गुरुवार, 14 मई 2020

विकलांगता के दायरे से बाहर किन्नर-विमर्श - डॉ. भारती अग्रवाल

विकलांगता के दायरे से बाहर किन्नर विमर्श  डॉ. भारती अग्रवाल
लॉकडाउन ने शारारिक दूरी को बढ़ावा तो दिया है पर सामाजिक दूरी को कम कर दिया है। इस समय हम सोशल मीडिया के द्वारा अधिक जुड़ाव महसुस हो रहा है। लगातार साहित्यिक विषयों की चर्चा ने सोशल मीडिया को और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है। वाङमय पत्रिका से सम्पादक फ़िरोज भाई ने दस दिन की वेब संगोष्ठी का आयोजन किया। इस संगोष्ठी के केन्द्र में किन्नर विमर्श रहा। अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने इस विषय पर अपने विचारों से अवगत कराया। दिल्ली विश्वविद्यालय की साहयक प्रोफेसर डॉ. भारती अग्रवाल ने किन्नर विमर्श पर बात रखते हुए यह साफ किया कि किन्नर को किसी भी तरह यौन विकलांग नहीं कहा जा सकता। यद्यपि फेस बुक पर अनेक व्याख्यान माला चल रहीं हैं जहाँ किन्नरों को यौन विकलांग कहा जा रहा है तथा उन्हें यौन विकलागंता की श्रेणी में ऱखने की बात की जा रही है। चित्रा मुदगल अपने उपन्यास नाला सोपारा में भी यौन विकलांगता का जिक्र करती हैं जबकि स्वयं किन्नर वर्ग इस विकलांगता को सिरे से खारिज करते हैं। साथ ही किसी भी तरह के विकलांग आरक्षण का विरोध करते हैं।
किन्नर विकलांग हैं या नहीं इस स्थिति को समझने के लिए हमें अंग्रेजी के एल. जी. बी. टी. आई. क्यू को समझना होगा। भारतीय समाज में इस टर्म के लिए एक शभ्द है हिजड़ा या फिर किन्नर। इसे अंग्रेजी के टर्म से ही समझा जा सकता है। सब जानते ही होगें कि एल. माने लेस्बियन जी. माने गे बी. माने बॉयोसेक्सुल आई. माने इंटरसेक्स। यह इंटरसेक्स समाज में उलझा हुआ है। इंटरसेक्स का अर्थ होता है वह प्राणी जो एक साथ दो जनांगों को ग्रहण करता है अथार्त वह शुक्राणु और अंडकोश साथ-साथ ग्रहण करता है। इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि जैसे किसी व्यक्ति का होंठ कटा हो या ऊपर का होंठ नाक से मिला हो तो उसे हम विकलांग नहीं कह सकते। इसी प्रकार इंटरसेक्स को भी विकलांग नहीं कह सकते। गूगल की एक रिपोर्ट के अनुसार दो हजार में से एक व्यक्ति इंटरसेक्स होता है।
                                   साहयक व्याख्याता डॉ. भारती अग्रवाल ने किन्नरों के बारे में फैले अंधविश्वास का निराकरण करने की भी कोशिश की। उन्होंने कहा जब तक किन्नर समाज जन-साधरण से सम्पर्क नहीं साधेगा यह अंधविश्वास दूर नहीं हो पायेंगें। सबसे बड़ी भ्रांति किन्नरों की मृत्यु को लेकर है। ऐसा माना जाता है कि जब किन्नर की मृत्यु हो जाती है तो उसके शव को सफेद कपड़े में बाँध कर क्रॉस पर लटका दिया जाता है फिर शव को जूतियों से मारा जाता है। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। किन्नर भी हमारी तरह इंसान होते हैं। इनकी भी भावनाएँ होती हैं। सुख-दुख होता है। ऐसी स्थिति में किसी के शव को भी किस तरह लटकाया जा सकता है या फिर जूतियों से मारते हुए ले जाया जा सकता है। यदि किन्नर अपने परिवार से जुड़े होते हैं तो शव किन्नर के परिवार को सौंप दिया जाता है फिर परिवार अपने धर्म, रीति-रिवाजों के अनुसार दाह-संस्कार करता है या दफनाता है। यदि किसी का परिवार किन्नर को नहीं अपनाता तो किन्नर के गुरु की जाति, धर्म के अनुसार उसका क्रिया-कर्म किया जाता है।
                                 किन्नर समाज को मुख्यधारा में लाने के लिए सबसे पहले परिवार को आगे आना होगा। जब तक परिवार अपने बच्चों को नहीं अपनायेगा तब तक कुछ भी सुधार संभव नहीं। जितने प्रतिष्ठित किन्नर हैं अधिकतर सभी को परिवार का सहयोग प्राप्त है। जब परिवार बच्चे को समाज की दृष्टि से देखना शुरु करता है विडम्बनाएँ और त्रासदियाँ वहीं से शुरु हो जाती हैं। बच्चा खुद को एलियन समझने लगता है। उसे परिवार और समाज से शारारिक और मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। इन सब से तंग आकर वह स्वयं घर छोड़ कर चला जाता है। ऐसी स्थिति में उनके पास केवल तीन काम बचते हैं। बधाई, नेग, नाच-गाना, भीख माँगना, शेक्स वर्कर के रुप में काम करना। यदि इन पारम्परिक कार्यों से बाहर हमें किन्नर समाज को देखना है तो आगे आकर हाथ बढ़ाना होगा।
            फेसबुक लाइव में प्रिंसिपल डॉ. तनवीर अहमद, डॉ. इरशाद हुसैन, डॉ. मुस्तकीम, डॉ. विजेंद्र, डॉ. अनवर हुसैन सिद्दीकी वर्धा, डॉ. लवदेश दत्त, अंजू गुप्ता, श्रेया अग्रवाल, डॉ. लता अग्रवाल, डॉ. विजेन्द्र प्रताप सिंह, विजय अग्रवाल, डॉ. शमीम, माई मनीषा महंत, डॉ. संध्या गर्ग, अनिल अग्रवाल, डॉ. फिरोज़ अहमद,अनुसंधान पत्रिका की संपादक डॉ. शगुफ्ता नियाज़ बहुत से शोधार्थी तथा वाङमय पत्रिका के सहसंपादक अकरम हुसैन के साथ अनेक देश विदेश से लोग लाइव हुए। फिरोज़ भाई का यह काम अत्यंत सराहनीय है।
                       इस प्रोग्राम को लाइव सुनने के लिए भी vangmya ptrika hindi के पेज पर लाइव सुना जा सकता है और यूट्यूब पर AKRAM HUSSAIN QADRI के चैनल को सब्सक्राइव करके भी दोबारा इस कार्यक्रम को सुना जा सकता है।

https://youtu.be/if36_ps2Bw4
सुनिए दिल्ली विश्वविद्यालय के स्वामी श्रद्धानंद विद्यालय की डॉ. भारती अग्रवाल को जिन्होंने किन्नर विमर्श को नए सिरे से परिभाषित करने का प्रयत्न किया है.... 
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