बुधवार, 13 मई 2020

लैंगिकता नहीं मानवता को तरजीह दे समाज - गौरव तिवारी

लैंगिकता नहीं मानवता को तरजीह दे समाज- गौरव तिवारी

किन्नरों की विपन्न स्थिति का कारण उनकी लैंगिक विकलांगता है। जिस प्रकार स्त्री को उसकी उस यौनिक पहचान से जो उसे हम , बिस्तर, मनोरंजन या सेवा की वस्तु मात्र समझती थी, से मुक्त करके समाज की मुख्य धारा में लाया गया उसी प्रकार किन्नरों को उनकी लैंगिक विकलांगता के दायरे से निकालकर देखने से ही उनकी स्थिति में सुधार किया जा सकता है।समाज और सरकार द्वारा उन्हें अगर लैंगिक विकलांग के रूप में देखा जाय तो उनके प्रति संवेदनशीलता के साथ न्याय किया जा सकता है। उक्त बातें वाङ्गमय प्रकाशन की अनुसंधान पत्रिका के फेसबुक पृष्ठ पर आयोजित व्याख्यानमाला के अंतर्गत "त्रासदी की संवेदना अर्थात किन्नर जीवन" पर बोलते हुए बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कुशीनगर के डॉ गौरव तिवारी ने कहीं। 
उन्होंने कहा कि किन्नरों को जीवन एक बंद समाज का जीवन है। बंद समाज के बारे में शेष समाज के लोगों में अनेक शंकाएं, जिज्ञासाएँ और अफवाहें होती हैं। जबतक इस समाज के विविध पहलुओं पर समाज में संवेदनशील चर्चा नहीं होगी, तबतक इस समाज को ठीक से समझा नहीं जा सकेगा। किन्नरों पर आई कविताएं, उपन्यास और कहानियां और उनकी समीक्षाएँ इस दिशा में सकारात्मक माहौल के निर्माण का कार्य कर रही हैं।
डॉ गौरव ने कहा कि किन्नर जीवन जबतक अपनी यौनिक विकृति को अपनी पहचान बनाकर ढोता रहेगा तबतक वह इससे मुक्त नहीं हो सकता।  इनकी यौनिक विकृति के अतिरिक्त शारीरिक, मानसिक और आत्मिक विशिष्टता सामान्य मनुष्यों के समान होती है। लेकिन ये अपनी शेष सभी विशिष्टताओं को इस विकलांगता या विकृति से मुक्त नहीं कर पाते इसीलिए यह समस्या बनी हुई है।
डॉ गौरव ने किन्नरों के समाज के विविध पहलुओं की भी चर्चा की और बताया कि रामायण और महाभारत काल में भी अपनी उपस्थिति दर्शाता हुआ यह समाज अपनी भावनात्मक संवेदनशीलता के बावजूद आज प्रायः नकारात्मक निगाहों से इसलिए देखा जाता है क्योंकि इनमें से एक वर्ग अपनी उजड्डता और उत्शृंखलता को अपना अधिकार समझ बैठा है। और इसे अपने रोजगार से जोड़ रहा है।
अपने व्याख्यान में डॉ गौरव ने तीसरी ताली और पोस्ट बॉक्स नम्बर 203 नाला सोपारा को एक दूसरे के पूरक उपन्यास के रूप में पढ़ने की बात की और कहा कि तीसरी ताली में जहाँ  किन्नरों की ऐतिहासिकता से लेकर उनके जीवन, संघर्ष उनके प्रेम, झगड़े, उजड्डता , गद्दी, पीठ, संगठन आदि प्रायः प्रत्येक पहलुओं पर चर्चा हुई है वहीं नाला सोपारा में इस समस्या से मुक्ति के उपायों को तलाशने का प्रयास हुआ है।
व्याख्यान के आरम्भ में प्रसिद्ध आलोचक प्रो नन्द किशोर नवल जी के दुःखद निधन पर वक्ता, वाङ्गमय प्रकाशन और अनुसंधान पत्रिका की ओर से शोक संवेदना व्यक्त किया गया।
फेसबुक लाइव में  डॉ. लवलेश दत्त, 'अनुसंधान' पत्रिका की संपादक डॉ. शगुफ्ता नियाज़, एएमयू हिंदी विभाग के प्रोफेसर मेराज अहमद,  प्रोफेसर कमलानंद झा एवं डॉ. शमीम, डॉ. ए. के पाण्डेय, प्रिंसिपल तनवीर अहमद, विकास प्रकाशन कानपुर के पंकज शर्मा, डॉ. रमाकांत राय, डॉ. लता अग्रवाल, डॉ. रमेश कुमार, माई मनीषा महन्त जी, मनीषा गुप्ता,  बहुत से शोधार्थी तथा वाङ्गमय पत्रिका के सहसंपादक अकरम हुसैन, के साथ साथ देश विदेश के  अनेक रचनाकर इस फेसबुक लाइव में शामिल हुए 
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