बुधवार, 13 मई 2020

महामारी में कैसे रच दी पांच पुस्तकें- शाबान ख़ान

 
कासगंज: मुझे एक मित्र ने बताया कि एक अध्यापक ने इस लॉकडाउन में पांच किताबें लिख डाली। मुझे सुनकर हैरत हुई कि ऐसे नकारात्मकता भरे माहौल में कोई लेखन कर सकता है? वो भी साहित्यिक! ज़ाहिर है कि किताबें लिखना अथवा रचना करना कोई सहज काम नहीं है। लेखन के विषय मे धारण यही है कि व्यक्ति जब अपार शांति में हो अथवा ह्रदय पर चोट खाकर घायल हो तभी वह सृजन कर सकता है। पर पांच किताबें लिखने की घटना से अनुभव हुआ कि "आह से निकला होगा गान" की पुरानी अवधारणा टूट रही है।
      बहरहाल मै स्वयं इस पर विचार करने लगा कि देश मे महामारी की भयावह स्थिति बनी हुई है, शरीर एक मुख़तसर कमरे में क़ैद है, कल्पनाएँ आज़ाद है और मन व्याकुल और व्यथित है। इन दिनों मैं चाहकर भी एक लेख न लिख सका। जब भी लिखने बैठता तो कारोना पॉजिटिव और मजदूरों के संकटों की खबरों से अशांत हो जाता। अशांति या पीड़ा से काव्य तो रचना जा सकता है परंतु उसकी समीक्षा नहीं की जा सकती है। पर जब चिंतन की गहराई में धंसा तो धस्ता ही चला गया और जब बाहर निकला तो साथ में कुछ सवालों के जवाब भी लेकर लौटा।
      क्या इस लॉकडाउन में हम अपना काम नहीं कर सकते? बिल्कुल कर सकते हैं। विद्यार्थी पढ़ाई कर सकते हैं, शोधार्थी अपना शोध प्रबंध लिख सकते हैं, इंजीनियर नई इमारत की रूपरेखा तैयार कर सकते हैं, बॉक्सर नए स्किल डेवलप कर सकते हैं। मने कि हम सबकुछ तो कर सकते हैं। माना कि वर्तमान स्थिति में फुटबॉलर, फुटबॉल नहीं खेल सकता, क्रिकेटर क्रिकेट की प्रैक्टिस नहीं कर सकता, धावक अपनी रेस पूरी नहीं कर सकता। पर घर बैठकर विचार कर सकता है। बॉलर इस पर विचार करे कि बॉलिंग की लाइन कैसे सही करे और फुटबॉलर गोल करने की नई ट्रिक खोज सकता है। मतलब इस लॉकडाउन में बिना नियम तोड़े और बिना कानून भंग किए हर काम किया जा सकता है। विद्यार्थियों को अपने पिछले वर्ष के अंकों पर विचार करना चाहिये और जाने कि आख़िर कमी कहाँ रह गई थी? जिन विषयों में कमज़ोर हैं उन्हें ढंग से तैयार करें। पर हो इसके बिल्कुल विपरीत रहा है।
      लॉकडाउन में ज्यादातर कंपनियां घाटे में हैं या बंद होने के कगार पर है। पर टेलीकॉम कंपनियों के साथ ऐसा नहीं हैं उनकी स्थिति वही है जो पहले थी। इसका कारण है कि उपभोक्ताओं द्वारा इंटरनेट का अधिक प्रयोग किया जाना। लॉकडाउन के भूत से हम इस कदर डरे हुए हैं कि काम को एक किनारें रखकर दूसरे फ़िजूल के कामों में उलझ गए। अपने काम, पेशे या कर्तव्य से विमुख हो गए और मन को बहलाने के लिये इस तर्क का सहारा ले रहे है कि लॉकडाउन है घर से निकल नहीं सकते, स्कूल जा नहीं सकते, ऑफिस जा नहीं सकते। पर गौर करने वाली बात यह है कि हम अपने मुख्य पेशे या काम को छोड़कर दूसरे काम में ही लगे हैं। मसलन टाइम पास करने के लिये फिल्में देख रहे हैं, मोबाइल पर गेम खेल रहे हैं। लेकिन काम तो फिर भी कर रहे हैं, पर उस काम को छोड़कर जो हमारा मुख्य काम है या रोज़गार का साधन है। ये सब मध्यम वर्ग के साथ हो रहा है।
       मध्यवर्गीय समाज इस लॉकडाउन में हॉटस्टार, नेटफिलिक्स, ज़ी थ्री, यूट्यूब पर वेब सीरीज़ या फिल्में देख रहाहै। विद्यार्थियों का लेवल ही दूसरा है वो सामान्य स्थिति में भी अलग दुनिया में विचरण करते थे, आजकल तो दिन रात पबजी की फैंटेसी में खोए हुए हैं। इस लॉकडाउन में स्ट्रीमिंग, गेम और इन्टरटेंटमेंट की ऐप्स की डाउनलोडिंग में भारी बढोत्तरी दर्ज की गई है। भारत में इस ऐप का सब्सक्रिप्शन सबसे अधिक हुआ है। युवा पीढ़ी पहले ही मोबाइल पर चिपकी रहती थी, अब तो और अधिक डूबी हुई है क्यों?  स्कूल - कॉलेज और ऑफिस जाना नहीं है। पर क्या सच में इस लॉकडाउन में हम अपना काम नहीं कर सकते हैं? विचार करो तो रास्ते अवश्य निकल सकते हैं। लॉकडाउन हुआ है पर हाथों और मन पर बेड़ियां नहीं डाली गईं हैं, इसलिए लॉकडाउन का रोना मत रोइये बल्कि इस पर विचार करें कि हम अपना काम कैसे करें।
एम.शाबान ख़ान 
शोधार्थी (एएमयू अलीगढ़)
(लेखक के निजी विचार हैं)

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