गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

यूज़ & थ्रो है आजकल की विचारधारा

यूज़ & थ्रो है आजकल की विचारधारा : मंगलेश डबराल

अलीगढ़। 'प्रोफेसर के. पी. सिंह मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट' के तत्त्वाधान में आयोजित मलखान सिंह सिसोदिया कविता पुरस्कार 2016 के उपलक्ष्य में कवि, आलोचक, शिक्षाविद् मंगलेश डबराल और ट्रस्ट की अध्यक्षा प्रोफेसर नमिता सिंह, पद्मश्री क़ाज़ी अब्दुल सत्तार साहब, उद्भावना पत्रिका के संपादक अजेय कुमार जी, हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर अब्दुल अलीम तथा अमर उजाला के संपादक/कवि अरुण आदित्य जी ने इंजीनियर, वैज्ञानिक, युवा कवि प्रदीप मिश्र को उनके कविता संग्रह "उम्मीद" के लिए शाल, प्रमाण पत्र, प्रतीक चिन्ह और सहायता राशि देकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के आर्ट्स फैकल्टी लॉन्ज में सम्मानित किया। जिसमेें सभी विद्वानों ने अपने-अपने विचार रखे । मुख्य अतिथि के तौर पर कवि मंगलेश डबराल ने वर्तमान देश की स्थिति, नैतिक मूल्यों का हनन, साम्प्रदायिकता, विस्थापन, शिक्षा जैसे अनेक गम्भीर मुद्दों पर अपने विचार रखे जिसमें उन्होंने आज के युवाओं की स्मृति का हाशिये पर चले जाना और उससे ह्रदय से निकलती कविता की पंक्तियों के लोप पर एक गंभीर चिंतन व्यक्त किया और कहीं ना कहीं इसके लिए तकनीक को ज़िम्मेदार माना जिसकी वजह से देश मेें भूमंडलीकरण, साम्प्रदायिकता, बाज़ारीकरण का प्रभाव देखने को मिल रहा है. चर्चा करते हुए उन्होंने आगे कहा कि यह समय " ऐज ऑफ फॉरगेटिंग" के दौर से भी गुज़र रहा है. कवि ने अपने शहर टिहरी गढ़वाल का भी ज़िक्र किया और बताया कि तीस सालों में जो नष्ट हुआ है उसको केवल कविता, आलेख या कथा साहित्य में ही देखा जा सकता है क्योंकि इस तकनीकी दौर ने हमारी स्मृतियों को हमसे छीन लिया है जबकि जितनी भी हिन्दी साहित्य में  कालजयी कविताएँ हैं वे स्मृतियों पर ही आधारित हैं, स्मृतियों से ही कल्पनाशक्ति आती है. जब स्मृति ही नहीं होगी तो फिर कहाँ से कल्पनाशक्ति आएगी और कहां से हम देश, 

दुनिया, मानवता के लिए दूरदर्शितापूर्ण सोच रख सकेंगे ? 1992 विध्वंस और 2014 के बाद पनपे हालात पर अपने पुरस्कार वापसी के सिलसिले में बोलते हुए कवि ने कहा कि नई मनुष्यता और विकृतियों का समय है. बाज़ारीकरण, साम्राज्यवादी ताकतों में शुमार अमेरिका हमारे देश में गृहयुद्ध जैसी स्थिति बनाने में भी उत्प्रेरक का काम कर रहा है।

विशिष्ट अतिथि के तौर पर "उद्भावना" पत्रिका के सम्पादक अजेय कुमार जी ने चंद शब्दों में बहुत बड़ी सोच का परिचय देते हुए बताया कि आजकल देशभर में मंदिर मस्जिद के नाम पर लाखों करोड़ों लोग घर से बाहर निकल आते हैं लेकिन सामाजिक कार्यों, संगोष्ठियों में इतनी भीड़ नहीं दिखती है, मतलब साफ है लोगों को धर्म दिखता है लेकिन कहीं ना कहीं मानवता खतरे में जा रही है वो नहीं दिखता, दूसरी तरफ छद्म राष्ट्रवाद, साम्प्रदायिकता, जैसे अनेक मुद्दों पर राजनैतिक पार्टियों को खूब लाभ हो रहा है तो वो क्यों ऐसे संगोष्ठी की ओर मंच मुहैया कराएँ जिससे उनकी सत्ता की कुर्सी छिनती नज़र आये, आजकल ज्यादातर लोग समझते हैं कि विचारधारा अनुभव की  रिप्लेसमेंट है जबकि ऐसा नहीं है. विचारधारा आजकल यूज़ एंड थ्रो हो गयी है. जब तक मर्ज़ी चाहे इस्तेमाल करो और जब मर्ज़ी चाहे फेंक दो. जबकि किसी भी गंभीर व्यक्तित्त्व में विचारधारा का होना बहुत आवश्यक है।

पुरस्कृत कवि प्रदीप मिश्र जी ने कुछ स्मृतियों के बारे में प्रोफेसर कुंवरपाल सिंह को रेखांकित करते हुए कहा कि " क़ब्र को खोदोगे तो हड्डियां ही उछलेंगी" कहने का तात्पर्य था कि जिस प्रकार से देश में अस्थिरता की स्थिति को उत्त्पन्न किया जा रहा है उससे केवल आपसी मनमुटाव ही बढे़गा और मानवता खतरे में चली जायेगी हमें मनुष्यता और विकास के बारे में सोचकर आगे बढ़ना चाहिए जिससे देश तरक़्क़ी के नए प्रतिमान स्थापित करेगा और मानवता की सही से सेवा हो पाएगी। 

कार्यक्रम के अंत में पुरस्कृत कवि ने अपने कविता संग्रह से कुछ कविताओं का पाठ किया जिससे उपस्थित शिक्षकगण, शोधार्थी, अतिथिगण वाह-वाह कहने से नहीं रोक पाए. कार्यक्रम में उपस्थित अरुण आदित्य जी ने भी काव्य पाठ किया. कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर राजीवलोचन नाथ शुक्ल ने किया और अंत में पधारे बुद्धिजीवियों का धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर नमिता सिंह जी ने किया।

         प्रस्तुति 
अकरम हुसैन क़ादरी 
शोधार्थी हिंदी विभाग 
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी
(अलीगढ़)

ईमेल- akramhussainqadri@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें