गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

पालघर लिंचिंग के पीछे की मानसिकता - अकरम क़ादरी

पालघर लिंचिंग के पीछे की मानसिकता - अकरम क़ादरी

पालघर लींचिंग वाली वीडियो देखकर वास्तव में दिल दहल गया लेकिन सोचने की बात यह है कि हमारा समाज और पुलिस इतनी निकम्मी कैसे हो सकती है कि उसके ही सामने एक बुजुर्ग साधु को लिंच किया जाता है। इस घटना को समझने के लिए हमे थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा कि आखिर कैसे हमारे छोटे-छोटे मासूम बच्चों ने हाथ मे डंडा, लाठी और कुछ धारदार हथियारों से कबसे खेलना शुरू कर दिया ? तो आपको बताता चलूं की यह सब इतनी हिम्मत उन बच्चों में कैसे आई 2012 से मीडिया में नफरत का कंटेंट सबसे ज्यादा नज़र आता है जिसकी वजह से जो किशोरावस्था में बच्चे होते है उनकी मानसिकता कैसी बनेगी जब एक बच्चे से सामने एक पार्टी का नेता चिल्ला चिल्ला कर कहेगा 'मुल्ला तू चुप हो जा' मुल्ला तू घोड़े खोल ले ............वही होगा इससे शुरुआत होती है उसके बाद देश मे लींचिंग की एक बाढ़ से आ जाती है हर महीने में कमसेकम एक घटना तो मिल जाती है। ज्यादा घटनाओ का वर्णन नहीं करूंगा बल्कि चन्द घटनाओ का बात करूंगा जिससे पुलिस एवम कुछ समाज के ज़िम्मेदार लोगो के सामने होने वाली लिंचिंग का पता चल सके पहलू खान की लिंचिंग हुई तो बहुत लोग उसमे थे जिसमें से किसी की भी हिम्मत नहीं हुई कि जो पहलू खान को बचा ले कोई बात नहीं वो एक धर्म विशेष का व्यक्ति था मीडिया और सोशल मीडिया पर आई टी सेल से नफ़रत फैलाकर बताया है यह ऐसे होते है वैसे होते है झूठी खबरों फैलाई नफरत आगे बढ़ती गयी।
इसके बाद पहलू खान को मार दिया गया अभी शायद केस विचाराधीन है आगे इंसाफ होगा उम्मीद है।
उसके बाद हापुड़ के पास पुलिस के सामने एक बुजुर्ग की लिंचिंग हुई जिसमें उस बुज़ुर्ग को कुछ लोग हाथ,  पैर पकड़ खचेड़कर ला रहे है पुलिस सामने चल रही है वो भी अभी केस न्यायालय में विचाराधीन है। जबकि उसमे कुछ लोगो को जमानत मिल चुकी है NDTV के सौरभ शुक्ला ने उसका स्टिंग ऑपरेशन किया था अपराधी ने कैमरे पर गुनाह कुबूल किया था उसका भी पता नहीं।
आश्चर्य तो तब हुआ जब पुलिस के ही एक एस. आई सुबोध सिंह को कुछ लोगो ने शहीद कर दिया और उसको शहीद करने वाले जमानत पर बाहर आये तो उनका फूल मालाओं से स्वागत किया गया कुछ धार्मिक नारे भी लगाए गए जो सच मे देश के सभ्य समाज के लिए चैलेंज का विषय बन रहा है।
उपर्युक्त घटनाओ से मासूम बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका विश्लेषण एक मनोचिकित्सक अच्छा कर सकता है फिर भी मैं समझता हूं सच मे उनकी मानसिक स्थिति बदल गयी होगी कि ऐसा करने से कुछ नही होता है और समाज मे हमको नायक की तरह दिखाया जाता है जिससे वो सीना चौड़ा करके घूमते है और उनको धर्म रक्षक समझा जाता है जबकि सच मे वो एक अपराधी है जो आने वाले वक्त में स्वयं के प्रियजनों को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
पालघर की घटना भी ऊपर वाली घटना का एक क्रम है बाकी उसमे कुछ नया नहीं है बस समझने वाले बात एक ही है अगर हमने इस पर कठोर कदम नहीं उठाये तो हमारे बच्चे हिंसात्मक प्रवृति में संलग्न हो जाएंगे देश निश्चय ही पिछडेगा, बचपन खत्म हो जाएगा, मासूमियत दूर दूर तक नहीं रहेगी फिर यही बच्चे अपने माँ-बाप और सगे सम्बन्धियो के लिए खतरनाक हो जाएंगे आपराधिक प्रवृत्ति में आ जाएंगे हो सकता है। नशा लूट खसोट भी शुरू करदे......
नफरत से नहीं मोहब्बत से देश चलेगा
जय हिंद
निष्पक्ष, निर्भय, निरबैर, निडर

अकरम क़ादरी
पॉलिटिकल एनालिस्ट

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