गुरुवार, 21 मई 2020

महामारी में भी सड़को पर क्यों है अल्लाह के बन्दे- रामकुमार सिंह

दुआ दीजिए इन अल्लाह के बंदों को जो अपने त्योहार की तैयारियां न करके महानगरों से भूखे-प्यासे पैदल और बीमार अपने घर लौट रहे मजदूरों की दिल खोलकर मदद कर रहे हैं। मुट्ठी भर जमातियों के नाम पर इस पूरी कौम को गला फाड़ फाड़कर गालियां देने वालो एक दो शब्द इन मानवतावादी लोगों के लिए भी कहिए। मैं जानता हूँ कि आप नहीं कहेंगे क्योंकि आप लोंगो को बचपन से ही घृणा के संस्कार मिले हैं।इसमें आपका नहीं आपकी परवरिश करने वाले माँ-बाप का दोष है क्योंकि उन्होंने तुमको प्रेम और भाईचारे के संस्कार दिये ही नहीं।तुम जब भी मुँह खोलते हो तो ज़हर ही उगलते हो।हे विषपुत्रो!मैं तुम्हें परवरिश देने वालों पर लानत भेजता हूँ।मैं ये अच्छी तरह जानता हूँ कि तुम भी मुट्ठी भर लोग हो और अपने कुकर्मों से पूरे समुदाय को कलंकित कर रहे हो।एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है वाली कहावत को चरितार्थ करने का बीड़ा तुम लोगों ने ही उठाया है।लेकिन तुम्हारे मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा, क्योंकि इस देश में घृणा का व्यापार करने वालों से ज्यादा बड़ी तादात में प्रेम का व्यवहार करनेवाले लोग हैं।हर वह व्यक्ति जो घृणा का व्यापार करता है चाहे वह किसी भी जाति या धर्म से तआल्लुक रखता हो मैं उसकी मुखालिफत करता हूँ और हर वह व्यक्ति जो प्रेम का व्यवहार करता है चाहे वह किसी भी जाति या धर्म से तआल्लुक रखता हो का मैं खुले दिल से स्वागत करता हूँ।ये विकट महामारी का वक्त है, इसने दुनियाभर की तमाम महाशक्तियों की चूलें हिलाकर रख दी हैं।इस वक्त की सबसे बड़ी ज़रूरत ये है कि हम लोगों को मिलजुलकर इस कठिन दौर से गुजरना है।एकता मैं शक्ति होती है।हम लोगों में आपसी फूट डालने वालों के मंसूबों को नेस्तनाबूद करके ही हम लोग ये आधी लड़ाई जीत सकते हैं।जरूरत है एक अच्छे आगाज़ की। अच्छी नीयत से किया गया आगाज़ हमेशा अच्छा अंजाम देता है।हमें नफरत करने वालों से नफरत करने की जरूरत नहीं है, जरूरत है आपस में प्रेमपूर्ण व्यवहार करने की क्योंकि यही वह तरीका है जिसके माध्यम से हम इनको परास्त कर सकते हैं।नफरती राक्षसों का संहार सिर्फ और सिर्फ प्रेमास्त्र से ही किया जा सकता है।इसलिए मैं तो गीतकार आनंद बक्शी के शब्दों में सिर्फ इतना ही कहूँगा कि -
नफ़रत की लाठी तोड़ो, लालच का खंजर फेंको
ज़िद के पीछे मत दौड़ो, तुम प्रेम के पंछी हो
देश प्रेमियों
आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों
मेरे देश प्रेमियों
आपस में प्रेम करो देश प्रेमियों

देखो ये धरती हम सबकी माता है
सोचो आपस में क्या अपना नाता है
हम आपस में लड़ बैठे तो, देश को कौन संभालेगा
कोई बाहर वाला अपने घर से हमें निकलेगा
दीवानों होश करो
मेरे देश प्रेमियों
आपस में प्रेम करो...

मीठे पानी में ये ज़हर ना तुम घोलो
जब भी कुछ बोलो ये सोच के तुम बोलो
भर जाता है गहरा घाव, जो बनता है गोली से
पर वो घाव नहीं भरता, जो बना हो कड़वी बोली से
तो मीठे बोल कहो
मेरे देश प्रेमियों
आपस में प्रेम करो...

तोड़ो दीवारें ये चार दिशाओं की
रोको मत राहें इन मस्त हवाओं की
पूरब पच्छिम उत्तर दक्खन वालों मेरा मतलब है
इस माटी से पूछो क्या भाषा क्या इसका मज़हब है
फिर मुझसे बात करो
मेरे देश प्रेमियों
आपस में प्रेम करो...

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