रविवार, 31 मई 2020

टिड्डी जिहाद में शोले के करैक्टर का संवाद - रामकुमार सिंह

(कालिया का प्रमोशन) व्यंग्य

साँभा - सरदार टिड्डियों का हमला हुआ है!
गब्बर- तो देख क्या रहे हो उठाओ बंदूक और लगाओ निशाना!
साँभा - सरदार टिड्डियाँ बंदूक से नहीं मरतीं!
गब्बर - ऐं! तो कौनूँ और उपाय है क्या रे कालिया?
कालिया - सरदार मैंने आपका नमक......
गब्बर - अरे नामुराद वो तो हम जानत हैं कि तुम हमारा ही नमक खा खाकर करियाइ रहे हो!
कालिया - सरदार मैंने आपका नमक.....! ओह् सिट ! क्या करूँ सरदार डाइरेक्टर ने इस डायलॉग के इतने रिटेक लिये थे कि मुझे इसी से बात शूरू करने की आदत हो गई है।अब देखिए कल बीवी से चाय के लिए बोलना था तो उससे भी बोल दिया कि सरदार मैंने आपका नमक खाया इसलिए गर्मागर्म कड़कदार चाय पिलाओ!इतना सुनकर उसने ऐसे भौंहें तरेरी जैसे महाप्रलय होने वाली हो, और बोली नमक खाया होगा तुमने अपने सरदार का मैं तो जिस दिन से इस घर में आई हूँ मेरा तो खून ही पीया है तुमने।
गब्बर - हा!हा!हा! (ठहाके मारकर हँसता है।) अब तुम्हारी बहुरिया की कथा संपन्न हुइ गई हो तो कछू इन टिड्डियों के बारे में भी सोचो।सारे बीहड़ों की हरियाली को चुग गईं तो कहाँ छुपाएंगे अपनी पलटन को और कहाँ छुपेगा तुम्हारा सरदार ? लगता है सरकार को पचास हजार रुपये दिलवाकर ही जाएंगी ये टिड्डियाँ।साला लाॅकडाउन के चलते सरकार भी हम पर इनाम नहीं बढ़ाई है।अभी तक पचास हजारी ही बने रहे। न जाने कब से लखपतिया डकैत होने के लिए बाट जोह रहे हैं!
साँभा - सरदार एक निशाना मारकर देखूँ ? पर एक शर्त है! अगर निशाना चूक जाए तो मेरा खून पीने को उतारू मत होना!
गब्बर - रहने दे तुझसे नहीं हो पाएगा! साला लाॅकडाउन के चलते वैसे ही हथियारों और गोलियों की सप्लाई रुकी पड़ी है।अरे ओ कालिया! कोई आईडिया आया रे तेरे दिमाग में या सिर्फ नमक ही नमक भरा है?
कालिया - सरदार मैंने आपका...... ओह् तेरी!हाँ तो सरदार मैं ये कह रहा था कि एक आईडिया आया तो है!
गब्बर- हा!हा!हा!  हा!हा!हा! अरे ओ साँभा जे तो ग़जब हो गया रे ! कालिया के दिमाग में आईडिये आने लग गए रे।हम तो समझत रहे कि सिर्फ़ नमक ही नमक भरा है इसके कपार में।जे तो बड़ा काम का आदमी निकाल रे।आजतक ख्वाहमख्वाह नामुराद कहत रहे इसको।
साँभा - जे तो वो बात हो गई सरदार कि कभी-कभी खोटा सिक्का भी चल जाता है।
गब्बर- हा!हा!हा! ( हँसते-हँसते साँसें फूल जाती हैं) तनिक पानी तो पिला रे कालिया!(कालिया पानी देता है) तो का पिलान बनाए हो जा टिड्डीयन की बीमारी सों बचने कूं ?
कालिया - बताएंगे सरदार जरूर बताएंगे तनिक धीरज तो धरो! पहिले तनिक तंबाकू खिलाइ देउ तो ताकि आईडिया अच्छे से बाहेर आए!(ऐसे प्रभाव जमाता है जैसे किसी महाराज का प्रधान अमात्य हो)
