शुक्रवार, 15 मई 2020

ट्रांसजेंडर को नहीं है पूरे अधिकार- मोहम्मद शमीम

ट्रांस जेण्डर को नहीं है पूरे अधिकार- मोहम्मद शमीम

वाङ्गमय त्रैमासिक हिंदी पत्रिका के व्याख्यान माला के अंतर्गत आज फेसबुक लाइव में हलीम मुस्लिम पीजी कॉलेज के अंग्रेज़ी विभाग के डॉ. मोहम्मद शमीम ने "थर्ड जेंडर के संवैधानिक अधिकार" के तहत अपने विचार रखे जिसमे उन्होंने भारत मे किन्नरों के अधिकार का व्यवहारिक रूप क्या है और संवैधानिक रूप का विश्लेषण करते हुए बताया कि अभी भारतीय संविधान में किन्नर समाज के अधिकारों को और अधिक विस्तार करने की आवश्यकता है जिस प्रकार से यूरोप तथा दूसरे देशों में किन्नरों को  अच्छे संवैधानिक अधिकार है भारत की तुलना में उनको भी यहां पर बराबर का दर्जा मिलना चाहिए इस सम्बंध में उन्होंने भारत के मूल अधिकारों का भी ज़िक्र किया कि जिस प्रकार से यहां पर स्त्री-पुरुष के अधिकार है ठीक उसी प्रकार से लैंगिक विकृति के कारण इनको भी जेण्डर आधार आरक्षण मिलना चाहिए लेकिन पिछले जजमेंट में इनको ओबीसी के साथ आरक्षण की बात हुई थी जिसका किन्नर समाज ने स्वागत नहीं किया था।
15 अप्रैल 2014 को माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने दिए गए फैसले में में किन्नरों को ओबीसी वर्ग में रखते हुए उन्हें आर्थिक सामाजिक रूप से सशक्त बनाने की बात कहीं। इसके लिए माननीय उच्चतम न्यायालय ने राज्य व केंद्र सरकार को निर्देशित किया कि गवर्नमेंट सेक्टर से जुड़े हुए संस्था में उन्हें आरक्षण का लाभ देकर रोज़गार के अवसर प्रदान किये जायें। उच्चतम न्यायालय ने 9 बिंदुओं पर केंद्र व राज्य को कार्य करने के लिए कहा जिसमे मुख्यतः मुख्य धारा के लोगो को लिंगभेद के प्रति जागरूक किया जाए जिससे कल्याणकारी योजनाएं थर्ड जेण्डर के लिए लागू की जाए लिंग भेद के आधार पर उन्हें मौलिक अधिकारों से वंचित न किया जाए। समस्त संस्थापकों के दरवाजे उनके लिये खोले जाए।
न्याय पालिका के निर्देशों का पालन करते हुए भारत की कार्यपालिका ने अगस्त 2019 में ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक पारित किया जिसमें उन्हें बहुत सारी सुविधाये मिली लेकिन उनको स्वलिंग की पहचान नहीं मिली जिससे वो इनसे सहमत नहीं हुए।
पहले से ट्रांसजेंडर की पहचान प्राप्त करने के लिए आवेदन इसके पश्चात डॉक्टर की निगरानी में शल्य चिकित्सा से गुज़रना पड़ता है इसके पश्चात डॉक्टर की रिपोर्ट पर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट उन्हें पुरुष या स्त्री होने का सर्टिफिकेट जारी करता है। जिसका दोष आरक्षण की अनिवार्य व्यवस्था का न होना। बिल का तीसरा दोष लिंग के आधार पर भेदभाव था। जिसके तहत ट्रांसजेंडर को जब कोई अपमानित करता है तो दण्ड के फलस्वरूप अपराधी को न्यूनतम छः माह की जेल हो सकती है 
दूसरी तरफ कोई भी ट्रांसजेंडर किसी भी बच्चे को गोद नही ले सकती क्योंकि यह डर रहता था कि अगर यह उरुष ट्रांसजेंडर हुआ तो उस बच्चे का यौनिक दोहन करेगा जबकि स्त्री ट्रांसजेंडर को देने के लिए सरकार राज़ी होती है।
इस फेसबुक लाइव में ट्रांस जेण्डर को नहीं है पूरे अधिकार- मोहम्मद शमीम

