मंगलवार, 19 मई 2020

फिल्मों के माध्यम से बदली जा सकती है, किन्नरों के प्रति मानसिकता- कमलानंद झा

फिल्मों के माध्यम से बदली जा सकती है किन्नरों के प्रति मानसिकता- कमलानंद झा

वाङ्गमय पत्रिका (फेस बुक लाइव) द्वारा आयोजिय दस दिवसीय थर्ड जेंडर विषयक व्याख्यानमाला में आज ए एम यू, हिन्दी विभाग के प्रोफेसर कमलानंद झा ने 'थर्ड जेंडर और सिनेमा' विषय पर व्यख्यान दिया। इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि 1996 में  थर्ड जेंडर पर अमोल पालेकर के निर्देशन में बनी फिल्म 'दायरा' को सेंसर बोर्ड ने  हिंदुस्तान में रिलीज़ नहीं होने दिया।  जबकि, कई अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोहों में यह फ़िल्म खूब प्रशंसित हुई । टाइम्स मैगजीन ने उस साल दुनिया के दस श्रेष्ठ फिल्मों की सूची में इसे रखा। वही फिल्मी दुनिया 2013 में  भारतीय फिल्म के सौ वर्ष पूरे होने पर 'बॉम्बे टॉकीज' जैसी फ़िल्म बनाती है,  जिसमें  ट्रांस जेंडर की भूमिका प्रमुख होती है।  25 सालों में दृष्टि की यह भिन्नता महत्वपूर्ण है और आशाजनक भी। उन्होंने कहा कि ट्रांस जेंडर के लिए हिन्दी मे कई  शब्द प्रचलित हैं, लेकिन हिजड़ा शब्द ज्यादे उपयुक्त इसलिए है कि यह अरबी शब्द हिज्र से बना है जिसका अर्थ होता है, सामाजिक बहिष्करण। 
अपने व्यख्यान में प्रो झा ने कहा कि इस विषय पर बनीं वही फिल्में महत्वपूर्ण हो सकती हैं, जो हिजड़ों के अस्तित्व के सवाल को सिद्दत से उठाए, सामाजिक बहिष्करण को प्रश्नांकित करे और उन्हें मानवीय गरिमा से समृद्ध करे। साथ ही समाज से लेकर सरकार तक से इनके मुद्दे को लेकर सवाल करे।अधिकांश हिन्दी फिल्मों ने उयोगितावादी दृष्टिकोण  और फ़िल्म हिट कराने की नीयत से इन ट्रांस जेंडर लोगों का उपयोग किया है। 
उन्होंने इस मसले पर बनी महत्वपूर्ण फिल्मों में बँग्लादेसी फ़िल्म कॉमन जेंडर  (नमिन रॉबिन ), पाककिस्तान की फ़िल्म बोल ( सोएब मंसूर), तमिल फिल्म 'नर्तगी' ( जी. विजय पद्मा) मराठी फिल्म जोगवा (संजीव पाटील), हिन्दी फिल्मों में दरमियां (कल्पना लाजमी), वेलकम टू सज्जनपुर(श्याम बेनेगल) शबनम मौसी (योगेश भारद्वाज)तथा बाम्बे टॉकीज (एक भाग का निर्देशन जोया अख्तर) आदि को माना। कॉमन जेंडर के बारे में उन्होंने कहा कि यह फ़िल्म एक हिजड़े की आम आदमी से प्रेम की संघर्षपूर्ण महागाथा है, जिसकी परिणति हिजड़े की आत्महत्या में होती है। 'बोल' धार्मिक हदबंदी में जकड़े पितृसत्ता की चंगुल में छटपटाते एक ट्रांस जेंडर सेफ्फुला की करुण गाथा है। 