बुधवार, 27 मई 2020

किन्नर के अस्तित्व की समीक्षा है अस्तित्व उपन्यास - नितिन सेठी

किन्नर के अस्तित्त्व की समीक्षा है 'अस्तित्त्व' उपन्यास - नितिन सेठी

वाङ्गमय पत्रिका द्वारा आयोजित किन्नर विमर्श पर आधारित पुस्तक श्रृंखला कार्यक्रम के दूसरे दिन बरेली के प्रख्यात समीक्षक डॉ. नितिन सेठी ने अपने विचार बरेली की लेखिका गिरिजा भारती के उपन्यास 'अस्तित्व' पर रखे। उन्होंने बताया कि अस्तित्व एक ऐसा उपन्यास है, जिसमें एक किन्नर के जीवन को उभारा गया है। सुधा और वर्मा जी की पहली संतान किन्नर निकलती है, जिसका नाम वे 'प्रीत' रखते हैं। सुधा प्रीत का हरसंभव ख्याल रखती है और उसे कभी अपने से अलग होने नहीं देती। आमतौर पर जहां माता-पिता द्वारा ऐसे बच्चों का परित्याग कर दिया जाता है, वहीं गिरजा भारती ने दर्शाया है कि मां-बाप मिलकर उस किन्नर बच्चे को अच्छी शिक्षा दिलवाते हैं और उसका पूरा ध्यान रखते हैं। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रीत प्राइवेट नौकरी भी करती है। समय के साथ उसकी छोटी बहन रीत और भाई शुभम की शादियां भी संपन्न हो जाती हैं। अब सुधा प्रीत को भी शादी करने के लिए कहती है। प्रीत हैरान है कि उससे शादी कौन करेगा। लेखिका ने दर्शाया है कि प्रीत एक किन्नर लड़के से शादी करती है और अपना घर खुशी-खुशी बसा लेती है। शादी के बाद अनाथालय से वे एक लड़की भी गोद लेते हैं। इस प्रकार उनकी गृहस्थी पूरी हो जाती है। किन्नर विमर्श को आगे बढ़ाते हुए डॉ. नितिन सेठी ने बताया कि अधिकांश उपन्यासों में किन्नर को नाचते-गाते या अन्य सामाजिक कार्यों में लगे हुए दिखाया गया है, परंतु अस्तित्व में किन्नर प्रीत अपने परिवार के साथ रहती है और बाद में अपना परिवार भी बसाती है। जहां अन्य अनेक उपन्यास दुखांत रहे हैं, वहीं अस्तित्व हमें एक संदेश दे जाता है कि यदि माता-पिता और परिवार चाहे तो ऐसे किन्नर बच्चों की परवरिश भी भली-भांति की जा सकती है। यहां साहित्यकारों को थोड़ा सा समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण भी अपनाने की आवश्यकता है। विषय को विस्तार देते हुए डॉ. नितिन सेठी ने रेखांकित किया कि अस्तित्व उपन्यास में किन्नर प्रीत के अंतर्द्वंद और मानसिक व्यथा का कम बल्कि उसकी माता का अंतर्द्वंद अधिक दिखलाया गया है। यही इस उपन्यास की मुख्य विशेषता भी है। प्रीत के पिता वर्मा जी अपना स्थानांतरण इसी बात को छिपाने के लिए दिल्ली करा लेते हैं। सुधा की सास जीवन भर इस रहस्य को नहीं जान पाती। पास पड़ोस के लोग भी इस बात को नहीं जानते कि प्रीत एक किन्नर है। गिरिजा भारती ने उपन्यास में एक आदर्श स्थापित करने का प्रयास किया है, जिसमें वे सफल भी रही हैं। श्रोताओं के अनेक प्रश्नों का उत्तर देते हुए डॉ. नितिन सेठी ने आवाहन भी किया कि हमें थर्ड जेंडर की उचित शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध भी करना होगा। सभी शोधार्थियों से भी उनका यही अनुरोध रहा कि अपना शोधकार्य पूर्ण होने के पश्चात् कम से कम एक किन्नर की शिक्षा-दीक्षा का दायित्व अपने पर भी लें जिससे वे इस ऋण से भी मुक्त हो सकें। किन्नर विमर्श में वैज्ञानिकता के महत्त्वपूर्ण प्रश्र पर उत्तर देते हुए डॉ. नितिन सेठी ने बताया कि जैव विज्ञानियों को भी इस दिशा में सामने आना चाहिए और इस प्रकार के अनुभवों को लिपिबद्ध करना चाहिए। इसका एक बड़ा लाभ यह होगा कि हमारे लेखकों को भी इससे संबंधित विज्ञान पर उचित व मार्गदर्शक सामग्री मिल सकेगी, जिससे उनके उपन्यासों और कहानियों में यथार्थ का संतुलन व समन्वयन स्थापित हो सकेगा। अंत में सभी श्रोताओं, वाङ्गमय पत्रिका, डॉ. फ़ीरोज़ अहमद और विकास प्रकाशन का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए डॉ. नितिन सेठी ने अपनी बात समाप्त की। ज्ञातव्य है कि डॉ. नितिन सेठी इस प्रकार के विमर्श पर बहुउद्देशीय समीक्षात्मक लेखन करते रहे हैं और साहित्य के एकांत साधक हैं।
इस फेसबुक लाइव में देश-विदेश के अनेक साहित्यकार, शोधार्थी और छात्र-छात्राएं भी शामिल हुए जिसमे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की डॉ. शगुफ्ता नियाज़, डॉ. लवलेश दत्त, प्रोफ़ेसर शंभुनाथ तिवारी, डॉ. आसिफ़ खान, डॉक्टर आज़र ख़ान, डॉ. मोहसिन ख़ान, शाबान ख़ान, मनीषा गुप्ता, तथा वाङ्गमय पत्रिका के सहसंपादक अकरम हुसैन ने शामिल होकर किन्नर विमर्श के पठनीय उपन्यास का रसास्वादन किया था इस विषय पर गम्भीर प्रश्नों को भी पूछा गया जिसका समीक्षक महोदय ने बहुत ही सटीकता से जवाब दिया 
इस कार्यक्रम को दोबारा सुनने के लिए आप यूट्यूब पर 
AKRAM HUSSAIN QADRI नाम से सर्च करके सुन सकते है और लाभान्वित हो सकते है

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