वाङ्गमय त्रैमासिक हिंदी पत्रिका के व्याख्यान माला के अंतर्गत आज फेसबुक लाइव में हलीम मुस्लिम पीजी कॉलेज के अंग्रेज़ी विभाग के डॉ. मोहम्मद शमीम ने "थर्ड जेंडर के संवैधानिक अधिकार" के तहत अपने विचार रखे जिसमे उन्होंने भारत मे किन्नरों के अधिकार का व्यवहारिक रूप क्या है और संवैधानिक रूप का विश्लेषण करते हुए बताया कि अभी भारतीय संविधान में किन्नर समाज के अधिकारों को और अधिक विस्तार करने की आवश्यकता है जिस प्रकार से यूरोप तथा दूसरे देशों में किन्नरों को  अच्छे संवैधानिक अधिकार है भारत की तुलना में उनको भी यहां पर बराबर का दर्जा मिलना चाहिए इस सम्बंध में उन्होंने भारत के मूल अधिकारों का भी ज़िक्र किया कि जिस प्रकार से यहां पर स्त्री-पुरुष के अधिकार है ठीक उसी प्रकार से लैंगिक विकृति के कारण इनको भी जेण्डर आधार आरक्षण मिलना चाहिए लेकिन पिछले जजमेंट में इनको ओबीसी के साथ आरक्षण की बात हुई थी जिसका किन्नर समाज ने स्वागत नहीं किया था।
15 अप्रैल 2014 को माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने दिए गए फैसले में में किन्नरों को ओबीसी वर्ग में रखते हुए उन्हें आर्थिक सामाजिक रूप से सशक्त बनाने की बात कहीं। इसके लिए माननीय उच्चतम न्यायालय ने राज्य व केंद्र सरकार को निर्देशित किया कि गवर्नमेंट सेक्टर से जुड़े हुए संस्था में उन्हें आरक्षण का लाभ देकर रोज़गार के अवसर प्रदान किये जायें। उच्चतम न्यायालय ने 9 बिंदुओं पर केंद्र व राज्य को कार्य करने के लिए कहा जिसमे मुख्यतः मुख्य धारा के लोगो को लिंगभेद के प्रति जागरूक किया जाए जिससे कल्याणकारी योजनाएं थर्ड जेण्डर के लिए लागू की जाए लिंग भेद के आधार पर उन्हें मौलिक अधिकारों से वंचित न किया जाए। समस्त संस्थापकों के दरवाजे उनके लिये खोले जाए।
न्याय पालिका के निर्देशों का पालन करते हुए भारत की कार्यपालिका ने अगस्त 2019 में ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक पारित किया जिसमें उन्हें बहुत सारी सुविधाये मिली लेकिन उनको स्वलिंग की पहचान नहीं मिली जिससे वो इनसे सहमत नहीं हुए।
पहले से ट्रांसजेंडर की पहचान प्राप्त करने के लिए आवेदन इसके पश्चात डॉक्टर की निगरानी में शल्य चिकित्सा से गुज़रना पड़ता है इसके पश्चात डॉक्टर की रिपोर्ट पर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट उन्हें पुरुष या स्त्री होने का सर्टिफिकेट जारी करता है। जिसका दोष आरक्षण की अनिवार्य व्यवस्था का न होना। बिल का तीसरा दोष लिंग के आधार पर भेदभाव था। जिसके तहत ट्रांसजेंडर को जब कोई अपमानित करता है तो दण्ड के फलस्वरूप अपराधी को न्यूनतम छः माह की जेल हो सकती है 
दूसरी तरफ कोई भी ट्रांसजेंडर किसी भी बच्चे को गोद नही ले सकती क्योंकि यह डर रहता था कि अगर यह उरुष ट्रांसजेंडर हुआ तो उस बच्चे का यौनिक दोहन करेगा जबकि स्त्री ट्रांसजेंडर को देने के लिए सरकार राज़ी होती हैट्रांस जेण्डर को नहीं है पूरे अधिकार- मोहम्मद शमीम

