सोमवार, 18 मई 2020

हमारे बचपन में मां की लोरियां नहीं होती - डॉ. लता अग्रवाल

“हमारे बचपन में माँ की लोरियाँ नहीं होती : डॉ. लता अग्रवाल”


वाङ्गमय त्रैमासिक हिंदी पत्रिका द्वारा आयोजित फेसबुक लाइव व्याख्यान माला के अंतर्गत थर्ड जेंडर पर विमर्श हेतु चलाई जा रही श्रृंखला में आज भोपाल की वरिष्ठ साहित्यकार एवं समीक्षक डॉ. लता अग्रवाल ने अपने विचार रखे , आपने थर्ड जेंडर के बचपन की अवस्था पर चर्चा करते हुए कई प्रश्न उठाये | आखिर क्यों उनके बचपन में घर का आंगन नहीं होता , माता की लोरियाँ, बाबुल का दुलार , दादी के किस्से ,नानी का घर नहीं होता ...? इनके जन्म की खबर को गुप्त रखा जाता है , जन्म के पश्चात छोड़ दिया जाता है अनाथालय, मन्दिर या कूड़े के ढेर पर | आखिर क्या दोष है उनका ....? ये बच्चे तो आखिर हमारे ही समाज से आते हैं , किन्नर समाज की तो कोई प्रजनन क्षमता नहीं है | अगर इन्हें बचपन में घर की छत्रछाया मिल जाए तो ये भी आंगन की तुलसी, दरवाजे का नीम साबित हो सकते हैं बशर्ते इन्हें अवसर दिया जाय | और यह अवसर समाज को ही देना होगा |
डॉ. अग्रवाल ने किन्नर समुदाय से लिए अपने साक्षात्कार का हवाला देते हुए बताया अधिकांश के पिता और भाई द्वारा ही उन्हें अस्वीकार किया गया, वह भी इसलिए की समाज उन्हें उलाहना देगा,
‘ देखो !देखो !उसने किन्नर को जन्म दिया |”
“अरे ! वो जा रहा है किन्नर का भाई |” यहाँ समाज को अपना आत्ममंथन करने की आवश्यकता है | उन्होंने बताया कि क्यों हम उनसे उनके जीवन से जुड़े सवाल पूछकर उन्हें आहत करते हैं | वास्तव में यह प्रश्न तो उन माता-पिता से करने चाहिए जिन्होंने उन्हें छोड़ा है | सम्भव है इससे उनमे ग्लानि का भाव आये और किन्नरों की घर वापसी हो | डॉ. लता ने फ़ारसी परिवार में जन्मी सिमरन काजल, मनोबी बंदोपाध्याय, माई मनीषा महंत, जुली ,अमृता, पायल, काजल,शिल्पा, डॉली आदि के जीवन से जुड़े कई मार्मिक प्रसंग शोधार्थियों के समक्ष रखे | किस तरह सिमरन ने अपने ही जन्मदाताओं की प्रताड़ना को सहा और घर त्यागा ,अमृता सोनी का अपने ही पितातुल्य चाचा द्वारा दैहिक शोषण किया गया ,पायल कैसे जिन्दगी की तलाश में मौत को चकमा देखर निकल आई ...मगर इसके बाद जिन्दा रहने का इनका संघर्ष और भी भयानक है | किन्नर गीता , गौरी सावंत , माई मनीषा महंत का उदाहरण देकर आपने उनकी संवेदन शीलता के कई पहलू सामने रखे | 
   डॉ. अग्रवाल ने कहा , बेहद अफ़सोस का विषय है हमारी डिग्रियों में तो इजाफा हो रहा है ,मगर सोच वही कुंठित सी है , जिसमें विस्तार की आवश्यकता है | बचपन जीवन की महत्वपूर्ण अवस्था है अगर इसी में बिखराव होता है तो फिर हम उनसे सम्पूर्ण व्यक्तित्व की अपेक्षा कैसे रख सकते हैं ? वास्तव में इन्हें मुख्य धारा से परे रखकर देश इनकी क्षमताओं से वंचित रह गया है , हमें इस बात पर अफ़सोस होना चाहिए | जब इन्हें परिवार का साथ मिलता है तो ये भी अपनी प्रतिभा का इजहार करने में पीछे नहीं है |इसका उदाहरण है मानोवी बंदोपाध्याय जी, 
महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी जी ,गजल ,दीपक जिन्हें परिवार का साथ मिला और इन्होने साबित किया ये भी उतने ही सक्षम हैं |
आपने वर्तमान में इनके पारम्परिक व्यवसाय पर हो रहे आक्रमण पर भी चिंता व्यक्त की | साथ ही आज जो किन्नर समुदाय आम समाज के बच्चों की परवरिश कर उनके बचपन को  सहेज रहे हैं क्या भविष्य में वे बच्चे इनकी वृध्दावस्था में इनके साथ रहेंगे ...? इस बात पर चिन्तन किया जाना चाहिए | डॉ. अग्रवाल के अनुसार इन्हें अलग से स्कूल या कोई व्यवस्था की बात अगर हम करते हैं तो उन्हें वही अलगाव की ओर धकेलते हैं बेहतर होगा उन्हें सम्पूर्ण रूप से सामान्य समाज का सानिध्य मिले ताकि उनके व्यवहार में बदलाव आए | माता-पिता का आंगन उनसे कभी न छूटे ,यह उनका जन्मसिध्द अधिकार है | आपने बताया महामंडलेश्वर गलत नहीं कहतीं कि ‘उन्हें ट्रांसपरेंट देखा जाता है |’ आज किन्नर समुदाय हिंदुस्तान हो या पाकिस्तानी किन्नर समुदाय वे संवैधानिक प्रक्रिया से संतुष्ट नहीं है | आपने मंगला किन्नर का उदाहरण सामने रखा कि किस तरह बलात्कार के बाद डॉक्टर और फिर पुलिस विभाग से उन्हें उलाहने और उपेक्षा मिली वास्तव में यही उनकी जिन्दगी का सच है , दर्द है कि कोई उन्हें गंभीरता से लेना नहीं चाहता |
आगे उन्होंने यह भी स्वीकारा कि स्थिति उतनी असंतोष जनक नहीं है आज स्थिति में काफी सुधार हो रहा है , अंत में उन्होंने कहा युवा वर्ग को अपनी सोच युवा रखनी चाहिए | तभी कोई परिवर्तन सम्भव है। इस लाइव कार्यक्रम में देश-विदेश के अनेक लोग शामिल हुए जिन्होंने इस कार्यक्रम को सफल बनाया। एएमयू के प्रोफेसर मेराज अहमद, प्रोफ़ेसर कमलानन्द झा, डॉ. पुनीत बिसारिया
प्रिंसिपल डॉ तनवीर अख्तर, डॉ लता अग्रवाल, डॉ मुश्तक़ीम, डॉ शमा नाहिद, डॉ पांडेय, इरशाद हुसैन, डॉ रमाकांत राय, डॉ गौरव तिवारी, डॉ शगुफ्ता, डॉ भारती अग्रवाल, डॉ शमीम, अनवर खान, मुशिरा खातून, कामिनी कुमारी,  मनीष कुमार, रिंक्की कुमारी, दीपांकर, मनीषा महंत, मिलन, पंकज बाजपेयी,डॉ कामिल, मुनवर कामिल, डॉ सविता सिंह एवं वाङ्गमय के सहसंपादक अकरम हुसैन ने भी लाइव कार्यक्रम में शिरकत की
अकरम हुसैन 
सहसंपादक
वाङ्गमय त्रैमासिक हिंदी पत्रिका
अलीगढ़
यूटयूब लिंक

https://youtu.be/OBZzW547v6E
सुनिए भोपाल की साहित्यकार/समीक्षक डॉ. लता अग्रवाल जी को 
"हमारी तकदीर में लोरियां नहीं होती "
नामक विषय पर जोकि वाङ्गमय त्रैमासिक पत्रिका के फेसबुक लाइव प्रोग्राम से साभार है

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