गब्बर - अरे ओ साँभा!उठा तो बंदूक और लगा निशाना ससुरे की खुपड़िया पर।इसे लाॅकडाउन में सुरती फाँकने का शौक चढ़ा है।देख नहीं रहा है सरदार महीनों से बिना सुरती और सोमरस का पान किए खलिहर बैठा है!मेरे जख्मों पर नमक छिड़क दिया रे तूने तो।जईसन- तईसन भुलाए रहे अपनी एट पी एम और राजहंस को पर तूने यादि दिलाइ दई रे!भलाई इसी में है कि अपने आईडिये को फौरन बाहर निकाल नही तो खोपड़ी को पत्थर से तोड़कर हम खुदई बाहेर निकाल देवेंगे।(गब्बर की आँखों में लाल डोरे पड़ गए)
कालिया - सरदार मैंने आपका नम..... या अल्लाह! मुआफ करें सरदार!तो अब आते हैं मेन मुद्दे पर। पिलान जे है गुरू कि पूरी पल्टन को ताली थाली बजाने पर लगाया जाए।
गब्बर- ऐं!जे का पिलान है? (गब्बर सिर को खुजलाने लगता है)
कालिया- सरदार मैंने..........! जे बहुत टेक्निकल आईडिया है सरदार!गुरू पहले इस्तेमाल करो फिर विश्वास करो।माथापच्ची बाद में। झंडू बाम मलिए, थाली बजाने चलिए।(हल्की सी हँसी चेहरे पर तैर जाती है)
गब्बर - भाईयों-बहिनों!जे हमारी इज्जत का सवाल है।का कहेंगे लोग कि जिस गब्बर को पूरे मुल्क की पुलिस नहीं तलाश पाई उसे टिड्डियों ने तलाश लिया, और बेहद शर्म की बात तो ये होगी कि हम इस सरकारी मीडिया की टीआरपी का जरिया बन जाएंगे।साला महीनों इसी एक घटना को दिखाकर हमारी इज्ज़त का फालूदा बनाते रहेंगे।मेरे अजीज साथियों क्या तुम ऐसा होने दोगे?(नहीं!नहीं!नहीं! पूरी पलटन एक सुर और तेज़ आवाज़ में सामूहिक रूप से चिल्लाने लगती है) साथियों ये हमारी परीक्षा की घड़ी है।हम सबको एकजुट होकर इस प्राकृतिक आपदा से लड़ना होगा।तभी हम टिड्डीयन पर फते हासिल कर सकेंगे।फेंक दो ये बंदूकें और गोलियाँ उठाओ थाली और बजाओ ताली।
पूरे बीहड़ का सूनापन तालियों और थालियों की झनझनाहट से संगीतम हो जाता है।टिड्डियाँ दुम दबाकर उधर ही निकल लेती हैं जिधर से आई थीं।पूरी घाटी में हर्ष का वातावरण है।सरदार अपने कालिया के आईडिये से बेहद खुश है और उसे उसकी बुद्धिमत्ता पर नाज़ हो रहा है।वह कालिया को अपने पास बुलाकर अपने सीने से लगाकर कहता है कि तूने आज सिद्ध कर दिया कि तूने मेरा ही नमक खाया है न कि किसी ब्रांडेड कंपनी का।आज से साँभा को बापेंशन रिटायरमेंट दी जाती है और प्रमोशन देते हुए निशाना लगाने की जिम्मेदारी कालिया को सौंपी जा रही है।पूरी पलटन सरदार की जयजयकार कर रही है।लाॅकडाउन में डबल पेमेंट करके दारू मुर्गे का इंतज़ाम किया जाता है।अलाव जलाकर मुर्गों को भूना जा रहा है।सरदार की फरमाइश पर मेहबूबा ओ मेहबूबा गाना बजाया जा रहा है।कबीले की महिलाएं हर्षोल्लास के साथ नाँच-कूद कर रही हैं।छोटे-छोटे बच्चे अभी भी ताली थाली बजा रहे हैं।

रामकुमार सिंह
कहानीकार, व्यंग्यकार और युवा आलोचक
एएमयू हिंदी विभाग से सम्बद्ध 

(लेखक के व्यक्तिगत विचार है इससे ब्लॉगर का कोई सरोकार नहीं है)

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