शनिवार, 28 अक्तूबर 2017

त्रिमूर्ति करेगी गुजरात की सल्तनत का फैसला- अकरम हुसैन क़ादरी

त्रिमूर्ति करेगी गुजरात की सल्तनत का फैसला - अकरम हुसैन क़ादरी
गुजरात चुनाव आजकल पूरे देश के लिए एक कौतूहल का विषय बना हुआ है जिस प्रकार से बड़े बड़े मीडिया घराने एडके लिए अनेक प्राइम टाइम, हल्ला बोल, ताल ठोक के कर रहे है उससे ज़ाहिर होता है कि यह चुनाव कुछ ज्यादा ही मायने रखता है क्योंकि उसका सबसे बड़ा राज़ यह भी है देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी भी उसी गुजरात के मुख्यमंत्री के बाद अब प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे है वैसे तो भारतीय राजनीति में उत्तर-प्रदेश का प्रधानमंत्री देने में प्रथम स्थान है लेकिन काफी समय बाद गुजरात की धरती से देश को प्रधानमंत्री मिला है वो भी गुजरात मे भाजपा के 22 साल के कार्यकाल के बाद ।
जिस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री को दिल्ली बादशाहत मिली उसके बाद गुजरात की राजनीति में एक अजीब तरीके की उथल पुथल मच गई जिसके कारण सत्तारूढ़ भाजपा कमज़ोर होने की कगार पर पहुंच गई उसके बाद अनेक सामाजिक संगठनों ने भी भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया 2014 में दिल्ली की बादशाहत मिलने के बाद आनंदीबेन और रूपानी के कार्यकाल में अनेक ऐसी दिल को दहला देने वाली घटनाएं हुई जिससे भाजपा लगातार कमज़ोर होती चली गयी
भाजपा को कमज़ोर करने में सर्वप्रथम गुजरात के पाटीदार समाज के 23 वर्षीय हार्दिक पटेल ने आरक्षण के मुद्दे को उठाकर कमज़ोर किया है क्योंकि वो चाहते है कि गुजरात के साढ़े छः करोड़ आबादी में पाटीदारों का लगभग 14 से 17 परसेंट आबादी है जो कि सामाजिक, राजनैतिक तौर पर मजबूत भी है काफी बीजेपी कैबिनेट में मिनिस्टर भी है फिर भी आरक्षण चाहते है और एक ही आवाज़ में 23 वर्षीय हार्दिक पटेल पांच लाख जनता को इकट्ठा करके धरना प्रदर्शन करते है और बीजेपी से पाटीदारों को आरक्षण देने की मांग को मजबूती से रखते है जिसको भाजपा नकार देती है और हार्दिक पटेल पर अनेक धाराओं के साथ राष्ट्रद्रोह का मुकदमा भी लगा देती है तथा प्रदर्शन करते हुए लगभग 10 से 12 पाटीदार समाज के युवाओं को पुलिस कार्यवाही में अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ता है जिससे पाटीदार समाज मे एक रोष उतपन्न हो जाता है तथा वो भाजपा को आगामी चुनाव यानी 2017 के चुनाव में धूल चटाने के लिए तैयार हो जाते है जिसके अब चुनाव के समय साफ आसार भी नज़र आ रहे है ।
गुजरात चुनाव में सबसे अहम किरदार निभाने वाले अल्पेश ठाकुर है वो पिछड़ा वर्ग से आते है उनकी संख्या लगभग 40 परसेंट है जोकि गुजरात चुनाव से पहले बीजेपी का अहम हिस्सा थे उन्होंने भी आरक्षण के चलते भाजपा से बगावत का बिगुल फूँक दिया है जो बीजेपी को सत्ता के बेदखल करने मुख्य भूमिका में नज़र आ रहे है।
ऊना कांड से सुर्खियों में आये जिग्नेश मेवानी भी दलित समाज के नए नेता बनकर उभरे उन्होंने दलितों पर हो रहे अत्याचार का मुद्दा उठाया तथा अपने समाज को नई दिशा देने की सोच को लेकर आगे बढे, जिस प्रकार से सवर्णों ने गौरक्षा के नाम पर अनेक तथाकथित राष्ट्रभक्त संगठन बनाकर दलितों पर अत्याचार किया वो जगजाहिर है जिससे दलितों को एक माला में पिरोने के लिए जिग्नेश मेवानी ने अपनी ऐड़ी चोटी का जोर लगाया और उनको एक सूत्र में बांधकर ऊना कांड के दंरिन्दों को सबक सिखाने की कोशिश की तथा उसके विरोध के लिए मरी हुई गायों को शवो को अनेक कार्यालयों के सामने लाकर फेंक दिया जिससे भाजपा सरकार बैकफुट पर आ गयी, लेकिन सवर्णों ने फिर भी दलितों के साथ न्याय नही किया है बल्कि पॉलिटिकल उनटचबिलिटी का शिकार बनाया गया, दलितों की संख्या पूरे गुजरात मे लगभग 7 से 8 परसेंट गई जो हमेशा भाजपा को वोट देते है इसबार वो भी अलग राग अलाप रहे है और कह रहे है जो भी उनको सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय दिलाने की बात करेगा वो उनके ही साथ जाएंगे लेकिन भाजपा को ज़रूर हराएंगे जिससे उनका गुरुर टूट सके और उनको मालूम हो जो उनको सत्ता तक पहुंचा सकते है वो उनको सत्ता से चुटकियों में बेदखल भी कर सकते है ।
अफसोस की बात यह है कि 2002 का गुजरात नरसंहार झेलने वाले मुस्लिम अब भी नींद की गोलियां खाकर सो रहे है अभी तक गुजरात चुनाव में उनका प्रतिनिधित्व करने वाला कोई नज़र नही आया है ना ही उनको कोई भी राजनैतिक पार्टी अपना वोट बैंक समझ रही है बस उनको दबा, कुचला, सताया हुआ समझ कर कांग्रेस उनको अपना वोट बैंक समझ रही है लेकिन उनको सत्ता में कोई हिस्सेदारी देने की बात नही कर रही है क्योंकि ऐसे कयास लगाए जा रहे है यदि मुस्लिमो की बात की गई तो चुनाव हिन्दू-मुस्लिम हो जाएगा जिससे अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा को ही फायदा होगा, भाजपा की यह पूरी कोशिश है कि चुनाव मुद्दों पर ना लड़कर हिन्दू मुस्लिम पर लड़ा जाए जिससे उसको फिर से गुजरात की सल्तनत मिल जाये लेकिन हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकुर और जिग्नेश मेवानी हर प्रकार से भाजपा को सत्ता से बेदखल करना चाहते है ।
भाजपा की हार में नोटबन्दी, GST भी अहम भूमिका अदा कर सकते है अभी चुनाव कराने की घोषणा हो चुकी है लोकतंत्र में जनता का फैसला सर्वोपरि होता है फिर भी त्रिमूर्ति, नोटबन्दी, GST अहम भूमिका निभाने के लिए तैयार बैठे है रिजल्ट का इंतेज़ार है
जय हिंद
अकरम हुसैन क़ादरी

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