बुधवार, 20 मई 2020

इंसान को इंसान मानने की जद्दोजहद है किन्नर-विमर्श- प्रोफ़ेसर मेराज अहमद

इंसान को इंसान मानने की जद्दोजहद है किन्नर-विमर्श- प्रोफ़ेसर मेराज अहमद

वाङ्गमय त्रैमासिक हिंदी पत्रिका के फेसबुक लाइव पेज से आज एएमयू हिंदी विभाग के सृजनात्मक साहित्य के पुरोधा प्रोफ़ेसर मेराज अहमद ने अपने विचार रखे जिसमे किसी विमर्श के शुरू होने पर प्रश्न उठाया और बताया आखिर कोई विमर्श क्यों प्रकाश में आता है, दरअसल किसी भी विमर्श के गर्भ में एक पीढ़ा होती है कभी वो सामाजिक होती है तो राजनैतिक, आर्थिक, या फिर लैंगिक । 
किन्नर विमर्श का उदय लैंगिक पीढ़ा के कारण होता है जिसमे यह समाज उनके प्रति होने वाले लैंगिक भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाता है और स्वयं को इस देश में बराबर का नागरिक भी बनने की इच्छा जाहिर करता है जो उनका संवैधानिक अधिकार भी है लेकिन ट्रांसजेंडर को बहुत अधिकार मिले भी है और अभी बहुत अधिकारों को मिलने की आशा भी है। काफी वर्षो से चले आ रहे है इस संघर्ष में किन्नरों ने स्वयं को इंसान की दृष्टि से देखने का प्रयत्न समाज के सामने किया है जो समाज उसको नहीं देना चाहता , किन्नर समाज चाहता है कि उसको इंसान होने का दर्जा प्राप्त हो। मानव योनि में जन्म लेकर भी उसको इंसान का दर्जा ना मिलना वास्तव में बहुत ही दर्दनाक मंज़र है। क्योंकि अगर उसके लिंग में कुछ विकृति है तो यह उसका दोष तो नहीं है नाही उसके माता- पिता का दोष है यह तो उसके जननांग विकसित ना हो पाने का दर्द है जिसको वह बार बार कहता भी है और संवैधानिक लड़ाई को पूरी संवेदनशीलता से कफलड भी रहा है। 
दरअसल किन्नर समाज के प्रति होने वाली पीढ़ा का व्यवहारिक अवलोकन किया जाए तो हम देखते है कि अधिकतर किन्नरों को उनके परिवार से ही प्रारंभ में मारपीट, ऊंच-नीच का भाव देखने को मिलता है जिससे उसमे मानसिक तौर पर गिरावट आती है जब वो किशोरावस्था में आते है तो शरीर विकसित होने लगता है लेकिन जननांग विकसित नहीं होते है बल्कि उनका विकास रुक जाता है। इस आयु में कोई भी शिशु बड़ा चंचल होता है और उसके हृदय में नई नई ऊर्जा, उमंग का संचार होता है लेकिन किन्नर कभी भी कुछ सोच नहीं पाता है क्योंकि मानसिक रूप से वो बहुत परेशान हों चुका होता है फिर पिता और भाइयो के कारण उसको घर से भागना पड़ता है जबकि अधिकतर मामलों में देखा गया है किन्नर की माँ चाहती है वो घर से बाहर ना जाये लेकिन लोक लाज के कारण पिता या उसके भाई उस किन्नर का समर्थन नहीं करते है जिसके कारण ट्रांसजेंडर को अपना घर त्यागना पड़ता है और वो किन्नरों में जाकर मिल जाता है तथा उनके संस्कार और संस्कृति को स्वयं में ढालने लगता है उनका पहनावा और श्रृंगार करने लगता है फिर धीरे-धीरे उसको गुरु किन्नर बधाई मांगने ले जाते है फिर वह इसी काम मे लग जाता है, कभी कभी घर भी नहीं होता है या उसको नया घर बनाना पड़ता है यह उसके लिए दुगना कार्य हो जाता है जिसको वह अपनी मेहनत से तैयार भी करता है, उसके पास सबकुछ अपनी मेहनत का होता है फिर भी वह अपने परिवार को याद करता है अधिकतर मां से जो एक बच्चे से बॉन्डिंग होती है उसके प्रति जो दर्द होता है उस पीढ़ा को वह समझता है अपनी माता के लिए बहुत उदार रहता है।
किन्नर विमर्श के माध्यम से कथाकार मेराज अहमद ने किन्नर पर अपनी लिखी कहानी का भी ज़िक्र किया और बताया उन्होंने जो कहानी लिखी है उसका प्लॉट यथार्थ पर आधारित है और जिनकी कहानी है वो तीनो एक साथ रहती है और उनको किसी भी समाज ने उनको वहां से नहीं हटाया है उनके आर्थिक साधन भी है जिसके कारण वो अपना जीवन अच्छे से व्यतीत कर रहे है। 
यधपि यह पत्रिका का आखिरी फेसबुक लाइव था जिसमे उन्होंने सभी समान्नित वक्तागण का हार्दिक आभार प्रकट किया।
हिंदी विभाग के प्रभारी डॉ. ए. के. पाण्डेय हलीम मुस्लिम पीजी कॉलेज के प्राचार्य डॉ. तनवीर अख्तर एवं टीचिंग स्टाफ विशेष रूप से डॉ मोहम्मद शमीम, डॉ. अब्दुल्लाह फ़ैज़, डॉ. मुश्तकीम, डॉ. इरशाद, शमा नाहिद, डॉ. अफ़रोज़।

फेसबुक लाइव पर वक्तागण
डॉ. रमाकान्त राय, डॉ. लवलेश दत्त, डॉ. गौरव तिवारी, डॉ. भारती अग्रवाल, डॉ. मोहम्मद शमीम, डॉ. रमेश कुमार, डॉ. लता अग्रवाल, प्रोफेसर कमलानंद झा, डॉ. राधेश्याम 
विशेष रूप से वाङ्गमय के सहसंपादक अकरम हुसैन, डॉ. मोहसिन ख़ान, शाबान खान, सलीम अहमद, मनीष गुप्ता
तकनीकी रूप से डॉ. रमाकान्त राय जी का विशेष आभार
इसके अलावा जो हमारे वाङ्गमय पत्रिका के श्रोतागण, जिन्होंने परोक्ष या अपरोक्ष रूप से सहयोग प्रदान किया है उन सभी का ह्रदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ।
आप सभी ने वाङ्गमय परिवार को आजतक जो प्रेम दिया है उसके लिए आभारी रहूंगा, तथा विशेष रूप से हलीम पीजी कॉलेज परिवार का भी  धन्यवाद
किन्नर विमर्श पर सार्थक चर्चा और प्रकाशन का काम करने वाले विकास प्रकाशन का भी हार्दिक धन्यवाद जिन्होंने समय समय पर पत्रिका के कार्यक्रम में अपना योगदान दिया
यूट्यूब लिंक
https://youtu.be/U-bQNbCq-f4
सुनिए एएमयू प्रोफ़ेसर मेराज अहमद सर को वाङ्गमय पत्रिका के फेसबुक लाइव पेज से 
विषय- आधी हक़ीक़त, आधा फसाना
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