको भी साथ लेकर चलो जिससे उजाला निश्चित ही होगा लेकिन तुम जिस सूरज को साथ लेकर चल रहे हो उसका अस्त होना निश्चित है और उसके ज़्यादा पास जाओगे तो जल भुन जाओगे इसलिए नफ़रत का रास्ता छोड़ो, देश को मोहब्बत से जोड़ना सीखिए इसी संदर्भ में वो कहते है कि- 
"मिरी ख्वाहिश है कि आंगन में न दीवार उठे।
मिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले।।"
भारत मे मोहब्बत के पैरोकार के रूप में राहत साहब को पहचाना जाता है, वो चाहते थे कि सभी लोग इस देश मे उसी मोहब्बत से रहे जिस मोहब्बत से अंग्रेज़ो के ख़िलाफ़ लड़कर उनको भगाया था, भाईचारा, प्रेम, मोहब्बत देश का गौरव है इसको बचाकर रखिये वरना आने वाला समय बहुत खराब होगा आज देश के पड़ोसी चारो तरफ से हमारे दुश्मन बने हुए है क्योंकि उनको पता है हमारे देश मे राजनेता अंदरूनी कलह को ज़िंदा रखना चाहते है पहले वो धर्म के नाम पर बांटते है फिर जाति, वर्ण के नाम पर भेद करते है फिर भी अगर पेट नहीं भरता या अभिलाषा पूरी नहीं होती है, तो क्षेत्र के नाम पर बांटकर अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करते है। पहले के नेता देश को जोड़ने की बात करते थे, लेकिन आज के नेता देश को तोड़ने की बात करते है। बहुसंख्यक राजनीति को वरीयता देते है हर पार्टी विशेष ने अपने-अपने खांचे तैयार कर लिए है अगर उन खांचों पर कोई मुद्दा फिट बैठता है तो उस पर आवाज़ उठाते है वरना खामोश रहते है। जिससे देश की धर्मनिरपेक्ष आत्मा को आघात पहुंचता है देश का ताना-बाना टूटने का डर बना रहता है जिस पर वो स्वयं कहते है - 
"घर के बाहर ढूंढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है"
इस दौर में मतलबी अदब के लोगो को उन्होंने अपने तरीके से जवाब दिया है क्योंकि इस देश मे अनेक अदब वालो की संस्थाएं है- लेकिन बहुत कम संस्थाएं आज दलित, आदिवासी,महिलाओं और अल्पसंख्यकों की आवाज़ को उठाती है अपनी अदब बिरादरी को भी ललकारते हुए वो कहते है कि-
"हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे।
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते।।" 
साहित्य जगत से वो कहना चाहते है जिस प्रकार से वर्तमान समय मे ज्यादातर लेखक सहित्य से जुड़े लोग सरकारो की ग़ुलामी में लगे है देश की मानवता का चीर-हरण हो रहा है वो खामोश है उससे भी देश को बहुत खतरा है। हमे मिलकर एकजुट होकर देश को बचाने का प्रयास करना चाहिए सबको बिना किसी लाग-लपेट, धर्म-जाति, वर्ण-विभेद, ऊंच-नीच के देश की अखण्डता, एकता, संप्रभुता को बचाने का प्रयास करना चाहिए। 
एक जिंदादिल शायर जिसने अपना बचपन बहुत तंगियो में गुज़ारा फिर भी कभी किसी से कोई शिकायत नहीं की खामोशी से इतनी मेहनत की इस देश का नाम पूरी दुनिया मे रौशन किया हर जगह इसकी पहचान को ज़िंदा रखा लेकिन जब भारत मे मुशायरा पढ़ा तो इश्क-मोहब्बत की शायरी भी की और सियासी तंज़ का भी जादू बिखेरा जो आज भी प्रासंगिक नज़र आती है। 
"बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए।
मैं पीना चाहता हूं पिला देनी चाहिए।।"
हिंदुस्तान के महबूब शायर के बारे में ज़्यादा लिख पाना मेरे बस की बात तो नहीं है लेकिन कुछ बातों को बताने का प्रयत्न ज़रूर किया है यह वो अज़ीम शायर था जिसको उसके दुश्मन भी इस्तेमाल करते थे और दोस्त भी, राहत इंदौरी ने कभी तुकबंदी और मंचीय शायरों को ज़्यादा तरज़ीह नहीं दी क्योंकि जो लोग केवल तुकबंदी करके जनता की भावनाओ को बस में करके उनको केवल भावुक करदे वो इसके ख़िलाफ़ थे बल्कि वो चाहते थे कोई भी मुशायरे में आये तो वो कुछ सीखकर जाए जो उसको तमाम उम्र काम आए आजकल ज्यादातर मुशायरों में फालतू की भगदड़, हू-हल्ला बचा है इसलिए एक दो शायर के साथ उन्होंने मंच शेयर करना बंद कर दिया था क्योंकि उन मुशायरों में वही लोग होते थे जो भावुक होते है लेकिन जहां गम्भीर और सीरियस लोग मुशायरा सुनने आते थे वहां पर राहत साहब ज़रूर जाने की कोशिश करते थे। आखिर में हिंदुस्तान की मोहब्बत के लिए उन्होंने जो शेर लिखा है उसको इस देश के सभी वर्गों को समझना चाहिए 
"मैं मर भी जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना।
लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना" 
राहत साहब ने तमाम उम्र अवाम के बीच में  रह कर अवाम की अवाज़ उठाई, उन के शेर हिन्दुस्तान के बच्चे बच्चे की ज़बान पर रटे  हुए थे, पिछ्ले कुछ  दिनों  में  उनकी ग़ज़ल  का एक शेर बहुत चर्चा में  रहा,
बुलाती है मगर जाने का नई
ये दुनिया है इधर आने का नई
बाद में  इस ग़ज़ल  पर राहत साहब ने बहुत से शेर जोड़े,  जिन में ये शेर अवाम के अन्दर के हौसले को ज़िन्दा रखने के लिए सदियों  तक याद किया जाता रहेगा
वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर ज़ालिम से डर  जाने का नई

डॉ. अकमल पीलीभीती का यह शेर राहत इन्दौरी की अचानक मौत के भाव को प्रदर्शित करता है-
अब तेरे शहर में  रुकने की इजाज़त ही नहीं, 
जा बचाने को कोई रख्त-ए-सफ़र चाहता  है


अकरम क़ादरी
फ्रीलांसर एंड पॉलिटिकल एनालिस्ट

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत शानदार ढंग से आपने मरहूम डॉ राहत साहब की शायरी के अंदर छिपे हुए मर्म को उदहारण देकर समझाया है ।

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  2. इस तरह के किरफॉलिंड लेख इम्बकतत्व से पूर्ण अत्यंत यकिन्द्र होते है

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  3. अद्भुत लेखन शैली का उदाहरण है यह।

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