शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

गुजरात में न्यूरिया के लोगो की दर्द भरी दास्तान - अकरम हुसैन क़ादरी

आखिर कोई भी इंसान क्यो अपनी पैदायशी सरज़मी छोड़ता है यह एक सोचने, समझने और ध्यान देने का मुकाम ज़रूर है लेकिन पहले इस बात का भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि आखिर यह सब मजबूरियां क्यो और कैसे पैदा हुई जिसकी वजह से आज न्यूरिया की आधी आबादी गुजरात मे जा बसी है वहां उनकी केवल पेट की आग तो बुझ रही है उसके अलावा ना वहां पर उनके रिश्ते मजबूत हो रहे है और ना ही उनके बच्चों को ज़रूरी तालीम मिल पा रही है जोकि आने वाले वक्त की ज़रूरी मांग भी है अगर हम यह मांग पूरी नही कर सके तो हो सकता है आने वाले वक्त में कस्बे में तालीम का स्तर और ज्यादा गिर जाएगा क्योंकि जो आधी आबादी गुजरात मे बसी है वहां पर वो सुबह को कारखानों में निकल जाते है और देर शाम को घर पर लौटते है जिसकी वजह से ना ही उनको किसी तालीम का इंतेज़ाम है और ना ही माँ बाप के प्यार के मुस्तहिक़ हो पाते है बल्कि उनके अंदर अकेलापन, मायूसी और अपने पैदायसी वतन की मोहब्बत उनको ज़हनी तौर पर खूब परेशान करती है जिससे वो डिप्रेशन का शिकार हो जाते है और बुरी आदतों की गिरफ्त में आ जाते है जैसे सिगरेट, गुटखा, मावा और उससे आगे शराब के भी आदी हो जाते है दूसरी सबसे बड़ी वजह उनके पास मजदूरी का पैसा भी होता है जो उनको इन सब कामो में धकेलने में एक अहम रोल अदा करता है, आखिर ऐसा क्या होना चाहिए कि न्यूरिया में इनको दोबारा से वापस लाया जाए जिससे बच्चों का बचपन, लकड़पन, अपनापन, पैदाइशी जगह से मोहब्बत बरकरार रख सके, बुज़ुर्गो की शफ़क़्क़त, रिश्तेदारों का अपनापन फिर से मिल सके उसके लिए न्यूरिया के नेताओ को अब केवल न्यूरिया में फैक्ट्रीयां लाने का काम सोचना होगा जो पहले खो चुके है उसको भूलकर नई पहल शुरू करनी होगी फिर से न्यूरिया को ज़मीदारों की न्यूरिया बनाना होगा जिससे सभी धर्म, जाति के लोग एक होकर न्यूरिया को आगे की तरफ तरक़्क़ी करवा सके।

आजकल रोड, सड़क, गेट बनाकर आप उसको तरक़्क़ी नही कह सकते, बल्कि तरक़्क़ी उसको कहते है जब आपके यहाँ से ज्यादा से ज्यादा लड़के तालीम हासिल करें, अच्छे से अच्छे ओहदों पर पहुंचे वो लोग भी वापस आ जाये जो पेट की मजबूरी में मजदूरी कर रहे है उनके बच्चों को अच्छी, सस्ती तालीम मिल सके

बुज़ुर्गो का वक़्त तो अमूमन जा चुका है अब वक्त है हमे अपने मुस्तकबिल (भविष्य) के बारे में सोचना चाहिए न्यूरिया के बारे में सोचना चाहिए, जागो अब वक्त आ चुका है वरना वो वक़्त दूर नही है तुम्हे लोग कुचल के आगे निकल जाएंगे तुम लोग चन्द गुण्डे नेताओ के चंगुल में फंसे के फंसे रह जाओगे, जो तुम्हे चुनाव के वक़्त चाय, नाश्ता तो खूब कराएंगे दो, चार वक़्त का खाना भी खिला देंगे लेकिन आपका और आपके बच्चों का भविष्य ख़राब कर देंगे .....न्यूरिया को बचाइए, पढा लिखा शरीफ इंसान लाइये जो आपके हक़ और हुक़ूक़ की बात करे .....आपको तरक़्क़ी की नई राह पर ले जाये .....

जय हिंद

अकरम हुसैन क़ादरी

रिसर्च स्कॉलर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी
अलीगढ़

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