मंगलवार, 7 नवंबर 2017

साम्प्रदायिकता का असली गुनाहगार कौन- अकरम हुसैन क़ादरी

साम्प्रदायिकता का उदय किसी धर्म या धार्मिक सोच से नहीं होता है बल्कि राजनैतिक लोलुप्सा, घृणित इच्छाओं की पूर्ति और रातों रात धनी बनने की प्रबल इच्छा से पनपता है। धर्म का अर्थ होता है धारण करना अर्थात प्रेम, सत्य, न्याय, अहिंसा आदि सदगुणों को धारण करना।
दुनियाँ का कोई भी धर्म बुरा नहीं होता है। हर धर्म मानवता का पाठ पढ़ाता है, अच्छे-बुरे में फर्क बताकर सही मार्ग पर चलने को कहता है। हजारों साल से सभी धर्माचार्यों ने इसी का उपदेश दिया है। पर कुछ लोग ने अपने निजी स्वार्थ के लिए इसका इस्तेमाल सदियों से करते आ रहे हैं और आज भी कर रहे हैं, ये लोग धर्म में रहकर धर्म से षड्यन्त करने वाले होते हैं जो धर्म को हाथ की कठपुतली बना लेते हैं और अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए इसका इस्तेमाल तुरुप के इक्के की तरह करते हैं जो अक्सर सटीक ही बैठता है और नेता जी को इसका पूरा लाभ होता है, यदि धर्म इतना ही बुरा होता तो सबसे ज्यादा दुनियाँ में इसके मानने वाले नही होते लेकिन कुछ नास्तिकतावादी विचारधारा के लोग मानते हैं कि सभी बुराइयों की जड़ 'धर्म' है जबकि यह पूर्णतया सच नहीं है धर्म से ही नैतिकता का निर्माण होता है, धर्म ही हमें एक सीमा में बांधकर हमारे भीतर सद्गुणों का निर्माण करता है, धर्म ही हमें कर्तव्य पालन की ओर ले जाता है धर्म ही हमें अच्छे रास्ते पर ले जाता है।
अब यदि कोई आतंकवादी घृणित कार्य करने के पश्चात अल्लाह हो अकबर का नारा लगाए तो इसमें धर्म का कोई दोष नही हैं क्योंकि वह धार्मिक होता तो यह सब होता ही नही, जिस प्रकार से कंधमाल में कुछ अति उत्साही लोग एक महिला का रेप करके जय श्री राम का उद्घोष कर रहे थे, क्या वो धार्मिक है ?? वो बिल्कुल भी धार्मिक नहीं है यदि धार्मिक होते तो ऐसे काम ही नहीं करते, आजकल सोशल मीडिया पर किसी को भी मारते, काटते, हुए वीडियो अक्सर देखने को मिल जाते है जैसे
आईएसआईएस के आतंकवादी एक नारे का उद्घोष करते हैं वो धर्म का हिस्सा ही नहीं है बल्कि वो धर्म का मज़ाक बना रहे हैं अगर धार्मिक होते तो कोई ऐसा घृणित कार्य ही नहीं करते जिससे मानवता शर्मसार होती।
भारत के अंदर अनेक धर्म, पंथ, वर्ण और जाति के मानने वाले लोग मिल जाएंगे है इसका उदाहरण किसी भी दरगाह पर खड़े लोग मन्नत मांगते हुए दिख जाते है चाहे वो अजमेर शरीफ हो या फिर साबिर पाक कलियरी की दरगाह वहां कोई किसी का धर्म नही पूछता है, मंदिरों के सामने अनेक लोग आते है जो अपनी पद्धति के अनुसार पूजा पाठ करते है, स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारे में अनेक लोग जाते है और सब वहां पर सर पर रुमाल बांधकर जाते है और लंगर छक कर वापस आते है वहां पर भी कोई किसी से किसी का धर्म नही पूछता है
मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है और धर्म ही मानवता सिखाता है इसमें कोई शक नही होना चाहिए।
कोई भी धर्म बुरा नही होता है बस जो लोग बुरा करते है उन्होंने धर्म को समझा ही नही होता है ना ही धर्म की शिक्षाओं को पड़ा होता है वो लोग धर्म का सहारा लेकर अपनी कुण्ठित इच्छाएं पूरी करते है, मानवता सिखाने के लिए समाज मे धर्म के साथ साथ साहित्य का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है, साहित्य ही किसी व्यक्ति को पूर्णतया मनुष्य बनाने में योगदान देता है

अकरम हुसैन क़ादरी और आसिफ साबरी

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