वाङ्गमय त्रैमासिक हिंदी पत्रिका के व्याख्यान माला के अंतर्गत आज फेसबुक लाइव में हलीम मुस्लिम पीजी कॉलेज के अंग्रेज़ी विभाग के डॉ. मोहम्मद शमीम ने "थर्ड जेंडर के संवैधानिक अधिकार" के तहत अपने विचार रखे जिसमे उन्होंने भारत मे किन्नरों के अधिकार का व्यवहारिक रूप क्या है और संवैधानिक रूप का विश्लेषण करते हुए बताया कि अभी भारतीय संविधान में किन्नर समाज के अधिकारों को और अधिक विस्तार करने की आवश्यकता है जिस प्रकार से यूरोप तथा दूसरे देशों में किन्नरों को  अच्छे संवैधानिक अधिकार है भारत की तुलना में उनको भी यहां पर बराबर का दर्जा मिलना चाहिए इस सम्बंध में उन्होंने भारत के मूल अधिकारों का भी ज़िक्र किया कि जिस प्रकार से यहां पर स्त्री-पुरुष के अधिकार है ठीक उसी प्रकार से लैंगिक विकृति के कारण इनको भी जेण्डर आधार आरक्षण मिलना चाहिए लेकिन पिछले जजमेंट में इनको ओबीसी के साथ आरक्षण की बात हुई थी जिसका किन्नर समाज ने स्वागत नहीं किया था।
15 अप्रैल 2014 को माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने दिए गए फैसले में में किन्नरों को ओबीसी वर्ग में रखते हुए उन्हें आर्थिक सामाजिक रूप से सशक्त बनाने की बात कहीं। इसके लिए माननीय उच्चतम न्यायालय ने राज्य व केंद्र सरकार को निर्देशित किया कि गवर्नमेंट सेक्टर से जुड़े हुए संस्था में उन्हें आरक्षण का लाभ देकर रोज़गार के अवसर प्रदान किये जायें। उच्चतम न्यायालय ने 9 बिंदुओं पर केंद्र व राज्य को कार्य करने के लिए कहा जिसमे मुख्यतः मुख्य धारा के लोगो को लिंगभेद के प्रति जागरूक किया जाए जिससे कल्याणकारी योजनाएं थर्ड जेण्डर के लिए लागू की जाए लिंग भेद के आधार पर उन्हें मौलिक अधिकारों से वंचित न किया जाए। समस्त संस्थापकों के दरवाजे उनके लिये खोले जाए।
न्याय पालिका के निर्देशों का पालन करते हुए भारत की कार्यपालिका ने अगस्त 2019 में ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक पारित किया जिसमें उन्हें बहुत सारी सुविधाये मिली लेकिन उनको स्वलिंग की पहचान नहीं मिली जिससे वो इनसे सहमत नहीं हुए।
पहले से ट्रांसजेंडर की पहचान प्राप्त करने के लिए आवेदन इसके पश्चात डॉक्टर की निगरानी में शल्य चिकित्सा से गुज़रना पड़ता है इसके पश्चात डॉक्टर की रिपोर्ट पर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट उन्हें पुरुष या स्त्री होने का सर्टिफिकेट जारी करता है। जिसका दोष आरक्षण की अनिवार्य व्यवस्था का न होना। बिल का तीसरा दोष लिंग के आधार पर भेदभाव था। जिसके तहत ट्रांसजेंडर को जब कोई अपमानित करता है तो दण्ड के फलस्वरूप अपराधी को न्यूनतम छः माह की जेल हो सकती है 
दूसरी तरफ कोई भी ट्रांसजेंडर किसी भी बच्चे को गोद नही ले सकती क्योंकि यह डर रहता था कि अगर यह उरुष ट्रांसजेंडर हुआ तो उस बच्चे का यौनिक दोहन करेगा जबकि स्त्री ट्रांसजेंडर को देने के लिए सरकार राज़ी होती है 
प्रिंसिपल डॉ तनवीर अख्तर, डॉ लता अग्रवाल, डॉ मुश्तक़ीम, डॉ शमा नाहिद, डॉ पांडेय, इरशाद हुसैन, डॉ रमाकांत राय, डॉ गौरव तिवारी, डॉ शगुफ्ता, डॉ भारती अग्रवाल, कामिनी कुमारी,  मनीष कुमार, रिंक्की कुमारी, दीपांकर, मनीषा महंत, मिलन, पंकज बाजपेयी, एवं 
वाङ्गमय त्रैमासिक हिंदी पत्रिका के सहसंपादक अकरम हुसैन भी शामिल थे। 
इस कार्यक्रम को अगर आपको यूट्यूब पर सुनना है तो आप AKRAM HUSSAIN QADRI के यूट्यूब चैनल पर भी सुन सकते है

https://youtu.be/NDB6m6N7At4
थर्ड जेंडर को प्राप्त संवैधानिक अधिकार के तहत सुनिए डॉ. शमीम अहमद सर को वाङ्गमय त्रैमासिक हिंदी पत्रिका के फेसबुक लाइव पेज पर

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