सोमवार, 30 मार्च 2020

महामारी छोड़ो, नेतागिरी चमकाओ बस -अमान अहमद


महामारी में भी अपनी राजनीति चमका रहे हैं नेताजी..
 ऐसी महामारी के वक्त में पार्टी नेता लोगों की मदत कर रहे हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन कुछ पार्टी नेता अपनी राजनीति भी चमका रहे हैं। खाने के डिब्बों पर भी अपनी पार्टी का प्रचार करने से नहीं चूक रहे हैं। उनका ये तरीका बहुत अफसोसजनक है। नेता गरीबों को जरूरत का सामान देने के दौरान पार्षदों और ग्राम प्रधानों को साथ लेकर चल रहे हैं। पार्षद और ग्राम प्रधान भी ऐसे लोगों को खाने पीने का सामान दिलवा रहे हैं , जो पहले से ही सम्पन्न हैं, और जिन्होंने उनको वोट दिया था। जबकि खाने पीने का सामान उनको मिलना जरूरी है जो दो वक्त का खाना जुटा नहीं पाते हैं। शहरों में पार्षद और गांव में प्रधान , अपनी मर्जी से लोगों का चुनाव करके लोगों की आईडी प्रूफ ले जाता है औऱ उनके नाम की लिस्ट नेता जी को सौंप देते हैं। और पैकिट उनके नाम से आ जाते हैं। मैं अपने ही इलाके का वाक़या आपको बताता हूँ। कल एक नेता जी मेरे इलाके में आये और कुछ ज़रूरत का सामान देकर चले गए। उन्होंने ये तक नहीं देखा कि समान जरूरतमंद लोगों तक पहुंच पायेगा कि नहीं। मैंने अपनी आंखों से देखा कि सुखी और सम्पन्न लोग समान के पैकिट ले जा रहे थे और गरीब लोग उनका मुंह ताक रहे थे। और अपना नाम बड़ी उत्सुकता से लिस्ट में देख रहे थे। एक पार्षद उनसे झूट बोलते हुए समझ रहा था कि ये लिस्ट सरकार की तरफ से आई है। इसमें आपका नाम नहीं है। गरीबों को क्या ख़बर की खाने का सामान किसने भेजा है। इस घटना को देखकर मेरा दिल बहुत दुःखी हुआ। क्या फायदा है ऐसी मदत का।
इन नेताओं से ज्यादा बड़े देशभक्त हमारे देश के किन्नर हैं। जो दिल खोलकर लोगों की मदत कर रहे हैं। वो खुद जाकर अपने हाथों से जरुरतमंद तक खाने-पीने का सामान पहुंचा रहे हैं। उनकी नजरों में हर व्यक्ति एक समान है, वो लोगों के सम्मान का भी ख्याल रख रहे हैं। क्योंकि वो जानते हैं कि वो लोगों को भीख नहीं दे रहे हैं।आज  बहुत बड़ा फर्क नज़र आ रहा है किन्नर और नेताओं में। मेरी नजरों में किन्नर देश के सम्मानित इंसान हैं। जो देश हित में अपनी भूमिका बख़ूबी निभा रहे हैं।
मैं ऐसे नेताओं से दरखास्त करना चाहता हूँ कि अगर उनको गरीबों की मदद करनी ही है ,तो खुद अपने हाथों से करें। जिससे उनके आत्म सम्मान को कोई ठेस ना पहुँचे। और खाने-पीने का सामान जरूरत मंदों के हाथों तक सही से पहुंचे। वरना वो ये सब बन्द कर दें। गरीबों का बे बजह दिल न दुखाएं। क्योंकि वो भी एक इंसान हैं।😔😔
अमान अहमद
शोधार्थी
एएमयू हिंदी विभाग 

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