रविवार, 29 मार्च 2020

आनंदबिहार दिल्ली में भीड़ जमा करने का दोषी कौन- डॉ. आज़र खान

स्तब्ध हूँ 😥
वास्तविकता ये है कि सत्ता के मोह में फँसे देश के सत्ताधारियों को यह पता ही नहीं है कि जिस देश में उनका राज है, वहाँ की कितने प्रतिशत जनता अपना घर छोड़कर दूसरे शहरों में रहती है। इन्होंने सोचा दो ढाई सौ लोग होंगे, जो पैदल चलकर आ रहे हैं, उन्हें उन्हें घर पहुँचाकर उनकी हमदर्दी ले सकें। उन्हें ये भी नहीं पता जनता वहाँ कैसे रहती है ? क्या करती है ? कैसे कमाती है ? कैसे खाती है ? कैसे अपने परिवार पालती है। देश के मुख्यमंत्रियों को यही नहीं पता कि उनके राज्य के कितने नागरिक दूसरे या उनके राज्यों में मजदूरी करके कमाते खाते हैं। एक महाशय कुछ स्कूलों में मजदूरों के खाने का इंतज़ाम का भरोसा टीवी के माध्यम से दिलवाते हैं। उन्हें अगर ये पता होता कि हजारों की संख्या में कितने मजदूरों को टीवी देखने का समय मिकता है या कितने मजदूरों के पास टीवी है भी या नहीं, कितने के पास एंड्राइड फ़ोन है। कुछ चैनेल्स के माध्यम से उन्होंने एलान करवाकर ये समझ लिया सबके पास समाचार पहुँच गया। कितने 4 दिन से भूख से तड़प रहे हैं, ये सुध नहीं ली। साथ ही मकान मालिकों के दुर्व्यव्हार ने उन्हें पैदल घर की ओर प्रस्थान को मजबूर कर दिया। उन्हें इस बात की ख़बर नहीं थी कि घर परिवार छोड़कर दो-दो पैसे की ख़ातिर दूसरे शहरों में पड़े रहते हैं, अपना और परिवार का पेट भरने की ख़ातिर। अगर पता होता तो ये लॉकडाउन इतनी देरी से नहीं 10 दिन पहले ही किया जाता, वो भी सभी मजदूरों को उनके घरों में पहुँचाकर, अगर पता होता तो हिंदू-मुस्लिम, भारत-पाकिस्तान न करके इनकी नौकरी का बंदोबस्त किया जाता, अगर पता होता तो CAA और NRC के तहत दूसरे देशों के नागरिकों नागरिकता देने और अपने देश नागरिकों से नागरिकता लेने संबंधी कानून नहीं पास कराए जाते। ऐसे कानून बनाए जाते, जिनसे हर राज्य के नागरिक बेरोजगार न रहें, दूसरे शहरों में काम न करके मजदूर अपने घरों में रहें, कोई भूखा न रहे, कोई किसी को प्रताड़ित न करे, धार्मिक और जातिपरक या किसी तरह का भेदभाव न हो। लेकिन ऐसे करने से राजनीतिक रोटियाँ सेकने को नहीं मिलती। अचानक से लिये गए निर्णयों से हमेशा देश का नुकसान ही हुआ है। अब मुश्किल घड़ी में सत्तासीन कुछ कद्दावर नेताओं ने ख़ुद नज़रबन्द कर लिया है। जब गरीबों की सहायता करने का समय आया तो ये भूमिगत हो गए।

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