'नर्तगी' फ़िल्म  कि विशेषता यह है कि इसमें सहोदरी नाम की बहुत महत्वपूर्ण एनजीओ की निदेशका,थर्ड जेंडर कल्की सुब्रह्मण्यम ने लीड रोल निभाया है। फलस्वरूप फ़िल्म अत्यंत यथार्थ और संवेदनशील बन पड़ी। जोगवा महाराष्ट्र और कर्नाटक के धार्मिक अन्धविश्ववस पर प्रहार करती फ़िल्म है। वहाँ एक अन्धविश्ववास यह है कि अगर किसी लड़की के बाल में जटा हो जाए और लड़के के लिंग से थोड़ा भी खून निकल जाए तो उसे हिजड़ा घोषित कर दिया जाता है। समाज उसे बहिष्कृत कर एकाकी जीवन जीने पर मजबूर कर देता है और यलम्मा देवी  की सेवा के लिए छोड़ देता है। देवी के मंदिरों में उनका 'वैध' यौन शोषण होता है। उन्होंने कहा कि   सूली (नायिका) और तय्यप्पा(नायक)  की संघर्षगाथा का नाम है जोगवा।
उन्होंने कहा कि यह समाज द्विलिंगी भी नहीं एक लिंगी है। यहाँ स्त्री के रूप में दूसरी लिंग पहली लिंग की सुविधा और मुखाग्नि के लिए पुत्र प्राप्ति हेतु है। ऐसे समाज मे तीसरे लिंग की दुविधा और दुश्चिंता को समझना आसान नहीं है। हिजड़ों की संवेदना को समझने के लिए हमें पितृसत्ता के कवच को उतार फेकना होगा। आगे उन्होंने कहा कि इन पर बनी फिल्में साफ-साफ कहती है कि इनका माँ-बाप नहीं, इनका घर नहीं, समाज नहीं, देश नहीं , तो फिर इनका अपना क्या? ये सचमुच भारत माँ की अनाथ संतान हैं। इसी क्रम में इन्होंने लक्ष्मी त्रिपाठी की आत्मकथा 'मैं लक्ष्मी...मैं हिजड़ा', करनाल की हिजड़ा मनीषा महंत के साक्षात्कार तथा प्रदीप सौरभ के तीसरी ताली  उपन्यास आदि का जिक्र करके अपने व्याख्यान को सारगर्भित और प्रासंगिक  भी बनाया। व्यख्यान के समय कई शिक्षक, शोधार्थियों ने लाइव होकर व्याख्यान का आनंद लिया।
प्रिंसिपल डॉ तनवीर अख्तर, डॉ लता अग्रवाल, डॉ मुश्ताक़ीम, डॉ शमा नाहिद, डॉ पांडेय, इरशाद हुसैन, डॉ रमाकांत राय, डॉ गौरव तिवारी, डॉ शगुफ्ता, डॉ भारती अग्रवाल, डॉ शमीम, अनवर खान, मुशिरा खातून, कामिनी कुमारी,  मनीष कुमार, रिंक्की कुमारी, दीपांकर, मनीषा महंत, मिलन, पंकज बाजपेयी,
डॉ कामिल, मुनवर कामिल, डॉ सविता सिंह, कनुप्रिया झा, रामकुमार सिंह, नीरज, आशीष तिवारी इसके अलावा वाङ्गमय पत्रिका के सहसंपादक अकरम हुसैन ने भी पत्रिका में लाइव कार्यक्रम को सुना 
इस कार्यक्रम को दोबारा सुनने के लिए AKRAM HUSSAIN QADRI नाम से यूटयूब पर दोबारा सुना जा सकता है

अकरम हुसैन
सहसंपादक
वाङ्गमय त्रैमासिक हिंदी पत्रिका
अलीगढ़

यूट्यूब लिंक

https://youtu.be/E5iMR04vMpg
सुनिए 'थर्ड जेण्डर और फ़िल्म' पर विचारोत्तेजक व्याख्यान प्रोफ़ेसर कमलानंद झा सर को वाङ्गमय पत्रिका के फेसबुक लाइव के माध्यम से
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