शनिवार, 16 मई 2020

तृतीय लिंगी कथा साहित्य अस्मिता की पहचान - रमेश कुमार

  • तृतीय लिंगी कथा साहित्य नारी अस्मिता की पहचान - रमेश कुमार

  • वाङ्मय त्रौमासिक हिंदी पत्रिका से व्याख्यान माला के अन्तर्गत आज फेसबुक लाइव में जवाहर लाल नेहरू राजकीय महाविद्यालय पोर्टब्लेयर के स्नात्तकोत्तर हिंदी विभाग के एशोसिएट प्रोफेसर डाॅ. रमेश कुमार ने ‘तृतीय लिंगी और कथा साहित्य’ पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने व्याख्यान में तृतीय लिंगी समुदाय की विभिन्न सेवियों, उनकी शारीरिक-मानसिक पहचान, उनकी सामाजिक-आर्थिक अवस्था और उनके साथ होने वाले अन्याय का वर्णन किया। उनका कहना था कि तृतीय लिंगी के प्रति समाज में पूर्वाग्रह व्याप्त है। जिनके कारण उन्हें अवमानना मिलती है। परम्परागत दकियानुसी सोच और अन्यायपूर्ण भेदों के कारण उन्हें मनुष्य का दर्जा तक प्राप्त नहीं होता। आज आवश्यकता है उनको मानवीय अधिकार प्राप्त हों। उन्हें आधुनिक शिक्षा और रोजगार के माध्यम से सशक्त बनाया जाना चाहिए।
  • डाॅ. रमेश कुमार ने तृतीय लिंगी केन्द्रित कथा साहित्य का सिलसिलेवार विवेचन किया। उन्होंने इक्कीसवीं सदी के चर्चित कथाकारों के उपन्यासों में व्यक्त तृतीय लिंगी विमर्श का रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि आधे-अधूरे शरीर वाले दरमियाने अपनी अस्मिता और पहचान के संकट से गुजर रहे हैं। उपन्यासकारों ने हाशिए के तृतीय लिंगी समुदायों के जीवंत परिवेश, उनकी कड़वी सच्चाइयों, मानवीय संवेदनाओं, भाषा के संस्कार और सम्प्रेषण की नई शैलियों का प्रयोग किया है। उन्होंने इस दृष्टि से हिंदी उपन्यासों का परिचय दिया। उनमें चित्रा मुद्गल का पोस्ट बाॅक्स न. 203 नाला सोपारा, नीरजा माधव कृत तीसरी ताली, राजेश मलिक कृत आधा आदमी, महेन्द्र भीष्म कृत जिन्दगी 50-50 सुभाष अखिल कृत दरमियाना, अनुसूइया त्यागी कृत ‘प्रति संसार’, लता अग्रवाल का मंगलामुखी आदि प्रमुख थे। उन्होंने अपने व्याख्यान में किन्नरों के प्राचीन इतिहास, धार्मिक मान्यताओं, सम्प्रदायों, आयामों, डेरों, विधि-विधानों, संस्कारों, प्रथाओं, मिथकों, रीति-रिवाजों, जीवन शैली और जीविकापार्जन के साधनों पर भी प्रकाश डाला। वर्तमान में तृतीय लिंगी समुदाय हाशिए पर आ गया है। उनकी यथास्थिति को बदला जाना चाहिए। किन्नर समुदाय की एक बड़ी आबादी भीख माँगने, जुआ खेलने, नशा करने, सैक्स वर्कर बनने, अपराध और हिंसा की दुष्प्रवृत्तियों में संलग्न हो रही हैं यह सोचनीय दशा हैं उनके पुनसर््थापन की पहल होनी चाहिए। उनके मानवीय और कानूनी अधिकारों को महत्व देना है। उन्होंने यह भी कहा कि तृतीय लिंगी समुदाय के लोग यौवनावस्था में शारीरिक, मानसिक अवस्था से गुजरते हैं। उनकी आधी-अधूरी देह कुंठाओं, वर्जनाओं और तनावों के कारण अभिशाप बन जाती है।
  • उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा कि तृतीय लिंगी समुदाय के जैंडर ट्रांसप्लांट, हार्मोन इंप्लांट और सर्जरी के द्वारा उनके शरीर को स्वस्थ बनाया जा सकता है। साहित्य की कहानी विधा पर भी उन्होंने अपने विचार व्यक्त किए। इस संदर्भ में उन्होंने डाॅ. एम. फिरोज अहमद के संपादन में प्रकाशित कहानी संग्रह ‘हम भी इंसान हैं’ का बौद्धिक विवेचन किया। हिंदी, पंजाबी और उर्दू कहानीकारों की चर्चित कहानियों का विवेचन करते हुए उनके नाना पक्षों को व्यक्त किया। इक्कीसवीं सदी की तृतीय लिंगी कहानियाँ इस समुदाय की मार्मिक संवेदना, नए अनुभवों, नए विचारों और नए यथार्थ का बोध कराती हैं। लोकतांत्रिक राष्ट्र में किन्नर तीसरी शक्ति या सत्ता का बोध कराते हैं। राष्ट्र और समाज के विकास में उनकी भागीदारी निश्चित है। तृतीय लिंगी कथा संसार अछूते भाव, संवेदना, चरित्रा भाषा और सोद्देश्यता का बोध देता है। यह ऊर्जा और संकल्प का मार्ग प्रशस्त करता है।
  • प्रिंसिपल डॉ तनवीर अख्तर, डॉ लता अग्रवाल, डॉ मुश्ताक़ीम, डॉ शमा नाहिद, डॉ पांडेय, इरशाद हुसैन, डॉ रमाकांत राय, डॉ गौरव तिवारी, डॉ शगुफ्ता, डॉ भारती अग्रवाल, डॉ शमीम, अनवर खान, मुशिरा खातून, कामिनी कुमारी,  मनीष कुमार, रिंक्की कुमारी, दीपांकर, मनीषा महंत, मिलन, पंकज बाजपेयी,
  • वाङ्गमय पत्रिका के सहसंपादक अकरम हुसैन भी शामिल थे

  • अकरम क़ादरी 
  • यूट्यूब लिंक
  • https://youtu.be/iv3sCwJszoc
  • सुनिए डॉ रमेश कुमार जी को 
  • तृतीय लिंगी और कथा साहित्य विषय पर वाङ्गमय त्रैमासिक हिंदी पत्रिका के फेसबुक लाइव पेज से 
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