शुक्रवार, 29 मई 2020

थर्ड जेण्डर साहित्य में समाज का सूक्ष्म विश्लेषण - विमलेश शर्मा

 जेण्डर साहित्य में समाज का सूक्ष्म विवेचन - विमलेश शर्मा

वांङमय पत्रिका और विकास प्रकाशन के संयुक्त तत्त्वावधान में आज 29 मई को  थर्ड-जेण्डर पर विचार-विमर्श हेतु जारी शृंखलाओं की कड़ी में दूसरे सत्र का आयोजन किया गया । इस संदर्भ में आज ‘ हिन्दी कहानियों में दैहिक संज्ञाएँ एवं सामाजिक दृष्टिकोण’ विषय पर डॉ.विमलेश शर्मा,सहायक आचार्य अजमेर,राजस्थान ने अपने विचार रखें। इस व्याख्यान में अनेक प्रबुद्ध शिक्षक व शोधार्थी उपस्थित रहे जिन्होंने विषय का गहन मंथन किया। व्याख्यान में तृतीयलिंगी या थर्ड जेण्डर समुदाय की पीड़ाओं और उसके जीवन की त्रासद स्थितियों पर चर्चा की गई। 
व्याख्यान थर्ड जेण्डर विमर्श को परिभाषित करते हुए कहा गया कि यह समाज, संस्कृति एवं इतिहास जिसमें परम्पराएँ, मान्यताएँ, जीवन-मूल्य सभी शामिल हैं का पुनरीक्षण करते हुए इस वर्ग की स्थिति और बेहतरी की सभी संभावनाओं पर मानवीय दृष्टि से विचार करने की प्रक्रिया है। जब हम इस तृतीयक वर्ग की बात करते हैं तो हमें स्त्री वर्ग और स्त्री समस्याओं को भी केन्द्र में रखना होगा। इस प्रकार यह विमर्श जहाँ एक ओर परम्परागत मान्यताओं का विरोध करता है वहीं  समाजशास्त्रीय संरचनाओं और वैचारिक तथा वर्चस्ववादी मानसिकता की परत-दर-परत पड़ताल करता है। किन्नर विमर्श सामाजिक अस्तित्व की अनिवार्य स्वीकार्यता की सामूहिक चेष्टा का नाम है। इसकी चाहना है कि इस समूह को  सामाजिक संरचनात्मक ढाँचे पर स्वीकार किया जाए जिससे उसमें आत्मसम्मान और गौरव का संचार हो यही इस विमर्श का उद्देश्य है। साहित्य की यह धारा या सरोकार देह से परे की सोच का है जिसके खिलाफ एक हद तक स्त्रीवादी आंदोलन और उस पर काम करने वाले भी जूझते रहे हैं । थर्ड जेण्डर विमर्श को, इसकी समस्याओं को अभी तक लैंगिक परिप्रेक्ष्य में ही देखा गया परन्तु इसे अधिगम अक्षमता या विशेषता के संदर्भ में भी देखना होगा।  द  नेशनल ज्वांइट कमेटिज ऑन लर्निंग डिसएबिलिटिज-1994 के अनुसार जो इन्द्रियजन्य शारीरिक विशिष्टता व मंदता को भी शामिल किया गया है, जिसमें से अधिकांश केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के सामान्य रूप से काम नहीं करने के कारण आने वाली विकृतियाँ हैं। साथ ही जब हम जेण्डर स्टडीज का अध्ययन करते हैं तो उन्हें भारतीय संदर्भों में देखना होगा। व्याख्यान में हिन्दी कहानी साहित्य की अनेक प्रमुख कहानियों जिनमें चमेलीजान, दरमियाना, बिन्दा महाराज, संझा, कबीरन, कौन तार से बीनी चदरिया, मैमूना, मौमिना और मैनू तथा हिजडा शीर्षक कहानियों  पर विशद विवेचना की गई तथा अलिंगी समाज की अस्मिता संबंधी प्रश्नों को तथा त्रासद स्थितियों पर गहन संवाद किया गया।
इस फेसबुक लाइव में बहुत विद्वान शामिल थे जिनमें से
भगवान दास मोरवाल, अनुसंधान पत्रिका की संपादक डॉ शगुफ्ता, वाङ्गमय पत्रिका के संपादक डॉ फ़ीरोज़ खान, डॉ. शमीम, डॉ. शमा नाहिद, महमूद अहमद, डॉ सविता सिंह, रोशनी बाजपेयी, डॉ मो.  आसिफ, डॉ रमाकांत, डॉ गौरव तिवारी, मनीषा कुमार, अनुराग वर्मा, दीपांकर, कामिनी, रिंक्की, मुशिरा खातून, डॉ भारती अग्रवाल एवं वाङ्गमय पत्रिका के सहसंपादक अकरम हुसैन तथा बहुत से शोधार्थी, विद्यार्थी भी सम्मिलित थे
इस कार्यक्रम को दोबारा सुनने के लिए AKRAM HUSSAIN QADRI के यूट्यूब चैंनल पर भी सुना जा सकता है
यूट्यूब लिंक

https://youtu.be/PlgUWE2WKSM

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